सिद्धार्थ गौतम का जन्म ईसा पूर्व 563 लुम्बिनी में हुआ था. उनके पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु राज्य के राजा थे. राजकुमार का बचपन भोग विलासिता में गुज़रा और 18 वर्ष की आयु में एक स्वयंवर में उनका विवाह यशोधरा से हुआ. पुत्र राहुल का जब जन्म हुआ तो राजकुमार सिद्धार्थ की आयु 19 वर्ष की थी. इसी आयु में एक दिन राजकुमार सिद्धार्थ गौतम सत्य की खोज में परिवार और महल को छोड़ जंगल की ओर निकल पड़े. अपने समय में प्रचलित धार्मिक विचारों का अध्ययन किया, स्वाध्याय किया, तपस्या की और लगभग 35 वर्ष की आयु में उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ.
सिद्धार्थ गौतम अब बुद्ध हो गए और उन्होंने निश्चय किया कि ज्ञान के इस मार्ग के बारे में बिना किसी भेद-भाव के राजा और रंक सभी को बताएंगे ताकि सबका कल्याण हो. बुद्ध ने अपना पहला प्रवचन वाराणसी के निकट सारनाथ में पांच शिष्यों को दिया. यह पहला प्रवचन पाली भाषा में धम्मचक्कपवत्तन या संस्कृत में धर्मचक्रप्रवर्तन कहा जाता है. पहले प्रवचन में गौतम बुद्ध ने शिष्यों को बताया कि जीवन में दुःख है, दुःख का कारण है, दुःख का अंत है और दुःख का अंत करने का एक रास्ता है - आष्टांग मार्ग. उन पाँचों को पूरा मार्ग बताया और वे भी गौतम बुद्ध के साथ हो लिए.
इसके बाद गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों के साथ उत्तर भारत में दूर दूर तक पैदल यात्रा की और ज्ञान का मार्ग समझाया. वर्षा ऋतु में गौतम बुद्ध और भिक्खु किसी एक जगह रह कर विश्राम करते थे और अन्य दिनों में प्रवचन और यात्राएं जारी रहती थी. यह क्रम 45 वर्ष तक लगातार चलता रहा. ईसा पूर्व 483 में कुशीनगर में जब उनकी आयु 80 वर्ष की थी उन के अंतिम शब्द थे :
हदं हानि भिक्ख्ये, आमंतयामि वो, वयधम्मा संक्खारा, अप्प्मादेन सम्पादेय
अर्थात हे भिक्खुओ, इस समय आज तुमसे इतना ही कहता हूँ कि जितने भी संस्कार हैं, सब नाश होने वाले हैं, प्रमाद रहित होकर अपना कल्याण करो.
गौतम बुद्ध ने अपने सारे प्रवचन पाली भाषा में दिए. पाली ( पालि या पाळी ) भाषा 2600 साल पहले उत्तर भारत की जनता जनार्दन की भाषा रही होगी. सभी प्रवचन लिखित ना होकर मौखिक थे और गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद इन्हें कलमबंद किया गया. उपदेशों में गद्य, पद्य, कथाएँ, संघ के नियम, टीका टिपण्णी, संवाद, प्रश्न-उत्तर और कहीं कहीं सामाजिक व भौगोलिक चित्रण भी है. बुद्ध के वचनों के अलावा त्रिपिटक में उनके निकटतम शिष्यों और उनके बाद के अरहंतों की टीका टिपण्णी भी शामिल है. इन प्रवचन को पाली में सुत्त ( सूक्त या सूत्र ) कहा जाता है और इंग्लिश में Pali Canon. इन सभी सूत्रों के संग्रह को तिपिटक या त्रिपिटक कहा जाता है. पिटक का अर्थ है पिटारी या टोकरी और तिपिटक के तीन पिटक या भाग इस प्रकार हैं :
त्रिपिटक का पहला भाग है विनय पिटक जिसमें संघ के नियम, भिक्षुओं और भिक्षुणियों की आचार, व्यवहार और दिनचर्या सम्बंधित नियम लिखे गए हैं. इन नियमों के साथ साथ उनके आधार की भी व्याख्या की गई है ताकि संघ में रहने वाले भिक्खु और भिक्क्षुनियों में सौहार्द्र बना रहे. इस विनय पिटक में पांच ग्रन्थ हैं:
1. पाराजिका,
2. पाचित्तिय,
3. महावग्ग,
4. चुल्ल्वग्ग और
5. परिवार.
त्रिपिटक का दूसरा भाग है सुत्त पिटक जिसमें उपासकों के लिए मार्ग दर्शन है. इस सुत्त पिटक के पांच भाग या निकाय हैं:
1. दिघ्घ निकाय - इसमें दीर्घ या लम्बे सुत्त हैं,
2. मझ्झिम निकाय - इसमें मध्यम सुत्त हैं,
3. संयुक्त निकाय - इसमें सुत्तों का समूह या संयुक्त है,
4. अंगुत्तर निकाय - इसमें एक विषयी सुत्त से लेकर क्रमशः विषय बढ़ते जाते हैं और
5. खुद्दक निकाय - इसमें छोटे छोटे सुत्त हैं.
त्रिपिटक का तीसरा भाग है अभिधम्म पिटक जिसमें विशेष या उच्च शिक्षा दी गई है. इसमें बड़े तरीके से मन और पदार्थ या संसार का विश्लेष्ण है और दर्शन है. पिटक में सात ग्रन्थ हैं:
1. धम्म्संगिनी,
2. विभ्भंग,
3. धातुकथा,
4. पुग्गलपंजत्ति,
5. कथावत्थु,
6. यमक और
7. पट्ठान
कहाँ से शुरू करें ?
तीनों पिटकों में कुल सुत्तों की संख्या दस हज़ार से भी ज्यादा है. ये सुत्त अब अनुवाद में ही पढ़ने होंगे या फिर पाली भाषा सीखनी होगी. अनुवाद हिंदी, इंग्लिश और बहुत सी भाषाओँ में ( चीनी, सिंहला, थाई, बर्मी अदि ) में उपलब्ध हैं.आजकल पश्चिमी देशों में बौद्ध दर्शन पर काफी अध्ययन हो रहा है इसलिए बहुत से सुत्त और सम्बंधित टीका टिपण्णी इंग्लिश में फ्री डाउनलोड में भी मिल जाएँगी.
नए साधकों या उपासकों या गृहस्थों के लिए जो की बौद्ध संघ में प्रवेश नहीं ले रहे हैं सुत्तों की इतनी बड़ी संख्या देख कर समझ में नहीं आता कहाँ से शुरू करें हालांकि सभी प्रवचनों में ज्ञान रुपी हीरे जवाहरात बिखरे पड़े हैं. जिज्ञासु को ये भी जानकारी नहीं होती कि कौन कौन से सुत्तों में गौतम बुद्ध ने आधारभूत बातें कही हैं. कम से कम मुझे तो मैडिटेशन सीखने में और समझने में उलझन महसूस हुई थी और इसीलिये मैंने ये लेख लिखा है.
त्रिपिटक के पहले भाग याने विनय पिटक में बौद्ध संघ संबंधी नियम हैं इसलिए जिज्ञासु इसे बाद में भी पढ़ सकते हैं. इसी तरह तीसरे भाग याने अभिधम्म पिटक में उच्च शिक्षा और दर्शन है वो भी क्रमशः बाद में पढ़ा जा सकता है. दूसरे भाग या सुत्त पिटक से शुरुआत की जा सकती है. अपने अनुभव के आधार पर कुछ सुत्त चुन कर उनका परिचय दे रहा हूँ जिन्हें पढ़ कर और समझ कर आगे बढ़ने में सहायता मिल सकती है. मेरे विचार में जिज्ञासु या नए उपासक को शुरू में आत्मा, परमात्मा और पुनर्जन्म से सम्बंधित सुत्तों की पढ़ाई उलझन में डाल सकती है इसलिए पहले विपासना मैडिटेशन पद्धति सीख ली जाए और इन्हें बाद में पढ़ लिया जाए.
* धम्मचक्कप्पवत्त्न सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - यह सुत्त गौतम बुद्ध के ज्ञान प्राप्त करने के बाद का पहला प्रवचन था जो उन्होंने अपने पांच साथी सन्यासियों को दिया और उसके बाद धम्म का चक्र चलाना शुरू हुआ. इसमें मध्य मार्ग, आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग बताया गया.
* महासतिपट्ठन्न सुत्त ( दिघ्घ निकाय ) - मन और स्वयम के शरीर को जानने, जागरूक बनाने की और मैडिटेशन की विधि के बारे में.
* सतिपट्ठन सुत्त ( मझ्झिम निकाय ) - मन और स्वयम को जानने और जागरूक बनाने और मैडिटेशन की विधि के बारे में.
* अभयराजकुमार सुत्त ( मझ्झिम निकाय ) - कैसी वाणी बोलें, कब और किससे बोलें.
* अनंतपिण्डीकोवाद सुत्त (मझ्झिम निकाय ) - एक बीमार गृहस्थ अनंतपिंडिक को कैसे कल्याण हुआ.
* अन्नत्त-लक्खन सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - गौतम बुद्ध का दूसरा प्रवचन जिसमें 'अनात्म' के बारे में प्रश्नोत्तरी है.
* भाद्देकरात्त सुत्त ( मझ्झिम निकाय ) - हम वर्तमान पर ही ध्यान दें ना कि भूतकाल पर जो हमारे हाथ से निकल चुका है और ना ही भविष्य पर जो हमारे हाथ आएगा ही नहीं.
*** सबका मंगल होए ***
सिद्धार्थ गौतम अब बुद्ध हो गए और उन्होंने निश्चय किया कि ज्ञान के इस मार्ग के बारे में बिना किसी भेद-भाव के राजा और रंक सभी को बताएंगे ताकि सबका कल्याण हो. बुद्ध ने अपना पहला प्रवचन वाराणसी के निकट सारनाथ में पांच शिष्यों को दिया. यह पहला प्रवचन पाली भाषा में धम्मचक्कपवत्तन या संस्कृत में धर्मचक्रप्रवर्तन कहा जाता है. पहले प्रवचन में गौतम बुद्ध ने शिष्यों को बताया कि जीवन में दुःख है, दुःख का कारण है, दुःख का अंत है और दुःख का अंत करने का एक रास्ता है - आष्टांग मार्ग. उन पाँचों को पूरा मार्ग बताया और वे भी गौतम बुद्ध के साथ हो लिए.
इसके बाद गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों के साथ उत्तर भारत में दूर दूर तक पैदल यात्रा की और ज्ञान का मार्ग समझाया. वर्षा ऋतु में गौतम बुद्ध और भिक्खु किसी एक जगह रह कर विश्राम करते थे और अन्य दिनों में प्रवचन और यात्राएं जारी रहती थी. यह क्रम 45 वर्ष तक लगातार चलता रहा. ईसा पूर्व 483 में कुशीनगर में जब उनकी आयु 80 वर्ष की थी उन के अंतिम शब्द थे :
हदं हानि भिक्ख्ये, आमंतयामि वो, वयधम्मा संक्खारा, अप्प्मादेन सम्पादेय
अर्थात हे भिक्खुओ, इस समय आज तुमसे इतना ही कहता हूँ कि जितने भी संस्कार हैं, सब नाश होने वाले हैं, प्रमाद रहित होकर अपना कल्याण करो.
पहले पांच शिष्य - कौण्डिन्य, वप्पा, भाद्दिय्य, अस्साजी और महानामा ( विकिपीडिया से साभार) |
गौतम बुद्ध ने अपने सारे प्रवचन पाली भाषा में दिए. पाली ( पालि या पाळी ) भाषा 2600 साल पहले उत्तर भारत की जनता जनार्दन की भाषा रही होगी. सभी प्रवचन लिखित ना होकर मौखिक थे और गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद इन्हें कलमबंद किया गया. उपदेशों में गद्य, पद्य, कथाएँ, संघ के नियम, टीका टिपण्णी, संवाद, प्रश्न-उत्तर और कहीं कहीं सामाजिक व भौगोलिक चित्रण भी है. बुद्ध के वचनों के अलावा त्रिपिटक में उनके निकटतम शिष्यों और उनके बाद के अरहंतों की टीका टिपण्णी भी शामिल है. इन प्रवचन को पाली में सुत्त ( सूक्त या सूत्र ) कहा जाता है और इंग्लिश में Pali Canon. इन सभी सूत्रों के संग्रह को तिपिटक या त्रिपिटक कहा जाता है. पिटक का अर्थ है पिटारी या टोकरी और तिपिटक के तीन पिटक या भाग इस प्रकार हैं :
त्रिपिटक का पहला भाग है विनय पिटक जिसमें संघ के नियम, भिक्षुओं और भिक्षुणियों की आचार, व्यवहार और दिनचर्या सम्बंधित नियम लिखे गए हैं. इन नियमों के साथ साथ उनके आधार की भी व्याख्या की गई है ताकि संघ में रहने वाले भिक्खु और भिक्क्षुनियों में सौहार्द्र बना रहे. इस विनय पिटक में पांच ग्रन्थ हैं:
1. पाराजिका,
2. पाचित्तिय,
3. महावग्ग,
4. चुल्ल्वग्ग और
5. परिवार.
त्रिपिटक का दूसरा भाग है सुत्त पिटक जिसमें उपासकों के लिए मार्ग दर्शन है. इस सुत्त पिटक के पांच भाग या निकाय हैं:
1. दिघ्घ निकाय - इसमें दीर्घ या लम्बे सुत्त हैं,
2. मझ्झिम निकाय - इसमें मध्यम सुत्त हैं,
3. संयुक्त निकाय - इसमें सुत्तों का समूह या संयुक्त है,
4. अंगुत्तर निकाय - इसमें एक विषयी सुत्त से लेकर क्रमशः विषय बढ़ते जाते हैं और
5. खुद्दक निकाय - इसमें छोटे छोटे सुत्त हैं.
त्रिपिटक का तीसरा भाग है अभिधम्म पिटक जिसमें विशेष या उच्च शिक्षा दी गई है. इसमें बड़े तरीके से मन और पदार्थ या संसार का विश्लेष्ण है और दर्शन है. पिटक में सात ग्रन्थ हैं:
1. धम्म्संगिनी,
2. विभ्भंग,
3. धातुकथा,
4. पुग्गलपंजत्ति,
5. कथावत्थु,
6. यमक और
7. पट्ठान
कहाँ से शुरू करें ?
तीनों पिटकों में कुल सुत्तों की संख्या दस हज़ार से भी ज्यादा है. ये सुत्त अब अनुवाद में ही पढ़ने होंगे या फिर पाली भाषा सीखनी होगी. अनुवाद हिंदी, इंग्लिश और बहुत सी भाषाओँ में ( चीनी, सिंहला, थाई, बर्मी अदि ) में उपलब्ध हैं.आजकल पश्चिमी देशों में बौद्ध दर्शन पर काफी अध्ययन हो रहा है इसलिए बहुत से सुत्त और सम्बंधित टीका टिपण्णी इंग्लिश में फ्री डाउनलोड में भी मिल जाएँगी.
नए साधकों या उपासकों या गृहस्थों के लिए जो की बौद्ध संघ में प्रवेश नहीं ले रहे हैं सुत्तों की इतनी बड़ी संख्या देख कर समझ में नहीं आता कहाँ से शुरू करें हालांकि सभी प्रवचनों में ज्ञान रुपी हीरे जवाहरात बिखरे पड़े हैं. जिज्ञासु को ये भी जानकारी नहीं होती कि कौन कौन से सुत्तों में गौतम बुद्ध ने आधारभूत बातें कही हैं. कम से कम मुझे तो मैडिटेशन सीखने में और समझने में उलझन महसूस हुई थी और इसीलिये मैंने ये लेख लिखा है.
त्रिपिटक के पहले भाग याने विनय पिटक में बौद्ध संघ संबंधी नियम हैं इसलिए जिज्ञासु इसे बाद में भी पढ़ सकते हैं. इसी तरह तीसरे भाग याने अभिधम्म पिटक में उच्च शिक्षा और दर्शन है वो भी क्रमशः बाद में पढ़ा जा सकता है. दूसरे भाग या सुत्त पिटक से शुरुआत की जा सकती है. अपने अनुभव के आधार पर कुछ सुत्त चुन कर उनका परिचय दे रहा हूँ जिन्हें पढ़ कर और समझ कर आगे बढ़ने में सहायता मिल सकती है. मेरे विचार में जिज्ञासु या नए उपासक को शुरू में आत्मा, परमात्मा और पुनर्जन्म से सम्बंधित सुत्तों की पढ़ाई उलझन में डाल सकती है इसलिए पहले विपासना मैडिटेशन पद्धति सीख ली जाए और इन्हें बाद में पढ़ लिया जाए.
* धम्मचक्कप्पवत्त्न सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - यह सुत्त गौतम बुद्ध के ज्ञान प्राप्त करने के बाद का पहला प्रवचन था जो उन्होंने अपने पांच साथी सन्यासियों को दिया और उसके बाद धम्म का चक्र चलाना शुरू हुआ. इसमें मध्य मार्ग, आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग बताया गया.
* महासतिपट्ठन्न सुत्त ( दिघ्घ निकाय ) - मन और स्वयम के शरीर को जानने, जागरूक बनाने की और मैडिटेशन की विधि के बारे में.
* सतिपट्ठन सुत्त ( मझ्झिम निकाय ) - मन और स्वयम को जानने और जागरूक बनाने और मैडिटेशन की विधि के बारे में.
* अभयराजकुमार सुत्त ( मझ्झिम निकाय ) - कैसी वाणी बोलें, कब और किससे बोलें.
* अनंतपिण्डीकोवाद सुत्त (मझ्झिम निकाय ) - एक बीमार गृहस्थ अनंतपिंडिक को कैसे कल्याण हुआ.
* अन्नत्त-लक्खन सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - गौतम बुद्ध का दूसरा प्रवचन जिसमें 'अनात्म' के बारे में प्रश्नोत्तरी है.
* भाद्देकरात्त सुत्त ( मझ्झिम निकाय ) - हम वर्तमान पर ही ध्यान दें ना कि भूतकाल पर जो हमारे हाथ से निकल चुका है और ना ही भविष्य पर जो हमारे हाथ आएगा ही नहीं.
* चेतना सुत्त ( अंगुत्तर निकाय ) - मन अच्छा हो तो अच्छे काम होते जाते हैं.
* कच्चायानगोत्त सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - गौतम बुद्ध का कात्यायन को सम्यक दृष्टि पर उपदेश.
* कक्चुपम्म सुत्त ( मझ्झिम निकाय ) - कैसे घृणा से दूर रहें और मित्रता का भाव रखें.
* कलह-विवाद सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - कलह, विवाद, आपसी झगड़े, स्वार्थ और घमंड कैसे पैदा होते हैं.
* करणीय मित्ता सुत्त (सन्युक्त निकाय ) - मन में करुणा, सदभाव और मित्रता सभी के लिए हो.
* नगर सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - गौतम बुद्ध ने बताया कैसे उन्होंने चार आर्य सत्य और प्रतीत्य - समुत्पाद का नियम खोजा.
* पव्वज्जा सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - राजा बिम्बिसार की सिद्धार्थ गौतम से मुलाकात.
* करणीय मित्ता सुत्त (सन्युक्त निकाय ) - मन में करुणा, सदभाव और मित्रता सभी के लिए हो.
* नगर सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - गौतम बुद्ध ने बताया कैसे उन्होंने चार आर्य सत्य और प्रतीत्य - समुत्पाद का नियम खोजा.
* पव्वज्जा सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - राजा बिम्बिसार की सिद्धार्थ गौतम से मुलाकात.
* पव्वोत्तमा सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - राजा पसेनदी से गौतम बुद्ध का वार्तालाप.
* उपझ्झात्थाना सुत्त ( अंगुत्तर निकाय ) - पांच तथ्य जिन पर सभी को विचार करना चाहिए.
* उपनिसा सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - प्रतीत्य समुत्पाद से जुड़ी शर्तें.
* वित्तक्कसंथाना ( मध्यम निकाय ) - तृष्णा, द्वेष और संदेह से कैसे बचें.
*** सबका मंगल होए ***
4 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/10/blog-post_27.html
This is the great philosophy of Buddha and his Dhamma
Thanks 'Unknown'.
धन्यवाद Vikas . आपकी साइट में किताबों की झलक होती तो अच्छा होता।
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