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Thursday, 22 April 2021

देह दान

पौराणिक कथाओं में एक कथा है महर्षि दधीचि की. संक्षेप में ये कथा इस प्रकार है: एक बार वृत्रा नामक असुर ने इंद्रलोक पर कब्ज़ा जमा लिया. इंद्र समेत सभी देवता इन्द्रलोक से निष्काषित कर दिए गए. इन्द्रलोक वापिस लेने के देवताओं के सारे प्रयास विफल हो गए. अब देवता ब्रह्मा के पास गए. ब्रह्मा ने सारी बात सुनने के बाद कहा कि वृत्रा से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है. अगर पृथ्वी लोक के महर्षि दधीचि अपनी अस्थियां दान कर दें तो उन अस्थियों से बना वज्र वृत्रा को समाप्त कर देगा, इसके अलावा वृत्रासुर पर कोई भी अस्त्र-शस्त्र कारगर नहीं हो पाएगा. पृथ्वी लोक पहुँच कर देवताओं ने दधीचि से प्रार्थना की तो वो प्राण त्यागने को तैयार हो गए. दधीचि के अंतिम संस्कार के बाद उनकी अस्थियों से गदा बनाई गई और उस गदा से वृत्रा का अंत हुआ. इंद्र को इंद्रलोक वापिस मिल गया. इस कथा या मिथक का तात्पर्य शायद यही है कि जीते जी सब कुछ दान कर देना एक महान कर्म है, पुण्य का काम है.

आजकल के हालात में दधीचि की तरह जीते जी तो कौन अपना शरीर दान कर पाएगा? हाँ कुछ अंग या ऑर्गन जैसे की आँख की पुतली, किडनी, लीवर वगैरह काफी लोग दान कर रहे हैं. पर ऐसे लोगों की गिनती इतनी बड़ी जनसंख्या को देखते हुए बहुत ही कम है. इतना ज़रूर है कि रक्त दान करने वालों की संख्या काफी बढ़ गई है. जैसे जैसे रक्त दान के बारे में जानकारी बढ़ी है उस से रक्त दान करने में झिझक नहीं रह गई है. परन्तु अंग दान या मृत शरीर का दान देने में अभी जानकारी की कमी है और साथ ही इच्छा की भी. 

मृत शरीर भी दान दिया जा सकता है जो एक तो मेडिकल कॉलेज की पढ़ाई में काम आता है और मृत शरीर के कुछ अंग ट्रांसप्लांट के लिए भी दान दिए जा सकते हैं. पहले लावारिस लाशों को पुलिस मेडिकल कॉलेज भेज दिया करती थी पर अब उसका पोस्ट मोर्टेम कर के रिकॉर्ड रखा जाता है. इसके चलते अब मेडिकल कॉलेजों में ट्रेनिंग के लिये 'बॉडी' की कमी महसूस की जा रही है. 

भारत में किडनी, लीवर, गाल ब्लैडर, बोन मेरो( हड्डियों की मज्जा ) बदलने का काम याने transplant बहुत बढ़िया होता है और दूसरे देशों के मुकाबले सस्ता होता है जिसके कारण बहुत से देशों से लोग ट्रांसप्लांट कराने भारत आते हैं. पर इसके साथ साथ अंगों का गैर कानूनी व्यापार भी चल पड़ा है.  

भारत में अंग दान सम्बंधित क़ानून 1994 में बना था. इसके बाद 2011 में संशोधित हुआ और मार्च 2014 में जारी किया गया ( Transplantation of Human Organs and Tissues Rules 2014 ).

पूरी दुनिया में अंग दान को बढ़ावा देने के लिए हर साल 13 अगस्त को विश्व अंग दान दिवस भी मनाया जाता है.

कुछ देशों में ड्राइविंग लाइसेंस में शर्त डाल दी जाती है कि अगर सड़क दुर्घटना में लाइसेंस धारक ड्राईवर की मृत्यु हो जाती है तो उसके कुछ अंग बिना किसी कानूनी अड़चन के तुरंत निकाले जा सकते हैं.

ईरान में अंग दान करने वाला कानूनी तौर पर मुआवज़ा पाने का हकदार माना जाता है. इस कानून के चलते वहां अंग पाने वालों की लिस्ट लम्बी नहीं होती और ट्रांसप्लांट का काम व्यवस्थित ढंग से चलता है. 

अंग दान और देह दान के भावनात्मक पहलू भी हैं जो दान को आगे बढ़ने में रुकावट का काम करते हैं. अगर मेडिकल कॉलेज को देह दान कर दी तो अंतिम संस्कार का क्या होगा? कैसे होगा? और बाद में वो चीर फाड़ कर के फेंक देंगे तो? मृत शरीर का नहलाना धुलाना, चार कन्धों पर राम नाम सत्त बोलते हुए शमशान ले जाना, अगले दिन फूल चुनना, हर की पैड़ी का विसर्जन और पूजा पाठ, इन सब का क्या होगा? रिश्तेदार, दोस्त, अड़ोसी पड़ोसी और समाज इसका क्या अर्थ लगाएगा? हमारे विचार को कैसे समझेगा?

इसलिए जब श्रीमति ने घर में पहली बार ये विषय चर्चा के लिए उठाया तो सीधा सीधा जवाब देने में उलझन हो गई. हाँ या ना सोच विचार कर के ही कहा जा सकता है. घर पर कई महीनों तक इस विषय पर रुक रुक कर विचार विमर्श चलता रहा और एक दिन हम मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल से मिलने चले गए. बातचीत में कई नई बातें पता लगीं : 
- मृत शरीर पर वारिसान अर्थात लीगल हेयर का अधिकार है ( मरने वाले का नहीं है! ). वारिसों की लिखित सहमति की बगैर देह दान नहीं किया जा सकता. इसलिए देह दान का जो फॉर्म एफिडेविट के रूप में भरा जाएगा उस पर वारिसों के दस्तखत भी होंगे. प्रिंसिपल साब ने बताया कई बार ऐसा भी हुआ है कि फॉर्म तो भर दिया पर जब मृत शरीर उठाने एम्बुलेंस पहुंची तो वारिस आपस में लड़ पड़े और बॉडी नहीं दी.
- मृत्यु के तुरंत बाद खबर कॉलेज में पहुंचानी ज़रूरी है. कई बार अनजाने में वारिसान की ओर से समय पर सूचना ही नहीं दी जाती जिसके कारण एम्बुलेंस नहीं भेजी जा सकी.  
- मृत शरीर का चार घंटे के भीतर मेडिकल कॉलेज पहुँचना जरूरी है ताकि शव पर लेप लगा कर सुरक्षित रखा जा सके. ज्यादातर शव बारह महीने तक ही रखे जाते हैं. 
- मृत शरीर का अंग भंग नहीं होना चाहिए 'नेचुरल डेथ' वाली बॉडी चाहिए. एक्सीडेंट में हुई मृत्यु जिसमें अंग भंग हो गया हो, नहीं चाहिए क्यूंकि उसे लम्बे समय तक रखा नहीं जा सकता और छात्रों को चीर फाड़ में पूरी तरह से काम नहीं आ पाती.  
- देह दान के एवज़ में किसी तरह की कोई प्रोत्साहन राशि वगैरह नहीं दी जाती.
प्रिंसिपल साब ने एक फाइल भी दिखाई जिसमें 15-20 एफिडेविट लगे हुए थे. इनमें से दो तो डॉक्टर्स के थे. 
अपने विचार और मेडिकल कॉलेज की सारी शर्तों पर बच्चों के साथ विचार विमर्श हुआ ( बच्चे कहना हमारे लिए तो ठीक है पर वो हैं 39, 37 और 34 साल के! ). शुरू में तो बच्चों के भी वही सब सवाल थे जो हमारे मन में आए थे. कई दिन की बातचीत के बाद लिखित सहमति मिल गई. 

स्टाम्प पेपर पर फॉर्म की भाषा छपवा ली है और सभी के हस्ताक्षर भी हो गए हैं. अब नोटरी के हस्ताक्षर करा के मेडिकल कॉलेज में जमा करना है. इस कोरोना कमबख्त से फुर्सत मिले तो काम पूरा करा देते हैं.

देह दान महा कल्याण 


20 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2021/04/blog-post.html

Jogi said...

Good decision, if you can benefit any needy person can be very helpful.
However its bad if they do wrong use, selling body parts in black market, etc.

Unknown said...

आज के समय में बेहद पुणय का काम ,एक परशसनीय कदम

Unknown said...

This is a very noble and courageous act by both of you and the family. My appreciation and best compliments.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर ।

Unknown said...

बहुत ही सुंदर अंकल जी
आप दोनों महान है

N P Singh said...

Very good act indeed.

Onkar said...

बहुत सुंदर

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Jogi. As far as I know, of seniors become unfit for transplant. organs

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद मीना भारद्वाज. "टोकरी भरकर गुलाबी फूल लाऊँगा" (चर्चा अंक- 4045) पर हाजिरी जरूर लगेगी.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Onkar

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Anuradha chauhan

A.K.SAXENA said...

साहसिक कदम। महान विचार। महान व्यक्तित्व। आप दोनो महान हैं। सादर नमन।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद A.K. SAXENA जी.

Kamini Sinha said...

मानवता के प्रति समर्पण का अद्भुत उदाहरण पेश किया है आपने,सत-सत नमन सर

अनीता सैनी said...

पढ़ते पढ़ते विचारों ने अनेक पड़ाव पार किए परंतु किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाई अपनों से अथाह प्रेम विचारों को जकड़ लेता है। मार्मिक लेखन।
सादर

मन की वीणा said...

यह एक साहसिक कदम है स्वयं का और परिवार जन का विस्तृत जानकारी के साथ लिखा ये यथार्थ बहुत लोगों को दिशा ज्ञान देगा।
साधुवाद।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद मन की वीणा
परिवार तैयार हो गया इससे अच्छी क्या होगी

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद अनीता सैनी. हमें भी कई बरस लग गए फैसला लेने में और फिर बच्चों की सहमती भी चाहिए थी. फिर भी बच्चों का फैसला जल्दी हुआ!

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद कामिनी सिन्हा. फैसला आसान नहीं था पर फिर हो ही गया. अब इसमें मानवता का भला होना तो बोनस के सामान है.