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Wednesday 12 July 2017

बाद में

पेंशन प्राप्त रघु साब और उनकी पत्नी चंद्रमुखी सुबह छे बजे पार्क में पहुँच जाते हैं. साब पैंसठ के हैं और सफेद कुर्ते पजामा पहनते है, मोटे चश्में में से घूर कर देखते हैं पर खुश दिल इंसान हैं. मेमसाब सफेद सलवार क़मीज़ पहनती हैं और अपनी चुन्नी को एक कंधे पे रख कर चुन्नी के दोनों सिरों पर गांठ लगा कर बस्ते की तरह तिरछा लटका देती हैं.

दोनों की सैर की शुरुआत एक साथ होती पर पार्क का एक चक्कर पूरा होते तक मेमसाब पिछड़ जाती हैं. कभी साब के दोस्त यार मिल जाते तो कभी मेमसाब की सहेलियां. थोड़ी देर गपशप हो जाती फिर आगे बढ़ जाते हैं. जल्दी किसे है घर जाने की? तभी उन्हें  श्रीमती और श्री भटनागर आते  दिखाई पड़े. अब पूरी कॉलोनी की खबरें मिल जाएंगी. नमस्ते नमस्ते के बाद भटनागर जी बोले,

- भई वो 31 नंबर वालों की हालत तो बहुत खराब हो गई है. डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है.
- ओहो ये कैंसर कहाँ छोड़ता है भटनागर जी. और उमर भी मेरे ख्याल से 70+ है.
- हाँ ये तो है. भगवान के खेल हैं जी कब बुला ले. इसलिए तो आपको कह रहा हूँ शाम को हमारे साथ बैठ लिया करो. भाभी जी नहीं मना करेंगी क्यूँ भाभी जी?
- हें हें हें आपके साथ सुबह या दोपहर ही बैठेंगे हम तो. हें हें हें शाम को नहीं. ये कह कर दोनों सीनियर जोड़े अपने अपने रास्ते चल पड़े. श्रीमति चंद्रमुखी बोलीं,
- सुनो जी 31 नंबर वालों की वाइफ तो है ना अभी? और मैंने सुना है कि वो तो अभी ठीक  ठाक हैं? नहीं? 
- वो तो जवान है तुम्हारी तरह.
- ओफ्फो मेरा मतलब है वो अकेली रह जाएगी ना.
- अब इसके बारे में क्या कहा जा सकता है कौन पहले जाएगा. कोई रूल तो भगवान ने बना नहीं रखे और अगर बनाएं हैं तो बताता नहीं है. अब हम दोनों हैं तो पहले मैं जाऊँगा या तुम कौन जाने?
- मुझे तो सोच कर अजीब सा ही लगता है जी. इतने बरस इकट्ठे रहने के बाद सूनापन.
- भई ये तो अच्छा ही है की जाने की डेट नहीं पता है. क्या पता कब की टिकेट बुक है? पता हो तो कई महीने और कई साल इसी सोच में पड़े रहते ना खा पाते ना सो पाते. आनंद लो बच्चे सेट हैं, अपना घर है और पेंशन आ रही है और क्या चाहिए? चिंता छोड़ो बस घुमो फिरो मौज करो.
- अरे मैं डेट की नहीं उस डेट के बाद की बात कर रही हूँ. तुम्हें खाना बनाना आता नहीं, घर चलाना आता नहीं कैसे करोगे मेरे बाद में?
- लो खाने पीने का तो इंतज़ाम किया जा सकता है. मेड वेड रखी जा सकती है. बाज़ार नज़दीक है और रेडीमेड फ़ूड का ज़माना है. तुम अपनी बात करो. मेरे जाने के बाद में ये दस लाख की गाड़ी का क्या करोगी? रहोगी कहाँ ? इस मकान में बच्चे तो आने वाले नहीं है. या तो बैंगलोर रहो या फिर ऑस्ट्रेलिया चले जाना. मन लग जाएगा?
- भई दिक्कत तो दोनों को ही हो सकती है जी. वैसे देखा जाए तो हजारों लाखों को हो भी रही होगी क्या पता.
- तो क्या कर सकते हैं? अगर मैं मर जाता हूँ तो मुझे क्या पता लगेगा तुम कैसी हो? ना ही मैं किसी किस्म की हेल्प कर पाऊंगा हैैं? ऊपर आसमान से फेसबुक में तुम्हारी झुर्रियों वाली फोटो देख लिया करूँगा हे हे हे!
- उंह घटिया जोक !
- अरे मरने के बाद मुझे क्या फर्क पड़ेगा नीचे क्या हो रहा है? सारे बंधन समाप्त. मरने वाले को क्या कि जीने वाले क्या कर रहे हैं और जीने वालों को क्या पता कि मरने वाला क्या कर रहा है. जैसे हालात होंगे कर लेना. दूसरी शादी करनी हो तो कर लेना, लिव-इन पार्टनर ठीक लगे तो वैसा कर लेना ....
- हे भगवान!
- और क्या? उस समय के हालात पर अभी से क्या बात करें ! तुझे जैसा ठीक लगे वैसा कर लेना मुझे जैसा ठीक लगेगा में कर लूंगा. तुम - यू आर फ्री ! फ्री फ्री फ्री !
- हे राम क्या फ्री? में तो दूसरी शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती तुम्हें करनी हो तो तुम जानो. 
- चलो जैसा होगा देखा जाएगा. अब चलो और घर चलकर चाय पिलाओ!

 
बाद में 



1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/07/blog-post_12.html