दिल्ली से लैंसडाउन की दूरी लगभग 270 किमी है. दिल्ली से मेरठ - कोटद्वार - दुगड्डा होते हुए 6 - 7 घंटे में पहुँच जा सकता है. कोटद्वार तक सड़क मैदानी है उसके बाद दुगड्डा आता है जहां से आगे ऊँची पहाड़ी घुमावदार सुन्दर नज़ारों वाली सड़क शुरू हो जाती है जो लैंसडाउन / ताड़केश्वर मन्दिर की ओर जाती है.
लैंसडाउन की समुद्र तल से ऊँचाई 1706 मीटर है और ये खूबसूरत और ठंडा इलाका है. यहाँ से 35 किमी दूर ताड़केश्वर महादेव का पुराना मंदिर है. पूरा रास्ता हरे भरे पहाड़ी जंगल में से गुज़रता है. रास्ता संकरा है और लगातार घूम, ढलान और उंचाई आती रहती है. अपनी गाड़ी से जा सकते हैं थोड़ी सावधानी रखनी होगी और थोड़ी मशक्कत भी करनी होगी. रास्ते में रेस्टोरेंट कैफ़े और चायखाने भी हैं जहां कमर सीधी की जा सकती है.
मंदिर घने जंगल के बीच घाटी है और चारों तरफ ऊँचे ऊँचे देवदार के पेड़ हैं. कार से उतर कर 500 - 600 मीटर नीचे घाटी में उतरना पड़ता है. उतरने चढ़ने के लिए कंक्रीट का रास्ता और रेलिंग है. यहाँ कैफ़े या ढाबा नहीं है, लाउडस्पीकर नहीं है, साफ़ सफाई है और प्लास्टिक का इस्तेमाल मना है.
मान्यता है की यह सिद्ध पीठ 1500 साल पुरानी है. यहाँ एक आजन्म संत ताड़केश्वर रहा करते थे. एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू लेकर आस पास के गाँव में जाते थे. कोई गलत काम कर रहा हो या जानवरों को मार रहा हो या पेड़ों को नुकसान पहुंचा रहा हो तो प्रताड़ित करते थे. इस ताड़ना के कारण उनका नाम ताड़केश्वर पड़ गया और मंदिर भी ताड़केश्वर मंदिर कहलाने लगा. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो :
मंदिर परिसर का चार मिनट का एक विडियो यूट्यूब के इस लिंक पर देखा जा सकता है :
मंदिर घने जंगल के बीच घाटी है और चारों तरफ ऊँचे ऊँचे देवदार के पेड़ हैं. कार से उतर कर 500 - 600 मीटर नीचे घाटी में उतरना पड़ता है. उतरने चढ़ने के लिए कंक्रीट का रास्ता और रेलिंग है. यहाँ कैफ़े या ढाबा नहीं है, लाउडस्पीकर नहीं है, साफ़ सफाई है और प्लास्टिक का इस्तेमाल मना है.
मान्यता है की यह सिद्ध पीठ 1500 साल पुरानी है. यहाँ एक आजन्म संत ताड़केश्वर रहा करते थे. एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू लेकर आस पास के गाँव में जाते थे. कोई गलत काम कर रहा हो या जानवरों को मार रहा हो या पेड़ों को नुकसान पहुंचा रहा हो तो प्रताड़ित करते थे. इस ताड़ना के कारण उनका नाम ताड़केश्वर पड़ गया और मंदिर भी ताड़केश्वर मंदिर कहलाने लगा. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो :
प्रवेश द्वार से पैदल यात्रा शुरू |
यात्रीगण |
भक्तों द्वारा बांधी गई लाल चुन्नियाँ |
भक्तों के धागे |
भक्तों द्वारा दान दी गईं घंटियाँ |
ऊँचे ऊँचे देवदार के पेड़ों के बीच ताड़केश्वर महादेव मंदिर. नीचे तक धूप मुश्किल ही पहुँचती है और वो भी थोड़ी से देर के लिए |
ताड़केश्वर महादेव मंदिर |
मुख्य मंदिर के पास एक देवी मंदिर भी है |
7 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2019/11/blog-post.html
प्रकृति के सानिध्य में कुछ वक्त बिताने को मिले इससे ज्यादा और क्या चाहिए। सुन्दर लेख और तस्वीरों से दिख ही रहा है कि भ्रमण करने में भी आपको आनंद आया ही होगा।
Vow. Thanks for information.
धन्यवाद विकास नैनवाल 'अंजान'.
सुंदर रास्ता और सुंदर ही मंजिल.
Thanks Deepak Dang
बहुत ही अच्छा और मनोहारी लेख, धन्यवाद। मेरा यह लेख भी पढ़ें ताड़केश्वर महादेव मंदिर
Thank you Surjeet.
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