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Sunday, 1 December 2024

सांभर झील की सैर 

नवम्बर के महीने में जयपुर से शादी का निमंत्रण आया तो तैयारी शुरू कर दी। मौसम अच्छा होगा और सांभर झील में दूर दूर से पक्षी भी आए होंगे तो उसका भी आनंद लेंगे। सांभर झील और उत्तर भारत की कई झीलों में अक्टूबर / नवम्बर में यूरोप के ठन्डे इलाकों से बहुत से पक्षी आने शुरू हो जाते हैं मसलन सारस, आर्कटिक कुररी आदि। यहाँ आकर ये घोंसला बनाते हैं, इनके बच्चे होते हैं और फरवरी / मार्च में ये वापिस चल पड़ते हैं। ये भी विचार आया कि जयपुर से वापसी में भरतपुर भी जा सकते हैं जहाँ केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भी देखा जा सकता है। वहां भी पक्षी आते हैं। और आगे बढ़ें तो गुड़गांव में सुल्तानपुर पक्षी विहार भी देखा जा सकता है। तो इस बार की यात्रा पक्षियों के नाम रहेगी ! 

पंछियों का प्रवास और उनका दूर-दूर की यात्रा करना वैज्ञानिकों और आम आदमी के लिए हमेशा कोतूहल का विषय रहा है। कुछ पंछी दो चार किमी तक ही उड़ते फुदकते रहते हैं. गिद्ध और चील शायद 100-200 किमी दूर तक खाने की तलाश में निकल जाते हैं और कुछ लम्बी यात्रा कर के साइबेरिया से राजस्थान तक भी पहुँच जाते हैं। जयपुर के अखबार के मुताबिक एक क्रेन या सारस 3700 किमी से ज्यादा दूरी तय कर के राजस्थान पहुंचा। पिछली बार जब यहाँ आया था तो उसे पकड़ कर उस की टांग में शोध कर्ताओं ने एक रिंग पहना दिया था जिसमें चिप जड़ा हुआ था। इस बार आया तो फिर पकड़ा गया और पता लगा गया कि ये कहाँ कहाँ मटरगश्ती कर रहा था। 

इन प्रवासी पक्षियों में कौन सी ऐसी चीज़ है जो इन्हें i) दिन और रात में सही दिशा बताती है,  ii) रफ़्तार तेज़ रखने की ताकत देती है और  iii) हिमालय लांघने में ऑक्सीजन भी पूरी देती है ? इन सवालों का जवाब तो वैज्ञानिक ही दे पाएंगे हम तो इन्हें देखने का लुत्फ़ उठाएंगे ! 

ज्यादातर पक्षियों का प्रवास उत्तर के ठन्डे इलाकों से दक्षिण के गर्म इलाकों की तरफ होता है। बहुत थोड़ी सी चिड़ियाँ ऐसी हैं जो दक्षिण से उत्तर की और प्रवास करती हैं। प्रवास का कारण क्या है ? एक तो है मौसम से बचाव - क्यूंकि जब हर तरफ खेत खलिहान और पेड़ों पर बर्फ जम जाए और नदियों तालाबों का पानी भी जमने लगे तो खाने के लिए कीट पतंगे मिलना मुश्किल हो जाता है और ठण्ड में जीना भी मुश्किल हो जाता है। दूसरा है प्रजनन - खाना पानी नहीं होगा तो बच्चे पालने मुश्किल हो जाएंगे। तो फिर चलो उड़ान भरो पापी पेट का सवाल है ! यहाँ भी प्रकृति का खेल देखिये - अगर एक पंछी सांभर झील के किनारे पैदा हुआ और माँ बाप के पीछे पीछे साइबेरिया चला गया तो रास्ता याद कर लेता है। फिर वो बच्चा बड़ा हो कर वापिस भी यहीं आता है। याने लम्बी यात्रा जन्मघुट्टी में ही मिली हुई है! 

वैज्ञानिक बताते हैं की यात्रा की शुरुआत नर पक्षी करता है और उसके पीछे मादा और उसके पीछे बच्चे उड़ते हैं।  कई बार मादा पक्षी नर पक्षी के दो तीन दिन बाद निकलती है। शायद इसी पर मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा है : 

          "उड़ने दे परिंदों को आज़ाद फ़िज़ा में ग़ालिब, जो तेरे अपने होंगे वो लौट आएंगे किसी रोज़ !"

कहा जाता है की उत्तरी अमरीका से दक्षिणी अमरीका में भी चिड़ियों का प्रवास ऐसा ही होता है जिसके कारण वहां रेड इंडियन ने अपने कैलेंडर के महीनों के नाम प्रवासी चिड़ियों के नाम पर रखे हुए थे! इनकी एक और ख़ास बात है की ये झीलों के आसपास ही डेरा डालते हैं। शायद मछली और अन्य चुग्गा - दाना यहाँ आसानी से मिल जाता होगा। अगर झील में छोटा टापू हो और उस पर पेड़ हों तो वहां इनका जमावड़ा जरूर मिलता है।  

पंछी पंचायत - केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर 

झील तालाब और दलदल जैसी जमीन - Wetland या Marshland, और इस से जुड़े पशु पक्षियों को बचाने के लिये ईरान के शहर रामसर ( Ramsar ) में 1971 में एक सम्मलेन हुआ था जिसमें बहुत से देशों ने भाग लिया था। जल - पक्षियों की रक्षा के लिए इस सम्मलेन में 'रामसर घोषणा' की गई थी। आपको केवलादेव पक्षी विहार जैसी जगहों पर 'रामसर साइट ' नामक बोर्ड नज़र आएगा। 

                                                                         सांभर झील के किनारे 

प्रदूषण और शोर-गुल के प्रति ये पक्षी बड़े संवेदनशील हैं। और अगर साइबेरिया में बर्फबारी देर से शुरू हो तो इनकी विदेश यात्रा भी देर से शुरू होती है। रोजर टोरी पीटरसन कहते हैं कि "पक्षी पर्यावरण के संकेत देते हैं। अगर वे संकट में हैं, तो समझ लीजिये कि हम भी जल्द ही संकट में होंगे।" 

                                       
                                              प्रवासी पक्षियों के हवाई मार्ग - विकिपीडिया से साभार 

जिस शादी में हम जयपुर आए थे वो सम्पन्न हो गई। शादी की ख़ास बात यह थी की दूल्हा मथुरा का और दुल्हन पौड़ी गढ़वाल की थी। इत्तेफ़ाक से पंडित जी भी उत्तराखंडी थे। कहने लगे की आजकल लव मैरिज का चलन बढ़ गया है। कोई बता सकता है की सबसे पहले लव मैरिज कहाँ हुई थी ? सब पंडित जी की तरफ देखने लगे की आप ही बताओ। पंडित जी बोले ; 'भई सबसे पहले उत्तराखंड में लव मैरिज हुई ! अब बताओ किसकी ? अरे शकुंतला और दुष्यंत की !' 😍

आप जब तक इस लव मैरिज पर विचार करें हम सामान पैक कर लेते हैं और फिर चलते हैं सांभर झील की ओर। पेट्रोल टंकी फुल करवा ली है, हवा चेक करा ली है और नाश्ता रास्ते में करेंगे। चलिए प्रस्थान किया जाए। राजमार्ग तो ठीक मिला पर फुलेरा पहुँच कर सड़क संकरी और कई जगह खराब मिली।  

सांभर साल्ट लेक 

जयपुर शहर से सांभर झील की दूरी सौ किमी से कम है हालांकि सांभर लेक जयपुर जिले में ही है। ये भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है। इसकी लम्बाई लगभग 35 किमी है, चौड़ाई 3 किमी से 11 किमी तक है और ये झील अजमेर और नागौर जिलों को छूती है। इस झील की गहराई एक फुट से लेकर 10 फुट तक है। इसमें चार नदियों का पानी गिरता है : रूपनगढ़, मेंथा, खारी और खंडेला। कुछ लोग इसमें पांचवीं नदी बांडा भी जोड़ते हैं। यहाँ की चट्टानों में नमक है जो पानी में घुल जाता है और जब पानी सूखता है तो नमक सतह पर आ जाता है। लगभग दो लाख टन नमक यहाँ से सालाना निकाला जाता है।  

सूखती झील का एक दृश्य। जहाँ तक नज़र जाती है सूखी जमीन फिर हलकी गीली जमीन और उसके बाद कम पानी और आखिर में नीला पानी और धरती के साथ आकाश का मिलन। ये एक नायाब नज़ारा है जो हमें भारत में कहीं और नहीं दिखा  


सांभर तहसील पहुँच कर पहला काम था ठिकाना ढूँढना। हमें सड़क पर ही रिसोर्ट का बोर्ड दिखा तो अंदर चले गए और फिर टेंट में सामान डाल दिया। होटल वाले की सलाह पर हम शाकम्बरी मंदिर की ओर निकल गए। लगभग 15 किमी रास्ता झील के साथ साथ एक गांव में से गुजरता हुआ मंदिर तक ले गया। मंदिर, छतरी और झील के कुछ फोटो प्रस्तुत हैं :     

झील के किनारे पथरीली जमीन, आगे नमक की सफ़ेद परत, उसके आगे दलदल और सबसे आगे गहरा पानी 

सूखी दरारों वाली जमीन पर एक मरी हुई चिड़िया जो अब लोमड़ी के काम आएगी 

झील के पास आराम से छाया में बैठ कर चिड़ियाँ देखें। यहाँ दोपहर की धूप बहुत तीखी है और हवा तेज़ अपना ख्याल रखें 

बरगद - बहुत सी देसी बिदेसी चिड़ियों का निवास 
  
सुंदर रिसोर्ट पर रात को ठंडी हवा के झोंके नींद में खलल डालते रहे  

                                             सूखी जमीन पर गाड़ी चलाई जा सकती है पर गीली पर नहीं                                             

             
                                                           
वीरान ,  बियाबान और सुनसान !
     
         
                                                       
          एक घायल नीलगाय सड़क पर मिली 
      

सांभर लेक का प्रमुख आकर्षण फ्लेमिंगो या मराल पक्षी है। ये 4.5 किलो वजन और लगभग 43 से 60 इंच ऊँचा होता है और सभी महाद्वीपों में पाया जाता है। इसका जीवन काल 30-40 बरस का है। ये ज्यादातर दिसंबर में दिखाई देता है। सांभर के साल्ट - पैन अर्थात नमक के खेत में ज्यादा समय बीताता है।  इसलिए झील के किनारे कम नज़र आता है। हम दूर से ही फ्लेमिंगो के झुण्ड को देख पाए वो भी दूरबीन से। मोबाइल से फोटो भी ज्यादा अच्छी नहीं आ पाती। आप भी देखिये :  
 
फ़्लैमिंगो-विकिपीडिया से साभार 

  

      
शाकम्बरी देवी मंदिर परिसर का प्रवेश द्वार। पीछे पहाड़ी के ऊपर है एक छतरी। ये किसने और कब बनवाई थी यह स्पष्ट नहीं हुआ 

बहादुर बच्चे ! छतरी से ली गई फोटो। कटीली झाड़ियां और धूप से तपते ड़ेढे मेढ़े पत्थरों पर हँसते हुए चढ़ गई ये लड़कियां 

छतरी से दिखता सुन्दर दृश्य। बाएं सूखी झील, सामने सड़क और दाएं कीकर का जंगल 

छतरी की ओर 
  


शाकुम्भरी मंदिर 

मंदिर के अंदर एक प्रतिमा 

मंदिर के बाहर कल्प वृक्ष 

मंदिर के पास धर्मशाला 

मंदिर के नियम 
 


उल्टा सांभर 

सांभर होटल में मालूम हुआ की पास में एक जगह है 'उल्टा सांभर' ! सांभर से सात - आठ किमी होगा। वहां पहुँच कर देखा तो पता लगा कि एक पुरातत्व विभाग की साइट है जहाँ तीसरी ईसापूर्व के कुछ अवशेष मिले हैं। यहाँ से 200 सिक्के प्राप्त हुए थे जो इंडो - ग्रीक, योद्धेय और कुषाण वंश के समय के हैं और अब कोलकाता म्यूजियम में रखे हुए हैं। साइट सुनसान थी कोई गाइड भी नहीं था पर सौ बीघे में फैला पार्क जरूर सुन्दर था। ASI के बोर्ड के अनुसार किसी समय यह चौहान लोगों का मुख्य शहर और राजधानी था। परिसर के गेट के पास एक दरगाह है जिसका नाम है - दरगाह हज़रत मखदूम आज़म साहब ( रा अ ) वहां एक बोर्ड पर एक किस्सा लिखा हुआ था जिसमें 'उल्टा सांभर' नाम का कारण बताया गया था। इसके अलावा 'उलटे सांभर' में कुछ और देखने लायक नहीं था। 

दरगाह का बोर्ड 
   
खुदाई में निकली ईंटों को फिर से सजाया गया है 


यहाँ भी किला या महल रहा होगा ?  


एक और साइट  

बहुत सुन्दर बाग़ है चाहे इसे उल्टा सांभर ही क्यों न कहें 

खुदाई में यहाँ 200 प्राचीन सिक्के मिले थे।  कई तरह से लिखा हुआ मिला - साकम्भरी, शाकुम्भरी और शाकमबरी