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Tuesday 12 June 2018

किस्सा एक लॉकर का

सन्डे के बढ़िया नाश्ते के बाद चंद्रा साब ने मन बना लिया की आज अपने खजाने का मुआयना किया जाए. छोटी अलमारी के बड़े लाकर में से सारी पास बुक, फिक्स डिपाजिट की रसीदें, विकास पत्र, शेयर्स वगैरा वगैरा निकाल कर फर्श पर फैला लिए. करीने से एक लाइन में बैंकों की पास बुकें लगाईं, दूसरी लाइन में रसीदें , तीसरी लाइन में शेयर ब्रोकर की पर्चियां वगैरा सजा लीं और आलथी पालथी मार कर बैठ गए. तब तक श्रीमती चंद्रा ने अंदर झांका,
- ओहो लंच तक तो तुम बिज़ी रहोगे. तब तक मैं भी कुसुम दीदी से मिल आती हूँ एक बजे तक आ जाउंगी.
- हाँ हाँ खूब गले मिलो. तुम दोनों का एक ही तो काम है अपने अपने मियाँ की टोपी उछाल कर मज़े लेना हाहा करना.
- लो अब हंसना भी मना है क्या? टोपी के नीचे गंज ही तो बची है. बाय.
- हुंह कहकर चन्द्रा साब ने गंजे सिर पर हाथ फेरा. ज्यादातर बाल गायब थे बस किनारे किनारे एक झालर सजी हुई थी. पर इसी बीच एक पुरानी पास बुक पर नज़र पड़ी जो बिटिया की थी. पास बुक के पन्ने पलटे तो देखा पूरी भी नहीं थी. फिर सोचा कि इसे पूरा करा के बंद ही करा देता हूँ. चलिए हफ्ते दस दिन का काम मिल गया.

सोमवार को चंद्रा साब झुमरी तलैय्या बैंक पहुंचे, पास बुक पूरी कराई और खाता बंद कराने के लिए अर्जी दी. ऑफिसर ने कहा इसमें तो आपका लॉकर का किराया कट रहा है. आप पहले लॉकर इंचार्ज शर्मा जी से मिल लो. शर्मा जी से बात की तो उन्होंने कहा की आप लॉकर भी खाली कर दें तो ज्यादा अच्छा रहेगा. चंद्रा साब बोले,
- हमारा तो कोई लॉकर यहाँ अब नहीं है. एक था जिसकी चाबी वापिस कर दी थी. देखिये ना खाता पंद्रह साल पुराना है बिटिया के साथ जॉइंट खुलवाया था. बिटिया की शादी हुए छे साल हो गए. अब यहाँ रहती भी नहीं इसीलिए तो खाता भी बंद करा रहा हूँ.
- ना न ना बिटिया के नाम 328 नंबर का लॉकर है. उसका रेंट भी इसी खाते से कट रहा है. आप चाबी ढूंढ कर लाइए, शर्मा जी बोले.

चंद्रा जी ने घर छान मारा लाकर की चाबी नहीं मिली. श्रीमती चंद्रा ने कहा,
- मुझे तो याद आता है लॉकर की चाबी वापिस कर दी थी. उस बैंक में लॉकर तो होना नहीं चाहिए. शादी का सामान जब लिया था तब लाकर में रखा था. वो सब ले गई. पता नहीं बैंक वाला क्या कह रहा है ?
बिटिया से फोन पर पूछा तो उसने कहा,
- मेरे पास कोई चाबी वाबी नहीं है. सामान लाये हुए भी छे साल हो गए. अगर खाते में पैसे हैं तो भिजवा देना प्लीज.

चंद्रा साब फिर बैंक में लॉकर इंचार्ज शर्मा जी से मिले और बताया की कोई घर पर कोई चाबी नहीं मिली.
- देखिये चंद्रा साब पिछले दो साल में दो बार लॉकर खुला है और ये रही लाकर नंबर 328 की कंप्यूटर एंट्री.
- मुझे दस्तखत दिखाओ ज़रा इस एंट्री के ?
- अजी चंद्रा साब ये एंट्री कंप्यूटर में ऐसे ही थोड़ी हो जाती हैं. या तो आपकी श्रीमती आयी हैं या बिटिया आई है लाकर खोलने. उनको ले आओ याद आ जाएगा और कन्फर्म भी हो जाएगा.

दस दिन बाद श्रीमती और श्री चंद्रा ने फिर हाजिरी भरी शर्मा जी के दरबार में. श्रीमती चंद्रा ने कहा,
- लॉकर तो शायद यही था पर मैं तो बिटिया की शादी के बाद कभी आई नहीं. हम एक साथ ही सारा सामान ले गए थे. बस.
- हो सकता है की आपकी बिटिया आई हो ? उनको बुला लो एक बार, शर्मा जी बोले.
- नहीं उसको आए तो ज़माना गुज़र गया. आएगी भी नहीं. हमीं लोग जाते हैं मिलने, श्रीमती चंद्रा ने कहा.
- तो हम इस लॉकर को तुड़वा देते हैं जो भी खर्चा होगा आपके खाते से ले लेंगे, शर्मा जी ने कहा.
- अब कोई रास्ता नहीं है तो फिर आप तोड़ दीजिये. और क्या करें हम ? चाबी तो है नहीं हमारे पास और याद भी नहीं की इसमें है क्या ? चंद्रा साब बोले.

दस दिन बाद श्री और श्रीमती चंद्रा के सामने लॉकर तोड़ दिया गया. उसमें से तीन पोटलियाँ निकलीं. श्रीमती चंद्रा ने तत्परता से पोटलियाँ खोलीं और तुरंत घोषणा कर दी,
- ये हमारा सामान नहीं है !
लॉकर इंचार्ज शर्मा जी का चेहरा फक्क हो गया.

अब चीफ मैनेजर के केबिन में सारे इक्कठे हो गए. पानी आया, चाय आई, पर उत्तर नहीं मिला की सामान किसका था. मोटा मोटी अंदाजा लगाया गया कि सामान 15 से 20 लाख का हो सकता है. चंद्रा साब ने सामान लेने से इनकार कर दिया. चीफ साब और शर्मा साब एक दूसरे का मुंह देखने लगे. केबिन में सन्नाटा छा गया. अब शर्मा जी दो साथियों के साथ रिकॉर्ड रूम की तरफ भागे. पुराने कागज़ पत्तर ढूँढने की कारवाई जोरों से चालू हो गई. बाहर हॉल में खुसर-पुसर शुरू हो गई. तरह तरह के सुझाव, नसीहतों, कयास, सस्पेंशन, पुलिस की बातें होने लगीं. किसी तरह साढ़े छे बजे सारे ओरिजिनल कागज़ात मिले तो मामला स्पष्ट हुआ.

चंद्रा साब ने तीन साल पहले लॉकर खाली कर दिया था और चाबी वापिस कर दी थी. पर बैंक द्वारा जो भी कागज़ी कारवाई होती है पूरी नहीं की गई. किराया चंद्रा जी के खाते से लगातार कटता रहा. कुछ समय बाद वही चाबी और लॉकर किन्हीं तनेजा साब को दे दिया गया था. बल्कि उनके खाते से किराया भी नहीं कट रहा था. अब एक हरकारा तनेजा साब को बुलाने के लिए दौड़ाया गया. तनेजा साब आते ही सपरिवार बैंक वालों पर टूट पड़े. शर्मा जी तो घबरा कर वहीँ गिर पड़े. उन्हें पास के क्लिनिक में पहुंचाया गया.

बहरहाल आप सहमत होंगे कि दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है. कुछ देर बाद गुस्सा ठंडा हुआ तो मामला सुलझ गया. लोगों ने हाथ मिलाए और दस बजे अपने अपने घरों की ओर प्रस्थान कर दिया. अगले दिन प्रशाद भी बांटा गया. आपको भी तो मिला होगा ? 

लॉकर बंद 

1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

लिंक - https://jogharshwardhan.blogspot.com/2018/06/blog-post_12.html