उदयगिरी की गुफाएं भोपाल से 60 किमी और साँची से 11 किमी की दूरी पर हैं. पास ही बेतवा नदी और एक छोटी सहायक नदी बेस भी है. उदयगिरी पहाड़ी लगभग 350 फुट ऊँची है और करीबन ढाई किमी लम्बी है. इसी पहाड़ी में अलग अलग स्थानों में छोटी बड़ी गुफाएं अलग अलग समय में बनाई गई है. कुल बीस गुफाओं में से दो में जैन सम्बन्धी मूर्तियाँ हैं और बाकी में शिव, शक्ति और विष्णु सम्बन्धी मूर्तियाँ या चट्टानों पर उकेरी आकृतियाँ हैं. गुफाओं के अंदर की मूर्तियाँ क्षत विक्षत हैं और कुछ गुफाओं में अब नहीं हैं. उदयगिरी नाम की गुफाएं राजगीर, बिहार और भुवनेश्वर, ओडिशा के निकट भी हैं.
ये गुफाएं 7 - 8 फुट से ज्यादा गहरी नहीं हैं पर चौड़ाई और उंचाई में बड़ी हैं. चूँकि लाइट की व्यवस्था नहीं है इसलिए सुबह नों से शाम चार तक ही खुली रहती हैं. प्रवेश और गाइड के लिए अलग अलग टिकट हैं. पहाड़ी से तीन सौ मीटर दूर एक म्यूजियम है जहां अगर पहले चले जाएं तो गुफाओं की और आस पास के दूसरे दर्शनीय स्थानों के बारे में अच्छी जानकारी मिल सकती है. पास ही ग्रीक राजदूत हेलियोडोरस का खम्बा भी है. आने जाने और यहाँ रहने के लिए सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं. हरा भरा क्षेत्र है. पर दोपहर को चट्टानें गर्म हो जाती हैं. आस पास अच्छे ढाबे या रेस्तरां नहीं हैं. अपना इंतज़ाम करके चलना ठीक रहेगा.
इतिहास के नज़र से उदयगिरी और आसपास का इलाका समृद्ध है. गुफाओं पर कुछ अभिलेख संस्कृत और नागरी लिपि में मिले हैं जिनसे गुफाओं का सम्बन्ध चन्द्रगुप्त द्वितीय याने सन 380 से सन 414 से जुड़ता है. पांचवीं सदी से लेकर बारहवीं सदी के छोटे छोटे लेख भी है जिससे लगता है है कि यहाँ हिन्दू और जैन तीर्थ यात्रियों का आना होता था. तेरहवीं सदी के आक्रमणों के बाद ये जगह वीरान हो गई और जंगल में खो गई.
1870 में एलेग्जेंडर कन्निन्घम ने पुरातत्व विभाग ASI को अपनी रिपोर्ट में विस्तार से दस गुफाओं के बारे में बताया और इनका समय दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर ईसा के बाद पांचवीं शताब्दी तक बताया जिसकी वजह से लोगों का ध्यान इस ओर गया. बाद की खोजबीन में और गुफाएं मिलीं और गुफाओं पर एक से बीस तक नम्बर लगा दिए गए. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
ये गुफाएं 7 - 8 फुट से ज्यादा गहरी नहीं हैं पर चौड़ाई और उंचाई में बड़ी हैं. चूँकि लाइट की व्यवस्था नहीं है इसलिए सुबह नों से शाम चार तक ही खुली रहती हैं. प्रवेश और गाइड के लिए अलग अलग टिकट हैं. पहाड़ी से तीन सौ मीटर दूर एक म्यूजियम है जहां अगर पहले चले जाएं तो गुफाओं की और आस पास के दूसरे दर्शनीय स्थानों के बारे में अच्छी जानकारी मिल सकती है. पास ही ग्रीक राजदूत हेलियोडोरस का खम्बा भी है. आने जाने और यहाँ रहने के लिए सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं. हरा भरा क्षेत्र है. पर दोपहर को चट्टानें गर्म हो जाती हैं. आस पास अच्छे ढाबे या रेस्तरां नहीं हैं. अपना इंतज़ाम करके चलना ठीक रहेगा.
इतिहास के नज़र से उदयगिरी और आसपास का इलाका समृद्ध है. गुफाओं पर कुछ अभिलेख संस्कृत और नागरी लिपि में मिले हैं जिनसे गुफाओं का सम्बन्ध चन्द्रगुप्त द्वितीय याने सन 380 से सन 414 से जुड़ता है. पांचवीं सदी से लेकर बारहवीं सदी के छोटे छोटे लेख भी है जिससे लगता है है कि यहाँ हिन्दू और जैन तीर्थ यात्रियों का आना होता था. तेरहवीं सदी के आक्रमणों के बाद ये जगह वीरान हो गई और जंगल में खो गई.
1870 में एलेग्जेंडर कन्निन्घम ने पुरातत्व विभाग ASI को अपनी रिपोर्ट में विस्तार से दस गुफाओं के बारे में बताया और इनका समय दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर ईसा के बाद पांचवीं शताब्दी तक बताया जिसकी वजह से लोगों का ध्यान इस ओर गया. बाद की खोजबीन में और गुफाएं मिलीं और गुफाओं पर एक से बीस तक नम्बर लगा दिए गए. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
1. चट्टानों पर उकेरी वैष्णवी मूर्तियाँ |
2. भगवान् विष्णु का वाराह अवतार. उदयगिरी की बीस गुफाओं में से सबसे महत्वपूर्ण और सबसे सुंदर चित्रण. यह गुफा बीस फुट चौड़ी, बारह फुट आठ इंच ऊँची और तीन फुट चार इंच गहरी है. |
3. बाएँ पृथ्वी या भूदेवी जिसे वाराह ने दांतों के सहारे उठा रखा है. दाएं हैं आदित्या, अग्नि, रुद्रा, गणदेवता और ऋषि मुनि |
4. गुप्त वंश के राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय परन्तु इस पर इतिहासकारों में मतभेद है |
5. नागदेव |
6. बाएँ नीचे लक्ष्मी हाथ में कमल की डोर लिए हुए. कमल सबसे ऊपर है |
7. भूदेवी के हाथ के ऊपर ब्रह्मा विराजमान हैं और और पास में है नंदी बैल जिस पर शिव सवार हैं |
8. सबसे ऊपर यक्ष और आसमान से गंगा और यमुना उतरती हुई. गंगा अपने वाहन मकर पर और यमुना अपने वाहन कच्छप पर सागर की ओर जाती हुई |
9. सागर देवता वरुण जिनके हाथ में कलश है |
10. वाराह पर एक लम्बी वैजयन्ती माला है जो लम्बे युद्ध में विजय दर्शाती है |
11. शेषशायी विष्णु |
12. ग्राउंड फ्लोर की गुफा |
13. गणेश |
14. दुर्गा शक्ति - महिषासुरमर्दिनी |
15. शंख लिपि जिसे अभी पूरी तरह से पढ़ा जाना बाकी है. यहाँ इस तरह के लेख की कई चट्टानें हैं |
16. ये स्तम्भ शायद गुप्त काल के मंदिर का हिस्सा है. मंदिर तो अब नहीं है |
17. सूर्य घड़ी |
18. तवा गुफा का एक हिस्सा |
19. उदयगिरी पहाड़ी के ऊपर जाने का रास्ता बना दिया गया है |
20. वापिस उतरने का रास्ता |
13 comments:
विस्तृत जानकारी के लिए धन्यवाद
http://jogharshwardhan.blogspot.com/2019/02/blog-post_10.html
धन्यवाद सुनील.
Wavvvvv Nicccc Jii..
Great uncle Jii..
Shukriya uncle Jii..
Dhnyvaad Bablu Sa !
ग़ज़ब. रोचक और विस्तृत जानकारी ...
ब्लॉग बुलेटिन टीम की और मेरी ओर से आप सब को बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा पर बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ |
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 10/02/2019 की बुलेटिन, " बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा पर बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
धन्यवाद दिगम्बर जी. बड़ी रोचक जगह लगी.
धन्यवाद और आभार शिवम् मिश्रा जी.
बहुत सुंदरता से पुरातन पर अच्छी रोचक जानकारी युक्त पोस्ट ।
आप ब्लॉग पर पधारीं और टिपण्णी की धन्यवाद मन की वीणा.
Awesome place, such places are always in my first preferred list.
धन्यवाद सरकार. सुंदर जगह है.
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