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Thursday, 29 February 2024

Anupu, Nagarjuna Sagar

Anupu is a Buddhist archaeological site located on the banks of Krishna river, about 18 Km from Nagarjuna Sagar. It is 80 hectare site that contains ruins of Buddhist university, an amphitheatre and monasteries which were said to have been established by famous Buddhist philosopher Acharya Nagarjuna. The Nagarjuna Sagar is partially in Palnadu, Andhra and partially in Nalgonda, Telangana. Distance of Nagarjuna Sagar from Vijaywada is about 205 km and from Hyderabad is 156 km. 

2. Acharya Nagarjuna was a great Buddhist philosopher and logician and is also known as the Second Buddha. He wrote many books of which Mulamadhamakakarika is best known for logically upholding the Buddhist principals. Central concept of Nagarjuna is 'emptiness or Sunyata of all things'. He stated that 'all things and phenomena are empty of intrinsic-nature or Svabhava' and that all things are inter-dependent. 

3. In December 1955 Prime Minister Nehru inaugurated the construction of masonary Nagarjuna Sagar Dam which went on for 12 years. For this Muktyala Raja ( Raja Vasireddy Ramgopala Krishna Maheswara Prasad ) donated a sum of 110 million GBP and 55000 acres of land. Prior to starting construction of the dam there was intense debate in Parliament on heritage vs development but the dam lobby won. 

4. The construction of the dam was to submerge an ancient Buddhist settlement at the reservoir site. The site called Vijayapuri, was the capital of Ikshvaku kings in 1st and 2nd centuries. These kings were successors of Satvahanas in the Eastern Deccan. The Buddhist settlement was therefore excavated before building the dam. The ruins, bricks, pillars etc were picked up and painstakingly rearranged in Anupu village. Large number of artefacts found during digging were moved to a museum on the hill island of Nagarjunakonda in the middle of reservoir.  

5. Early morning visit is suggested as it is cool in the morning. Buddhist University and an amphitheatre are spread across a large area and one needs to walk around quite a bit. Afternoon sun is hot. There is no restaurant. Guide was also not available at the time of visit. Ample parking area is available. No entry fee. Site remains open from sunrise till sunset. The place is pretty scenic and beautiful.

6. A small river beach on backwaters of River Krishna is at a distance of about 2 km. No proper road is there. However fishermen use this place with couple of boats and pick-up vans. Otherwise its a lonely but pleasant site. 

Some photographs:

1. Many such short and tall pillars are seen in Anupu
 
2.     Rearranged Buddhist Stupa of red baked bricks 


3. Methodically laid out rooms and broad lanes of university

4. White pillars in brick work

5. This may have been part of a hall 

6. Looks like a class room with a place for teacher on the podium

7. Under the cool shade of Peepal Tree planted by Dalai Lama. Afternoons are hot here

8. Entrance to Amphitheatre 

9. Performance area of the amphitheatre. Area might be 100'  300' with large seating capacity and a slope on the top 

   
10. Lovely carving may be for water management 

11. Meditation Cells

  
12. Stupa platform made up of broad red bricks is quite high 


13. Notice Board
      
14. Location of Anupu 

15. Excerpts from ASI report of 1954 - 55 about excavations that took place prior to building of Nagarjuna Sagar Dam 





Friday, 23 February 2024

रणथम्भोर का किला और मंदिर, राजस्थान

रणथम्भोर का किला एक विश्व धरोहर है( World Heritage Site ) और राजस्थान का महत्वपूर्ण पर्यटन केंद्र है. यह किला सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन से 13 किमी दूर है. किला एक पहाड़ी पर है जिसका नाम थम्ब है और नीचे घाटी में छोटी पहाड़ी है रण. इसलिए इसका नाम रण-स्तम्भ-पुरा पड़ा था जो कालांतर में रणथम्भोर हो गया है. 

किले में प्रवेश के लिए पांच दरवाज़े, गेट या पोल थे: गणेश पोल, हाथी पोल, सूरज पोल, नौलखा दरवाज़ा और तोरण या अँधेरी दरवाज़ा। जोगी महल, बादल महल, हमीर महल, जयसिंह की छतरी, पद्मा तालाब, त्रिनेत्र गणेश मंदिर आदि देखने लायक हैं. 

थम्ब पहाड़ी के चारों ओर गहरी खाइयां हैं जिनमें पानी भरा रहता है. इसलिए इस किले को युद्ध में जितना आसान नहीं था. इस किले की लम्बे समय की घेराबंदी करना ही कामयाब रणनीति थी. इसीलिए यहाँ घेराबंदी कई बार हुई. 

इतिहासकार इसे पांचवीं शताब्दी के राजा जयंत का बनाया हुआ मानते हैं. ये किला दिल्ली, मालवा और मेवाड़ के बीच में है और इस कारण इस किले ने बहुत से युद्ध और घेराबंदी देखी हैं. यहाँ चौहान, राणा, खिलजी, बलबन और कछवाहा राजाओं ने राज किया है. आज़ादी से पहले किला जयपुर के राजा के आधीन था. 

यह किला चारों ओर जंगल से घिरा हुआ है जिसमें रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान है जो 1334 वर्ग किमी में फैला हुआ है. वहां 'जंगल सफारी' की जा सकती है. हो सकता है की आपको बाघ नज़र आ जाए हालांकि हमारी सफारी में बाघ से मुलाकात नहीं हुई. 

एक और दिलचस्प बात है कि रणथम्भोर किले के नाम पर रणथम्भोर व्हिस्की भी है जो रेडिको-खैतान कंपनी बनाती है. इस व्हिस्की की बोतल की कीमत अलग अलग प्रदेशों 1500 से 2700 रूपए तक है. आप किला भी घूमें और सुरूर भी लें! 😍 

त्रिनेत्र गणेश मंदिर की यहाँ बहुत मान्यता है और बताया गया की साल भर में 60-70 लाख लोग दर्शन के लिए आते हैं. आप गाड़ी ला सकते हैं. पर पार्किंग करने में और पार्किंग से निकलने के लिए मशक्कत करनी पड़ सकती है. पार्किंग के अलावा गाइड और और अंदर जाने के लिए टिकट है. कड़ी चढ़ाई है, रेस्तरां नहीं है और दोपहर की धूप तीखी है. सब कुछ देखने में दो से चार घंटे लग सकते हैं. अपना ख़याल रखें। कुछ फोटो प्रस्तुत हैं:

बुर्ज, पानी से भरी खाई हुए और पीछे पहाड़ियां 
   
बड़ी बड़ी दीवारों को बड़े तरीके से चट्टानों से मिला दिया गया है 
    

चलते रहो !

इधर भी नज़र डालें 

राजा सा अर राणी सा 

बहरूपिया भी यहाँ कुछ कमा लेता है. फिलहाल तो थका हुआ लग रहा है 

रणमल महावत का सिर. गाइड ने बताया कि एक युद्ध में रणथम्भोर के राजा जीत रहे थे परन्तु रणमल महावत ने महल में सूचना दी की राजा सा हार गए हैं. महल में कोहराम मच गया. तब तक राजा सा आ गए और पूरी बात सुनने के बाद महावत का सिर कलम कर दिया। इस गद्दार की मूर्ति को यहाँ पत्थर मारने और गाली देने के लिए लगाया गया है 

किला भारी पत्थरों से बनाया गया है और बहुत मजबूत है  

चारों तरफ ऊँची मजबूत दीवारें और ऊँचे बुर्ज हैं 
       
किला बहुत लोकप्रिय है और छुट्टियों में बहुत सैलानी आते हैं 

किला 700 फ़ीट ऊँची पहाड़ी 'थम्ब' पर बना है 

किले के गेट तक का रास्ता घुमावदार ही बनाया जाता था ताकि हाथी लम्बी रेस लगा कर लकड़ी का गेट ना तोड़ डाले 

गेट कितना भी ऊँचा क्यों ना हो नक्काशी जरूर मिलेगी 
   
32 खम्बों वाली तिकोनी छतरी 

 तिकोने प्लेटफार्म पर बनी छतरी में 32  खम्बे हैं. केंद्र में तीन गुम्बद हैं. ये 18वीं सदी की रचना है. राजपूत राजाओं का स्मारक छतरी कहलाता है.

जैन मंदिर 

मंदिर के अंदर जाने का रास्ता 

त्रिनेत्र गणेश 

अन्नपूर्णा मंदिर ऊँचे प्लेटफार्म पर बना है जिसमें अर्ध मंडप, मंडप और गर्भगृह शामिल हैं. यह मंदिर 1841 में बनाया गया था. इसमें शिवलिंग स्थापित है छत समतल है और शिखर नहीं है. अंदर दीवार पर दो पत्थर के पैनल हैं जिन पर चिड़ियाँ और फूल उकेरित हैं   

किले के बारे में सूचना 

ब्लॉग पर पधारने के लिए धन्यवाद 


Friday, 16 February 2024

कोटे श्री प्रसन्न वेंकटरमण स्वामी मंदिर, बैंगलोर

कोटे श्री वेंकटरमण स्वामी मंदिर सन 1689 में मैसूर के राजा चिक्कादेवराज वाडियार ने बनवाया था. ये मंदिर द्रविड़ और विजयनगर शैली का मिलाजुला रूप है. कन्नड़ में कोटे का अर्थ किला है और मंदिर किले के अंदर स्थित था इसीलिए मंदिर के नाम के साथ 'कोटे' शब्द भी जुड़ गया. अब किले की जमीन पर सड़कें और कई इमारतें बन चुकी हैं और मंदिर के पास अब कृष्ण राजेंद्र रोड है. टीपू सुल्तान का महल भी इस मंदिर से जुड़ा हुआ है. यह मंदिर कर्णाटक के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है.

मंदिर में शिखर, मंडप ( हॉल या मंतपा ) और गर्भ गृह आपस में जुड़े हुए हैं. खम्बों के सहारे छत टिकी है. खम्बों पर विजयनगर शैली में नक्काशी है और 'यली' नाम का मिथक पशु अंकित है. मंदिर की मुख्य मूर्ति काले सालिग्राम पत्थर की है. मंदिर कर्णाटक के अन्य मंदिरों से मिलता जुलता है. यहाँ वैकुण्ठ एकादशी धूमधाम से मनाई जाती है. 

मेट्रो स्टेशन और बस स्टॉप आसपास ही हैं. कुछ फोटो प्रस्तुत हैं:

1. मंदिर का शिखर 

2. मंदिर से जुड़ा हुआ सत्संग हॉल  

3. प्रवेश और दीप स्तम्भ ( गरुड़ गम्बा )

4. गर्भ गृह का प्रवेश द्वार 

5. गर्भ गृह की दीवार पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सप्तऋषि, सप्तमातृका, योद्धाओं और अष्ट दिक्पालों की मूर्तियां बनी हुई हैं 

6. नक्काशी वाले 'यली' खम्बे 

7. शिखर का एक दृश्य  

8. गौतम बुद्ध की मूर्ति परन्तु हाथ में गदा है. ऐसी मूर्ति पहली बार देखी !
      
9. केतु  


10. पारम्परिक परिधान में वरिष्ठ भक्त गण 

11.  मंदिर का सूचना पट. मंदिर के पीछे से अंग्रेज सिपाही ने टीपू को गोली मारी पर वो गोली मंदिर के गरुड़ स्तम्भ पर जा लगी और टीपू बच गया. हैदर अली और टीपू दोनों ही इस मंदिर का बहुत सम्मान करते थे   

 
12. मंदिर का सूचना पट   

     
13. टीपू के महल से स्वामी मंदिर की एक झलक  




Thursday, 15 February 2024

रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान और सफारी, राजस्थान

रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में है और भारत के बड़े उद्यानों में से एक है. यह 1334 वर्ग किमी में फैला हुआ है. इस उद्यान के एक ओर उत्तर में बनास नदी है और दूसरी ओर दक्षिण में चम्बल नदी है. दोनों नदियों के बीच रणथम्भोर का किला भी है जिसके कारण इस राष्ट्रीय उद्यान को रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान कहा जाता है. जयपुर से इस उद्यान की दूरी 150 किमी है और दिल्ली से 463 किमी. सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन 11 किमी दूर है.

इस पार्क में घने जंगल, ऊँची घास के मैदान, झीलें, पहाड़ियां और तरह-तरह के पेड़ पौधे हैं. इसी तरह यहाँ बाघ के अलावा बीसियों तरह के जानवर और और सैकड़ों तरह के पक्षी देखने को मिल जाते हैं. बहुत तारीफ़ सुनी थी की यहाँ अब सौ से ज्यादा टाइगर हो गए हैं और अब तो आसपास के गांव में भी घूमते नज़र आते हैं तो सोचा हम भी चलते हैं बाघ से मुलाकात करते हैं. 

उद्यान के आसपास रहने के लिए हर बजट के होटल मिल जाते हैं. जंगल सफारी के लिए भी सुविधाएं हैं. राजस्थान सरकार और राजस्थानी लोग भी टूरिस्ट से अच्छी तरह पेश आते हैं और स्वागत करते हैं. उनका तो नारा ही है 'पधारो म्हारे देस"! प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

पशु पक्षी मेला 

इस जंगल में पशु पक्षियों का मेला लगा रहता है. भांत भांत की चिड़िया मिलेंगी पर छोटे जानवर जैसे की लोमड़ी, सियार कम दिखाई पड़ते हैं. हमारा हीरो टाइगर देखें मिलता है या नहीं. इस से पहले गुजरात के गिर जंगल में सुबह सुबह की सफारी में गए थे पर शेर निकल कर ही नहीं आया. पता नहीं छुट्टी पर चला गया था शायद। इसके बाद राजाजी नेशनल पार्क उत्तराखंड गए तो वहां भी ऐसा ही हुआ. भई दोबारा तो अब नहीं जाएंगे। देखते हैं रणथम्भोर में क्या होता है? 

1. ये चिड़िया यहाँ काफी पाई जाती है. चिड़िया का नाम है कोटरी, हांडी चांचा या टका चोर. इसे Rufous treepai  या फिर  Dendrocitta Vagabunda भी कहते हैं. कई तरह की आवाज़ें निकालती है और काफी हद तक निडर है. 

2. जंगल में सांभर और हिरन बहुत नज़र आते हैं. बाघ को इनका शिकार बहुत पसंद हैं. बाघ ने अगर एक सांभर मार लिया तो दो तीन दिन के खाने का इंतज़ाम हो गया. साथ ही लोमड़ी, गीदड़ और लक्कड़बग्घे जैसे मुफ्तखोरों की भी दावत हो जाती है 

3. छोरा जवान हो गया है! सींग निकलने लगे हैं  

4. इन राजा साहब की दो रानियां हैं !

5. चीतल 

6. नौजवान नर चीतल 

7. बहुत पुराना और बहुत बड़ा बरगद का पेड़ है, ये भारत का दूसरा बड़ा बरगद है 

8. इन हिरणों को झुण्ड में रहना पसंद है और लंगूर के पास बैठने से कोई एतराज नहीं है  

9. अक्सर सांभर और बारासिंघा अपने सींगों को पेड़ की छाल से रगड़ते रहते हैं 

10. पशु पक्षी मेला 

11. एक दूजे के लिए ! लंगूर का फेंके हुए दाने या अधखाए खाद्य पदार्थ जंगली सूवर के काम आ जाते हैं  

ख़ूबसूरत जंगल 

रणथम्भोर का जंगल अपनी खूबसूरती के लिए भी जाना जाता है. ख़ास तौर से सुबह का उगता सूरज और शाम का डूबता सूरज जंगल में अद्भुत रंग बिखेर देता है. सुबह शाम के प्रकृति के रंग अलग छटा ले कर आते हैं. नदी, तालाब, पहाड़ियां और धूप छाया सभी कुछ तो है यहाँ फोटोग्राफर के लिए.  इसीलिए यहाँ फोटोग्राफर बहुत नज़र आते हैं. महंगे बड़े कैमरे ले कर बाघ का इंतज़ार करते हुए देखे जा सकते हैं. पर अपन का आई फ़ोन भी कम नहीं है. नीचे वाली सभी फोटो इसी फ़ोन से ली गई हैं. कहीं कहीं तो चलती गाड़ी में भी खींची हैं. ठीक ठाक आ जाती हैं. रंग बहुत ही सॉफ्ट हैं पर हैं बहुत सुन्दर! 
  
12. ढलती सुहानी शाम 

13. सुंदर झील 

14. ये कौन चित्रकार है …

15. ख़ूबसूरत शाम. ऐसा लगता है की वक़्त थम गया हो 

16. सारस का जोड़ा डिनर की तलाश में 

17. बाघ को ऊँची और हरी पीली घास बहुत पसंद है. इस घास में छुपना और शिकार करना आसान हो जाता है 

18. एक छोटा पक्षी मछली की तलाश में 

19. मनमोहक!

जंगल सफारी 

जंगल सफारी यहाँ या तो खुली जिप्सी में या फिर कैंटर खुली बस में कराई जाती है. जिप्सी के पैसे ज्यादा लगते हैं पर आराम है और हिचकोले कम लगते हैं. कैंटर में 20-25 सवारियां होती हैं इंजन का शोर ज्यादा होता है और खूब झटके लगते हैं. सफारी आप ऑनलाइन बुक कर सकते हैं कहीं से भी और कभी भी. पर ये काम भी आसान नहीं लगा. पर सुना है की कुछ लोग हैकिंग वैकिंग करते हैं. खैर दूसरा रास्ता है की जैसे ही होटल में चेक इन करें तो होटल वाले से बुक करवा लें. गाड़ी वहीँ से आपको ले लेगी। 

सफारी दिन में दो बार है सुबह और दोपहर लंच के बाद. होटल वाले ने बार बार बोला आप 1.30 बजे तैयार रहें। हो गए. कैंटर 2.30 बजे आई. दस मिनट गेट पर लगे जहाँ टिकट चेक हुए और फिर अंदर जंगल की ओर चल पड़े. हर कैंटर को एक ख़ास रुट पर जाना होता है और सड़कें कच्ची हैं. गाड़ियों के चलने के कारण जो सड़क बन गई है बस वही है. जबरदस्त हिचकोले और धूल उड़ाती चलती है गाड़ी. कैमरा और मोबाइल सावधानी से इस्तेमाल करें। गाइड बीच बीच में गाड़ी रोक कर पेड़ पौधों की और जानवरों की आदतें और विशेषताएं बताता रहता है. 
पर सभी टाइगर की इंतज़ार में रहते हैं अब दिखा की तब दिखा! पर सफारी का समय समाप्त हो गया और बघेरा नहीं दिखा। यहां भी छुट्टी पे था. 

20. पर्यटक - शिकार न सही दीदार ही सही 

21. प्रवेश द्वार पर चेकिंग करा के ही अंदर जा सकते हैं 

22. कैंटर सफारी अलग अलग दिशा से आकर रुकी हुई हैं. तीन कैंटर में लगभग पचास लोग थे और तीन गाइड. पर अफ़सोस किसी को भी टाइगर देखने को नहीं मिला. गाइड बतिया रहे थे की कैसे दिखाया जाए जबकि समय समाप्त होने वाला है.  

23. टाइगर दिखा कहीं? कहीं नहीं दिखा! 

ये जानकारी भी पहली बार मिली की जंगल रखने का फायदा रुपयों में निकाला जाता है! ये रिपोर्ट देखिये।

Economic Valuation of Ranthambhore Tiger Reserve 

Economic Valuation of Tiger Reserves in India was conducted by Indian Institute of Forest Management, Bhopal and Centre for Ecological Services Management. It was estimated that important  benefits of Ranthambhore Tiger Reserve in Rupee terms are 8.3 billion.

Video of Jungle Safari ride on Canter open truck. It was a jumpy ride indeed!


   Video taken during break in Safari ride. Some relief for old bones!