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Sunday, 31 December 2017

पहाड़ी मसाले

पिछले दिनों ऋषिकेश से आगे देवप्रयाग की ओर जाना हुआ. आम तौर पे तो सड़क किनारे चाय की दुकानें  नज़र आया करती थीं पर इस बार बहुत सी छोटी छोटी दुकानें दिखाई पड़ीं जिनमें पैकेट्स रखे हुए थे. गाड़ी रोक कर देखा तो स्ठानीय दालें और मसाले किलो और आधा किलो के पैक में बिक रहे थे. पहाड़ी किरयाना !

पहाड़ी खेती आसान नहीं है क्यूंकि सारा काम खुद ही करना पड़ता है ट्रेक्टर वगैरा नहीं चल सकते हैं. सिंचाई के साधन भी नहीं हैं बस मानसून भरोसे है. गाँव में जवान लोग नौकरी के लिए पलायन कर गए हैं और ज्यादातर पेंशनर और बच्चे हैं  खेती के लिए जोश कम होता जा रहा है. 

इनमें से कुछ चीज़ों  के नाम तो आप जानते ही होंगे जैसे तौर या तुर या तुड़, गहथ या गैथ, लोविया याने लोबिया, हल्दी, मिर्च वगैरा बाकियों के बारे में जो जानकारी मिली वो नीचे दी हुई है

चलिए साब सौदा हो गया 

दालें - रैश को रयास या झिलंगी भी कहा जाता है जो हलकी हरी या पीली दाल है. सुन्टा या लोविया का दूसरा नाम लोबिया भी है.
अनाज - भट्ट दो प्रकार के हैं काले और सफ़ेद. सफ़ेद भट्ट सोयाबीन ही है. तवे पर भट्ट बिना तेल के भून कर चबैने के काम आते हैं. कौणी और झंगोरा चावल हैं जिन्हें स्वांत के चावल भी कहते हैं.
मसाले - फरण एक तरह का धनिया है जो सुखा कर छौंक या तड़के में इस्तेमाल होता है. यह ऊँचाई पर ही पैदा होता है. जख्या हरी सरसों या राई की तरह है जो हरी सब्जियों में छौंक लगाने के काम आता है. कंडाली या बिच्छू बूटी हालांकि छू जाने से बुरी तरह से जलन पैदा कर देती है परन्तु इसे उबाल कर एक ख़ास अंदाज में साग की तरह पकाई भी जा सकती है.


- गायत्री वर्धन की प्रस्तुति. Contributed by Gayatri Wardhan.



3 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/12/blog-post_31.html

Unknown said...

हिमाल्टो की अपनी अलग ही पहचान है । साधुवाद आपका जानकारी साझा करने के लिए एवम सुंदर लेख

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद। Unknown अपनी प्रोफाइल पूरी कर देते तो पता चलता की किस से संवाद हो रहा है!