बहुत पहले 1972 में पब्लिक सेक्टर बैंक बतौर क्लर्क ज्वाइन किया था और 2011 में बतौर चीफ रिटायरमेंट हुई थी. अब पीछे मुड़ कर देखो तो लगता है कि ये प्राचीन काल की एक लम्बी घुमावदार यात्रा थी. इस यात्रा की कुछ खट्टी मीठी यादें हैं जो कभी कभी लिखने में मज़ा आता है. ये किस्से महज़ टाइमपास के लिए लिखे हैं. आप भी कृपया उसी भाव से पढ़ें और मज़ा लें.
इन किस्सों में असली नाम पते देना ठीक नहीं लगता इसलिए मनपसन्द ब्रांच का नाम है झुमरी तलैय्या, मनपसंद अफसर हैं गोयल सा और मनपसंद कर्मचारी हैं मनोहर उर्फ़ मन्नू जी.
हमारे गोयल सा अफसर से चेयरमैन तक का रोल आराम से निभा लेते हैं. ये सांवले से, मोटे से, टकले और चाटुकार प्रवृति के हैं. घर की पूछो तो पत्नी के सताए हुए हैं.
मनोहर उर्फ़ मन्नू जी गाँव खेड़े के पढ़े हैं पर इम्तेहान पास कर के कनॉट प्लेस के बैंक में क्लर्क लग गए हैं. अब वापिस जाने का जी नहीं करता और गर्ल फ्रेंड कोई मिलती नहीं.
चेक पास
झुमरी कैंट की शाखा में फौजी कस्टमर ज्यादा थे. इन कैंट शाखाओं का अपना एक अंदाज़ या फ्लेवर होता है. शाखा के आगे दो चार फौजी मोटरसाइकिलें या फौजी गाड़ियाँ जरूर खड़ी मिलेंगी. इनके खातों में हर महीने पगार या पेंशन आती है जो धीरे धीरे निकल जाती है. लोन ये लोग लेते नहीं हैं. फौजी अफसरान ब्रांच में कम ही आते हैं अपने राइडर के हाथ चेक भेजकर पैसे मंगा लेते हैं. पेमेंट फ़टाफ़ट हो जाए और 'सर' या साब करके बात कर ली जाए तो माहौल खुशनुमा रहता है. सुना है होली वगैरह में सस्ती बोतल भी मिल सकती थी! हाल फिलहाल का तो पता नहीं.
खैर ब्रांच में मेजर साब का राइडर एक चेक लेकर आया और काउंटर पर 'जयहिंद सर' बोल कर चेक पकड़ा दिया. मनोहर उर्फ़ मन्नू जी ने टोकन दे दिया और लेजर में चेक पोस्ट कर के लेजर पीछे टेबल पर रख दिया. पीछे चेक पास करने वाला अधिकारी बैठा नहीं था. चेक लेजर में काफी देर पड़ा रहा. इधर फौजी राइडर खड़ा खड़ा बेचैन हो रहा था. मन्नू को बोला 'सर लेट हो रहा हूँ'. मन्नू ने लेजर उठाया और जवान को पकड़ाते हुए कहा ' अच्छा ये लो लेजर और साब से पास करा लो'. अब मन्नू का मतलब था की मैनेजर साब से पास करा लो पर राइडर ने सोचा की अपने मेजर साब से पास करा लो.
राइडर ने लेजर उठाया, मोटरसाइकिल के बॉक्स में रखा और अपने मेजर साब के पास ले गया! मेजर साब सोलह किमी दूर अपनी यूनिट में बैठे थे.
फिर क्या हुआ होगा और मैनेजर साब और मेजर साब ने क्या किया होगा आप अंदाजा लगा सकते हैं.
ओ. टी. हाउस
बैंकों का राष्ट्रीयकरण 1969 में हुआ और ओवरटाइम का भूत उतरने में शायद सात आठ बरस लग गए थे. बैंक प्रबंधन को लगता था की जहाँ ब्रांच में 100 लोग काम कर रहे थे वहां अब 110 या 115 हैं, पहले 100 को ओवरटाइम देते थे अब 115 को ओवरटाइम क्यूँ दें? यूनियन चाहती थी की सबको मिले. जब तक छीना जा सकता है छीन लिया जाए.
ब्रांच के अलावा ओवरटाइम का एक और ठिकाना भी था जहाँ अन्तर-शाखा की एंट्रीयां मिलानी होती थी. ये एंट्री रोज हजारों लाखों की संख्या में होती थी. इनका मिलान करना जरूरी था और बिना कंप्यूटर के आसान भी नहीं था. मिलान की रिपोर्ट रिज़र्व बैंक और ऑडिटर को भी दिखानी होती थी. इस कारण से दबाव बना रहता और अक्सर इस डिपार्टमेंट में ओवरटाइम लगता ही रहता था.
हमारे गोयल साब इस तरह के अन्तर-ब्रांच मिलान में होशियार थे. साथ ही अपने ओवरटाइम की कमाई को सहेज कर रखते थे. खर्च नहीं करते थे. बाद में उन्होंने अपना मकान बनाया और पार्टी दी. कोकटेल पार्टी में गोयल साब ने बताया की उन्होंने अपने नए घर का नाम ओ टी हाउस रखा है!
नारे बाज़ी
बैंक राष्ट्रीयकरण के बाद यूनियन का पलड़ा बैंक प्रबन्धन से भारी लगता था शायद 21:19 रहा हो. बैंक यूनियन AIBEA सबसे बड़ी थी और अब भी है.
AIBEA की मीटिंग हो, धरना हो या प्रदर्शन बढ़िया बढ़िया नारे लगते थे. ये तो कर्मचारियों का अधिकार है. शायद अब भी उतने मज़ेदार नारे लगते होंगे. दो तीन नारे बड़े मज़ेदार और पापुलर थे.
- जब हम ना बैंक खोलेंगे, बैंक में उल्लू बोलेंगे!,
- नाराए बेधड़क, चमचों का बेड़ा गर्क! और
- जो साथी साथी का साथ ना दे, चूड़ी पहने घर बैठे!
ये नारे सब को इकट्ठा करने में और जोश भरने में काम आते थे. नेता जी ने भाषण देने से पहले देखा जनता आपस में बातचीत कर रही है. जनता को लाइन पर लाने के लिए मनोहर उर्फ़ मन्नू भाई को इशारा किया नारे लगा दे. मनोहर ने गला साफ़ किया और जोर से बोला,
- वर्कर्स यूनिटी ज़िन्दाबाद, जनता का ढीला सा जवाब आया - जिंदाबाद, जिंदाबाद!
- भई जोर से बोलें. लेडी कामरेड भी बोलें. नारे का जवाब नारे से दें
- वर्कर्स यूनिटी ज़िन्दाबाद. इस बार जोश भरा बेहतर जवाब आया,
- ज़िन्दाबाद ज़िन्दाबाद!
उन दिनों बैंक स्टाफ के लिए अलग से इम्तेहान होते थे जिसे CAIIB कहा जाता था. इस इम्तेहान को पास करने पर इन्क्रीमेंट अलग से मिलती थी. तनखा बढाने का एक बढ़िया साधन था.
अगला नारा मन्नू भाई जल्दबाजी में बोल गए - CAIIB जिंदाबाद!
जवाब में सब हंस पड़े और कुछ ने तालियाँ पीट दीं. मन्नू ने बोलना तो था - AIBEA ज़िन्दाबाद! पर जल्दबाजी में मुंह से निकल गया CAIIB ज़िन्दाबाद!
मन्नू जी अपने गाँव में |
15 comments:
यह CAIIB ज़िंदाबाद खूब रही। दो इन्क्रीमेंट मिलती थी।
धन्यवाद Satish Kalra जी. पार्ट १ की एक और पार्ट २ की २ इंक्रीमेंट मिलती थी. सैलरी बढ़ाने का एक अच्छा तरीका था.
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2021/02/blog-post_21.html
Good, really you have an art to express reality happened in the past.
CAIIB both parts increment to humne bhi khai hain.
अपने service पीरियड की भूली बिसरी मज़ेदार बातें,अपने retired life को जब तब हँसातीं हैं।
सुन्दर वर्णन।
अति सुन्दर
सुन्दर और रोचक।
धन्यवाद डॉ रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद सुभाष मित्तल जी.
धन्यवाद अशोक सक्सेना जी
धन्यवाद अशोक गाँधी जी. ज्यादातर लोगों ने CAIIB पास कर लिया और फायदा ही रहा.
वाह, डियर कामरेड कौन से दिन याद करा दिये, मजा आ गया
~मित्रावशु
धन्यवाद कामरेड मित्रवाशु
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