रिटायरमेंट के बाद पेपर पढ़ने का अलग ही मज़ा है. चाय की चुस्की के साथ इत्मीनान से हर पेज, हर विज्ञापन और हर टेंडर भी पढ़ते रहो. पहले सुर्खियाँ पढ़ते थे और अंदर के पेज बिना पढ़े कबाड़ी के पास चले जाते थे. अब अखबार के पूरे पैसे वसूल कर लेते हैं. कैसी कैसी ख़बरें मिलती हैं पढ़ने को. मसलन परसों ही इस खबर पर नज़र पड़ी की ग्यारह साल बाद कंज्यूमर कोर्ट ने फैसला सुनाया. जरा इस खबर पर गौर फरमाइए:
* कुमार साब ने 18 जून 2001 को 300 रुपये प्रति माह का एक रेकरिंग खाता स्टेट बैंक, मेरठ में खोला.
* 29 जनवरी 2005 को कुमार साब को बताया गया की आर डी खाते की किश्तें पूरी हो गयी हैं और उनकी पास-बुक में लिख दिया गया कि उन्हें 11,511 रुपये मिलेंगे.
* कुमार साब ने 7 फरवरी 2005 को बैंक से पेमेंट लेने के लिए लिखित प्रार्थना की.
* 9 फरवरी 2005 को 1509 रूपये की पेनाल्टी काट कर बाकी बैलेंस दे दिया गया. ये पेनाल्टी इसलिए काटी गयी कि उन्होंने समय से किश्तें जमा नहीं की थी. कुमार साब इस बात से सहमत नहीं थे. पर उनकी बात का संतोषजनक जवाब किसी ने नहीं दिया ना ही पेनाल्टी वापिस की.
* उन्होंने 5 जुलाई 2005 को कंज्यूमर कोर्ट में शाखा प्रबंधक के खिलाफ शिकायत दर्ज कर दी.
* ग्यारह साल बाद 5 जुलाई 2016 को कंज्यूमर कोर्ट ने बैंक को आदेश दिया कि कुमार साब को पेनाल्टी के 1509 रुपये वापिस दिए जाएं और उस पर 7 फरवरी 2005 से 9% ब्याज भी दिया जाए.
हिन्दुस्तानी काम काज कैसे चलता है उसका सही नज़ारा इस खबर में है. हमारा फलसफा है - 'सब चलता है' !
इन ग्यारह सालों में 4 - 5 ब्रांच मैनेजर तो बदल गए होंगे. हो सकता है कि कोर्ट को जवाब देने के लिए बैंक ने कोई वकील भी रख लिया हो. इस मुकदमे की रिपोर्ट रीजनल ऑफिस भी जाती होगी. वहां भी 4 - 5 रीजनल मैनेजर बदल गए होंगे. इन ग्यारह सालों में ग्यारह बार इंस्पेक्शन / ऑडिट भी हुए होंगे कुछ इंटरनल और कुछ बाहरी. पर साब किसी ने बिल्ली के गले में घंटी नहीं बाँधी ? अब भी क्या पता इस फैसले के खिलाफ बैंक द्वारा अपील कर दी जाए !
इन ग्यारह सालों में कोर्ट में कई Presiding Officer भी बदले होंगे. फाइल भी बीसियों बार तहखाने से बाहर आई होगी पर हवा खाकर फिर वापिस तहखाने में चली गयी होगी.
इन ग्यारह सालों में कुमार साब के बाल भी शायद सफ़ेद हो गए होंगे. उम्मीद है की जिस काम के लिए खाता खोला था वो काम तो हो ही गया होगा. इसलिए अब पेनाल्टी और उस पर मिले ब्याज से अब आराम से बैठ कर बियर तो पी ही सकते हैं. या फिर चाहें तो चाय की चुस्की ले लें - मुबारक हो कुमार साब !
* कुमार साब ने 18 जून 2001 को 300 रुपये प्रति माह का एक रेकरिंग खाता स्टेट बैंक, मेरठ में खोला.
* 29 जनवरी 2005 को कुमार साब को बताया गया की आर डी खाते की किश्तें पूरी हो गयी हैं और उनकी पास-बुक में लिख दिया गया कि उन्हें 11,511 रुपये मिलेंगे.
* कुमार साब ने 7 फरवरी 2005 को बैंक से पेमेंट लेने के लिए लिखित प्रार्थना की.
* 9 फरवरी 2005 को 1509 रूपये की पेनाल्टी काट कर बाकी बैलेंस दे दिया गया. ये पेनाल्टी इसलिए काटी गयी कि उन्होंने समय से किश्तें जमा नहीं की थी. कुमार साब इस बात से सहमत नहीं थे. पर उनकी बात का संतोषजनक जवाब किसी ने नहीं दिया ना ही पेनाल्टी वापिस की.
* उन्होंने 5 जुलाई 2005 को कंज्यूमर कोर्ट में शाखा प्रबंधक के खिलाफ शिकायत दर्ज कर दी.
* ग्यारह साल बाद 5 जुलाई 2016 को कंज्यूमर कोर्ट ने बैंक को आदेश दिया कि कुमार साब को पेनाल्टी के 1509 रुपये वापिस दिए जाएं और उस पर 7 फरवरी 2005 से 9% ब्याज भी दिया जाए.
हिन्दुस्तानी काम काज कैसे चलता है उसका सही नज़ारा इस खबर में है. हमारा फलसफा है - 'सब चलता है' !
इन ग्यारह सालों में 4 - 5 ब्रांच मैनेजर तो बदल गए होंगे. हो सकता है कि कोर्ट को जवाब देने के लिए बैंक ने कोई वकील भी रख लिया हो. इस मुकदमे की रिपोर्ट रीजनल ऑफिस भी जाती होगी. वहां भी 4 - 5 रीजनल मैनेजर बदल गए होंगे. इन ग्यारह सालों में ग्यारह बार इंस्पेक्शन / ऑडिट भी हुए होंगे कुछ इंटरनल और कुछ बाहरी. पर साब किसी ने बिल्ली के गले में घंटी नहीं बाँधी ? अब भी क्या पता इस फैसले के खिलाफ बैंक द्वारा अपील कर दी जाए !
इन ग्यारह सालों में कोर्ट में कई Presiding Officer भी बदले होंगे. फाइल भी बीसियों बार तहखाने से बाहर आई होगी पर हवा खाकर फिर वापिस तहखाने में चली गयी होगी.
इन ग्यारह सालों में कुमार साब के बाल भी शायद सफ़ेद हो गए होंगे. उम्मीद है की जिस काम के लिए खाता खोला था वो काम तो हो ही गया होगा. इसलिए अब पेनाल्टी और उस पर मिले ब्याज से अब आराम से बैठ कर बियर तो पी ही सकते हैं. या फिर चाहें तो चाय की चुस्की ले लें - मुबारक हो कुमार साब !
चाय की चुस्की |
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https://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/07/blog-post_10.html
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