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Wednesday, 20 June 2018

बुद्ध का मार्ग - स्वस्थ शरीर

स्वस्थ शरीर  

राजकुमार सिद्धार्थ गौतम 29 वर्ष की आयु में अपना महल और परिवार छोड़ कर दुःख निवारण का रास्ता ढूंढने निकल पड़े. सात वर्ष जंगल में कठिन तपस्या करने के बाद वे बौद्ध हुए और उन्होंने मनुष्य को दुःख के उत्पन्न होने के कारण और दुःख से निवारण का रास्ता 'अष्टांगिक मार्ग' खोजा. बहुत सोच विचार कर के उन्होंने मोक्ष का रास्ता अपने तक ही सीमित ना रखने का फैसला किया और इसका प्रचार शुरू किया. 35 वर्ष की आयु से लेकर 80 वर्ष की आयु तक अपने शिष्यों के साथ पैदल चलते हुए दूर दूर तक उत्तर भारत में इस धम्म का प्रचार प्रसार किया.

ये यात्राएं आसान नहीं थीं. साल में आठ महीने इस तरह से चलते रुकते गुज़रते और बारिश के चार महीने वे गुफाओं और धर्मशालाओं में गुजारते. खाने में भिक्षा पर निर्भर रहते फिर भी कोई शिकवा शिकायत नहीं करते. ऐसे में मन को फोकस रखना और शरीर को स्वस्थ रखना भी चमत्कार ही है. वो कैसे स्वस्थ रहते थे ?

एक समय गौतम बुद्ध अंग देश के अश्वपुर ( पाली भाषा में अस्स्पुर ) नामक नगर में ठहरे हुए थे. वहां पर उन्होंने  प्रवचन की दौरान भिक्खुओं से कहा ( मज्झिम निकाय > महाअस्स्पुर सुत्त ):

हम इन्द्रियों पर संयम रखेंगे...,
हम भोजन में मात्रा का ख़याल रखेंगे... ,
काया को ध्यान में रख कर ठीक से आहार लेंगे ताकि,
नशा ना हो, पीड़ा ना हो, काया निर्दोष रहे, यात्रा चलती रहे और सुखपूर्वक रहा जा सके. 

बात बड़ी सरल सी कही पर बात बड़े पते की कही. ढाई हज़ार साल बाद भी ये बातें हम सभी पर लागू होती हैं और इसलिए हमें अपना लेनी चाहिए. पर आलस वश नहीं अपनाते या इन्द्रियों पर संयम के अभाव के कारण नहीं अपनाते. कुछ इसलिए भी नहीं अपनाते कि इसके बारे में अमरीका ने सर्टिफिकेट नहीं दिया !

ऐसी ही बातें योग विज्ञान में भी कही गई हैं. योग या योगा तो अमरीका से सर्टिफाइड भी है ! योग गुरु कहते हैं कि भूख लगने पर ही खाएं और शरीर की भूख को शांत करने के लिए खाएं. भोजन में 50% ठोस पदार्थ हो, 25% तरल और 25% जगह खाली छोड़ दें. याने चार रोटी की भूख हो तो तीन खाएं. पर ऐसा नहीं है की सबको एक ही डंडे से हांक दिया जाए. अब अगर कोई खिलाड़ी है तो उसकी काया और भोजन की मात्रा अलग होगी, ऑफिस के बाबू की काया और खाने की ज़रुरत कुछ और होगी और अगर पेंशनर है तो उसकी डाइट में फर्क होगा. पर साब इन्द्रियों का भी तो खेल बाकी है और इन्द्रियों का मज़ा पूरा करते करते जब हम अपने को रोक नहीं पाते तब डॉक्टर हमें रोकता है - तला हुआ और खट्टा मत खाना, चीनी बंद कर दो, ठंडी चीज़ों से परहेज़ करना वगैरा वगैरा.
 
हमें स्वयम ही खाने पीने के बारे में नियम बना लेने चाहिए. शरीर की ज़रुरत के अनुसार भोजन की मात्रा और समय निश्चित कर लेना चाहिए. मौसम का खाने पर और शरीर पर काफी प्रभाव रहता है. खाने पीने की स्थानीय चीज़ें और मौसमी चीज़ें लाभ दायक होती हैं. यही वस्तुएं ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना अच्छा रहेगा. लुब्बो लुबाव ये कि गौतम बुद्ध का बताया मार्ग ही सही है. सही मात्रा में खाएं और संयम रखते हुए खाएं तो निरोगी रह पाएंगे.

इन्द्रियों पर संयम


1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2018/06/6.html