केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान हजारों पक्षियों का घर है। इसे भरतपुर पक्षी विहार, केवलादेव घना पक्षी विहार भी कहते हैं। अंदर ही केवलादेव मदिर भी है जिसके नाम पर यह उद्यान है। घना का स्थानीय भाषा में मतलब है की वो जगह जहाँ घास, जंगल, दलदल और पानी का भराव हो जाता हो। घना का क्षेत्रफल लगभग 29 वर्ग किमी है। बारिश के मौसम के बाद यहाँ बिलकुल सूखा पड़ जाता है। पर पक्षियों के लिए पानी का पूरा इंतेज़ाम है। पास ही गंभीर और बाणगंगा नदियां भी हैं। 1971 में इसे पक्षी विहार का दर्जा दिया गया, 1982 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया और 1985 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर की सूची में शामिल कर दिया गया।
सांभर झील की सैर के बाद केवलादेव पक्षी विहार में हरियाली दिखी और पक्षी भी ज्यादा मिले। सांभर में दूर दूर तक सूखी धरती और पक्षी भी कम नज़र आ रहे थे। सांभर से जयपुर होते हुए भरतपुर लगभग छे घंटे की ड्राइव के बाद पहुंचे। भरतपुर में हर बजट के होटल उपलब्ध हैं। पक्षी विहार के पास ही एक होटल में डेरा डाल दिया, जहाँ से सुबह पैदल भी विहार में जा सकते थे। यहाँ टूरिस्ट भी ज्यादा थे जिनमें कुछ फिरंगी भी नज़र आए। भरतपुर शहर पुराना होते हुए भी काफी साफ़ नज़र आया। यहाँ एक किला भी है लोहागढ़ समय हो तो जरूर देखें। वैसे अगला फोटो ब्लॉग उसी पर होगा।
केवलादेव उद्यान में नवम्बर के महीने से यूरोप और मध्य एशिया के ठन्डे इलाकों से पक्षी आना शुरू हो जाते हैं। इनमें सारस, टील, तरह तरह की बत्तखें और बगले शामिल हैं। दिसंबर में पक्षियों और पर्यटकों की ज्यादा चहल पहल देखने को मिलती है। इसके अलावा यहाँ बन्दर, लंगूर, नीलगाय, जंगली सूअर, लोमड़ी, चीतल और हिरन पाए जाते हैं। अजगर भी धूप सेकते हुए मिल जाएंगे।
पार्क में जाने के लिए टिकट लेना होगा। गाइड और ई-रिक्शा घंटों के हिसाब से पैसे लेते हैं। साइकिल भी किराए पर मिल सकती है। गाइड ले लेना चाहिए क्यूंकि उस के पास पावरफुल दूरबीन होती है और वो पक्षियों के नाम और पहचान बता देता है अन्यथा सब पक्षी छोटे बड़े बगले ही लगते हैं। पार्क बहुत बड़ा होने के कारण कई ब्लॉक में बंटा हुआ है। गाइड को अंदाज़ा रहता है कि उल्लू कहाँ दिखेगा या फिर सारस किस ब्लॉक में हो सकता है। तीन घंटे की विज़िट का खर्चा दो लोगों की एंट्री टिकट के साथ ढाई तीन हजार तक हो सकता है।
पक्षियों को शांति पसंद है इसलिए गाड़ी अंदर ले जाना मना है। उन्हें दाना चुग्गा देने की जरूरत भी नहीं है क्यूंकि एक तो वो नॉन - वेज पसंद करते हैं और दूसरे वो जमीन पर या किनारे पर नहीं आते। मोबाइल ले जा सकते हैं पर बहुत अच्छी फोटो नहीं आ पाती, कारण ये की पक्षी पानी में और पेड़ों पर ही होते हैं नज़दीक किनारे तक नहीं आते और सुबह के समय थोड़ा सा कोहरा भी होता है। पार्क सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है। दोपहर को पीने के पानी और टोपी की जरूरत पड़ सकती है। पार्क के अंदर ही केवलादेव मंदिर है और पास में एक कैफ़े भी है।
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो :
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1. इस बड़े बगले ( Painted Stork, जांघिल या ढोक ) ने घोंसले की जगह चुन ली है। अब यह अपने पार्टनर के साथ सूखी लकड़ियों और तिनकों से जल्द ही घोंसला तैयार कर लेगा। इसे खाने के लिए यहाँ कई तरह की मछलियां, केंचुए, मेंढक और कीट पतंगे मिल जाएंगे |
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2. केवलादेव मंदिर पार्क के अंदर ही है। इसी शिव मंदिर के नाम से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान का नाम भी है |
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3. चलिए अंदर चलें ! |
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4. पशु पक्षियों को बचाएं, वे भी हमारी धरोहर हैं 😊 |
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5. हम पंछी एक डाल के |
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6. पक्षी कॉलोनी |
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7. ग्रेट कारमोरेंट के परों में चिकनाई नहीं होती इसलिए पंख गीले हो जाते हैं। पंख सुखाने के लिए इसे बार बार धूप में परों को फैला कर तपस्या करनी पड़ती है ! |
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8. इस तरह के टापू इन पक्षियों को पसंद हैं जहाँ पानी के बीच थोड़ी सी जमीन हो और दो चार पेड़ हों। ये पेड़ भी चुनते हैं जो मजबूत हो। ये पेड़ एकेसिया प्रजाति का है और ये इन्हें बहुत पसंद है। पेड़ की डालियों पर नुकीले कांटे होते हैं जिसके कारण सांप इस पर नहीं चढ़ते। अंडे और बच्चे इसलिए सुरक्षित रहते हैं |
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9. पर्यटक और गाइड की दूरबीन |
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10. बड़ी दूर से आए हैं। साइबेरिया से आए मेहमानों को देख कर याद आ जाता है जावेद अख्तर का फ़िल्मी गीत - पंछी, नदिया, पवन के झोंके, कोई सरहद ना इन्हें रोके ! |
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11. अजगर धूप का आनंद ले रहा है |
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12. ये फ़ोटो और नीचे वाली फ़ोटो, गाइड की दूरबीन के आगे मोबाइल फोन रख कर खींची गई हैं। सुबह हल्का सा कोहरा रहता है इसलिए बहुत साफ़ तो नहीं आई परन्तु आपको अंदाज़ा लग गया होगा की यहाँ कितनी ज्यादा वैरायटी है पक्षियों की |
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13. इस बगले की लम्बी गर्दन देखिये ये दूर तक शिकार मारने में सहायक है। फ़ोटो में इस बगले का रंग नहीं दिख रहा पर इसका नाम पर्पल हेरॉन है |
14. इतने पक्षी एक साथ हों तो बहुत कोलाहल होता है पर अच्छा लगता है! वो भी आनंद लें और हम भी !
15. ई-रिक्शा सब जगह नहीं ले जाता इसलिए कहीं कहीं पैदल भी चलना पड़ता है। बेंच पर आप आराम से बैठें, थकावट दूर करें और प्रकृति का नज़ारा भी देखें
16. गाइड ने बताया की ये पक्षी दो से चार घंटे तक शिकार ढूंढते हैं और फिर एक दो घंटे विश्राम करते हैं
प्रवासी पक्षियों के बारे में और अधिक जानकारी के लिए पढ़ें :
Common Migratory and Resident Birds
By-Pankaj Goel, IFS and Ghanshyam Shukla, IFS,
2023.
PDF available on website of Haryana State Biodeversity Board
9 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2024/12/blog-post_5.html
Very interesting.......i visited this place in my childhood
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर शुक्रवार 6 दिसंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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अच्छी जानकारी
सुन्दर
Thank you Manish. I visited again after 22 years! Exciting to see birds who travel thousands of km and ariving at this place.
Dhanyvaad Yadav ji.
Shukriya Vivek
Shukriya Joshi Sir
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