बड़े बैंक की बड़ी ब्रांच में कुछ ना कुछ होता रहता है. बड़ी ब्रांच की लोकेशन बहुत अच्छी थी, मेन रोड पर. ब्रांच के बाएँ हाथ पर एक पेट्रोल पंप था और दूसरी तरफ पोस्ट ऑफिस. इसलिए चहल रहती थी और बसें भी आसानी से मिल जाती थी. आने जाने की सुविधा थी. बिल्डिंग के पहले माले पर याने ब्रांच के ऊपर प्राइवेट ऑफिस थे और बिल्डिंग के पीछे काफी बड़ा लॉन था. ये लॉन चहलकदमी के लिए या फिर सर्दियों की धूप सेकने के लिए बहुत काम आता था. बल्कि सर्दी में लंच के डिब्बे लॉन में ही खुलते थे.
लॉन की पिछली सीमा पर बिल्डिंग से ले कर पेट्रोल पंप तक ऊँची ऊँची कटीली तार की फेंसिंग थी. पर अक्सर पेट्रोल पंप के पास की तारें ऐसे ऊपर नीचे बंधी देखी जाती थी जैसे की कोई झुक कर वहां से निकलता हो. आम तौर पर यही कहा जाता था की नशेड़ी अँधेरे में अड्डा जमा लेते थे. बिल्डिंग का चौकीदार तारें ठीक कर देता था पर दो चार दिन के बाद जस की तस हो जाती.
ब्रांच में लोन भी काफी थे और अपने गोयल सा लोन मैनेजर थे. आप मिले तो होंगे गोयल सा से? सांवला रंग है, सर पे एकाधा बाल बचा है. थोड़े मोटे से हैं बियर के शौक़ीन हैं. लोन के मैनेजर हैं तो भला काम से कब फुर्सत मिलती है जो लॉन में जाकर सर्दी की धूप में लंच करें? वैसे भी क्लोजिंग सिर पर आ रही थी. लोन का आंकड़ा किसी ना किसी तरह बढ़ाना था. अपना काम बढ़ा चढ़ा कर दिखाना चाहे झूठा ही सही, जायज़ है. अंग्रेजी में तो इसे विंडो ड्रेसिंग कहते हैं हिंदी का उपयुक्त शब्द पता नहीं क्या है. विंडो ड्रेसिंग वैसे ही है जैसे घर के अगाड़ी सफाई हो और पिछाड़ी गंदगी.
गोयल सा के लिए विंडो ड्रेसिंग मूंछ का सवाल था. ये बात और है की ना उनकी मूंछ हैं, ना दाढ़ी और ना ही टकले सर पे बाल. इस विंडो ड्रेसिंग के लिए अगर गोयल सा को लेट बैठना पड़े तो भी बैठेंगे मिसेज़ नाराज़ होती हों तो हों. आठ बजने वाले थे सारा स्टाफ जा चुका था. बिल्डिंग भी खाली हो चुकी थी. बस एक गोयल सा और दूसरे उनके असिस्टेंट मनोहर उर्फ़ मन्नू भैय्या जी बैठे फाइलें खंगाल रहे थे. लोन पार्टियों को फोन फान कर रहे थे.
अचानक चार पुलिस वालों ने दोनों को घेर लिया- चलो थाणे! बहुत देर तक डायलॉग चला बहुत कुछ समझाने की कोशिश की पर ना कोई सुनवाई नहीं. पुलिस वालों ने 'चलो थाणे' की रट लगा रखी थी. दो नशेड़ियों को पहले से ही पकड़ रखा था. पता लगा कि पुलिस पिछले पार्क में आई थी नशेड़ियों को धरने लगे हाथ उन्होंने गोयल सा और मन्नू भैय्या को भी घेर लिया. मन्नू ने कांपते हाथों से रीजनल मैनेजर के घर फोन किया और सारी कथा सुनाई. रीजनल मैनजेर ने आगे ताबड़ तोड़ फोन घुमा दिए और मामला ठीक ठाक निबट गया. थाणे जाने की नौबत नहीं आई. पर इस कार्रवाई में ग्यारह बज गए और घर पहुँचते पहुँचते बारह बज गए.
मिसेज़ गोयल बेसब्री से इंतज़ार कर रहीं थी. बहुत लोगों से फोन पर पूछताछ कर चुकी थीं. अंदर कदम रखते ही बिजली चमकी, बादल गरजने लगे और धुआंधार शुरू हो गई. सुबह नाश्ते की टेबल पर भी मौसम नहीं बदला बल्कि इकतरफा घोषणा हो गई - रात दस बजे के बाद आना हो तो बराण्डे में सो जाना. बिस्तर और पजामा कुरता और साथ में डोग्गी बाहर ही मिलेगा !
बड़ी मुश्किल हो गई है जी नौकरी. एक बॉस दफ्तर में और एक बॉस घर में. इन दो पाटन के बीच में साबुत बचा ना कोय!
बॉस |
3 comments:
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Closed abruptly.....
Thank you Subhash Mittal ji. It happens sometimes!
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