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Saturday, 22 October 2022

देसी-बिदेसी

गोयल साब और गोयल साहिबा कुछ दिनों पहले ही 'स्टेट्स' से वापिस आए हैं. अमरीका या अमेरिका या यू एस ए ना बोल कर 'स्टेट्स' बोलना ही पसंद करते हैं. शायद 'स्टेट्स' शब्द बोलने में ज्यादा शान है? कुछ तो राज़ है इसमें. वैसे अपने गोयल सा का पुराना रिश्ता है अमरीका से. बिटिया की शादी कई साल पहले हुई थी और वो शादी के बाद अमरीका चली गई थी और वहीँ बस गई. छोटा बेटा भी अमरीका नौकरी ढूँढने गया और वो भी वहीँ जा कर बस गया. उसे बहुत कहा की यहाँ आ जा शादी करा के चला जा. पर उसने अपने आप वहीँ शादी भी कर ली. गोयल साब शादी में जा नहीं पाए थे. बहू वैसे तो अमरीका में ही पैदा हुई थी पर माँ बाप हिन्दुस्तानी ही थे. गोयल सा को थोड़ी सी तसल्ली थी की चलो हिन्दुस्तानी टच तो है. गोयल साब का जब पोता हुआ तो बच्चों ने बुलाया पर गोयल साब तब भी नहीं जा पाए. जब बच्चे का एडमिशन स्कूल में हो गया है तभी जा पाए. 'स्टेट्स' से वापिस आकर वहां के किस्से कहानियां ऐसे उत्साह से साथ सुनाते हैं मानो स्वर्ग देख कर आए हों. इधर हम तो ठहरे तुच्छ प्राणी हमने तो अब तक झुमरीतल्लैय्या भी ना देखी. गोयल सा बताते हैं:    

- क्या घर खरीदा है बेटे ने! चारों तरफ लॉन है बीच में मकान है. तीन कमरे नीचे हैं और तीन ऊपर हैं. बड़ा गेराज है जिसमें दो बड़ी बड़ी गाड़ियाँ खड़ी हैं एक बेटे की और एक बहू की. बटन दबाते हैं गेराज का शटर खुल जाता है, गाड़ी बाहर निकाल कर गाड़ी में बैठे बैठे बटन दबाते हैं तो शटर लॉक हो जाता है. घर में और कई मशीनें लगी हुई हैं हमें तो समझ भी नहीं आती कैसे चलाएं. झाड़ू वाली, पोछे वाली, कपड़े धोने वाली, प्रेस करने वाली, बर्तन धोने वाली सब मशीनें. कई मशीनों का तो बटन भी नहीं दबाना पड़ता बोलने से ही काम शुरू कर देती हैं. जैसे पुराने किस्सों में नहीं था? खुल जा सिम सिम और बंद हो जा सिम सिम! 

- बेटे ने हमें नीचे कमरा दिया हुआ था और समझा दिया था की बाहर जाना पर ज्यादा दूर नहीं जाना लूटपाट हो सकती है. अगर डोग्गी को कहीं ले जाना हो तो उसकी पॉटी के लिए थैली ले जानी है वगैरह. बेटे, बहू और पोते के कमरे ऊपर थे. सुबह नौ बजे बेटा तैयार हो कर नीचे आता और खड़े खड़े हाल चाल पूछ कर ऑफिस चला जाता. माँ पूछती - परांठा बना दूँ बेटे? डबलरोटी खाता रहता है. जवाब मिलता - नो मोम मुझे जाना है. बहू अपने बेटे के साथ नीचे उतरती और कहती - हाई! अमरीकी इंग्लिश में बोलती की मैं स्कूल तक जा रही हूँ और वहां से ऑफिस चली जाउंगी बाय! पोता भी मम्मी के आदेशानुसार हाथ हिला देता. अब आप घर में बैठो, लेटो या टीवी देखो. 

- शाम को बेटा स्कूल से होते हुए पोते को साथ ले कर आता था. हेल्लो हेल्लो करने के बाद दोनों अपने अपने कमरों में घुस जाते. फिर बहू आती, हाल चाल पूछती और अपने कमरे में बंद हो जाती. डिनर पर कभी मिलते कभी नहीं मिलते. बालक अपने खिलौनों में या कंप्यूटर में मस्त रहता था. उसे हिंदी नहीं आती और उसकी अंग्रेजी हमें समझ नहीं आती. पोते के कमरे में जाना मना तो नहीं था पर फिर भी मना ही था. 

- कभी कभी बेटा कहता आपको कहीं घूमने घामने जाना है तो बताओ टैक्सी बुला देता हूँ? अपने आप जाओगे तो यहाँ परेशानी होगी. टैक्सी में हम दो चार जगह तो घूम आए पर सबका एक साथ घूमना नहीं हो पाया. साथ रहने के मामले में अपना देसी सिस्टम ही ठीक है. और सुनो, श्रीमती जी का तो कहना है के देसी भी यहाँ आ कर बिदेसी हो जाते हैं. शायद हवा पानी का फरक है. 

- महीने बाद हमने फ्लाइट ली और बिटिया के पास कैलिफ़ोर्निया पहुँच गए. वहां भी हाल वैसा ही था कोई ज्यादा फर्क नहीं था. बस बिटिया वहां के तौर तरीके और मौके की नज़ाकत समझा दिया करती थी. जल्दी ही दिल बोला आ अब लौट चलें! महीना भर वहां रह कर वापसी हो गई. 

- अगली बार आप हमारे साथ चलोगे?   

अपना देस 

Sunday, 16 October 2022

डिनर

श्रीमती संध्या और श्री चक्रवर्ती की बिटिया को बैंगलोर में अच्छी जॉब मिल गई. काफी राय मशवरे के बाद यह तय हुआ कि बिटिया के साथ वो दोनों भी बैंगलोर में रह लेंगे. चक्रवर्ती दादा पेंशनर थे इसलिए शिफ्ट होने में कोई दिक्कत नहीं थी. उनकी बिटिया पहले बैंगलोर चली गई और अपने ऑफिस के लोगों की मदद से एक किराये का मकान तय कर लिया. मम्मी पापा को बताया और टिकेट भी भेज दी. दोनों फ्लाइट से बंगलौर आ गए. कलकत्ते का मकान किराए पर दे आए. बंगलौर पसंद आया. मौसम अच्छा था और आस पास घूमने के लिए बहुत से मंदिर, किले, महल और सुंदर सुंदर स्थान थे. इसलिए दोनों और कभी कभी तीनों एक साथ अक्सर टूर लगाते रहते थे. 

एक दिन बिटिया जब ऑफिस से वापिस आई तो उसके साथ एक उड़िया लड़का भी था. बातचीत हुई तो पता लगा कि दोनों शादी करना चाहते हैं. थोड़ी बहुत ना नुकुर के बाद शादी के लिए हाँ हो गई और जल्द ही शादी भी हो गई. दोनों ने मिल कर बड़ा मकान किराए पर ले लिया और सभी वहां शिफ्ट हो गए. फिर दोनों को लगा की किराया काफी ज्यादा है इतनी किश्त दे कर मकान ही खरीद लिया जाए. मकान खरीद लिया गया. अब लड़के के माँ बाप भी आ गए. संध्या को लगा की अलग रहना ही बेहतर है. चक्रवर्ती साब से बात की तो उन्होंने कहा बिलकुल ठीक. फिर दोनों ने बिटिया से बात की तो उसने कहा ठीक है. फिर बिटिया ने पति से बात की और पति ने अपने माँ बाप से. उन्होंने कहा चार कमरे का मकान है इकट्ठे रह सकते हैं. फिर भी अगर उनकी मर्ज़ी है तो ठीक है इन्हें पास में ही मकान दिलवा दो. और चाहो तो किराया भी दे देना.

संध्या और चक्रवर्ती दा अपने नए मकान में चले गए जो सिर्फ सौ मीटर दूर ही होगा. आपस में सलाह करके कलकत्ते का मकान भी बेच दिया. साल भर तो सब सही चला पर फिर चक्रवर्ती दादा का अचानक देहांत हो गया. इसके बाद सभी ने संध्या को कहा की बिटिया के मकान में ही आ जाए पर उसे लगा मैं अलग ही ठीक हूँ. इस टॉपिक पर बातचीत अक्सर ही हो जाती थी. बेटी, दामाद और उसके माता पिता साथ रहने के लिए कहते पर संध्या हाँ या ना करने में झिझकती थी. सोच विचार कर संध्या ने बात को ज्यादा खींचना ठीक नहीं समझा और हाँ कर दी. एक दिन यह तय हुआ की संध्या शाम सात बजे बिटिया के घर आ जाया करेगी, डिनर करेगी और यहीं सो जाया करेगी. सुबह नाश्ता कर के चली जायेगी. पोते के कमरे में संध्या का सामान सेट कर दिया गया. वैसे भी नानी और नाती की अच्छी जमती थी इसलिए दोनों मजे में रहने लगे. 

अब संध्या रोज शाम को कभी चार बजे, कभी पांच बजे या कभी छे बजे अपने घर से निकल पड़ती है. पास के मॉल में चली जाती है, बाज़ार में घूम लेती है या फिर मंदिर चली जाती है. कभी कभी सोसाइटी के छोटे से पार्क में हमारे पास बैठ जाती है. पर सबसे पहले बिटिया को मेसेज कर देती है की नीचे बैठी हूँ. बंगला-हिंदी की खिचड़ी भाषा में अक्सर हमसे बतिया भी लेती है. यूँ कहती हैं,

- वहां तो हम डिनर के टाइम जाएगा पोहले नहीं जाएगा!

डिनर टाइम


Friday, 14 October 2022

ठाकुर जी

शादी के बाद संध्या बड़े परिवार में पहुँच गई. सास ससुर के अलावा दुल्हे राजा और उनकी चार  बड़ी बहनें भी थीं. चार बेटियों के बाद राज कुमार पैदा हुए थे तो स्वाभाविक था की माँ बाप के दुलारे थे. साथ ही चारों बहनों को भी खूब प्यारे थे. चारों बहनों की शादी हो चुकी थी पर छोटे भाई से प्यार और उस पर अधिकार में कोई कमी नहीं आई थी. 

परिवार बड़ा था तो मकान भी बड़ा था पर था पुराने स्टाइल का. चारों तरफ कमरे और बीच में बड़ा सा आँगन. दिन त्यौहार हों तो आँगन में चरपाइयों पर ही महफ़िल जम जाती थी और परिवार का हो हल्ला वहीँ देर रात तक चलता रहता था. जन्मदिन, कीर्तन वगैरह के आयोजन वहीँ होते थे. सासू माँ ने आँगन के एक कोने में तुलसी का पौधा लगाया हुआ था जहाँ वो शाम को दिया जला देती थी. वैसे घर के अन्दर भी छोटा सा मंदिर बना हुआ था जहाँ सासू जी सुबह शाम पूजा पाठ करती थी. मंदिर में ठाकुर जी विराजमान थे जिनसे सास को बड़ा लगाव था.        

ससुर जी की पेंशन आती थी इसलिए वे निश्चिन्त रहते थे. अखबार, टीवी और दोस्तों से गपशप करके टाइम पास कर लेते थे. पारिवारिक मन्त्रणा में कम ही भाग लेते थे. परन्तु जमाई राजा आ जाएं तो ससुर जी का ध्यान आवभगत में रहता था. सासू जी का सेवा भाव तो सातवें आसमान तक चला जाता था और इस वजह से संध्या भी बिज़ी हो जाती थी. एक दो दिन चहल पहल रहती और फिर शांति छा जाती थी. 

समय गुजरा और ससुर जी भी गुजर गए और उसके बाद संध्या की माँ भी चल बसीं. इस बीच संध्या की नन्हीं सी बिटिया आ गई. संध्या की सास को थोड़ा सा अफ़सोस हुआ पर ये सोच कर शांत हो गई की अगली बार ठाकुर जी की कृपा होगी तो बेटा भी आ जाएगा. अब सास का और ज्यादा समय ठाकुर जी के आगे बैठने में निकल जाता था. पर सच पूछो तो सासू जी दिन ब दिन तेजी से ढलने लगी थी. 

एक दिन संध्या को बुलाकर कहने लगी, 

- देख ये ठाकुर जी की मूर्ति मेरी सास ने जाते हुए दी थी. वो बताती थी की शायद उनकी सास को उनकी सास ने दी होगी. अब तूने ही इसे संभालना है. जब समय आए तो इसे अपनी बहू को दे जाना. 

- हूँ. पर एक बात तो बताओ अगर बेटा ना हुआ तो फिर?

- अरे कैसी बात करती हो?  जरूर होगा जरूर होगा. ठाकुर जी की कृपा अवश्य होगी और तू ठाकुर जी को अपनी बहू को दे कर ही जाएगी. 

- जी अच्छा. 

कुछ समय बाद सास चल बसी. ठाकुर जी की सेवा, पूजा पाठ अब संध्या करने लगी. पर भगवान् के रंग न्यारे संध्या की ना और बिटिया हुई ना बेटा. यदा कदा सास की बात याद आती तो सोचती कि ठाकुर जी किसको दूंगी? इतने मान सम्मान और जिम्मेवारी से मुझे दे कर गईं हैं तो निभाना पड़ेगा. बेटी को देना ठीक रहेगा या तो नहीं पता नहीं. उन्होंने भी किसी बेटी को तो नहीं सौंपी थी. अगर बेटी का बेटा हुआ तो उसे दे दूं? पर वो भी तो बेटी का ही तो घर होगा. चलो छोड़ो बाद में देखा जाएगा. अगर मैं बिना दिए चली जाऊं तो? नहीं वो भी ठीक नहीं है क्योंकि तब भी तो ठाकुर जी बिटिया के घर ही रहेंगे और सास की बात शायद अधूरी रह जाएगी. सास से बहू का क्रम टूट जाएगा. चलो अभी समय है देखते हैं.

बिटिया सयानी हो चली थी इसलिए उसे भी शादी कर के विदा कर दिया गया. पहले कभी कभार सास की बात का ध्यान आता था अब बार बार आने लगा. एक दिन संध्या बड़ी देर तक ठाकुर जी के सामने बैठ कर विचार करती रही. फैसला कर के ही उठी. दिन और समय देख कर पास के मंदिर में ठाकुर जी की स्थापना करवा दी पर आँख से आंसू छलक पड़े. फिर भी संध्या निश्चिन्त हो गई.     

सबका मंगल होए!