योग दिवस उर्फ़ 'योगा डे' आया भी और चला भी गया. पर ये नहीं पता लगा कि योग करने वालों की संख्या बढ़ी या नहीं. सच पूछिए तो ये भी नहीं पता लग पाया कि भारत में कितने लोग रोजाना योगाभ्यास करते होंगे. इन्टरनेट पर भी खोज की पर जानकारी मिली नहीं. इतने बड़े देश की 130 करोड़ की आबादी में से शायद ही 1.3 करोड़ करते हों ? या कम या ज्यादा ? पता नहीं. योग से सम्बंधित कितनी गैर सरकारी संस्थाएं - NGO हैं ये भी नहीं पता लगा. सरकार कितने NGO को योग का प्रचार प्रसार करने के लिए कितने पैसे देती है ये भी शायद RTI कर के ही पता लगेगा. लेकिन इन दिनों ये NGO बहुत सक्रिय थे. नए पुराने साधकों को इकठ्ठा करके खूब फोटो खिंच लीं और खूब दस्तखत भी करा लिए. ये सब 'प्रूफ' दिखा कर शायद सरकारी खजाने से कुछ अनुलोम विलोम होगा !
इसके विपरीत अमेरिका के Yoga Journal के अनुसार 2012 में वहां लगभग दो करोड़ लोग योगाभ्यास करते थे और 2016 में ये संख्या बढ़ कर 3.6 हो गई थी और आगे बढ़ती जा रही है. वहां ज्यादातर योगाभ्यास सिखाना और कराना एक व्यवसाय है और साधक को फीस देनी पड़ती है. इसलिए उनका डाटा ठीक माना जा सकता है. अमेरिकन नागरिक और सरकार भी आसानी से बात नहीं मानने वालों में से हैं. योगा से फायदा ना मिलता हो तो कोई भी अमरीकी योगा ना करे. उन्होंने तो स्पेस शटल में भी योगाभ्यास करवा कर रिसर्च की. रिटायर्ड और अंग भंग हुए अपने फौजियों पर भी इसका असर देखा. हालांकि अपनी रिसर्च के पूरे रिजल्ट नहीं बताते पर योग का आगे बढ़ते जाना भी सबूत ही है की ये स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है.
अमेरिका और पश्चिमी देशों को योग के बारे में सबसे पहले शायद स्वामी विवेकानंद ने 1893 के आस पास बताया था. आधुनिक समय में पश्चिमी देशों में योग गुरु बी के एस आयंगार का काफी प्रभाव रहा है. इसलिए जब संयुक्त राज्य संघ - UNO में जब भारतीय राजदूत अशोक मुकर्जी ने 'अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस' मनाने का प्रस्ताव यू एन असेंबली में रखा तो कोई विरोध नहीं हुआ. बल्कि 177 देशों का समर्थन मिला और नब्बे दिनों के भीतर ही प्रस्ताव पास भी हो गया. 21 जून को योग दिवस माना गया और घोषणा में कहा गया की - योग मानव स्वास्थ्य व कल्याण की दिशा में एक सम्पूर्ण नज़रिया है.
योगा विशुद्ध Made in India प्रोडक्ट है और ज्यादातर निशुल्क ट्रेनिंग मिल जाती है. फिर भी आम जनता में योग पनप नहीं रहा है. शायद घर की मुर्गी और दाल बराबर हो गई है ! 1997-98 में हम लोग दिल्ली में थे. गर्मी की छुट्टियों में भारतीय योग संस्थान ने दिल्ली में जगह जगह पार्कों में योग ट्रेनिंग शिविर लगाए. देखा देखी हम भी अपनी दरी लेकर पार्क में पहुँच गए. मन में कुछ ऐसा भाव था कि इस छोटी सी दरी पर लोटम-पोट कराए जा रहे हैं और कह रहे हैं की फिट रहोगे तो ये कैसे होगा ? पर साब हुआ. कुछ ही दिनों में आसन और प्राणायाम कैसे करते हैं समझ आ गया. इसके परिणाम शरीर पर महसूस भी होने लग गए. तीन महीने होते होते शारीरिक और मानसिक सुस्ती गायब हो गई, अनुशासन आ गया, शराब की तलब घट गई और जागरूकता बढ़ गई. सुबह नौ बजे भी थकान नहीं और रात नौ बजे भी चुस्त दुरुस्त.
हाँ जब ये कैम्प शुरू हुआ था तो पहले दिन 60 लोग शामिल हुए थे जबकि कॉलोनी की आबादी हज़ार के करीब थी. एक महीने बाद 15 साधक बचे और तीन महीने बाद केवल 5 साधक रह गए. अब भी लोग खिड़कियों से हमें योगा करते हुए देखते हैं पर शामिल नहीं होते. हमने तो योग का दामन थामा तो फिर छोड़ा नहीं चाहे मौसम कोई भी हो चाहे स्थान कोई भी हो. अब तो चाहे टूर पर निकले या कहीं बाहर शादी अटेंड करने, पॉलिथीन की शीट और दरी साथ ही रहती है.
पिछले दशक में योग बन गया है योगा और योगा से जुड़ी संस्थाओं - NGO की तो बाढ़ आ गई है. बहुत से नीम हकीम, गुरुघंटाल और ढोंगी बाबा योग की दुकानदारी करने लग पड़े हैं. कई तो दावा करते हैं की बस ये वाला आसन करो मोटापा दूर हो जाएगा, फलां आसन करो कैंसर दूर हो जाएगा और ढिमका आसन करो तो घुटनों का दर्द ठीक हो जाएगा. साथ ही अपने बनाए चूरन और गोलियों के बारे में बताना नहीं भूलते !
हम तो अपने अड़ोसी पड़ोसियों, दोस्तों और रिश्तेदारों को लगातार कहते रहते हैं कि 'चलो भई उठाओ दरी और चलो पार्क में' पर असर नहीं पड़ता. तरह तरह की बहाने और जवाब मिलते हैं. सर्दी में कहते हैं की गर्मी में शुरू करेंगे और गर्मी आई तो कहते हैं कि बच्चों को घुमा लाएं आने के बाद शुरू करते हैं ! पर मुहूर्त ही नहीं निकल पाता. अपने आप से प्यार बहुत है पर अपने को दुरुस्त रखने के लिए समय नहीं है.
चावला जी पेंट वगैरा की दूकान चलाते हैं. देर से याने 11-12 बजे जाते हैं और देर से याने 9-9.30 बजे आते हैं. उनका सीधा जवाब है 'योगा हमसे ना होगा'.
कालरा जी ने पेट घटाने के लिए योगा करना शुरू किया. कुछ आसन उन्हें बताए गए जिस में से एक था धनुरासन. इस आसन में पेट के बल लेट कर आगे से गर्दन उठानी है और पीछे से दोनों टखने पकड़ कर घुटने उठाने हैं याने धनुष की शक्ल बनानी है. कालरा जी को ये आसन सही लगा क्यूंकि पेट पर दबाव पड़ेगा तो पेट पिचक जाएगा. जोश जोश में सुबह, दोपहर और शाम कालरा जी शरीर को धनुष बनाने में लग गए. अब कमर में दर्द रहने लगा. डॉक्टर से मिले तो डॉक्टर ने योगा बंद करा दी और बेड रेस्ट बता दिया. कालरा जी और योगा का योग समाप्त हो गया !
गोयल साब ने भी दो तीन दिन दरी बिछाई, लोट पोट हुए और फिर योगा छोड़ दिया. उन का कहना था,
- गुरु जी ने कहा कि चाय पी कर योगा क्लास में ना आया करें. अब बताओ बिना बेड टी के मैं तो टॉयलेट ही नहीं जा पाता पार्क में कैसे जाऊं ? मेरे बस की ना है योगा.
मिसेज़ नरूला भी आने के लिए तैयार हो गईं. पर पहले उन्होंने नई सफ़ेद सलवार कमीज़ सिलाई, नई चप्पल ली और एक अदद नई दरी खरीदी. बड़ी तैयारी से परफ्यूम वगैरा लगा कर क्लास में आईं और कोशिश भी की. पर चार पांच दिन बाद कमबख्त कुत्ता उनकी एक चप्पल लेकर भागा. एक दो सज्जन कुत्ते के पीछे दौड़े भी पर कुत्ते की पसंद और हिम्मत की दाद देनी होगी वो तेज़ी से पार्क के बाहर निकल गया और चप्पल भी नहीं छोड़ी. मिसेज़ नरूला फिर नहीं आईं शायद योग से उनका वियोग हो गया !
हमारे शर्मा जी ने तो टीवी के प्रोग्राम देख देख कर योगा सीख लिया. शर्मा जी कहते हैं,
- मैं तो बिस्तर में ही योगा कर लेता हूँ !
- वो कैसे ?
- सांस ही तो अंदर बाहर करनी है !
अब वर्मा, शर्मा, निरुला, कालरा आएं या ना आएं हमारी योगा क्लास रोज़ सुबह जारी है. आप आना चाहें तो तहेदिल से आपका स्वागत है.
इसके विपरीत अमेरिका के Yoga Journal के अनुसार 2012 में वहां लगभग दो करोड़ लोग योगाभ्यास करते थे और 2016 में ये संख्या बढ़ कर 3.6 हो गई थी और आगे बढ़ती जा रही है. वहां ज्यादातर योगाभ्यास सिखाना और कराना एक व्यवसाय है और साधक को फीस देनी पड़ती है. इसलिए उनका डाटा ठीक माना जा सकता है. अमेरिकन नागरिक और सरकार भी आसानी से बात नहीं मानने वालों में से हैं. योगा से फायदा ना मिलता हो तो कोई भी अमरीकी योगा ना करे. उन्होंने तो स्पेस शटल में भी योगाभ्यास करवा कर रिसर्च की. रिटायर्ड और अंग भंग हुए अपने फौजियों पर भी इसका असर देखा. हालांकि अपनी रिसर्च के पूरे रिजल्ट नहीं बताते पर योग का आगे बढ़ते जाना भी सबूत ही है की ये स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है.
अमेरिका और पश्चिमी देशों को योग के बारे में सबसे पहले शायद स्वामी विवेकानंद ने 1893 के आस पास बताया था. आधुनिक समय में पश्चिमी देशों में योग गुरु बी के एस आयंगार का काफी प्रभाव रहा है. इसलिए जब संयुक्त राज्य संघ - UNO में जब भारतीय राजदूत अशोक मुकर्जी ने 'अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस' मनाने का प्रस्ताव यू एन असेंबली में रखा तो कोई विरोध नहीं हुआ. बल्कि 177 देशों का समर्थन मिला और नब्बे दिनों के भीतर ही प्रस्ताव पास भी हो गया. 21 जून को योग दिवस माना गया और घोषणा में कहा गया की - योग मानव स्वास्थ्य व कल्याण की दिशा में एक सम्पूर्ण नज़रिया है.
योगा विशुद्ध Made in India प्रोडक्ट है और ज्यादातर निशुल्क ट्रेनिंग मिल जाती है. फिर भी आम जनता में योग पनप नहीं रहा है. शायद घर की मुर्गी और दाल बराबर हो गई है ! 1997-98 में हम लोग दिल्ली में थे. गर्मी की छुट्टियों में भारतीय योग संस्थान ने दिल्ली में जगह जगह पार्कों में योग ट्रेनिंग शिविर लगाए. देखा देखी हम भी अपनी दरी लेकर पार्क में पहुँच गए. मन में कुछ ऐसा भाव था कि इस छोटी सी दरी पर लोटम-पोट कराए जा रहे हैं और कह रहे हैं की फिट रहोगे तो ये कैसे होगा ? पर साब हुआ. कुछ ही दिनों में आसन और प्राणायाम कैसे करते हैं समझ आ गया. इसके परिणाम शरीर पर महसूस भी होने लग गए. तीन महीने होते होते शारीरिक और मानसिक सुस्ती गायब हो गई, अनुशासन आ गया, शराब की तलब घट गई और जागरूकता बढ़ गई. सुबह नौ बजे भी थकान नहीं और रात नौ बजे भी चुस्त दुरुस्त.
हाँ जब ये कैम्प शुरू हुआ था तो पहले दिन 60 लोग शामिल हुए थे जबकि कॉलोनी की आबादी हज़ार के करीब थी. एक महीने बाद 15 साधक बचे और तीन महीने बाद केवल 5 साधक रह गए. अब भी लोग खिड़कियों से हमें योगा करते हुए देखते हैं पर शामिल नहीं होते. हमने तो योग का दामन थामा तो फिर छोड़ा नहीं चाहे मौसम कोई भी हो चाहे स्थान कोई भी हो. अब तो चाहे टूर पर निकले या कहीं बाहर शादी अटेंड करने, पॉलिथीन की शीट और दरी साथ ही रहती है.
पिछले दशक में योग बन गया है योगा और योगा से जुड़ी संस्थाओं - NGO की तो बाढ़ आ गई है. बहुत से नीम हकीम, गुरुघंटाल और ढोंगी बाबा योग की दुकानदारी करने लग पड़े हैं. कई तो दावा करते हैं की बस ये वाला आसन करो मोटापा दूर हो जाएगा, फलां आसन करो कैंसर दूर हो जाएगा और ढिमका आसन करो तो घुटनों का दर्द ठीक हो जाएगा. साथ ही अपने बनाए चूरन और गोलियों के बारे में बताना नहीं भूलते !
हम तो अपने अड़ोसी पड़ोसियों, दोस्तों और रिश्तेदारों को लगातार कहते रहते हैं कि 'चलो भई उठाओ दरी और चलो पार्क में' पर असर नहीं पड़ता. तरह तरह की बहाने और जवाब मिलते हैं. सर्दी में कहते हैं की गर्मी में शुरू करेंगे और गर्मी आई तो कहते हैं कि बच्चों को घुमा लाएं आने के बाद शुरू करते हैं ! पर मुहूर्त ही नहीं निकल पाता. अपने आप से प्यार बहुत है पर अपने को दुरुस्त रखने के लिए समय नहीं है.
चावला जी पेंट वगैरा की दूकान चलाते हैं. देर से याने 11-12 बजे जाते हैं और देर से याने 9-9.30 बजे आते हैं. उनका सीधा जवाब है 'योगा हमसे ना होगा'.
कालरा जी ने पेट घटाने के लिए योगा करना शुरू किया. कुछ आसन उन्हें बताए गए जिस में से एक था धनुरासन. इस आसन में पेट के बल लेट कर आगे से गर्दन उठानी है और पीछे से दोनों टखने पकड़ कर घुटने उठाने हैं याने धनुष की शक्ल बनानी है. कालरा जी को ये आसन सही लगा क्यूंकि पेट पर दबाव पड़ेगा तो पेट पिचक जाएगा. जोश जोश में सुबह, दोपहर और शाम कालरा जी शरीर को धनुष बनाने में लग गए. अब कमर में दर्द रहने लगा. डॉक्टर से मिले तो डॉक्टर ने योगा बंद करा दी और बेड रेस्ट बता दिया. कालरा जी और योगा का योग समाप्त हो गया !
गोयल साब ने भी दो तीन दिन दरी बिछाई, लोट पोट हुए और फिर योगा छोड़ दिया. उन का कहना था,
- गुरु जी ने कहा कि चाय पी कर योगा क्लास में ना आया करें. अब बताओ बिना बेड टी के मैं तो टॉयलेट ही नहीं जा पाता पार्क में कैसे जाऊं ? मेरे बस की ना है योगा.
मिसेज़ नरूला भी आने के लिए तैयार हो गईं. पर पहले उन्होंने नई सफ़ेद सलवार कमीज़ सिलाई, नई चप्पल ली और एक अदद नई दरी खरीदी. बड़ी तैयारी से परफ्यूम वगैरा लगा कर क्लास में आईं और कोशिश भी की. पर चार पांच दिन बाद कमबख्त कुत्ता उनकी एक चप्पल लेकर भागा. एक दो सज्जन कुत्ते के पीछे दौड़े भी पर कुत्ते की पसंद और हिम्मत की दाद देनी होगी वो तेज़ी से पार्क के बाहर निकल गया और चप्पल भी नहीं छोड़ी. मिसेज़ नरूला फिर नहीं आईं शायद योग से उनका वियोग हो गया !
हमारे शर्मा जी ने तो टीवी के प्रोग्राम देख देख कर योगा सीख लिया. शर्मा जी कहते हैं,
- मैं तो बिस्तर में ही योगा कर लेता हूँ !
- वो कैसे ?
- सांस ही तो अंदर बाहर करनी है !
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सूर्य नमस्कार ( पर्वताकार ) |
उष्टासन |