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Tuesday 25 July 2017

उल्लू

बालकनी में पैर रखते ही नज़र पड़ी पड़ोसी की खिड़की पर. ऐसा लगा कि खिड़की में या तो कोई खिलौना रखा हुआ है या चिड़िया बैठी है और चिड़िया भी नहीं बल्कि उल्लू बैठा है. अचानक उड़ा तो पता लगा वाकई बैठा हुआ था. अगली सुबह फिर दिखा तो मोबाइल से फोटो ले ली. फोटो में देखिये कैसा स्मार्ट लग रहा है!

पर बड़ा आश्चर्य हुआ की ये यहाँ नई दिल्ली के द्वारका जैसी जगह में कैसे पहुंचा ये उल्लू. पड़ोस का फ्लैट जो की छठी मंजिल पर है पिछले छे महीने से बंद पड़ा था. मकान मालिक ने लोहे की खिड़कियाँ निकलवा कर लकड़ी की लगवानी शुरू की. पर काम रुक रुक कर ही चल रहा था और फ्लैट के अंदर लकड़ी और प्लाई के अलावा कुछ नहीं था. उल्लू शायद इसी ताक में था - ना घर तेरा ना घर मेरा उल्लू रैन बसेरा!

अपनी जानकारी के लिए इन्टरनेट में खोजबीन की तो पता लगा कि कीड़े, मकोड़े और चूहे खाता है. जोरदार शिकारी है और शिकार के लिए मज़बूत पंजे और चील नुमा चोंच है. आँखें गोल, बड़ी और फिक्स हैं आँखें कम घुमाता है पर गर्दन 270 डिग्री तक घुमा लेता है. हम लोगों से सौ गुना बेहतर देख सकता है इसीलिए रात को शिकार कर लेता है. इसकी सुनने की शक्ति भी बहुत तेज़ है. इसकी लगभग 200 प्रजातियाँ हैं और पूरे विश्व में पाया जाता है. चमगादड़ की तरह उल्लू भी निशाचर प्राणी है.

वैसे उल्लू के बारे में अनेक रोचक बातें प्रसिद्द हैं:
- उल्लू देवी लक्ष्मी का वाहन है (शायद धन सम्बंधित काम अँधेरे में होते हैं!). 
- बुद्धि की ग्रीक देवी एथेन उल्लू के रूप में धरती पर आई है.
- रात को उल्लू दिखना अशुभ है पर दिन में दिखना शुभ संकेत है.
- अगर यात्रा कर रहे हों और उल्लू पीछे पीछे आ रहा हो तो यात्रा सफल होती है.
- जहां ज्यादा उल्लू रहते हों वहां गड़ा खजाना हो सकता है इत्यादि.

उल्लू से सम्बंधित कहावतें भी हैं जैसे अपना उल्लू सीधा करना, किसी को उल्लू बनाना वगैरा. और फिर वो शौक बहराईची का मशहूर शेर भी तो उल्लू का गुणगान करता है: 
बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है,
हर शाख़ पे उल्लू बैठे हैं अंजामे गुलिस्तां क्या होगा !

खैर तीन दिन तो रोज सुबह दिखाई पड़ रहा था और उसके बाद जाने कहाँ गायब हो गया उल्लू का पट्ठा !


1. उल्लू  

2. घूरना मेरी आदत है 

3. निशाचर 



मुकुल वर्धन की प्रस्तुति. Contributed by Mukul Wardhan.




1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/07/blog-post_25.html