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Sunday, 31 October 2021

इलाज

हमारे गोयल साब दो कुर्सियों पर बैठे हुए थे. मतलब एक पर बैठे थे और दूसरी कुर्सी पर दोनों पैर रखे हुए थे. दो कुर्सियों पर बैठना आसान काम नहीं है साब पर फिलहाल तो मजबूरी थी. दाहिने पैर पर प्लास्टर चढ़ा था वो तो कट गया पर अभी पट्टी बंधी हुई थी. डॉक्टर ने कहा था की पैर लटका रहेगा तो सूजन बढ़ जाएगी और रिकवरी में देर लगेगी. इसलिए गोयल साब दो कुर्सियों पर विराजमान थे.

आप तो मिलने भी नहीं आए? या आए थे? खैर आप नहीं जानते तो बता देता हूँ. बड़े बैंक के बड़े चीफ मैनेजर थे. अब रिटायर हो गए हैं. रंग सांवला, आँखों पर मोटा चश्मा, सिर पर चार पांच बाल खड़े खड़े सामने वाले को देखते रहते हैं. टिक्की, समोसे और बियर के शौक़ीन हैं जिसके कारण पेट बढ़ा हुआ है. स्कूटर चलाते हुए सामने अचानक काला कुत्ता आ गया, स्कूटर स्लिप हो गया और पैर पर पलस्तर चढ़ गया. अब अगर आप हाल चाल पूछने जाएं तो वो काला कुत्ता, स्कूटर, सड़क के गड्ढे, सरकार की लापरवाही वगैरा पर विस्तार से टिपण्णी करेंगे. फिर ये भी पूछेंगे कि आपको कैसे पता लगा? तो प्लीज़ मेरा नाम जरूर उन्हें बता दें. 

मिलने वाले लोग आ रहे थे और गोयल सा का टाइम अच्छा पास हो रहा था. आप को तो पता ही है की आने वाले लोग भी अपने अपने एक्सीडेंट के बारे में जरूर बताते हैं. स्कूटर चलाते वक़्त सामने पत्थर आ गया, सामने गड्ढा आ गया, सामने बिल्ली आ गई, सामने बच्चा आ गया इत्यादि इत्यादि. बहुतों ने सुझाव भी दिए की इलाज कैसे होना चाहिए था, कौन सा डॉक्टर हड्डी के लिए बेहतर था, अब रिकवरी जल्दी कैसे होगी इत्यादि इत्यादि. कुछ चुने हुए डायलॉग आप की जानकारी के लिए प्रस्तुत हैं:

- सर जी चालीस दिन हो लिए अभी तक पट्टी लपेटे बैठे हैं ? अब तक भी चल फिर ना रहे ? कमाल है ! इन डॉक्टरों के चक्कर में तो पड़ना ई नईं चईये. आप तो हाथ के हाथ धनीराम पहलवान से मिलते. एक झटके में हड्डी सेट कर देता. यो रा घोपला गाँव. वहीँ गाँव में ही बैठे है. जब चाहो ले चलूँगा आपको. आधा घंटा भी नहीं लगेगा और तीसरे दिन दौड़ते नज़र आओगे. ये होता है इलाज. ये ज्ञान अहलावत जी ने दिया. दरअसल उनका देसी टच रिटायर होने के बाद भी गया नहीं है. 

- गोयल सा इस उम्र में हड्डियाँ मजबूत होना बहुत जरूरी है. इन कैप्सूलों से बात नहीं बनेगी. मैं बताता हूँ आपको एक हफ्ते का नुस्खा है बस. पाए ले लो. पाए नहीं जानते? खरोड़े खरोड़े. खरोड़े भी नहीं जानते? खुर होते हैं ना खुर? बकरे के खुर? चार ले लो और खूब बोयल कर लो कूकर में.पांचवीं सीटी में उतार कर छान लो. नमक काली मिर्च डाल कर सूप की तरह पी लो. नॉन-वेज ? अरे नहीं गोयल साब दवाई समझो इसे दवाई, खन्ना जी ने सलाह दी. ये खन्ना जी पीने खाने के लिए जाने जाते हैं. 

- गोयल सा देखो काले पीले कुत्ते की बात छोड़ दो और सच सच बता दो कि नज़र कहाँ थी?, गोयल सा के पुराने मित्र अगरवाल सा ने पूछा.

- गोयल साब मेरे साथ भी ऐसा हो गया था जी. गाँव में पोस्टिंग थी. रात के टाइम गीले फर्श पर स्लिप हो गया. पैर में मोच आ गई. अब क्या करें? सिपाही को बुलवाया. भागा हुआ आया और कहने लगा जी मैं अभी आया. वो फिर भागा हुआ गया और थोड़ी देर बाद भागा हुआ आया. - लो जी साब जी भेड़ का दूध है ये. इसकी मालिस कर देता हूँ और दो तीन घूंट अभी गरम कर के और हल्दी गेर के देता हूँ जी. आप पी लेना जी. बस गोयल सा दूसरे दिन ही आराम आ गया. आप भी ट्राई कर लो कोई हर्ज नहीं है. कहें तो पता लगाऊं आस पास किसी गाँव में भेड़ें जरूर होंगीं. ये सुझाव और रिसर्च रिटायर्ड दरोगा जी बलवान सिंह की थी.

- गोयल साब ये क्या ? तीसरी बार देख रहा हूँ आपको हड्डी वाली चोट लगी है. एक बार कोहनी पर लगी, दूसरी बार घुटने पर और अब तीसरी बार पैर पर. ये सही नहीं हो रहा मैं बता रहा हूँ आपको. चोटें जो हैं नीचे की ओर जा रही हैं. इसे पलटाना पड़ेगा. और इस बार तो काला कुत्ता चोट का कारण बना हुआ है. च्च च्च च्च ये सही नहीं हो रहा मैं बता रहा हूँ आपको. उपाय करना जरूरी है गोयल साब. आप हाँ करो बस और आपको कुछ करना नहीं है. ना ही कोई समान वमान लाना है. अत्री जी हैं वो सारा कुछ संभाल लेंगे. पैसे ना देने हों तो मैं दे दूंगा पर आप ये उपाय करवा लो बस. आपको संध्या सात बजे के आसपास दस मिनट के लिए, केवल दस मिनट के लिए अकेले आना है और शमशान में आकर बैठना है. ग्यारवाँ मिनट नहीं लगने दूंगा मैं बता रहा हूँ आपको. गोयल साब क्यूंकि काला जानवर बीच में आ गया है इसलिए समाधान जरूरी है. इसे हलके में ना लें आप. मैं आपके साथ रहूँगा. आप भाभी से डिस्कस कर लेना और मुझे कन्फर्म कर देना. मैं सारा प्रबंध कर दूंगा, बंसल जी बोले.   

हमारे गोयल साब असमंजस में हैं. फैसला नहीं कर पा रहे. इस विषय पर कोई सुझाव देंगें आप ?

इसका इलाज क्या हो?


Wednesday, 13 October 2021

शकल सूरत

रिटायर होने का बाद हमारे गोयल साब कुछ अनमने से रहते थे. कहाँ तो बड़े से सरकारी बैंक के एक बड़े रीजनल मेनेजर और कहाँ अब घर बैठे हैं. और घर की इकलौती मालकिन को भी मैनेज नहीं कर पा रहे थे. शायद इसी कारण से उनका हाजमा खराब रहता था. वरना और कोई कारण तो नज़र नहीं आ रहा अशांत रहने का. रिटायर होने पर अच्छे पैसे मिले, पेंशन शुरू हो गई, अच्छा सा फ्लैट है और दोनों बेटे बाहर हैं और मजे में हैं. ये ज़रूर है की श्रीमति अब अपने साब की शाम की बियर पर तिरछी नज़र रखती हैं और बढ़ता पेट याद दिला देती हैं.

श्रीमति गोयल ने कभी कोई नौकरी तो की नहीं होम मेकर ही रहीं. फिर भी उनकी प्रमोशन लगातार होती रहती थी. वो ऐसे की जब हमारे गोयल सा मैनेजर बने तो श्रीमति अपने को सुपर मैनेजर मानने लगी, जब गोयल सा रीजनल मैनेजर नियुक्त हुए तो श्रीमति गोयल ने स्वयं को सुपर रीजनल मैनेजर घोषित कर दिया. पर जब गोयल सा रिटायर हुए तो श्रीमति गोयल ने रिटायर होने से मना कर दिया. वो अब भी सुपर रीजनल मैनेजर मोड में ही हैं. यदा कदा सब्जी भाजी खरीदने दौड़ा देती हैं वो साब को पर हमारे गोयल सा को नहीं भाता है. खरीदना तो ठीक लगता है पर उसके बाद जब खरीदी हुई सब्जी की शकल पर या उसके रेट पर श्रीमति द्वारा पोस्ट मार्टम होता है वो दिमाग में खलल पैदा कर देता है. तब मन करता है की सब्जी का थैला फेंक दें. घर पर ना तो ड्राइवर है ना कोई चपरासी जिसे डांट कर मन हल्का कर लेते! कहाँ फंसे यार बैंक में ही ठीक थे!

समय बिताने के लिए कई प्रस्ताव गोयल सा के विचाराधीन थे. नौकरी करना चाहते तो थे पर परिवार की तरफ से मनाही थी. बस घूमो  फिरो और मौज करो. एक प्रस्ताव आया कि वो अपनी हाउसिंग सोसाइटी के प्रेसिडेंट बन जाएं. उन्हें लगा की इज्ज़त सम्मान मिलेगा और रूतबा बढ़ जाएगा, इसलिए वो तैयार हो गए हालांकि मैडम सहमत नहीं थी. मना करने के बावजूद अध्यक्ष बन गए.

पहली मीटिंग में ही गोयल सा फॉर्म में आ गए. पेन और डायरी निकाल ली. घोषणा कर दी - नगर निगम को हिला कर रख दूंगा, पुलिस की खिंचाई कर दूंगा, बिजली विभाग को सीधा कर दूंगा वगैरा वगैरा और सोसाइटी को चमका दूंगा. मैं जहाँ भी रीजनल मैनेजर रहा हूँ बैंक की शक्ल बदल थी. 

मीटिंग में बैठे लोगों में से कुछ तो बड़े इम्प्रेस हो गए - वाह! गोयल साहब वाह! हमें ऐसा ही लीडर चाहिए था. गोयल साब गदगद हुए और हलकी सी मुस्कान बिखेर कर बोले - आगे आगे देखिये क्या क्या करता हूँ अभी तो शुरुआत ही है.

पर रिटायर्ड प्रोफेसर संध्या ने गोयल साब की तरफ देखा और बोली - ये सीट ऑनरेरी है मिस्टर गोयल, किसी तरह की पावर तो है नहीं इसलिए ये सब मुश्किल हो जाता है. यू नीड टू कूल डाउन!

गोयल सा को मिर्ची लगी. मेरी बातों को सभी वजन दे रहे हैं ये कौन आ गई?  मुझे 'कूल डाउन' करा रही है! चेहरा तमतमा गया. एक बार तो डांटने के लिए तैयार हो गए पर फिर ख़याल आया कि रीजनल ऑफिस नहीं है. जल्दबाजी ठीक नहीं. बस एक ही शब्द बोले - हुंह! 

प्रो. संध्या जोरदार पर्सनालिटी थी. उम्र पैंसठ के आसपास, गोरी चिट्टी, बाल छोटे और डाई किये हुए, दिलकश परफ्यूम और फैंसी कपड़े पहनने वाली. पर ज़ुबान की तेज़ थी. तीन बेडरूम वाले बड़े फ्लैट में अकेली रहती थी. लोग कहते हैं कि हैं की बड़ी शानदार सजावट वाला है. कुछ का विचार था की प्रोफेसर ने शादी नहीं की पर कुछ कहते थे की तलाक शुदा है. पूरी सोसाइटी में शायद ही प्रो. संध्या की किसी से दोस्ती हो. सभी उनकी तुनक मिजाज़ी और धुंआधार अंग्रेजी  के कारण दूर ही रहते थे. महिलाएं भी आम तौर से प्रोफेसर से मिलती जुलती नहीं थी. वैसे अगर आपको और ज्यादा जानकारी लेनी हो तो आप खुद प्रोफेसर से बात कर सकते हैं.  

अगले महीने की मीटिंग होने वाली थी. गोयल सा ने इस बार विशेष तैयारी की. टकले सर पर पांच सात बाल बचे थे उन्हें भी डाई कर लिया. बड़ी मेहनत से शेव बनाई और परफ्यूम लगाया. रंग सांवला था पर इस सांवले रंग का अब कुछ नहीं हो सकता था. गोल्डन चश्मा चमका कर पहन लिया, पेन जेब में खोंस लिया और डायरी उठा ली. 

मीटिंग में पहुँच कर गोयल सा ने सब का नमस्ते की. सभी ने जवाब दिया प्रो. संध्या ने नहीं दिया. गोयल सा को अटपटा लगा. ऊपर ऊपर तो शांत रहे पर मन में बिलबिला रहे थे. पर जब मीटिंग चली तो प्रो. संध्या फर्राटे से बोली. चाहे सवाल पानी की सप्लाई का हो या चौकीदारों का या पेड़ लगाने का प्रो. संध्या खूब बोल रही थी. 

गोयल सा ने मीटिंग के बाद प्रो. संध्या से पूछा, 

- आप ने तो नमस्ते का भी जवाब नहीं दिया?

- सामने वाले की शकल सूरत भी तो हो इस लायक!

गोयल सा सकपका गए बाकी लोग मुस्करा कर दाएं बाएँ देखने लगे. उनके लिए कोई नई बात शायद नहीं थी. गोयल सा मीटिंग ख़तम कर के चुपचाप घर की ओर रवाना हो गए. कड़वा सा चेहरा ले कर घर पहुंचे तो मैडम ने पूछ लिया - क्यूँ कैसी रही?

- अरे सुनो यार बहुत से टेढ़े मेढ़े कस्टमर देखे, लड़ाकू स्टाफ देखा, अड़ियल युनियन के नेता देखे पर ये प्रोफेसर तो हद पार कर गई. इससे तो ऐसी उम्मीद नहीं थी. सब लोगों ने मेरी बात पसंद की सिवाय प्रो.....

- रुको रुको मैं समझ गई. तुम को तो पहले भी कहा था की उस से दूर ही रहना. देखो पैंसठ साल की कुंवारी है और अकेली रहती है. कभी बहुत सुंदर भी रही होगी, उसका अपना फ्लैट है और पैसा भी है. इसलिए उस पर बहुत से मर्द मंडराते रहते हैं. पर उसकी धमकियों से डर जाते हैं और दूर दूर ही रहते हैं. उसका कवच है ये. तुम भी दूर ही रहना उस से. वैसे भी काली ज़ुल्फों वाले छैला बाबू तो रहे नहीं तुम जो तुम्हें इतना बुरा लग रहा है. शकल सूरत तो तुम्हारी भी बदल चुकी है. 

- हुंह! मैं इस्तीफा दे दूंगा! 

- बिलकुल दे दो. क्या पता अगली मीटिंग में तुम्हें मोटा भैंसा कह दे!.

- हुंह *@#%!     

सारा बोझ मेरे ही कन्धों पर?


Saturday, 9 October 2021

हाजरी रजिस्टर

हमारे गोयल साब बार बार अपने दाहिने पैर पर लगे प्लास्टर को देख रहे थे और सोच रहे थे कि कब ये कमबखत उतरेगा?  ना गाड़ी चला पा रहा हूँ, ना ढंग से नहा पा रहा हूँ और ना ढंग से सो पा रहा हूँ. करवट बदलते ही महसूस होता है की कुछ गड़बड़ है. फिर याद आता है की ओह मोटर साइकिल ! फिर याद आता है वो काला कुत्ता जिसकी वजह से ये सब कुछ हुआ. खरोंचें आईं, खून निकला, प्लास्टर लगा, इंजेक्शन लगा और अब चलना फिरना बंद हो गया. 

लोगों को बताते हुए भी शर्म आती है की काला कुत्ता स्कूटर के सामने अचानक आ गया. काला कुत्ता और वो भी मरियल सा ! कोई ऊंट या हाथी होता होता तो बात समझ आती की टकराने से गिरे और हड्डी तुड़वा बैठे. या डायनासौर ही होता तो कम से कम बताने में तो अच्छा लगता. आजकल तो डायनासौर टी शर्ट में छपने लग गया है. बच्चों के खिलौनों तक में छाया हुआ है और तो और पिक्चरों में आने लग गया है. फिर तो दोस्त यार रिश्तेदार हाल पूछने आते तो बताने में भी मज़ा आता कि देखो डायनासौर से भिड़ंत हो गई और वो भाग गया. सुन कर लोग भी अचंभित हो जाते और कहते 'कमाल है गोयल साब कमाल है ! हमारे जैसों की तो एक भी हड्डी नहीं बचती !'. 

वैसे काफी लोग हाल चाल पूछने आ चुके थे, और आ भी रहे हैं और भी आते रहेंगे. आखिर पैंतालीस दिन का पलस्तर चढ़ा है तो फिर लोगों ने आना ही है. ये भी तो देखिये ना कि गोयल सर बड़े बैंक के बड़े चीफ़ रिटायर हुए हैं बहुत लोग उन्हें जानते हैं, जिन्हें लोन दिया वो भी याद करते हैं और जिन्हें नहीं दिया वो भी याद करते हैं अलबत्ता दूसरे ढंग से. 

उसके अलावा मोहल्ले वाले हैं और रिश्तेदार वगैरा हैं तो सबने मिलने आना ही है. खुद भी तो गोयल साब लोगों का हाल पूछने दूर दूर तक जाते हैं. चाहे अस्पताल या घर दूर भी हो तो कोई बात नहीं. वैसे तो फोन पर हालचाल पता कर ही लेते हैं पर मिलने भी जरूर जाते हैं. हाँ घर जाने से पहले फिर फोन जरूर कर लेते हैं क्यूंकि कई बार ऐसा हुआ है कि मरीज चंगा होने के बाद शॉपिंग करने निकल चुका था और हमारे साब बाद में पहुंचे थे.

दरअसल जब साब पलस्तर लगवा के आए थे तो उसी वक़्त मिलने वालों का इंतज़ाम कर लिया था. संध्या को कह दिया था कि दिन में मैं कहाँ बैठूंगा या लेटूँगा और रात में किस बैडरूम में सोऊंगा. भई हाल पूछने तो लोग आएँगे ही इसलिए उनके लिए बिस्किट, नमकीन मंगवा ली. कुछ खास लोगों के लिए बियर और आइसक्रीम फ्रीज़र में रखवा दी थी. इस तरह के इंतज़ाम करने में हमारे साब माहिर थे. बैंक में भी लोन मेला, बीमा मेला लगाते रहते थे, और ऑफिस में ऑफिस आर्डर, ट्रांसफर आर्डर बहुत निकाला करते थे. 

मीडिया में पोस्ट करने के लिए घायल पैर की कई फोटू खिंचवाईं और उनमें से एक सेलेक्ट कर के पोस्ट कर दी. व्हाट्सप्प पर तीन बड़े बैंकर ग्रुप थे, एक फॅमिली का ग्रुप, एक रिश्तेदारों का ग्रुप, एक मोहल्लेदारों का ग्रुप था और कुछ फुटकर कस्टमर भी थे मसलन डॉक्टर, केमिस्ट, कार सर्विस सेंटर, केबल वाला, किरयाने वाला, धोबी, नाई और माली. सब में फोटो पोस्ट कर दी गई थी. और अब धड़ाधड़ मैसेज आ रहे थे. उधर फेसबुक और ट्विटर में फोटो पोस्ट कर दी गई थी और वहां से भी धुँआधार मैसेज आ रहे थे. ---साब को जवाब देने की फुर्सत ही नहीं मिल रही थी. 

जितने भी मैसेज आ रहे थे खुद तो पढ़ ही रहे थे और संध्या को भी पढ़ पढ़ कर सुनाते जाते थे - देखो ये जी एम साब ने क्या लिखा है, और ये वाला मैसेज पढ़ो ये बंदा मेरे साथ आगरा में था, और ये देखो मुज़फ्फर नगर में मेरा सीनियर था और ये तो झुमरी तलैय्या में बॉस था. लोग याद करते हैं ऐसी बात नहीं है क्यों डार्लिंग? 

- और ये व्हाट्सप्प में देखो दो सौ से ज्यादा मैसेज एक ही दिन में! लोग प्यार के बदले प्यार देते हैं. है की नहीं?  जिनका कोई मैसेज नहीं आएगा सब यहाँ ( सिर की ओर इशारा कर के ) रिकॉर्ड हो जाएगा! हाजरी रजिस्टर है पक्का. जिसका मैसेज नहीं आया उसको मैसेज नहीं जाएगा. जो देखने नहीं आयगा उसे गोयल देखने नहीं जाएगा. बस ख़तम. बात ख़तम !

- ज्यादा शोर नहीं मचाओ. कोई आता है कोई नहीं आ पाता ये समाज तो ऐसे ही चलता है. मेरे परिवार के तो सारे आ गए पर तुम्हारे दोनों भाई अब तक नहीं आए तो बोलो क्या करोगे? मेरा पास भी पक्का गैर-हाजरी रजिस्टर है.

- उंह ?@#!

कितने लोग देखने आए?


Tuesday, 5 October 2021

Vipassana Meditation

In ancient Pali language the word passana means to see and vipassana to see clearly or specially. In terms of Buddhist Canons Vipassana is ‘to known things as they are’ ( yathabhoota nanadassana ). Such action of knowing things if practiced regularly, helps in developing mental insight which eventually leads to understanding non-superficial world.

Vipassana meditation is an ancient technique re-discovered by Gautam Buddha 2500 years back. For forty five years he taught this technique to people from all sections of society and it was well received.   

The word ‘vipassana’ is less frequently used in Buddhist Suttas or is used in conjunction with jhana ( Dhyan ) & samtha ( Shamath ) as meditative practice to be undertaken. Some scholars believe that these three are all part of a single path whereas some others feel that samtha and vipassana are two qualities of mind which are to be developed by means of meditative practice.

The method and training of insight ( vipassana ) has been mentioned in Buddhist discourses or Suttas.  Satipatthana Sutta of Majjhim Nikaya and Mahasatipatthana Sutta of Diggha Nikaya deal with method of training for insight. Vipassana & its method has been discussed in many Buddhist books with slight variations here and there.

In Sarvastivada and the Sautrantika traditions vipassana meditation was practiced as per texts like Abhidhammakosakarika and Yogacarabhumi Sastra.

Vasubandhu states in Abhidhammakosakarika that vipassana is practiced after Samadhi absorption by cultivating four types of mindfulness.

Abhidhamma-samucchaya by Asanga mentions that practice of samtha-vipassana is part of Bodhisatta’s path at the beginning. 

Bodhisattvacaryavatara by Shantideva states that samtha is pre-requisite to vipassana.

2. History

The practice, commentaries and discussions on vipassana seems to have waned around 10th century or so. This was due perhaps to general decline of Buddhism in India and also due to adverse activities of invaders etc. A belief that liberation is not possible before appearance of future Maitreya Buddha was also in circulation those days.

Vipassana was revived in Burma in late 18th century based mainly on Satipatthana Sutta & Visuddhimagga in Thervada tradition. Later in 19th & 20th centuries Vipassana spread as ‘movement’ in practically all parts of the world.

Some of the prominent names which contributed to this movement are – Medawi ( 1728 – 1816 ), U Narada, Mahasi Sayadaw, Nyanikponika Thera, Sayagi U Ban Khin, Satya Narayan Goenka, Ajahn Chah and Buddhadasa. Last two names are in Thai Forest Tradition.

3. Vipassana Meditation

Buddhist canonical sutta Satipatthana Sutta or the Discourse on Mindfulness gives guidelines to a meditator as to how he should proceed to get insight in four phases of meditation. Gautam Buddha explained this sutta in a town called Kammasadamma in Kuru country in northern India.

This process can by no means, be called easy. It is strenuous work and requires time, energy and firm resolution on the part of learner. Further, the mindfulness and insight so gained is own direct knowledge and is not based on any dogmas, irrationals, or any revelations by any creator god. To begin with vipassana it would be better to keep aside all beliefs including even rebirth or karma theory. One should work with an open mind and concentrate only on body and activities in and on body.

Arousing of mindfulness in body or consciousness by any physical or mental object via six senses ( eyes, ears, nose, tongue, body and the mind ) is the starting step of getting insight. Four arousings of mindfulness are: body or Kaya, sensations or Vedana, consciousness or Chitta and mental objects or Dhamma. These four are discussed in brief, as under.

4. Contemplation of body ( Kayanupassana )

First step in vipassana meditation is observing the breath as it comes in and as it goes out without disturbing the rhythm of the breath. For this the learner sits down cross legged with backbone erect and with eyes closed in a secluded place where there is least disturbance.

While inhaling, breath may come in from left, right or both nostrils, it may be cool or warm, short or long. Whatever it be, it is only to be observed. Similarly, while exhaling, breath may be short or deep, warm or cool it has to be observed only and is not to be disturbed.

Meantime the mind may get distracted and run away from observing breath but has to be brought back to observing breath. After a while the breath will slow down and then whole-body may be observed. For this a slow mental journey from top of the head towards toe nails and from toe nails to top of the head may be undertaken to feel the body parts and activities going thereon.

After a while one becomes aware that the body progressively cools down and becomes calm. The body and activities in the body are to be observed but not to be disturbed. After gaining experience as above, observation of body may be extended to other postures like walking, standing and lying down (called Iryapath in Pali ).  

With practice one becomes aware of minute activities and sensations happening on the body. Sensations arise in the body, stay for a while and disappear. This continues at a fast pace all the time and keeps the mind occupied needlessly.

After gaining experience, meditative awareness needs to be focused on unattractiveness ( kayagatasati and asubha ) inherent in the body.

 Next step is to be aware of and to analyze properties of parts of bodies. These are similar to the properties of basic elements or Dhatu - earth, air, water and fire (Dhatuvatthana ).

For those who are excessively attached to sexual pleasures cemetery visit has been suggested ( sivathika ) to understand the difference between attractive body and its final status. 

5. Contemplation of feelings or sensations ( Vedananupassana )

Contact with one of the six senses that is eyes, ears, nose, tongue, the body and the mind gives rise to feelings or sensations. When we meditate, pay attention and analyze these sensations it is observed that these may be pleasant, unpleasant or neutral types. 

Pleasant feelings make us cling to them and we want more of them. We initiate action to repeat and enjoy that sensation thereby giving rise to greed, lust etc.

Unpleasant or painful feelings give rise to hate, fear, unease etc and we want to get away from them or force them to get away.

Neutral feelings are ignored and dismissed usually which may lead to delusion.

Arousing of feelings and consequent related actions are not inevitable. They can be warded off. The chain of contact - sensation - attachment - action can be broken. Being mindful of our body we can be on alert towards changes affecting the body and say – ‘this feeling has arisen’. Having recognised, we can let these feelings go away without any further reaction to them.

6. Contemplations of consciousness ( Chittanupassana )

This is the third of four stages of contemplations in Buddhist Vipassana Meditation. Here one tries to be mindful of consciousness or the Chitta and along with the mental factors called the Chetsikas. The mental factors or Chetsikas are also called ‘associates’ or ‘concomitants’ or ‘mental states’ as both chitta and chetsikas work together – they arise together and cease together. For example, if there is anger or lust as mental factor then the meditator must note that there is consciousness + lust or there is consciousness + anger present at that moment. 

If at that moment mindfulness is strong anger disappears. Meditator will realise that anger is momentary – it arose and then passed away. Like feelings, perception, and emotions the mental factors and the consciousness are not permanent. In fact, Buddhism treats all made up worldly things as impermanent and subject to decay. Attachment to such things ultimately create Dukkha.

From the above examples we can describe two types of minds: the mind with lust or with anger and mind without lust or anger. Such states of mind are simply observed by the meditator and allowed to pass without clinging to desired ones and without resenting the undesired ones. 

After continuous and regular practice, the mind is seen as a sequence of mental states which are temporary or impermanent and without any self.

7. Contemplation of mental objects ( Dhammanupassana )

The last stage of vipassana leads to equanimity. This stage is toughest one requiring continuous practice. It is often described as ‘where study ends, Dhammanupassana begins! It requires high degree of mindfulness together with mental discipline. 

The word Dhamma in Pali and Dharma in Sanskrit represents here concepts, laws, doctrines, theory and teachings of Buddha. It is an all-inclusive word. While starting dhammanupasana certain mental states put hindrances on practice, certain other mental states or qualities help make progress. All these mental states need to be carefully investigated. Meditator needs to contemplate with mindfulness the following phenomena.

8. Five hindrances ( Five Nivaranas )

These are:

1. sensual desire or Kamachhanda,

2. ill will or Vyapada,

3. sloth & torpor or Styana-middha,

4. restlessness & anxiety or Auditya-Kaukritya and

5. doubts or Vichikichha.

These five hinder the progress of dhammanupassana. While contemplating the meditator, notices for example, that ‘there is no sensual desire present within me’ or that ‘there is sensual desire present within me’. If present, he lets the sensual desire go and discerns that sensual desire has been abandoned. He further discerns that there is no future sensuous desire present in me. Same formula is applied to other four hindrances.

9. Five Aggregates ( Five Skandhas )

The five aggregates are:

1. form or Rupa,

2. sensations or Vedna,

3. perceptions or Sanna,

4. mental formations or Sankhara and

5. consciousness or Vinnana

These five aggregates are factors and parts of one’s personality. These give rise to cravings and clinging and which cause suffering. The sufferings can be removed by removing attachments with the above five aggregates.

While contemplating a meditator discerns that ‘this is the form, such is its appearance and such is its disappearance’. Same formula is applied to other four aggregates.

10. Six senses ( Sadayatana )

The six senses are:

1. eyes,

2. ears,

3. nose,

4. tongue

5. the body and

6. the mind

These are our resources to experience outside world. While contemplating the meditator discerns the eye, he discerns the object or the form, he discerns the fetter or hindrance dependent on both eye & form. He discerns how the fetter has been abandoned after arising. He discerns that how there is no further arising of a fetter which was abandoned. This formula is applied again to remaining senses.

11. Seven factors of awakening ( Seven Bodhyangas )

These factors are:

1. mindfulness or Sati,

2. investigating or Dhammavichay,

3. energy or Virya,

4. rapture or Piti,

5. tranquillity or Pashabdi,

6. concentration or Samadhi and

7. equanimity or Upekkha.

While contemplating, the meditator has for example, the first factor of mindfulness present in him. He discerns that ‘mindfulness as a factor of awakening is present within me’.  Or if there is no such factor is present within him then he discerns that ‘no such factor of mindfulness is present within him’. He further discerns how there is arising of unarisen mindfulness as a factor of awakening and culmination thereof once it has arisen. 

It would be observed that mindfulness is foundation of entire process of Vipassana meditation. With well established mindfulness, quality investigation into various phenomena could be done. This requires hard work and energy, energy gives rise to rapture, rapture gives rise to tranquility, tranquility leads to one-pointed concentration and finally concentration gives rise to equanimity.

नमो बुद्धाय 


Disclaimer- Above paragraphs have been written while trying to learn. I am not an expert on the subject. Your comments are welcome.