Pages

Saturday, 29 July 2017

बगला भगत

मानसून के दिनों में अक्सर सफ़ेद बगले दिखाई पड़ जाते हैं. नदी, तालाब, खेत या झाड़ियों के आस पास ये बगले या बगुले या Egret अपना नाश्ता ढूंढते नज़र आते हैं. पर हमारी मुलाकत बगला भगत जी सेे घर के नजदीक ही हो गई. अभी गाड़ी मोड़ी ही थी कि गाड़ी के सामने ही बगला भगत ने हवाई जहाज़ की तरह लैंडिंग कर दी. हर्ष जी ने गाड़ी रोक दी और मैंने जल्दी से पर्स में से मोबाइल निकाल कर गाड़ी में बैठे बैठे ही सात आठ फोटो ले ली. ऐसा लग रहा था कि कार के इंजन के शोर से बगला उड़ जाएगा पर नहीं उसने तो शिकार करना था.

1. बगला भगत आमने सामने. पर बगले का ध्यान शिकार की ओर ही था 

2. बगला भगत तेज़ी से झाड़ी की तरफ बढ़ा
3. और झट से शिकार पकड़ कर बाहर आ गया

3. चोच में या तो केंचुवा था या शायद सांप का छोटा बच्चा

4. हालांकि शिकार ने बचने के लिए काफी उछल कूद की पर बगले की पकड़ मज़बूत थी   

सफ़ेद बगले का वैज्ञानिक विवरण :
Phylum - Chordata,
Class - Aves,
Order - Pelecaniformes,
Family - Ardeidae


गायत्री वर्धन की प्रस्तुति  



Tuesday, 25 July 2017

उल्लू

बालकनी में पैर रखते ही नज़र पड़ी पड़ोसी की खिड़की पर. ऐसा लगा कि खिड़की में या तो कोई खिलौना रखा हुआ है या चिड़िया बैठी है और चिड़िया भी नहीं बल्कि उल्लू बैठा है. अचानक उड़ा तो पता लगा वाकई बैठा हुआ था. अगली सुबह फिर दिखा तो मोबाइल से फोटो ले ली. फोटो में देखिये कैसा स्मार्ट लग रहा है!

पर बड़ा आश्चर्य हुआ की ये यहाँ नई दिल्ली के द्वारका जैसी जगह में कैसे पहुंचा ये उल्लू. पड़ोस का फ्लैट जो की छठी मंजिल पर है पिछले छे महीने से बंद पड़ा था. मकान मालिक ने लोहे की खिड़कियाँ निकलवा कर लकड़ी की लगवानी शुरू की. पर काम रुक रुक कर ही चल रहा था और फ्लैट के अंदर लकड़ी और प्लाई के अलावा कुछ नहीं था. उल्लू शायद इसी ताक में था - ना घर तेरा ना घर मेरा उल्लू रैन बसेरा!

अपनी जानकारी के लिए इन्टरनेट में खोजबीन की तो पता लगा कि कीड़े, मकोड़े और चूहे खाता है. जोरदार शिकारी है और शिकार के लिए मज़बूत पंजे और चील नुमा चोंच है. आँखें गोल, बड़ी और फिक्स हैं आँखें कम घुमाता है पर गर्दन 270 डिग्री तक घुमा लेता है. हम लोगों से सौ गुना बेहतर देख सकता है इसीलिए रात को शिकार कर लेता है. इसकी सुनने की शक्ति भी बहुत तेज़ है. इसकी लगभग 200 प्रजातियाँ हैं और पूरे विश्व में पाया जाता है. चमगादड़ की तरह उल्लू भी निशाचर प्राणी है.

वैसे उल्लू के बारे में अनेक रोचक बातें प्रसिद्द हैं:
- उल्लू देवी लक्ष्मी का वाहन है (शायद धन सम्बंधित काम अँधेरे में होते हैं!). 
- बुद्धि की ग्रीक देवी एथेन उल्लू के रूप में धरती पर आई है.
- रात को उल्लू दिखना अशुभ है पर दिन में दिखना शुभ संकेत है.
- अगर यात्रा कर रहे हों और उल्लू पीछे पीछे आ रहा हो तो यात्रा सफल होती है.
- जहां ज्यादा उल्लू रहते हों वहां गड़ा खजाना हो सकता है इत्यादि.

उल्लू से सम्बंधित कहावतें भी हैं जैसे अपना उल्लू सीधा करना, किसी को उल्लू बनाना वगैरा. और फिर वो शौक बहराईची का मशहूर शेर भी तो उल्लू का गुणगान करता है: 
बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है,
हर शाख़ पे उल्लू बैठे हैं अंजामे गुलिस्तां क्या होगा !

खैर तीन दिन तो रोज सुबह दिखाई पड़ रहा था और उसके बाद जाने कहाँ गायब हो गया उल्लू का पट्ठा !


1. उल्लू  

2. घूरना मेरी आदत है 

3. निशाचर 



मुकुल वर्धन की प्रस्तुति. Contributed by Mukul Wardhan.




Saturday, 22 July 2017

कांवड़ यात्रा 2017

सावन का महीना याने 10 जुलाई आते ही कांवड़ यात्रा शुरू हो गई. अखबारी अनुमान के अनुसार इस यात्रा में एक करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु हर की पौड़ी, हरिद्वार में गंगा जल लेने पहुंचते हैं. राजस्थान, हरयाणा और उत्तर प्रदेश के दूर दराज जिलों से भी भारी संख्या में श्रद्धालु कांवड़ लेकर हरिद्वार की ओर चलते हैं. ये कॉंवड़िये हर की पौड़ी से गंगा जल लेकर वापिस घर के या गाँव के मंदिर में शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं. 

वैसे तो यात्रा का एक प्रमुख पड़ाव है पूरा महादेव का मंदिर जहाँ कांवड़िये शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं. यह मंदिर मेरठ से करीब 25 किमी दूर बागपत जिले के बालैनी क्षेत्र में है. कांवड़ यात्रा से जुड़ी मान्यता संक्षेप में इस प्रकार है :

मंदिर के आसपास का इलाका पुराने समय में कजरी वन कहलाता था. इस वन में ऋषि जमदाग्नि अपनी पत्नी रेणुका तथा परिवार के साथ रहते थे. एक दिन ऋषि की अनुपस्थिति में राजा सहस्त्रबाहू शिकार पर आये और रेणुका को उठवा कर ले गए. पर सहस्त्रबाहू की रानी ने - जो रेणुका की बहन थी, मौक़ा पाते ही रेणुका को महल से निकाल कर वापिस आश्रम भिजवा दिया. परन्तु जमदाग्नि इस बात पर क्रोधित हो गए और रेणुका को आश्रम से निकाल दिया. पुत्रों को आदेश दिया की रेणुका का सर धड़ से अलग कर दिया जाए. तीन पुत्रों ने मना कर दिया जिस पर ऋषि जमदाग्नि ने उन्हें श्राप देकर पत्थर बना दिया. चौथे ने जिसका नाम राम था, आज्ञा मान ली और माँ का वध कर दिया. 

परन्तु राम को इस कर्म से बड़ी पीड़ा और ग्लानि हुई. प्रायश्चित करने के लिए राम ने हिंडन नदी के किनारे शिवलिंग की स्थापना की और तपस्या शुरू कर दी. घोर तपस्या के बाद भगवान शिव प्रकट हुए. राम ने माँ को जीवित करने का आग्रह किया जो पूरा हुआ. भगवान ने दुष्टों का नाश करने के लिया एक परशु या फरसा प्रदान किया. इस फरसे से राम ने राजा सहस्त्रबाहू और अन्य दुष्टों का सफाया कर दिया और उनका नाम परशुराम पड़ गया. माना जाता है की परशुराम ने कांवड़ में गंगा जल लाकर सावन के प्रथम सोमवार को शिवलिंग का अभिषेक किया जिससे कांवड़ परम्परा शुरू हुई. 

कांवड़ यात्रा 2017 के कुछ फोटो प्रस्तुत हैं जो ज्यादातर मेरठ के आसपास राष्ट्रिय राजमार्ग NH 58 पर लिए गए हैं : 

1. कांवड़ की एक झांकी 

2. कांवड़ में सजे हैं मटके और और डमरू 
3. विश्राम 

4. बड़ी कांवड़ जिसे 8-10 कांवड़ियों की टोली लेकर चलती है 

5. कन्धों पर उठा कर लेजाने वाली कांवड़ 

6. महिलाओं की संख्या भी बढती जा रही है 

7. महिला कांवड़ को आम तौर पर भोली और पुरुष कांवड़ को भोला कहते हैं 

8. डाक कांवड़ 

9. आस्था के बल पर 

10. ये परिवार शाहदरा दिल्ली से हरिद्वार पैदल यात्रा पर निकला है

11. पैरों में अक्सर छाले पड़ जाते हैं 

12. यात्रा के लिए साइकिल तैयार है

13. ये लोग यात्रा स्केट्स पर कर रहे हैं 

14. उमस भरी गर्मी में बोझ ले कर चलना आसान नहीं है

15. बिटिया भी यात्रा में शामिल

16. शहीदों के नाम की कांवड़ 51 फुटे तिरंगे के साथ

17. एक मित्र ने ये फोटो WhatsApp ग्रुप में भेजी थी 



Thursday, 20 July 2017

मुश्किल सवाल

अस्पताल दाखिल हुए रामनाथ जी को दो दिन ही हुए थे. डॉक्टरों का कहना था की चिंता की कोई बात नहीं है पर रामनाथ जी का स्वर्गवास हो गया. सत्तर साल के थे. बड़े बुज़ुर्ग कह गए हैं की ऊपर यमराज के पास उमर से नहीं बल्कि साँसों की गिनती से हिसाब रखा जाता है. गिनती पूरी हुई और खेल ख़तम.

रामनाथ जी अपने पीछे पत्नी, दो बेटे और दो बेटियां छोड़ गए. चारों बच्चों के आगे पांच बच्चे भी हैं याने भरा पूरा परिवार है. बड़ी बेटी सुधा बैंगलोर से अपनी बेटी और पति को छोड़ कर आई थी. पिताजी का स्वर्गवास का समाचार सुन कर वे दोनों भी आ गए थे. अब आने जाने की हवाई यात्रा का खर्चा जो है सो है पर वापिस जाने की जल्दी थी. छुट्टी नहीं थी और तेरहवीं तक तो रुकने का सवाल ही नहीं था. सुधा को अम्मा से कहना अटपटा लग रहा था. छोटी के पास पहुंची और हाल बताया.

छोटी अपने बेटे और पति के साथ दिल्ली से कार में आई थी बोली,
- हाँ दी ये भी कह रहे थे की ज्यादा देर रुक नहीं पाएंगे. आजकल शेयर बाज़ार चढ़ा हुआ है तो इन्हें फुर्सत नहीं है. अम्मा से बात करती हूँ कि चौथा कर लें हम सभी निकल लेंगे. अगर तेरहवीं के लिए अम्मा ने कहा तो ठीक है मैं आ जाउंगी तुम निकल जाना. अमरीका से तो भइय्या आएगा नहीं और मनीष भी रुकने वाला नहीं है. चलो ठीक है अम्मा से बात करती हूँ. अम्मा कहाँ रहना चाहेंगी बाद में वो भी बात करनी है.

अमरीकी भाई मम्मी से फोन पर रोज़ हाल पूछ लेता था. बोला,
- माँ इच्छा बहुत है आने की पर मजबूरी भी है. देखो ना सुनीता की नौकरी छुड़वाई और होम लोन की किश्त यहाँ से भेजता हूँ क्या करूँ? अब अगर इंडिया आया तो ये लोग वापिस नहीं घुसने देंगे और नई नौकरी भी मिलनी मुश्किल है. और हाँ मैं तीन लाख भेज रहा हूँ आपके खाते में किसी के साथ जाकर निकलवा लेना.

छोटे ने पहुँच कर हालात का जायज़ा लिया और फिर दोनों बहनों से दरख्वास्त की कि तेरहवीं तक रुकना मुश्किल है. अंतिम संस्कार के बाद वह निकल जाएगा. फिर भी अगर बहुत ज़रूरी हुआ तो तेरहवीं को किसी ना किसी तरह से पहुँच जाएगा.

इस तरह की बातें चलते चलते पड़ोसियों तक भी पहुँच गईं. रस्तोगी साब पधारे और कहने लगे,
- आजकल बच्चे नौकरियों में बहुत व्यस्त रहते हैं जी. नहीं रुक सकते तो कोई बात नहीं हम लोग तो यहीं हैं आपके साथ. जैसा भी आगे होगा संभाल लेंगे भाभी जी. हमारे समय और अब के समय की नौकरियों में बहुत अंतर आ गया है. समय के साथ हम को भी बदलना होगा. अब जो पुरानी रीत और रस्में थी ऐसे ही बदलेंगी. कुछ अब बदलेंगी कुछ ये बच्चे बदल देंगे. हम आपके साथ हैं जैसे कहोगे इंतज़ाम कर देंगे.

श्रीमती रामनाथ को लग रहा था की अचानक समय का प्रवाह तेज़ हो गया है जिसमें अब डूबी की तब डूबी. बेटे बेटियों के सवाल जवाब पराए से लगने लगे. मान शांत भी था और अशांत भी. कभी आंसू आ जाते कभी सूख जाते. इस बीच कब अंतिम संस्कार हो गया, चौथा, तेरहवीं, पूजा, हवन भी हो गया पता ही नहीं लगा. हरिद्वार में गंगा स्नान हो गया और उसके बाद पेंशन का काम भी करवा दिया गया. अब मिसेज़ रामनाथ घर में अकेली रह गईं और कुछ दिन अकेले रहना चाहती भी थीं. उन्हें अब घर शांत नहीं सुनसान और खाली खाली लगने लगा. रह रह के ख़याल आने लगा की यहीं रहूँ या किसी बेटा बेटी के साथ? मिसेज़ रामनाथ को लगा की ज़िन्दगी में इससे मुश्किल सवाल कोई नहीं है.

कहीं हरियाली कहीं पतझड़ 




Saturday, 15 July 2017

मेहरानगढ़ जोधपुर - 3/3

जोधपुर अब दस लाख से ज्यादा आबादी वाला महानगर है. दिल्ली से इस शहर की दूरी 615 किमी है और जयपुर से 354 किमी. जोधपुर रेल, सड़क और हवाई सेवा से भली प्रकार जुड़ा हुआ है. थार रेगिस्तान में होने के कारण दिन में तेज़ धूप होती है और रात में ठंडक. पर्यटन के लिए अक्टूबर से मार्च अच्छा है.  

शहर के बीच एक ऊँची पहाड़ी है जिसका पुराना नाम भोर चिरैय्या था. इस 125 मीटर ऊँची पहाड़ी पर एक किला है जिसका नाम मेहरानगढ़ है. इस किले की नींव राव जोधा द्वारा 12 मई 1459 को रखी गई थी. यह भीमकाय किला लगभग पांच वर्ग किमी में फैला हुआ है. इसकी ऊँची, चौड़ी और मज़बूत दीवारों की लम्बाई लगभग 10 किमी है. महाराजा जसवंत सिंह (1638 - 1678) के समय किले का काम पूरा हुआ था. 

किले के आठ बड़े गेट या पोल हैं इनमें से एक गुप्त है और चार घुमावदार पहाड़ी सड़कों से ऐसे जुड़े हुए हैं की दूर से किले के गेट या पोल दिखते ही नहीं हैं. फ़तेहपोल महाराजा अजीत सिंह ने 1707 में मुग़लों को हराने के बाद बनवाया था जबकि जयपोल महाराजा मान सिंह ने 1806 में जयपुर और बीकानेर पर जीत की खुशी में बनवाया था.

किले के अंदर कई सुंदर महल हैं जैसे मोती महल, फूल महल, शीश महल. साथ ही दौलत खाना, सिलेह खाना, तोप खाना वगैरा भी हैं. बहुत बड़े भाग में म्यूजियम है जहां अपने समय के सुंदर और शानदार शाही कपड़े, फर्नीचर, कालीन, हथियार, पालकियां, हौदे आदि रखे गए हैं. किले के अंदर की ऊँचाई सात आठ माले के बराबर है. लिफ्ट का भी इन्तेजाम है और अंदर ही बहुत सुंदर दस्तकारी की दुकानें भी हैं. लिफ्ट और म्यूजियम के प्रवेश के लिए टिकट हैं. 

किले की व्यवस्था और रख रखाव बहुत सुंदर है. कुछ फोटो प्रस्तुत हैं:



1. महल का आँगन. खुबसूरत वास्तु कला और बेमिसाल कारीगरी. गर्म और सर्द दोनों मौसमों के अनुकूल   

2. नीचे आम रास्ता और ऊपर ख़ास रास्ता 

3. चट्टानों के बीच द्वार. देखिये कैसे बड़े बड़े पत्थरों पर सात आठ मंजिलों के बराबर निर्माण किया गया  

4. किले में बहुत से मंदिरों में से एक मुख्य मन्दिर है चामुंडा माता का 

5. चबूतरे, दरवाज़े, खम्बों और छज्जों पर बारीक फूल बूटों की नक्काशी

6. ऊँचे मेहराबों से जुड़े गलियारे. ठन्डे और आरामदेह  

7. शानदार नक्काशी वाले झरोखे, खिड़कियाँ और कंगूरे 

8. किला और नीचे शहर 

9. किले की दीवारों पर बहुत सी तोपों में से एक 

10. ऊँची ऊँची दीवारें और उनसे ऊँचा महल खास राजस्थानी अंदाज़ में 

11. झरोखे 

12. धातु में बना किले का मॉडल 





Wednesday, 12 July 2017

बाद में

पेंशन प्राप्त रघु साब और उनकी पत्नी चंद्रमुखी सुबह छे बजे पार्क में पहुँच जाते हैं. साब पैंसठ के हैं और सफेद कुर्ते पजामा पहनते है, मोटे चश्में में से घूर कर देखते हैं पर खुश दिल इंसान हैं. मेमसाब सफेद सलवार क़मीज़ पहनती हैं और अपनी चुन्नी को एक कंधे पे रख कर चुन्नी के दोनों सिरों पर गांठ लगा कर बस्ते की तरह तिरछा लटका देती हैं.

दोनों की सैर की शुरुआत एक साथ होती पर पार्क का एक चक्कर पूरा होते तक मेमसाब पिछड़ जाती हैं. कभी साब के दोस्त यार मिल जाते तो कभी मेमसाब की सहेलियां. थोड़ी देर गपशप हो जाती फिर आगे बढ़ जाते हैं. जल्दी किसे है घर जाने की? तभी उन्हें  श्रीमती और श्री भटनागर आते  दिखाई पड़े. अब पूरी कॉलोनी की खबरें मिल जाएंगी. नमस्ते नमस्ते के बाद भटनागर जी बोले,

- भई वो 31 नंबर वालों की हालत तो बहुत खराब हो गई है. डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है.
- ओहो ये कैंसर कहाँ छोड़ता है भटनागर जी. और उमर भी मेरे ख्याल से 70+ है.
- हाँ ये तो है. भगवान के खेल हैं जी कब बुला ले. इसलिए तो आपको कह रहा हूँ शाम को हमारे साथ बैठ लिया करो. भाभी जी नहीं मना करेंगी क्यूँ भाभी जी?
- हें हें हें आपके साथ सुबह या दोपहर ही बैठेंगे हम तो. हें हें हें शाम को नहीं. ये कह कर दोनों सीनियर जोड़े अपने अपने रास्ते चल पड़े. श्रीमति चंद्रमुखी बोलीं,
- सुनो जी 31 नंबर वालों की वाइफ तो है ना अभी? और मैंने सुना है कि वो तो अभी ठीक  ठाक हैं? नहीं? 
- वो तो जवान है तुम्हारी तरह.
- ओफ्फो मेरा मतलब है वो अकेली रह जाएगी ना.
- अब इसके बारे में क्या कहा जा सकता है कौन पहले जाएगा. कोई रूल तो भगवान ने बना नहीं रखे और अगर बनाएं हैं तो बताता नहीं है. अब हम दोनों हैं तो पहले मैं जाऊँगा या तुम कौन जाने?
- मुझे तो सोच कर अजीब सा ही लगता है जी. इतने बरस इकट्ठे रहने के बाद सूनापन.
- भई ये तो अच्छा ही है की जाने की डेट नहीं पता है. क्या पता कब की टिकेट बुक है? पता हो तो कई महीने और कई साल इसी सोच में पड़े रहते ना खा पाते ना सो पाते. आनंद लो बच्चे सेट हैं, अपना घर है और पेंशन आ रही है और क्या चाहिए? चिंता छोड़ो बस घुमो फिरो मौज करो.
- अरे मैं डेट की नहीं उस डेट के बाद की बात कर रही हूँ. तुम्हें खाना बनाना आता नहीं, घर चलाना आता नहीं कैसे करोगे मेरे बाद में?
- लो खाने पीने का तो इंतज़ाम किया जा सकता है. मेड वेड रखी जा सकती है. बाज़ार नज़दीक है और रेडीमेड फ़ूड का ज़माना है. तुम अपनी बात करो. मेरे जाने के बाद में ये दस लाख की गाड़ी का क्या करोगी? रहोगी कहाँ ? इस मकान में बच्चे तो आने वाले नहीं है. या तो बैंगलोर रहो या फिर ऑस्ट्रेलिया चले जाना. मन लग जाएगा?
- भई दिक्कत तो दोनों को ही हो सकती है जी. वैसे देखा जाए तो हजारों लाखों को हो भी रही होगी क्या पता.
- तो क्या कर सकते हैं? अगर मैं मर जाता हूँ तो मुझे क्या पता लगेगा तुम कैसी हो? ना ही मैं किसी किस्म की हेल्प कर पाऊंगा हैैं? ऊपर आसमान से फेसबुक में तुम्हारी झुर्रियों वाली फोटो देख लिया करूँगा हे हे हे!
- उंह घटिया जोक !
- अरे मरने के बाद मुझे क्या फर्क पड़ेगा नीचे क्या हो रहा है? सारे बंधन समाप्त. मरने वाले को क्या कि जीने वाले क्या कर रहे हैं और जीने वालों को क्या पता कि मरने वाला क्या कर रहा है. जैसे हालात होंगे कर लेना. दूसरी शादी करनी हो तो कर लेना, लिव-इन पार्टनर ठीक लगे तो वैसा कर लेना ....
- हे भगवान!
- और क्या? उस समय के हालात पर अभी से क्या बात करें ! तुझे जैसा ठीक लगे वैसा कर लेना मुझे जैसा ठीक लगेगा में कर लूंगा. तुम - यू आर फ्री ! फ्री फ्री फ्री !
- हे राम क्या फ्री? में तो दूसरी शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती तुम्हें करनी हो तो तुम जानो. 
- चलो जैसा होगा देखा जाएगा. अब चलो और घर चलकर चाय पिलाओ!

 
बाद में 



Saturday, 8 July 2017

कुंवारा कपूर

सरकारी बैंक की काफी बड़ी शाखा है झुमरी तलैय्या में. कुछ नहीं तो 55 से भी ज्यादा लोग काम करते होंगे. इनमें एक तिहाई तो महिलाएँ ही होंगी. दो बजे तक तो ग्राहकों की चहल पहल रहती है फिर तीन बजे तक महिला मंडल सक्रिय हो जाता है और चार बजे के बाद महिलाएँ खिसकना शुरू हो जाती हैं और पाँच बजे तक शांति छा जाती है. फिर केके याने श्रीमान किशन कपूर की ऊंची आवाज अक्सर सुनाई पड़ती है.

अकेले केके ही शाखा में कुँवारे सज्जन थे. इसलिए कई उपनाम भी रख दिए गए थे जैसे कि कंवारा किशन या कपूर कुंवारा. उमर ४५ साल, बाल फ़ौजी स्टाइल में कटे हुए और चुस्त कपड़े. ज़्यादातर सफेद टाईट पैंट और सफेद ही क़मीज़ पहनते थे. काले जूते और काली चौड़ी बेल्ट पर ख़ूब पॉलिश कर के चमका के रखते थे. बैंकर कम और पुलसिये ज्यादा लगते थे. पुलिस वाला लगने का एक और कारण भी था. कभी कभी कोट के नीचे होलस्टर पहन कर पिस्टल भी लगा के आते थे. बाद में पता लगा कि दिल्ली पुलिस की किसी स्कीम के मुताबिक़ स्पेशल पोलिस ऑफ़िसर भी थे. साल में १२ छुट्टियाँ अलग से मिलतीं और कभी कभी किसी पुलिस कैम्प में भी जाते रहते थे.

पर ऐसे में कुछ हेकड़ी या धौंस ज़माने की आदत भी पड़ गई थी. अगरआप भी केके की जगह होते तो शायद ऐसा ही करते? आप ख़ुद ही बात कर के देख लो केके से मजाल है कि कोई सीधा जवाब मिल जाए.

- केके साब छुट्टी कर ली?
- हाँ सोच रहा हूँ थाने जाकर सो जाऊँ!

- केके जी आप सफेद कपड़े ही पहनते हैं?
- वो क्या है कि चाइना बॉडर पर भी जाना होता है ना!

- केके सर लंच में कोई मिलने आया था.
- उसको बोलना था जाकर अपनी भैंस चराए!

- केके भाईसाहब बाहर बादल छाए हुए हैं छाता ले जाओ.
- आपकी क़मीज़ कमाल की है!

- केके साब ये पिस्टल लगाई हुई है आपने?
- हवा बदल रही है. इन हवाओं में कुछ है.

लुब्बो लुबाव ये कि केके जी से पार पाना कठिन काम था. ब्रांच की पुरुष पंक्ति केके को खुले साँड के रूप में देखती थी और हीन भावना में गिराने का कारण मानती थी. कुछ महिलाएँ केके को भस्मासुर मानती थी और कहती थी कि कुँवारा ही भसम हो जाएगा ये. कुछ लोगों को केके पर हँसी आती कुछ को दया. ब्रांच में केके एक रहस्यमय प्राणी था जिस पर किस्से, चुटकले और अफवाहें बनती रहती थी और फुर्र भी हो जाती थी लेकिन केके से दूरी भी बनी रहती थी.

लेकिन सब दिन होत न एक समान. जून के महीने में तीन लोगों की ट्रान्सफर हो गई और चार लोग नए आ गए. आने वालों में एक सुश्री चन्द्रमुखी भी थी. उम्र पैंतीस के आसपास, शरीर से थोड़ा नाटी और थोड़ा भारी, स्वभाव से हंसमुख और बिंदास. ठीक से पता नहीं लगा की शादी हुई नहीं या की नहीं. बहरहाल चन्द्रमुखी के आने से वातावरण कुछ हल्का हो गया. लोग दो और दो चार करने की बात करने लगे पर कभी जोड़ तीन रह जाता था और कभी पांच हो जाता.

केके अब कई बार चंद्रमुखी की सीट के आसपास मंडराते देखे जा सकते थे. केके गम्भीर मुद्रा में और चंद्रमुखी मुस्कुराती हुई. एक शाम साढ़े चार बजे केके चंद्रमुखी के सामने बैठे हुए थे जो कि असाधारण घटना थी. उससे भी अजीब बात यह लगी कि चंद्रमुखी के सामने चाय का प्याला और केके साब के सामने ठंडी बोतल. केके कभी किसी के पास बैठते नहीं थे खाने पीने की बात तो दूर रही.

दोनों की अच्छी छन रही थी दूर से तो ऐसा ही लग रहा था. केके साब ने झुक कर चंद्रमुखी के कान में कुछ खुसफुस करने की कोशिश की. ऐसा लगा कि चंद्रमुखी खिलखिला कर हंस पड़ेगी. पर चंद्रमुखी ने चट से केके साब के गाल पर चांटा चटक दिया. आवाज़ तो हल्की सी हुई पर गूंज बहुत जोर से हुई. केके साब तो तुरंत गेट के बाहर हो गए. जितना भी स्टाफ मौजूद था सब सुन्न हो गया. चंद्रमुखी ने हॉल में नज़र घुमाई और हंस कर बोली,
- अरे कुछ नहीं हुआ यार. इस केके का मतलब है कनकौवा!

केके उर्फ कनकौव्वा




Saturday, 1 July 2017

लछमी ताई

बैंक की एक छोटी सी ब्रांच है जी म्हारे गाँव में और गाँव का नाम है जी घोपला. ना जी नाम घपला ना है घोपला है जी. भगवान भली करे गांव के नाम तो नूं ही होते हैं जैसे की घोपले से पांच चार मील आगे है जी कंकर खेड़ा और उसते भी आगे है जी कसेरू खेड़ा.

बैंक जो है ना शहर से ज्यादा दूर भी ना है और आने जाने के लिए सवारी भौत मिलती हैं जी. इसलिए तो ब्रांच में लेडिज पोस्टिंग करा लेती हैं. भला हो जी सबका सुनीता मैडम यहाँ अफसर बन कर आई, सरला मैडम आई और सुधा मैडम आई पर ज़रा भी दिक्कत ना हुई जी. सरोज बाला तो वापिस दिल्ली चली गई. और जी नीना मैडम भी चली गई. देखो जी पांच बजे छुट्टी की और चालीस मिनट में घर. बस जी ये ई बात लेडीज पसन्द करें.

नए मनीजर साब आये हैं जी डूटी पर दिल्ली से. पहले दिन तो टाई लगाई पर अगले दिन ही उतर गई. आप जानो गाँव का मामला है कभी बिजली आवे है कभी जावे है. टाई में गर्मी लागे है. और नए साब अंग्रेजी ज्यादा बोलें वो भी कल परसों उतर जावगी जी. गाँव के मानस तो गाँव की बोली ही बोलें गिटपिट अंग्रेजी ना बोलते.

अब बैंक है तो हर तरह का गाहक आवे है जी. महिना सुरु हुआ और भीड़ लगी. बस बारह पन्द्रा दिन मेला सा लागे है जी. फेर भीड़ छंट जावे है. पेंसन का काम ज्यादा है जी. भगवान सब का भला करे पेंसन का बड़ा सहारा है जी. बूढ़ा बूढ़ी पेंसन में गुजर कर लें है जी बालकां के आगे हाथ फैलाना मुस्किल काम है जी. पेंसन वाले बैंक के एटीएम मसीन से पैसा ना ले पाते. पर कई मानस बालकां को कार्ड दे के निकलवा लें जी. पर हर कोई ना करा पाता. अब लछमी चाची तो बिस्वास ही ना करे पोते पोतियों पर. घर में, पूरे गाँव में और बैंक में घुसते ही सोर मचा देवे है नूं बोले,

- मनीजर साब ध्यान राखियो मेरे खाते से कोई पैसे ना काढ ले हाँ. देख लियो हाँ. पुलिस बुला लूंगी ना तो यहीं बैंक में जान दे दूंगी.
- नहीं जी हम आपके खाते से दूसरे को पैसे क्यूँ देंगे? आपको ही देंगे. शान्ति रखो ज़रा. ये बैंक है लोग काम कर रहे हैं. बहुत शोर मचाती हो आप. ज़रा सरोज बाला के पास ले जाओ इन्हें और पेमेंट दिलवा दो.
- लछमी का खाता लछमी की पेंसन अर तू दूसरे को देगा तो सोर नहीं मचाउंगी? कहाँ है तेरी सरोज बाला? मेरे पांच सौ दिलवा दे बस.
लछमी का हाथ पकड़ कर सरोज बाला के काउंटर पर पहुंचा दिया. लछमी बोली,
- ऐ सरोज मन्ने पांच सौ दे दे.
- पास बुक दो और फॉर्म पर अंगूठा लगाओ तभी तो मिलेंगे पैसे.
- ये ले कापी अर ये ले फारम. बता कहां लगाऊं गूठा?
- अरे ताई हर महीने पेंशन लेने आती हो फिर भी पूछती हो अंगूठा कहाँ लगाऊं?
- तूने मुझे ताई कह दी? अरे जवान हूँ तेरी चाची लागूं कसम से. तूने ताई बना दी. पागल है क्या तू ?
- अच्छा अच्छा चाची शोर ना करो. लो अंगूठा लगाओ यहाँ और यहाँ. ये पकड़ लो पांच सौ और गिन लो.
- गिन लूंगी गिन लूंगी. जवान औरत हूँ अर तैने ताई बता दिया. मैं बूढ़ी लागूं के? हैं? जाके सरपंच ते शिकायत करूँ तेरी अर पुलिस भी बुलाऊँ तेरे लिए. बताओ मन्ने ताई कह दी?
- चाची नोट संभाल लो और घर जाओ.

सारी ब्रांच में लछमी ताई ने सोर मचा दिया के मन्ने ताई क्यूँ कहा. मनीजर साब ने चाय पिला के मुस्किल से लछमी को बिदा किया. अगले महीने फेर लछमी पेंसन लेन आ गई. सीधा मनीजर साब के केबिन में घुस के बोली,
- मनीजर साब ध्यान राखियो मेरे खाते से कोई पैसे ना काढ ले हाँ. देख लियो हाँ. पुलिस बुला लूंगी ना तो यहीं बैंक में जान दे दूंगी.
- ना जी ना किसी और को पैसे नहीं मिलेंगे केवल आप ही को देंगे. जाओ सरोज बाला से ले लो.
- वो वाली जो मन्ने ताई बोले? आज ना छोडूं उसे. जे आज उसने ताई कहा तो बाल ना बचने दूँ एक. भरी जवानी में ताई कह दी. पुलिस बुला लूंगी अर सरपंच भी बुला लुंगी. आज ना छोडूं कतई.

भगवान भली करे तब तक लछमी चाची की आवाज़ सरोज बाला के कान पड़गी और जी नूं बोली,
- अरे सुनो इस लछमी को साब के केबिन में ही ये पांच सौ दे दो. मैं यहाँ काउंटर के नीचे बैठी हूँ. हे भगवान रक्षा करना ये तो पीछे पड़ गई!

भगवान भली करे जी अब सुन लो साब नूं कहूं के जब तक लछमी चाची बैंक के गेट के बाहर ना हुई तब तक सरोज बाला भी काउंटर के निच्चे से ना हटी!

लछमी की गाड़ी