रिटायर होने का बाद हमारे गोयल साब कुछ अनमने से रहते थे. कहाँ तो बड़े से सरकारी बैंक के एक बड़े रीजनल मेनेजर और कहाँ अब घर बैठे हैं. और घर की इकलौती मालकिन को भी मैनेज नहीं कर पा रहे थे. शायद इसी कारण से उनका हाजमा खराब रहता था. वरना और कोई कारण तो नज़र नहीं आ रहा अशांत रहने का. रिटायर होने पर अच्छे पैसे मिले, पेंशन शुरू हो गई, अच्छा सा फ्लैट है और दोनों बेटे बाहर हैं और मजे में हैं. ये ज़रूर है की श्रीमति अब अपने साब की शाम की बियर पर तिरछी नज़र रखती हैं और बढ़ता पेट याद दिला देती हैं.
श्रीमति गोयल ने कभी कोई नौकरी तो की नहीं होम मेकर ही रहीं. फिर भी उनकी प्रमोशन लगातार होती रहती थी. वो ऐसे की जब हमारे गोयल सा मैनेजर बने तो श्रीमति अपने को सुपर मैनेजर मानने लगी, जब गोयल सा रीजनल मैनेजर नियुक्त हुए तो श्रीमति गोयल ने स्वयं को सुपर रीजनल मैनेजर घोषित कर दिया. पर जब गोयल सा रिटायर हुए तो श्रीमति गोयल ने रिटायर होने से मना कर दिया. वो अब भी सुपर रीजनल मैनेजर मोड में ही हैं. यदा कदा सब्जी भाजी खरीदने दौड़ा देती हैं वो साब को पर हमारे गोयल सा को नहीं भाता है. खरीदना तो ठीक लगता है पर उसके बाद जब खरीदी हुई सब्जी की शकल पर या उसके रेट पर श्रीमति द्वारा पोस्ट मार्टम होता है वो दिमाग में खलल पैदा कर देता है. तब मन करता है की सब्जी का थैला फेंक दें. घर पर ना तो ड्राइवर है ना कोई चपरासी जिसे डांट कर मन हल्का कर लेते! कहाँ फंसे यार बैंक में ही ठीक थे!
समय बिताने के लिए कई प्रस्ताव गोयल सा के विचाराधीन थे. नौकरी करना चाहते तो थे पर परिवार की तरफ से मनाही थी. बस घूमो फिरो और मौज करो. एक प्रस्ताव आया कि वो अपनी हाउसिंग सोसाइटी के प्रेसिडेंट बन जाएं. उन्हें लगा की इज्ज़त सम्मान मिलेगा और रूतबा बढ़ जाएगा, इसलिए वो तैयार हो गए हालांकि मैडम सहमत नहीं थी. मना करने के बावजूद अध्यक्ष बन गए.
पहली मीटिंग में ही गोयल सा फॉर्म में आ गए. पेन और डायरी निकाल ली. घोषणा कर दी - नगर निगम को हिला कर रख दूंगा, पुलिस की खिंचाई कर दूंगा, बिजली विभाग को सीधा कर दूंगा वगैरा वगैरा और सोसाइटी को चमका दूंगा. मैं जहाँ भी रीजनल मैनेजर रहा हूँ बैंक की शक्ल बदल थी.
मीटिंग में बैठे लोगों में से कुछ तो बड़े इम्प्रेस हो गए - वाह! गोयल साहब वाह! हमें ऐसा ही लीडर चाहिए था. गोयल साब गदगद हुए और हलकी सी मुस्कान बिखेर कर बोले - आगे आगे देखिये क्या क्या करता हूँ अभी तो शुरुआत ही है.
पर रिटायर्ड प्रोफेसर संध्या ने गोयल साब की तरफ देखा और बोली - ये सीट ऑनरेरी है मिस्टर गोयल, किसी तरह की पावर तो है नहीं इसलिए ये सब मुश्किल हो जाता है. यू नीड टू कूल डाउन!
गोयल सा को मिर्ची लगी. मेरी बातों को सभी वजन दे रहे हैं ये कौन आ गई? मुझे 'कूल डाउन' करा रही है! चेहरा तमतमा गया. एक बार तो डांटने के लिए तैयार हो गए पर फिर ख़याल आया कि रीजनल ऑफिस नहीं है. जल्दबाजी ठीक नहीं. बस एक ही शब्द बोले - हुंह!
प्रो. संध्या जोरदार पर्सनालिटी थी. उम्र पैंसठ के आसपास, गोरी चिट्टी, बाल छोटे और डाई किये हुए, दिलकश परफ्यूम और फैंसी कपड़े पहनने वाली. पर ज़ुबान की तेज़ थी. तीन बेडरूम वाले बड़े फ्लैट में अकेली रहती थी. लोग कहते हैं कि हैं की बड़ी शानदार सजावट वाला है. कुछ का विचार था की प्रोफेसर ने शादी नहीं की पर कुछ कहते थे की तलाक शुदा है. पूरी सोसाइटी में शायद ही प्रो. संध्या की किसी से दोस्ती हो. सभी उनकी तुनक मिजाज़ी और धुंआधार अंग्रेजी के कारण दूर ही रहते थे. महिलाएं भी आम तौर से प्रोफेसर से मिलती जुलती नहीं थी. वैसे अगर आपको और ज्यादा जानकारी लेनी हो तो आप खुद प्रोफेसर से बात कर सकते हैं.
अगले महीने की मीटिंग होने वाली थी. गोयल सा ने इस बार विशेष तैयारी की. टकले सर पर पांच सात बाल बचे थे उन्हें भी डाई कर लिया. बड़ी मेहनत से शेव बनाई और परफ्यूम लगाया. रंग सांवला था पर इस सांवले रंग का अब कुछ नहीं हो सकता था. गोल्डन चश्मा चमका कर पहन लिया, पेन जेब में खोंस लिया और डायरी उठा ली.
मीटिंग में पहुँच कर गोयल सा ने सब का नमस्ते की. सभी ने जवाब दिया प्रो. संध्या ने नहीं दिया. गोयल सा को अटपटा लगा. ऊपर ऊपर तो शांत रहे पर मन में बिलबिला रहे थे. पर जब मीटिंग चली तो प्रो. संध्या फर्राटे से बोली. चाहे सवाल पानी की सप्लाई का हो या चौकीदारों का या पेड़ लगाने का प्रो. संध्या खूब बोल रही थी.
गोयल सा ने मीटिंग के बाद प्रो. संध्या से पूछा,
- आप ने तो नमस्ते का भी जवाब नहीं दिया?
- सामने वाले की शकल सूरत भी तो हो इस लायक!
गोयल सा सकपका गए बाकी लोग मुस्करा कर दाएं बाएँ देखने लगे. उनके लिए कोई नई बात शायद नहीं थी. गोयल सा मीटिंग ख़तम कर के चुपचाप घर की ओर रवाना हो गए. कड़वा सा चेहरा ले कर घर पहुंचे तो मैडम ने पूछ लिया - क्यूँ कैसी रही?
- अरे सुनो यार बहुत से टेढ़े मेढ़े कस्टमर देखे, लड़ाकू स्टाफ देखा, अड़ियल युनियन के नेता देखे पर ये प्रोफेसर तो हद पार कर गई. इससे तो ऐसी उम्मीद नहीं थी. सब लोगों ने मेरी बात पसंद की सिवाय प्रो.....
- रुको रुको मैं समझ गई. तुम को तो पहले भी कहा था की उस से दूर ही रहना. देखो पैंसठ साल की कुंवारी है और अकेली रहती है. कभी बहुत सुंदर भी रही होगी, उसका अपना फ्लैट है और पैसा भी है. इसलिए उस पर बहुत से मर्द मंडराते रहते हैं. पर उसकी धमकियों से डर जाते हैं और दूर दूर ही रहते हैं. उसका कवच है ये. तुम भी दूर ही रहना उस से. वैसे भी काली ज़ुल्फों वाले छैला बाबू तो रहे नहीं तुम जो तुम्हें इतना बुरा लग रहा है. शकल सूरत तो तुम्हारी भी बदल चुकी है.
- हुंह! मैं इस्तीफा दे दूंगा!
- बिलकुल दे दो. क्या पता अगली मीटिंग में तुम्हें मोटा भैंसा कह दे!.
- हुंह *@#%!
सारा बोझ मेरे ही कन्धों पर? |
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