पति पत्नी दोनों जॉब करते हों तो अर्थ शास्त्र आसान हो जाता है. दोनों के खातों में पैसा दो पैसे जमा होते रहते हैं और जमा होते होते रुपए भी बन जाते हैं. पर इन सिक्कों की पिक्चर का दूसरा पक्ष भी है जिसमें बच्चे और मम्मी पापा भागते दौड़ते ही नज़र आते हैं. ऐसे में डबल इनकम ग्रुप वाले मम्मी पापा चाहते हैं की बालक जल्दी से बड़े हो जाएं और अपना रास्ता खोजने लग जाएं.
पर इन बालकों को मैनेज करने का कोई एक फार्मूला तो है नहीं बल्कि इस विषय पर नए नए मन्त्र निकलते रहते हैं. छोटे बच्चों के लिए जब नए नए क्रेच खुले थे तो अजीब लगते थे पर अब नार्मल हो गए हैं. इनसे उन लोगों को काफी राहत मिली जिन्हें नौकरी पर जाना होता था. हमारे दोनों साहबजादे जब तक पांचवी और दूसरी क्लास में थे तब तक पड़ोस के क्रेच में जाते थे. पर छठी और तीसरी क्लास में पहुंचते ही बड़े ने विद्रोह कर दिया की अब क्रेच में नहीं जाना है. अब वो आता भी एक घंटा लेट था. क्या किया जाए?
तीन चाबियों वाले ताले लिए गए. एक चाबी मम्मी के पास दूसरी पापा के पास तीसरी बड़े के बस्ते में. छोटा पहले आएगा, क्रेच में चला जाएगा. फिर बड़ा आएगा उसे क्रेच से ले आएगा.
अगले साल सातवीं और चौथी कक्षा आ गई. अब छोटे ने क्रेच जाने से मना कर दिया नतीजतन अब चाबी छोटे के बस्ते में आ गई. उससे अगले साल स्कूल से दोनों की वापसी एक साथ होने लगी तो चाबी दोनों बस्तों के बीच में लटक गई.
आम तौर पर चाबी रात को बड़े के बस्ते में पैक कर दी जाती थी ताकि सुबह हड़बड़ाहट में रह ना जाए वरना हम चारों को परेशानी हो सकती थी. पर स्कूल में लंच टाइम में बड़ा कई बार छोटे के बस्ते में चाबी डाल जाता. बड़ा तो बड़ा ठहरा. कभी प्यार से, कभी फुसला के और कभी धमका के चाबी ट्रान्सफर हो जाती थी. इस ट्रान्सफर से छोटे का इंटरवल खराब हो जाता था. वो बार बार अपने बस्ते को चेक करता रहता कि चाबी है या नहीं. किसी शरारती तत्व ने निकाल तो नहीं ली? छोटे के रंग में भंग होने लगा.
पहले तो दोनों में तू-तू मैं-मैं हुई पर आपस तक सिमित रही. धीरे धीरे झगड़ा बढ़ने लगा और फिर एक दिन विस्फोट हो गया.
- मैं नहीं रखूँगा चाबी मेरी एक्स्ट्रा क्लास लगती है.
- चाबी तो मैं भी नहीं रखूँगा मेरी स्पोर्ट्स की क्लास लगती है.
गंभीर समस्या और तनाव. रोज़ शाम बहस शुरू हो जाती पर कोई नतीजा नहीं निकल रहा था.
तब ध्यान गया बैंक में मिलने वाले भत्ते या allowance पर. क्यूँ ना यही नुस्खा इस्तेमाल किया जाए? अब पंचायत बुलाई गई और मम्मी ने शुरुआत की,
- हमारे बैंक में ना कई तरह के अलाउंस या भत्ते होते हैं.
- क्या होते हैं?
- भत्ते याने पैसे मिलते हैं. जैसे की हेड केशियर छुट्टी पर गया तो उसकी जगह छोटा केशियर काम करेगा और छोटे को कुछ पैसे या भत्ता मिलेगा. इसी तरह मान लो कि आज मैनेजर नहीं आया तो जो उसकी जगह काम करेगा तो उसको भत्ता मिलेगा. अब तुम्हें भी key allowance या चाबी भत्ता मिला करेगा. तीस रूपए महीना.
- ये तो गुड है!
- सही!
- चाबी रखने के तीस रुपए मिलेंगे. तुम आपस में हिसाब कर लेना. जितने दिन चाबी बड़े के पास रहेगी उतने रूपए बड़े को मिलेंगे और ....
- बस बस समझ गया! और पॉकेट मनी?
- जेब खर्ची तो मिलती ही रहेगी ये चाबी भत्ता तो अलग है.
- ओके है ओके!
प्रस्ताव बड़ी जल्दी पास हो गया.
- रुको रुको. एक बात और भी है, मम्मी बोली. हमारे घर दो अखबार आते हैं अगले दिन रद्दी में फेंक दिए जाते हैं. जब रद्दी वाला आता है तो पुराने अखबार, पुराना प्लास्टिक का सामान रद्दी वाला ले जाता है और बदले में कुछ पैसे दे जाता है. अब से कबाड़ी के पैसे भी तुम्हारे - रद्दी भत्ता!
- वाह वैरी गुड!
- सही है!
- देख लो सारी रद्दी और कबाड़ इकट्ठी करके एक जगह रखना, कबाड़ी को बुलाना और बेचना अब से तुम्हारा काम है. ठीक है ना? जो कुछ मिलेगा वो तुम दोनों का - फिफ्टी फिफ्टी.
- गुड है!
- सही है!
तीर निशाने पर बैठा. मीटिंग बर्खास्त.
9 comments:
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Har samsya ka hal hai. Yeh to bachchon ne apni samajhdari ka fayda ythaya. Unhone socha aise to kuchh bhatta atta milege nahin jab tak kuchh chill pon chill pon nahin karenge. Chill pon machayi chabi bhatta ke sath sath RADDI BHATTA bhi kamaya. Child is the father of man.
धन्यवाद सक्सेना जी
चिल्ल पों ख़तम क्यूंकि .....सबसे बड़ा रुप्पैय्या !
सार्थक प्रस्तुति।
धन्यवाद डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Real story with good wordings.....Quite conspicuous....n. ....Interesting...
Thank you Subhash Mittal ji.
Lovely blog you have here
Thank you Rachel G.
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