लखनऊ शहर की निशानी है रूमी दरवाज़ा. ये पुराने नवाबी लखनऊ प्रवेश द्वार है. इसे 1784 में अवध के नवाब आसफुद्दौला ने बनवाया था. इसे बनाने का एक कारण यह भी बताया जाता है की उस समय भयंकर अकाल पड़ा था और नवाब ने लोगों को रोज़गार देने के लिए छोटे बड़े इमामबाड़े के साथ इस रूमी गेट को भी बनवाया गया था. नवाब ने शायद अर्थशास्त्री कीन्स( 1883 -1946 ) को काफी पहले ही पीछे छोड़ दिया था! कीन्स ने 1936 में कहा था कि आपदा और ज्यादा बेरोजगारी के समय सरकार बड़े बड़े प्रोजेक्ट्स में पैसा लगाए और ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोज़गार मिले. नवाब ने भी खजाना खोल दिया और उसकी निशानी अब तक देखने को मिलती है. भारी भरकम रूमी दरवाज़ा छोटे और बड़े इमामबाड़े के बीच में है और दिन में यहाँ काफी ट्राफिक रहता है. इसे रूमी दरवाज़ा क्यूँ कहा जाता है इस बारे में मान्यताएं हैं:
* इसका डिज़ाइन इस्तानबुल के सबलाइम पोर्ट ( Sublime Porte ) या बाब-इ-हुमायूँ से मिलता जुलता है.
* रूमी दरवाज़े का डिज़ाईन कांस्टेंटिनोपल के गेट से मिलता है. रोम के अनातोलिया क्षेत्र का इस्लामिक उच्चारण रूम था और ये क्षेत्र ईस्टर्न रोमन एम्पायर कहलाता था. उस रूम के कारण इसे रूमी दरवाज़ा कहा जाता है.
* दरवाज़े का नाम शायद पारसी सूफी संत जलाल अल-दीन मुहम्मद रूमी ( 1207 - 1273 ) के नाम पर रखा गया था. बहारहाल जो भी हो रूमी की नीचे लिखी एक लाइन बहुत सुंदर लगी. आप भी पढ़िए:
- When we are dead, seek not our tomb in the earth, but find it in the hearts of men.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
दरवाज़े के किनारे पर फूल पत्तियां सुन्दरता से बनाई गई हैं. इनमें पान का पत्ता और लौंग भी शामिल हैं |
सुबह सुबह देखें तो ज्यादा अच्छा लगेगा क्यूंकि ट्रैफिक, ठेले वाले नहीं होते और ना ही शोर शराबा होता है और आप इत्मिनान से डिजाईन की बारीकी देख पाते हैं |
फूल और पत्ते |
रूमी दरवाज़े की ये फोटो उलटी की हुई है. गाइड ने बताया था कि यही डिजाईन लखनऊ की प्रसिद्द 'चिकनकारी' के कुर्तों और कुर्तियों में देखा जा सकता है |
दूसरी तरफ |
2 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2022/11/blog-post_26.html
बहुत अच्छा लिखते हो अंकल जी, सुपर्ब अंकल जी ☝️☝️☝️☝️
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