इतिहास अगर क्लास में सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ना हो तो भारी लगता है सन और तारीखें भूल जाती हैं. पर फुर्सत में पढ़ें तो किस्से कहानी जैसा मज़ा आता है. रिटायर होने के बाद आजकल फुर्सत है और भारतीय इतिहास के पन्ने पलटने में आनंद आ रहा है. भारतीय उपमहाद्वीप का इतिहास बहुत बड़ा है, फैलाव वाला है पर उतना ही रोचक भी है. राजा रजवाड़े, धर्म और अध्यात्म, विदेशी हमले, छोटे बड़े युद्ध, राजा रानियों की प्यार मोहब्बत के किस्से इत्यादि सभी कुछ है.
काल क्रम से चलें तो भारतीय इतिहास को मोटे तौर पर चार भागों में बांटा गया है - प्राचीन काल, मध्य काल, आधुनिक काल और 1947 के बाद स्वतंत्र भारत का इतिहास.
कई इतिहासकार इस विभाजन का समय अलग अलग लेकर चलते हैं. वैसे भी इस विभाजन का सही समय बताना आसान नहीं है पर हमारे जैसे नौसिखियों के लिए इतना ही काफी है. इस लेख में पहले भाग अर्थात प्राचीन काल के इतिहास की रूपरेखा है.
प्राचीन काल का इतिहास तो कई हजार साल पहले शुरू हो जाता है और लगभग सन 700 ईस्वी तक माना जाता है. प्राचीन काल के इतिहास का और आगे विभाजन करें तो पहले आता है पत्थरों का युग. इस युग में इंसान पत्थर के हथियार इस्तेमाल करता था, गुफाओं में रहता था और मूल रूप से घुमंतू था. शिकार, कन्द मूल और फल पर निर्वाह करता था. इस युग को पूर्व पाषाण, मध्य पाषाण, उत्तर पाषाण और ताम्र पाषाण काल में बांटा जा सकता है. फिर धीरे धीरे मानव ने खेती करना सीखा, आग की भट्टी में अयस्क डाल कर ताम्बा, कांसा और लोहा बनाना सीखा. फिर घुमंतू से शहरी सभ्यता की और बढ़ने लगा. इसका उदाहरण है सिन्धु घाटी सभ्यता जो लगभग 2700 से 1900 ईसा पूर्व तक मानी जाती है. कुछ लोग इस सभ्यता की शुरुआत 4200 ईसा पूर्व मानते हैं. इस सभ्यता को हड़प्पा या अब सिन्धु-सरस्वती सभ्यता का नाम दिया गया है. 1900 ईसा पूर्व के बाद अनजान प्राकृतिक कारणों से ये सभ्यता लुप्त हो गई.
कुछ समय बाद ग्रामीण सभ्यता आ गई जो लगभग 1600 से 600 ईसा पूर्व तक मानी गई है. यह सभ्यता गंगा जमुना के मैदान में फैली हुई थी जहाँ खेती आसान थी, मौसम अच्छा था और पानी उपलब्ध था. इसे वैदिक काल कहा जाता है क्यूंकि इसी दौरान वेदों की रचना हुई मानी जाती है. पूर्व वैदिक काल में ऋग्वेद और उत्तर वैदिक काल में सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद की रचना हुई.
इस ग्रामीण सभ्यता में 'कुल' याने परिवार एक यूनिट था और बहुत से कुलों को मिला कर गाँव बने, बहुत से गाँव मिला कर जनपद बने और बहुत से जनपदों को मिला कर महाजनपद बने. इसलिए ये महाजनपद काल कहलाया. इस काल में मुख्यतः उत्तर भारत के 16 महाजनपदों का इतिहास है. उस काल में मगध, काशी, कौशाम्बी वगैरह प्रमुख महाजनपद थे.
पूर्व वैदिक काल अर्थात ऋग्वेद काल में वर्ण का जिक्र है जो काम या कर्म के आधार पर है. उत्तर वैदिक काल में वर्ण को जन्म से जोड़ कर माना जाने लगा. रीति रिवाजों और कर्मकाण्ड का जोर बढ़ गया. इसी दौरान भगवान् महावीर( जन्म 599 ईसा पूर्व - निर्वाण 527 ईसा पूर्व ) और गौतम बुद्द्ध( जन्म 563 ईसा पूर्व - निर्वाण 483 ईसा पूर्व ) ने जैन और बौद्ध धर्म का प्रवर्तन किया. दोनों ने वर्ण व्यवस्था को नकार दिया. धार्मिक प्रचार के कारण इसे धार्मिक आन्दोलन काल या युग भी कहा जाता है.
ईसा पूर्व 326 के आसपास ग्रीक राजा सिकंदर ने गांधार और तक्षशिला जीत लिया और सिन्धु नदी पार कर के राजा पुरु को ललकारा. पुरु का राज झेलम और चेनाब नदियों के बीच था. सिकंदर जीता तो सही पर और आगे नहीं बढ़ा. एक तो उसकी फौजें थक चुकी थी और दूसरे उसे पता लगा की मगध महाजनपद के नन्द राजाओं के पास घोड़ों और हाथियों से लैस पांच गुनी बड़ी शक्तिशाली सेना थी. इसी मगध महाजनपद से चन्द्रगुप्त मौर्या ने कौटिल्य की सहायता से मौर्या साम्राज्य की नींव डाली जो 322 ईसा पूर्व से 185 ईसा पूर्व तक चला. इस वंश के प्रमुख राजा थे बिन्दुसार, अशोक और कुणाल. सम्राट अशोक का विशाल राज्य आज तक का भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा राज्य है. सम्राट अशोक के बाद के 200 - 250 साल बटवारे, बिखराव और लड़ाई झगड़ों के रहे.
319 ईस्वी से 550 ईस्वी तक एक बार फिर एक वैभवशाली और शक्तिशाली साम्राज्य आया. इस काल का इतिहास गुप्त साम्राज्य का इतिहास है. इसकी नींव रखी श्री गुप्त ने और मुख्य रूप से आगे बढ़ाया चन्द्रगुप्त-1, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त-2( विक्रमादित्य ) ने.
405 ईस्वी में चीनी बौद्ध यात्री फा हियान का आगमन हुआ और वो 411 ईस्वी तक बौद्ध सम्बंधित स्थानों का भ्रमण करता रहा. उसने विस्तार से उस स्वर्णिम युग का वर्णन लिखा है. 550 के आसपास विदेशी हूणों के आक्रमण, मालवा के राजा यशोधर्मन और वाकाटक( मध्य भारत और आन्ध्र ) से रस्साकशी में गुप्तकाल का अंत हो गया.
इसके साथ ही बंगाल की ओर गौड़ राज्य की स्थापना हुई, कन्नौज में मौखरी वंश, कामरूप में वर्मन और दिल्ली के नज़दीक थानेसर में वर्धन शासक रहे. वर्धन वंश का सम्राट हर्षवर्धन सोलह साल की उम्र में गद्दी पर बैठा. वह एक महान शासक रहा. उसने 606 से 647 तक राज किया और उत्तर भारत को एक सूत्र में बांधे रखा. सम्राट हर्षवर्धन के जाने के बाद राज्य छिन्न भिन्न हो गया. इसके साथ ही 700 ईस्वी के आसपास उपमहाद्वीप के गौरवशाली 'क्लासिक' भारत का बड़ा अध्याय समाप्त हो गया.
क्रमशः जारी रहेगा. अगले भाग में चर्चा करेंगे मध्य काल की.
काल क्रम से चलें तो भारतीय इतिहास को मोटे तौर पर चार भागों में बांटा गया है - प्राचीन काल, मध्य काल, आधुनिक काल और 1947 के बाद स्वतंत्र भारत का इतिहास.
कई इतिहासकार इस विभाजन का समय अलग अलग लेकर चलते हैं. वैसे भी इस विभाजन का सही समय बताना आसान नहीं है पर हमारे जैसे नौसिखियों के लिए इतना ही काफी है. इस लेख में पहले भाग अर्थात प्राचीन काल के इतिहास की रूपरेखा है.
एक गुफा में आदि मानव के रहन सहन का मॉडल , भीमबेटका मध्य प्रदेश में |
प्राचीन काल का इतिहास तो कई हजार साल पहले शुरू हो जाता है और लगभग सन 700 ईस्वी तक माना जाता है. प्राचीन काल के इतिहास का और आगे विभाजन करें तो पहले आता है पत्थरों का युग. इस युग में इंसान पत्थर के हथियार इस्तेमाल करता था, गुफाओं में रहता था और मूल रूप से घुमंतू था. शिकार, कन्द मूल और फल पर निर्वाह करता था. इस युग को पूर्व पाषाण, मध्य पाषाण, उत्तर पाषाण और ताम्र पाषाण काल में बांटा जा सकता है. फिर धीरे धीरे मानव ने खेती करना सीखा, आग की भट्टी में अयस्क डाल कर ताम्बा, कांसा और लोहा बनाना सीखा. फिर घुमंतू से शहरी सभ्यता की और बढ़ने लगा. इसका उदाहरण है सिन्धु घाटी सभ्यता जो लगभग 2700 से 1900 ईसा पूर्व तक मानी जाती है. कुछ लोग इस सभ्यता की शुरुआत 4200 ईसा पूर्व मानते हैं. इस सभ्यता को हड़प्पा या अब सिन्धु-सरस्वती सभ्यता का नाम दिया गया है. 1900 ईसा पूर्व के बाद अनजान प्राकृतिक कारणों से ये सभ्यता लुप्त हो गई.
कुछ समय बाद ग्रामीण सभ्यता आ गई जो लगभग 1600 से 600 ईसा पूर्व तक मानी गई है. यह सभ्यता गंगा जमुना के मैदान में फैली हुई थी जहाँ खेती आसान थी, मौसम अच्छा था और पानी उपलब्ध था. इसे वैदिक काल कहा जाता है क्यूंकि इसी दौरान वेदों की रचना हुई मानी जाती है. पूर्व वैदिक काल में ऋग्वेद और उत्तर वैदिक काल में सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद की रचना हुई.
इस ग्रामीण सभ्यता में 'कुल' याने परिवार एक यूनिट था और बहुत से कुलों को मिला कर गाँव बने, बहुत से गाँव मिला कर जनपद बने और बहुत से जनपदों को मिला कर महाजनपद बने. इसलिए ये महाजनपद काल कहलाया. इस काल में मुख्यतः उत्तर भारत के 16 महाजनपदों का इतिहास है. उस काल में मगध, काशी, कौशाम्बी वगैरह प्रमुख महाजनपद थे.
पूर्व वैदिक काल अर्थात ऋग्वेद काल में वर्ण का जिक्र है जो काम या कर्म के आधार पर है. उत्तर वैदिक काल में वर्ण को जन्म से जोड़ कर माना जाने लगा. रीति रिवाजों और कर्मकाण्ड का जोर बढ़ गया. इसी दौरान भगवान् महावीर( जन्म 599 ईसा पूर्व - निर्वाण 527 ईसा पूर्व ) और गौतम बुद्द्ध( जन्म 563 ईसा पूर्व - निर्वाण 483 ईसा पूर्व ) ने जैन और बौद्ध धर्म का प्रवर्तन किया. दोनों ने वर्ण व्यवस्था को नकार दिया. धार्मिक प्रचार के कारण इसे धार्मिक आन्दोलन काल या युग भी कहा जाता है.
ईसा पूर्व 326 के आसपास ग्रीक राजा सिकंदर ने गांधार और तक्षशिला जीत लिया और सिन्धु नदी पार कर के राजा पुरु को ललकारा. पुरु का राज झेलम और चेनाब नदियों के बीच था. सिकंदर जीता तो सही पर और आगे नहीं बढ़ा. एक तो उसकी फौजें थक चुकी थी और दूसरे उसे पता लगा की मगध महाजनपद के नन्द राजाओं के पास घोड़ों और हाथियों से लैस पांच गुनी बड़ी शक्तिशाली सेना थी. इसी मगध महाजनपद से चन्द्रगुप्त मौर्या ने कौटिल्य की सहायता से मौर्या साम्राज्य की नींव डाली जो 322 ईसा पूर्व से 185 ईसा पूर्व तक चला. इस वंश के प्रमुख राजा थे बिन्दुसार, अशोक और कुणाल. सम्राट अशोक का विशाल राज्य आज तक का भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा राज्य है. सम्राट अशोक के बाद के 200 - 250 साल बटवारे, बिखराव और लड़ाई झगड़ों के रहे.
319 ईस्वी से 550 ईस्वी तक एक बार फिर एक वैभवशाली और शक्तिशाली साम्राज्य आया. इस काल का इतिहास गुप्त साम्राज्य का इतिहास है. इसकी नींव रखी श्री गुप्त ने और मुख्य रूप से आगे बढ़ाया चन्द्रगुप्त-1, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त-2( विक्रमादित्य ) ने.
405 ईस्वी में चीनी बौद्ध यात्री फा हियान का आगमन हुआ और वो 411 ईस्वी तक बौद्ध सम्बंधित स्थानों का भ्रमण करता रहा. उसने विस्तार से उस स्वर्णिम युग का वर्णन लिखा है. 550 के आसपास विदेशी हूणों के आक्रमण, मालवा के राजा यशोधर्मन और वाकाटक( मध्य भारत और आन्ध्र ) से रस्साकशी में गुप्तकाल का अंत हो गया.
इसके साथ ही बंगाल की ओर गौड़ राज्य की स्थापना हुई, कन्नौज में मौखरी वंश, कामरूप में वर्मन और दिल्ली के नज़दीक थानेसर में वर्धन शासक रहे. वर्धन वंश का सम्राट हर्षवर्धन सोलह साल की उम्र में गद्दी पर बैठा. वह एक महान शासक रहा. उसने 606 से 647 तक राज किया और उत्तर भारत को एक सूत्र में बांधे रखा. सम्राट हर्षवर्धन के जाने के बाद राज्य छिन्न भिन्न हो गया. इसके साथ ही 700 ईस्वी के आसपास उपमहाद्वीप के गौरवशाली 'क्लासिक' भारत का बड़ा अध्याय समाप्त हो गया.
सम्राट अशोक द्वारा ईसा पूर्व तीसरी सदी में साँची मध्य प्रदेश में बनवाया गया बौद्ध स्तूप |
क्रमशः जारी रहेगा. अगले भाग में चर्चा करेंगे मध्य काल की.
14 comments:
http://jogharshwardhan.blogspot.com/2019/11/blog-post_20.html
बेहतरीन और रोचक।थोड़ा और अधिक विस्तार दीजिये।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.11,2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3526 में दिया जाएगा | आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
इतिहास की बढ़िया जानकारी।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
प्राचीन इतिहास की बहुत सुन्दर सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति
हर युग एवं घटना क्रम का वर्ष उल्लेख करे तो प्रस्तुति संग्रहनीय हो जायगा |
धन्यवाद Rishabh शुक्ला
आपके ब्लॉग को भी जरूर पढेंगे.
धन्यवाद Kalipad Prasad
अगले लेखों में प्रयास रहेगा की युग और वर्ष भी लिख दिया जाय. सुझाव के लिए धन्यवाद.
धन्यवाद Nitish Tiwary
आपके ब्लॉग पर भी जरूर विजिट होगी
धन्यवाद Ravindra Singh Yadav
पांच लिंकों का आनंद भी लेंगे.
धन्यवाद dilbag virk
चर्चा मंच पर भी उपस्थित होंगे
'इतिहास के पन्ने - मध्य काल' का लिंक
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2019/11/blog-post_24.html
प्राचीन भारत का इतिहास और धार्मिक ग्रंथो से मिलने वाले स्त्रोत Prachin Bharat Ka Itihas Acchishiksha
धन्यवाद Acchisiksha.
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