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Sunday 14 February 2021

चलो स्कूल चलें

रिटायरमेंट के बाद क्या करें? भारत दर्शन करें और क्या! चलो फिर एक मोटरसाइकिल ले लेते हैं. एक रॉयल एनफील्ड 500 क्लासिक खरीद ली. बड़े शौक से फटफटिया हाईवे पर दौड़ानी शुरू कर दी. दिल्ली से जयपुर, पुष्कर, हरिद्वार, लैंसडाउन की सैर की. पर कुछ ट्रैफिक ने परेशान किया, कुछ धूल मिट्टी ने और कुछ पतली कमर ने. सोच विचार करने के बाद फटफटिया बेटे को गिफ्ट कर दी. 

अब भारत दर्शन के लिए गाड़ी में चाबी लगाई. बारह दिन का एक चक्कर उदयपुर, पोरबंदर, दिउ, गिर फारेस्ट और द्वारका का लगा. दूसरा कन्याकुमारी से दिल्ली का लगा जिसमें एक महीना लगा. फिर पंद्रह दिन का टूर बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर और जयपुर का लगा. एक बार गाड़ी केदारनाथ की दिशा में भी गुप्तकाशी तक गई. छोटे मोटे कई और भी टूर लगते रहे. आखिरी लम्बा टूर दिल्ली-बंगलौर का रहा.

फिर आ गया कमबखत कोरोना. जनवरी 20 से फरवरी 21 आ गई गाड़ी उदास खड़ी है. एक साल तो गया हाथ से और आगे का पता नहीं. घर में बंद होकर तो भारत दर्शन नहीं हो पाएगा परन्तु भारतीय दर्शन तो पढ़ा जा सकता है? अब तक तो कोई धार्मिक ग्रन्थ पढ़ा नहीं था तो सोचा की नजर तो मारें इन पर. कुछ किताबें मंगवाईं,  कुछ इंटरनेट से उतार लीं और कुछ यू ट्यूब में खोज बीन शुरू की. यूट्यूब पर लेक्चर देखे सुने. कुछ समझ आए कुछ नहीं. भारतीय पुरातन दर्शन बहुत विस्तार वाला और धीर गंभीर है. फिर भी कोशिश जारी राखी.
 
कुछ मुख्य मुख्य बातें जानने को मिलीं : वेदों पर आधारित छे दर्शन हैं - सांख्य दर्शन, योग दर्शन, न्याय दर्शन, वैशेषिक दर्शन, मीमांसा और वेदांत. ये सभी दर्शन आत्मा और परमात्मा को किसी ना किसी रूप में मान्यता देते हैं. वेदों में आस्था होने के कारण इन्हें 'आस्तिक' दर्शन कहा जाता था. इन दर्शन या फलसफों के अपने अपने सूत्र, मन्त्र, भाष्य और ग्रन्थ हैं. ये ग्रन्थ ईसा पूर्व दो सौ साल से लेकर ईसा पूर्व दो हज़ार साल पहले या शायद और भी पहले संकलित किये गए होंगे। पर पक्के तौर पे समय निर्धारित नहीं है. 
 
प्राचीन काल के तीन भारतीय दर्शन और हैं जो नास्तिक दर्शन कहलाते हैं. ये हैं जैन, बौद्ध और चार्वाक दर्शन. ये तीनों आत्मा परमात्मा को नहीं मानते, ना ही ये मानते हैं कि संसार का बनाने वाला या कोई चलाने वाला है. चार्वाक तो अब केवल किताबों में ही है परन्तु जैन और बौद्ध धर्म प्रचलित हैं. 
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में जैन अनुयायी पैंतालिस लाख से कुछ ज्यादा हैं और बौद्ध धर्म के अनुयायी लगभग चौरासी लाख से ज्यादा हैं. 2010 में विश्व में बौद्ध धर्म मानने वालों की संख्या सैंतालीस करोड़ से ज्यादा थी. इन देशों में बुद्धिज़्म मानने वाले ज्यादा हैं - भूटान, म्यांमार, कम्बोडिया, लाओस, मंगोलिया, श्रीलंका, थाईलैंड, चीन, सिंगापुर, हांगकांग और दक्षिणी कोरिया.   
बौद्ध धर्म या दर्शन के संस्थापक थे सिद्दार्थ गौतम जो 563 ईसा पूर्व पैदा हुए थे. यूँ तो वो कपिलवस्तु के राजा शुद्दोधन और रानी महमाया के बेटे थे पर उनत्तीस वर्ष की आयु में महल का विलासिता पूर्ण जीवन छोड़ सत्य की खोज में निकल पड़े. उन्हें चार दृश्यों ने गहरी सोच में डाल दिया था - जब एक बूढ़ा आदमी देखा, जब एक बार एक बीमार आदमी देखा, फिर एक बार अर्थी जाते देखी तो सिद्दार्थ ने अपने रथ के सारथी चन्ना से पूछा की ये सब क्या है? जवाब में उसने कहा ये सभी के साथ होता है और आपके साथ भी होगा। जवाब सुन कर सिद्धार्थ सोच में पड़ गए. एक बार सिद्धार्थ ने एक साधु देखा जो बड़ा शांत और प्रसन्न दिख रहा था. सिद्धार्थ गौतम ने सोचा की लगता है इस साधु ने दुखों से छुटकारा पा लिया है. ऐसा साधु बनना ही ठीक है? 

उन्नतीस बरस की उम्र में वे महल से निकल पड़े. लगभग छे साल तक कई आश्रम और ज्ञानी लोगों के साथ गुज़ारे पर संतुष्ट नहीं हुए. फिर स्वयम अपना मार्ग खोजा - मध्यम मार्ग. 

गौतम बुद्ध ने एक ओर विलासिता और दूसरी ओर शरीर को कष्ट देने वाला कठिन तप छोड़ कर मध्यम मार्ग पर चलने का सुझाव दिया. 35 वर्ष की आयु से शुरू कर के 80 वर्ष की आयु तक लगातार उत्तरी भारत में उपदेश देते रहे. पैंतालिस सालों के प्रवास में गौतम बुद्ध ने 82000 उपदेश दिए जो बाद में त्रिपिटक नामक तीन ग्रंथों - विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक में संगृहीत किये गए. 

त्रिपिटक मूलत: पाली या संस्कृत में लिखे गए थे. दोनों ही भाषाएं आती नहीं थी इसलिए हिंदी और इंग्लिश के अनुवाद पढ़ने की कोशिश की. बहुत विस्तार में मन, पांच इन्द्रियों की दशाएं और इनका प्रभाव का गहरा अनुसन्धान है. पूजा पाठ, मन्त्र, आत्मा, परमात्मा आदि का जिक्र लगभग है ही नहीं. कुल मिला कर दर्शन और मनोशास्त्र है. अपने आप पढ़ कर समझ लेना मुश्किल लगा इसलिए एम् ए ( बुद्धिस्ट स्टडीज़ ) में दाखिला ले लिया! 

दोबारा स्कूल में, चाहे वो स्कूल ऑफ़ बुद्धिज़्म ही सही, दाखिला मज़ेदार लग रहा है. क्लास में सत्तर साल का नौजवान मेरे अलावा कोई भी नहीं है! फिलहाल तो ऑनलाइन क्लासें चल रही हैं. ये भी नया अनुभव है जिसके बारे में भी आगे ब्लॉग लिखना पड़ेगा! होम वर्क भी मिल रहा है और लम्बी लम्बी असाइनमेंट भी. इसलिए ब्लॉग लिखने का काम घट गया है. मार्च में परीक्षा भी आ रही है तो पढ़ना भी पड़ेगा! 

चलते चलते ये बताना ठीक रहेगा का बुद्ध ने कहा है कि जीवन नदिया के बहाव जैसा है कभी तेज़, कभी घुमावदार और कभी पत्थरों से टकराव.  जब कभी सोचते हैं की सब ठीक ठाक चल रहा है अनहोनी हो जाती है. 
सभी वस्तुएं और घटनाएं अनित्य या नश्वर हैं. कभी धरती पर डाइनोसॉर डोलते थे अब नहीं हैं पर जीवन निरंतर जारी है. हम अपने वातावरण और प्रकृति का हिस्सा हैं और एक दूसरे पर निर्भर हैं. 
परिवर्तन एक  शाश्वत नियम है. वैसे ही हमारे विचारों का बदलना भी स्वभाविक है. कभी मानव सोचता था की दुनिया चपटी है और स्थिर है अब विचार बदल गए हैं. 
हम अपने विचार, वाणी और शरीर से कार्य करते हैं जिनसे कोई ना कोई फल निकलता है, इस फल से फिर कोई कार्य पैदा हो जाता है और इस तरह से एक लम्बी जटिल श्रृंखला चलती रहती है. अगर अच्छे कार्य करते चले जाते हैं तो फल भी वैसे ही आते जाते हैं. 
हमारा संसार हमारा हमारा अंतर्मन ही है और हम बाहरी घटना, स्थान या व्यक्ति से दुखी नहीं होते बल्कि अंतर्मन की धारणाओं से टकराव के कारण दुखी हो जाते हैं. वस्तुस्थिति समझ कर जीवन बेहतर बनाया जा सकता है. 
और अब ऑनलाइन कक्षा का समय हो रहा है, फिर मिलेंगे.
चलो स्कूल चलें 



9 comments:

ASHOK KUMAR GANDHI said...

Good, kharoshow

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Ashok Gandhi.

Harsh Wardhan Jog said...

इस पोस्ट का लिंक https://jogharshwardhan.blogspot.com/2021/02/blog-post.html

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर और सार्थक।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद डॉ रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

जितेन्द्र माथुर said...

ख़ूब लिखा हर्ष वर्धन जी आपने । और सटीक लिखा । वैसे चार्वाक अब केवल पुस्तकों में नहीं, सरकारी नीतियों में भी परिलक्षित हैं ।

A.K.SAXENA said...

Bahut sundar vistrat varnan kiya hai antarman ki shanti ka. Sundar evam vistrat jankari. Dhanywad.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद जीतेन्द्र माथुर जी. ये तो आपने खूब कहा की चार्वाक सरकारी नीतियों में घुस गया है!

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद सक्सेना जी. मिलेंगे तो और चर्चा होगी।