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Thursday, 12 December 2024

लोहागढ़ भरतपुर

लोहागढ़ किला, 18वीं शताब्दी में भरतपुर के महान शासक महाराजा सूरजमल ( 1707 - 1763 द्वारा निर्मित किया गया था। यह किला भरतपुर शहर के मध्य स्थित है, जो महाराजा सूरजमल द्वारा राजधानी घोषित किया गया था। भरतपुर नामक यह स्वतंत्र राज्य अपने समय में एक विशाल क्षेत्र तक फैला था, जिसमें आगरा, अलवर, अलीगढ़, मेवात, गुरुग्राम, मथुरा और मेरठ शामिल थे।

भरतपुर का नाम भगवान राम के भाई भरत के नाम पर रखा गया है, जबकि लक्ष्मण इस राज परिवार के कुलदेवता माने जाते हैं। पहले यह क्षेत्र सोगड़िया जाट सरदार रुस्तम के अधीन था, जिसे 1733 में जीतकर महाराजा सूरजमल ने भरतपुर शहर की नींव रखी। भरतपुर की स्थापना से पहले, इस क्षेत्र में विभिन्न छोटी रियासतों का शासन था:

  • 1670 में सिनसिनी रियासत।
  • 1695 में थून रियासत।
  • 1722 में डीग रियासत।

महाराजा बदन सिंह और उनके पुत्र महाराजा सूरजमल ने इन क्षेत्रों को एकत्रित कर भरतपुर राज्य बना दिया। महाराजा सूरजमल के शासनकाल के बाद से लेकर 1947 तक, भरतपुर राज्य में 13 महाराजा हुए।

लोहागढ़ किला अपनी अद्भुत मजबूती और सुरक्षा के लिए प्रसिद्ध है। इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं:

  • किले के चारों ओर पानी से भरी गहरी और चौड़ी खाई इसे अजेय बनाती है।
  • किले के अंदर महल, मंदिर और बुर्ज हैं।
  • इस किले का एक द्वार अष्टधातु से बना है।
  • किले के मध्य स्थित संग्रहालय, सुबह 9 बजे से खुलता है।
  • यह किला पर्यटकों के लिए दिनभर खुला रहता है। दोपहर की धूप तीखी हो सकती है; पानी साथ ले जाना उचित होगा।

भरतपुर एक छोटा किंतु प्राचीन शहर है, जो अपने इतिहास और संस्कृति के कारण अनोखा है।  अगर आप  केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान देखने आते हैं तो इस के साथ-साथ, लोहागढ़ किला भी अवश्य देखें। 

लगभग 30  किमी दूर डीग का किला और महल भी है वो भी देखे जा सकते हैं। 

प्रस्तुत हैं कुछ फोटो :

 
1. भरतपुर का नक्शा जिसमें किले के दो और पुराने भरतपुर के दस गेट दर्शाए गए हैं 

2. जवाहर बुर्ज के ऊपर बारादरी पर सुन्दर कारीगरी 

3. जवाहर बुर्ज आरामघर 

4. जवाहर बुर्ज पर चार बारादरी हैं 

5. लोहागढ़ का जवाहर बुर्ज और बुर्ज पर बुजुर्ग !

6. किले में राजकीय संग्रहालय 

7. लोहागढ़ का किशोरी महल 

8. किशोरी महल में महाराजा सूरजमल की मूर्ति 

9. अष्टधातु से बना गेट 


10. किले की नहर जिसमें हमेशा पानी भरा रहता है 

11. किले की नहर 

12. लोहागढ़ का एक गेट 


13. किले का एक सुन्दर बांके बिहारी मंदिर 

 
14. भरतपुर का सुबह का फूल बाजार 

15. भरतपुर में सुबह का मशहूर नाश्ता - कचौड़ी और जलेबी 

16. ऊंट गाड़ी दिखे तो आप राजस्थान में हैं 

17. भरतपुर के एक चौराहे पर रखी तोप। ट्रैफिक ज्यादा था और चबूतरे पर इतने पोस्टर लगे हुए थे की पढ़ नहीं पाए कि इसका महत्त्व क्या है 

 
18. सुन्दर लक्ष्मण मंदिर, भरतपुर 




Saturday, 7 December 2024

डीग का किला और महल, राजस्थान

डीग राजस्थान का एक ऐतिहासिक शहर है जिसे अब भरतपुर से हटा कर जिला बना दिया गया है। डीग भरतपुर से 32 किमी और आगरा से 98 किमी की दूरी पर है। इसका प्राचीन पौराणिक नाम दीर्घापुर बताया जाता है। महाराजा बदन सिंह (1722 से 1755 तक राज किया ) के समय डीग भरतपुर राज्य की राजधानी हुआ करती थी। बाद में उनके बेटे महाराजा सूरजमल (जन्म 1707 मृत्यु 1763, बीस साल तक राज किया ) ने भरतपुर को राजधानी बनाया साथ ही डीग में किला और जलमहल बनवाया। 

महाराजा सूरजमल बहादुर, दूरदर्शी और धाकड़ राजा थे। उन्होंने 25000 पैदल और 15000 घुड़सवार सेना बनाई हुई थी। उस समय भरतपुर राज्य में मथुरा, मेवात, बुलंदशहर, अलीगढ़, मेरठ, रोहतक आदि का बड़ा इलाका शामिल था। महाराजा ने मुग़ल शासकों के नाक में दम कर दिया था। 1753 में फ़िरोज़ शाह कोटला, दिल्ली और 1761 में आगरे का किला जीता था। 1763 में शाहदरा दिल्ली के पास हिंडन नदी पर महाराजा सूरजमल की नवाब नजीबुद्दौला ने घात लगा कर हत्या कर दी।     

डीग किले में एक बहुत ऊँचा और बड़ा निगरानी बुर्ज है जिस पर एक भारी तोप अभी भी रखी हुई है। यहाँ से पूरे शहर का नज़ारा देखने को मिलता है। बताया जाता है की यह तोप आगरा किले से लूट कर (?) लाई गई थी। किले के चारों ओर पानी भरी गहरी और चौड़ी खाई है, ऊँची दीवार है और चारों कोने पर बुर्ज हैं उन पर भी तोपें रखी हुई थी। किले के बारे में कई किंवदंतियाँ सुनी: i ) तोप का वजन एक लाख किलो है इसलिए इसे 'लाखा तोप' कहते हैं,  ii) किले की चौतरफा दीवार आठ किमी लम्बी थी,  iii ) लाखा तोप का गोला दिल्ली / आगरे के किले पर गिरा था। पर इनकी पुष्टि नहीं हो पाई। 

कुछ फोटो प्रस्तुत हैं : 

1. डीग के किले के अंदर छे मंजिला मुख्य निगरानी बुर्ज जिस पर एक भारी तोप नज़र आ रही है  
 

2. निगरानी बुर्ज से शहर का एक दृश्य 
   
3. बुर्ज पर रखी बड़ी तोप। ये तोप भी असामाजिक तत्वों की हरकत से बची नहीं। लिख नहीं पाए तो पेंट ही उंडेल दिया 

4. किले के एक कोने पर बुर्ज जिस पर बड़ी तोपन रखी जाती थी

5. किले की मरम्मत जारी है। किला और महल ख़ास राजस्थानी अंदाज़ में बनाए गए थे  

6. किले का दरवाज़ा। पर यहाँ कोई टिकट नहीं है, न ही कोई गाइड है और न ही साफ़ सफाई 

7. किले के कुछ भागों में सरकारी दफ्तर खुले हुए हैं। धरोहर को क्या करना है बचा के?  

8. एक रास्ता यह भी है ! धीरे धीरे किला नष्ट होता नज़र आ रहा है 


डीगमहल  या जलमहल 

महाराजा सूरजमल द्वारा बनाया गया डीग जलमहल भरतपुर के अलावा गर्मी की राजधानी थी। इस शहर की शुरुआत 1721 में महाराजा बदन सिंह ने की और उसके बाद समय के साथ ये बढ़ता गया। 1772 में बनाए गए जलमहल में बगीचे, छोटे बड़े सरोवर और सैकड़ों फव्वारे भी बनाए गए जो गर्मी से राहत देते थे। एक सुन्दर रिसोर्ट की तरह है ये परिसर। 1970 तक यह रहने के लिए इस्तेमाल किया गया था अब यह एक स्मारक के रूप में है। ख़ास राजस्थानी शैली में बने इस महल का रख रखाव अच्छी तरह से किया जा रहा है। 

सुन्दर बाग़ बगीचों की बीच बने जलमहल में कई इमारतें हैं बारादरी है, म्यूजियम है और सरोवर हैं।  जलमहल सुबह 9 बजे  से शाम 5 बजे तक खुला है और शुक्रवार को बंद रहता है। अंदर जाने के लिए टिकट है पर गाइड नहीं है। अंदर एक म्यूजियम भी है जिसमें राजाओं का पुराना सामान रखा हुआ है। किसी ने बताया की यहाँ 2000 फ़व्वारे हैं तो किसी ने कहा 900 सो अगली बार अगर गए तो गिनती कर लेंगे ! बताया गया की साल में दो बार फव्वारे चलाए जाते हैं। 

डीग जैसे छोटे से शहर में इतना सुन्दर महल जिसका रख - रखाव भी सुन्दर है, मिलने की उम्मीद नहीं थी। डीग शहर भी पिछड़ा हुआ ही लग रहा था और साइन बोर्ड की भी कमी थी। देसी जी पी एस याने ऑटो वाले से पूछना ही पड़ा ! किला और महल एक ही परिसर में थे लेकिन अब अलग अलग हो गए हैं और दोनों के दरवाज़े फासले पर हैं। अगर आप भरतपुर या मथुरा में हों तो एक बार जरूर देखें। 

कुछ फ़ोटो प्रस्तुत हैं :  


9. जल महल का एक भाग नन्द भवन जिसके खम्बों पर चित्रकारी की गई है 

10. काफी चित्र अब भी अच्छी हालत में हैं 

11. नन्द भवन। ये है अखाड़ा जहाँ कुश्तियां हुआ करती थी 

12. नन्द भवन का एक दृश्य 

13. केशव भवन मानसून मंडप  


14. संग्रहालय में रखा पुराना वाटर कूलर। दो आदमी मिलकर पिछला पहिया घुमाते थे और पानी की बौछार के साथ हवा आती थी ! 


15. गोपाल भवन संग्रहालय। पानी के सभी सरोवर आपस में जुड़े हुए थे ताकि ठंडक रहे 

16. सुन्दर बारादरी। नक्काशीदार खम्बे, झरोखे,  मेहराब और दीवारों में आले  

17.  जलमहल का भादों भवन। इस  भाग में नीचे नहर है। पानी के बहाव को और महल के सभी फव्वारों को आपस में जोड़ा गया था  

18. सूरज भवन 


19. नूरजहां का झूला  

20. बेहतरीन जाली का काम - बीच वाली जाली लकड़ी की है और आजू बाजू संगमरमर की। हमें पहचानना मुश्किल हो गया की कौन सी जाली लकड़ी की बनी है 

21. महाराजा की बैठक 

22. सीढ़ियों में रोशनदान 

23. महाराजा के पी ए का दफ्तर 

24. यूरोपियन मेहमानों के लिए डाइनिंग टेबल 

25. देसी डाइनिंग टेबल जिसके इर्दगिर्द चौकड़ी मार के शाही परिवार खाना खाता था 

26. हाथी का पाँव जिसे लेप लगा कर संभाल कर रखा गया है। महाराजा के इस हाथी ने दुश्मन के किले का बड़ा दरवाज़ा तोड़ दिया था पर चोटों के कारण खुद शहीद हो गया। हाथी के चारों पैर महल में अब भी एहतियात से रखे हुए हैं 

27. काले पत्थर की गुसल चौकी। युद्ध जितने के बाद महाराजा ने दिल्ली और आगरा के किलों से बहुत सा सामान उठवा लिया था जिसमें ये चौकी भी शामिल थी। बाद में पता लगा की यह शाही खानदान के किसी व्यक्ति की मौत पर उसे अंतिम गुसल या स्नान कराने के काम आती थी। इसे महल के बाहर कर दिया गया। अब ये म्यूजियम में है 
28. महाराज का बेड रूम। पलंग का साइज 12 फुट x 8 फुट !

29. डीग महल का मुख्य द्वार जहाँ से टिकट भी लेना होगा 




Thursday, 5 December 2024

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान हजारों पक्षियों का घर है। इसे भरतपुर पक्षी विहार, केवलादेव घना पक्षी विहार भी कहते हैं। अंदर ही केवलादेव मदिर भी है जिसके नाम पर यह उद्यान है। घना का स्थानीय भाषा में मतलब है की वो जगह जहाँ घास, जंगल, दलदल और पानी का भराव हो जाता हो। घना का क्षेत्रफल लगभग 29 वर्ग किमी है। बारिश के मौसम के बाद यहाँ बिलकुल सूखा पड़ जाता है। पर पक्षियों के लिए पानी का पूरा इंतेज़ाम है। पास ही गंभीर और बाणगंगा नदियां भी हैं। 1971 में इसे पक्षी विहार का दर्जा दिया गया, 1982 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया और 1985 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर की सूची में शामिल कर दिया गया। 

सांभर झील की सैर के बाद केवलादेव पक्षी विहार में हरियाली दिखी और पक्षी भी ज्यादा मिले। सांभर में दूर दूर तक सूखी धरती और पक्षी भी कम नज़र आ रहे थे। सांभर से जयपुर होते हुए भरतपुर लगभग छे घंटे की ड्राइव के बाद पहुंचे। भरतपुर में हर बजट के होटल उपलब्ध हैं। पक्षी विहार के पास ही एक होटल में डेरा डाल दिया, जहाँ से सुबह पैदल भी विहार में जा सकते थे। यहाँ टूरिस्ट भी ज्यादा थे जिनमें कुछ फिरंगी भी नज़र आए। भरतपुर शहर पुराना होते हुए भी काफी साफ़ नज़र आया।  यहाँ एक किला भी है लोहागढ़ समय हो तो जरूर देखें। वैसे अगला फोटो ब्लॉग उसी पर होगा। 

केवलादेव उद्यान में नवम्बर के महीने से यूरोप और मध्य एशिया के ठन्डे इलाकों से पक्षी आना शुरू हो जाते हैं। इनमें सारस, टील, तरह तरह की बत्तखें और बगले शामिल हैं। दिसंबर में पक्षियों और पर्यटकों की ज्यादा चहल पहल देखने को मिलती है। इसके अलावा यहाँ बन्दर, लंगूर, नीलगाय, जंगली सूअर, लोमड़ी, चीतल और हिरन पाए जाते हैं। अजगर भी धूप सेकते हुए मिल जाएंगे। 

पार्क में जाने के लिए टिकट लेना होगा। गाइड और ई-रिक्शा घंटों के हिसाब से पैसे लेते हैं। साइकिल भी किराए पर मिल सकती है। गाइड ले लेना चाहिए क्यूंकि उस के पास पावरफुल दूरबीन होती है और वो पक्षियों के नाम और पहचान बता देता है अन्यथा सब पक्षी छोटे बड़े बगले ही लगते हैं। पार्क बहुत बड़ा होने के कारण कई ब्लॉक में बंटा हुआ है। गाइड को अंदाज़ा रहता है कि उल्लू कहाँ दिखेगा या फिर सारस किस ब्लॉक में हो सकता है। तीन घंटे की विज़िट का खर्चा दो लोगों की एंट्री टिकट के साथ ढाई तीन हजार तक हो सकता है। 

पक्षियों को शांति पसंद है इसलिए गाड़ी अंदर ले जाना मना है। उन्हें दाना चुग्गा देने की जरूरत भी नहीं है क्यूंकि एक तो वो नॉन - वेज पसंद करते हैं और दूसरे वो जमीन पर या किनारे पर नहीं आते। मोबाइल ले जा सकते हैं पर बहुत अच्छी फोटो नहीं आ पाती, कारण ये की पक्षी पानी में और पेड़ों पर ही होते हैं नज़दीक किनारे तक नहीं आते और सुबह के समय थोड़ा सा कोहरा भी होता है। पार्क सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है। दोपहर को पीने के पानी और टोपी की जरूरत पड़ सकती है। पार्क के अंदर ही केवलादेव मंदिर है और पास में एक कैफ़े भी है।  

प्रस्तुत हैं कुछ फोटो :  

1. इस बड़े बगले ( Painted Stork, जांघिल या ढोक ) ने घोंसले की जगह चुन ली है। अब यह अपने पार्टनर के साथ सूखी लकड़ियों और तिनकों से जल्द ही घोंसला तैयार कर लेगा। इसे खाने के लिए यहाँ कई तरह की मछलियां, केंचुए, मेंढक और कीट पतंगे मिल जाएंगे 
 

2. केवलादेव मंदिर पार्क के अंदर ही है। इसी शिव मंदिर के नाम से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान का नाम भी है

3. चलिए अंदर चलें ! 

4. पशु पक्षियों को बचाएं, वे भी हमारी धरोहर हैं 😊

5. हम पंछी एक डाल के 

6. पक्षी कॉलोनी 

7. ग्रेट कारमोरेंट के परों में चिकनाई नहीं होती इसलिए पंख गीले हो जाते हैं। पंख सुखाने के लिए इसे बार बार धूप में परों को फैला कर तपस्या करनी पड़ती है ! 

8. इस तरह के टापू इन पक्षियों को पसंद हैं जहाँ पानी के बीच थोड़ी सी जमीन हो और दो चार पेड़ हों। ये पेड़ भी चुनते हैं जो मजबूत हो। ये पेड़ एकेसिया प्रजाति का है और ये इन्हें बहुत पसंद है। पेड़ की डालियों पर नुकीले कांटे होते हैं जिसके कारण सांप इस पर नहीं चढ़ते। अंडे और बच्चे इसलिए सुरक्षित रहते हैं  

9. पर्यटक और गाइड की दूरबीन 

10. बड़ी दूर से आए हैं। साइबेरिया से आए मेहमानों को देख कर याद आ जाता है जावेद अख्तर का फ़िल्मी गीत - पंछी, नदिया, पवन के झोंके, कोई सरहद ना इन्हें रोके !  
 
11. अजगर धूप का आनंद ले रहा है 

12. ये फ़ोटो और नीचे वाली फ़ोटो, गाइड की दूरबीन के आगे मोबाइल फोन रख कर खींची गई हैं। सुबह हल्का सा कोहरा रहता है इसलिए बहुत साफ़ तो नहीं आई परन्तु आपको अंदाज़ा लग गया होगा की यहाँ कितनी ज्यादा वैरायटी है पक्षियों की 

13. इस बगले की लम्बी गर्दन देखिये ये दूर तक शिकार मारने में सहायक है। फ़ोटो में इस बगले का रंग नहीं दिख रहा पर इसका नाम पर्पल हेरॉन है 
 

14. इतने पक्षी एक साथ हों तो बहुत कोलाहल होता है पर अच्छा लगता है! वो भी आनंद लें और हम भी ! 


15. ई-रिक्शा सब जगह नहीं ले जाता इसलिए कहीं कहीं पैदल भी चलना पड़ता है। बेंच पर आप आराम से बैठें, थकावट दूर करें और प्रकृति का नज़ारा भी देखें 



16. गाइड ने बताया की ये पक्षी दो से चार घंटे तक शिकार ढूंढते हैं और फिर एक दो घंटे विश्राम करते हैं 



प्रवासी पक्षियों के बारे में और अधिक जानकारी के लिए पढ़ें : 
Common Migratory and  Resident Birds 
By-Pankaj Goel, IFS and Ghanshyam Shukla, IFS,
2023. 
PDF available on website of Haryana State Biodeversity Board