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Sunday 10 June 2018

अल्पसंख्यक पेंशनर

अल्पसंख्यक शब्द की चर्चा मीडिया में आए दिन होती रहती है. कानूनी परिभाषा तो ठीक से पता नहीं थी पर इसका व्यक्तिगत अनुभव पढ़ाई के दिनों में ही मिल गया था. बैक-बेंचर होने के कारण क्लास में अल्पसंख्यक थे. इम्तेहान में नंबर भी अल्प-संख्या में ही मिलते थे. फिर पास होने पर इनाम भी अल्प ही मिलता था. बमुश्किल नौकरी लगी पर काम अल्प ही करते रहे. बॉस नाराज़ हो गए और बार बार अल्प-काल में ट्रान्सफर करते रहे. फिर रिटायर होकर पेंशन लगी तो अल्प-संख्या में लगी ! 

* इन्टरनेट में यूँ ही टाइम पास के लिए अल्पसंख्यक के बारे में खोजबीन शुरू की तो पता लगा कि भारत में पहली बार जनगणना 1891 में ब्रिटिश जनगणना आयुक्त द्वारा कराई गई थी. इससे पहले 1856 के बाद कई बार कोशिश की जा चुकी थी पर टुकड़ों टुकड़ों में. फिरंगियों को यहाँ के बहुरंगी धर्म, पंथ, समाज, समुदाय, सम्प्रदाय, अनगिनत बोलियाँ, सैकड़ों भाषाएँ और बेहिसाब जात पात शायद समझ नहीं आ रहे होंगे. शायद उन्हें लगा हो की लिस्ट बना ली जाए और फिर यहाँ के सामाजिक हालात को समझा जाए ताकि राज करना आसान हो जाए. उस वक़्त पेड़ों पर भी निशान लगाए गए और घरेलू पशु भी गिने गए. उन्होंने उस वक़्त पहली बार 'अल्पसंख्यक' या 'minority' शब्द का प्रयोग किया. ये कहा गया कि हिंदुस्तान में सिख, जैन, बौद्ध, मुस्लिम, इसाई कम हैं याने अल्पसंख्यक हैं और इनके मुकाबले हिन्दू यहाँ बहुसंख्यक हैं. कमाल की खोज कर के फिरंगियों ने बटवारा पक्का कर दिया और कटीली झाड़ी बो दी जिसकी चुभन जारी है.

* वैसे फिरंगी शासक वर्ग पूरे शासन काल में गिनती में लाख - डेढ़ लाख ही रहा जबकि यहाँ आबादी करोड़ों में रही. यानि खुद ईसाई अल्पसंख्यक होते हुए बहुसंख्यक जनता पर सैकड़ों साल राज करते रहे. इसी तरह मुग़ल शासक भी ज्यादा नहीं थे अल्पसंख्यक ही थे. वो तो साम, दाम, दंड, भेद से संख्या बढ़ी.

* अंग्रेजों की इस concept को ढोए जा रहे हैं हम. हर जनगणना में हर एक से लिखवा लेते हैं 'तेरा धर्म क्या है" !  1951 में आबादी 36 करोड़ इस प्रकार थी - हिन्दू 84.1%, मुस्लिम 9.8%, सिख 1.89%  ईसाई 2.3% बौद्ध 0.74% थे. आखिरी जनगणना 2011 में आबादी 121 करोड़ इस प्रकार थी - हिन्दू 79.8%, मुस्लिम 14.2%,  इसाई 2.3%, सिक्ख 1.7%,  बौद्ध  0.7%, जैन 0.4% और 'अन्य' में नास्तिक 0.2% भी शामिल हैं. लगता है किसी दिन नास्तिक भी 'अल्पसंख्यक' होने का दावा करने लगेंगे !

* हमारे संविधान में अल्पसंख्यक का जिक्र तो है पर परिभाषा नहीं है. अनुच्छेद 29 का शीर्षक है 'अल्पसंख्यक वर्ग के हितों का संरक्षण' पर बिना परिभाषा के. ये जरूर कहा गया है की भारतीय नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा. इस अधिकार के चलते फिलहाल अल्पसंख्यक दो तरह के हैं - पहला धर्म के आधार पर और दूसरा भाषा के आधार पर.

* अल्पसंख्यक से सम्बन्धी कार्यों की देखरख के लिए 2006 में एक मंत्रालय खुल गया. 2018-19 में इसका बजट 4700 करोड़ है. इस मंत्रालय के अंतर्गत कई विभाग हैं, कई स्कालरशिप स्कीम, लोन स्कीम वगैरा वगैरा भी चल रही हैं. बहुत से अल्पसंख्यक लोगों को फायदा भी हो रहा होगा. सरकारी तंत्र कैसे जनता तक फायदा पहुंचाता है वो आपको पता ही है.

* अब अगर अल्पसंख्यक की परिभाषा गिनती से लें तो सौ में से 51 बहुसंख्यक हुए और 49 अल्पसंख्यक हो गए. अल्पसंख्यक गिनती के हिसाब से देखें तो क्या किसी जिले में देखें या प्रदेश में देखें या पूरे देश में देखें ? मसलन मुस्लिम देश में अल्पसंख्यक हैं पर जम्मू-कश्मीर में बहुसंख्यक याने 68% हैं. सिख देश में अल्पसंख्यक हैं पर पंजाब में बहुसंख्यक अर्थात 61.6% हैं. पूरा देश लें तो हिन्दू बहुसंख्यक हैं पर प्रदेशों को लें तो कहीं कहीं हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाते हैं जैसे - मिज़ोरम में 2.75%, मणिपुर में 41.3% मेघालय में 11.5%.

* 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून पास हुआ. इसमें कहा गया की अल्पसंख्यक समुदाय वो समुदाय है जिसे केन्द्रीय सरकार अधिसूचित करे. पर दूसरी ओर संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 में कहा गया है कि किसी जाति समूह को अनुसूचित जाति या जनजाति में शामिल करने के काम केवल संसद ही करे. इन दोनों बातों में भी विरोधाभास लगता है. सीधी बात को जलेबी बनाने में नेता और लालफीताशाह दोनों माहिर हैं.

* 1961 की जनगणना में जनता ने 1652 मातृभाषाओं का पंजीकरण करवाया जिसे बाद में काट छांट कर 1100 माना गया. सरकार ने फिर रूल बनाया की कम से कम दस हज़ार लोग बोलें तो भाषा मानी जाएगी. 1971 की जनगणना में 108 भाषाएँ ही रजिस्टर हुईं. भाषाविद गणेश डेवी के अनुसार पीपुल्स लिंगविस्टिक सर्वे में 1100 में से 780 भाषाएँ ढूंढ ली गईं पर बाकी लुप्त हो गईं. भाषा के लुप्त होने के साथ साथ उससे जुड़ा खेती और पर्यावरण का ज्ञान भी लुप्त हो गया. पर बढ़ते शहरीकरण, कंप्यूटर और मोबाइल के आने के बाद और भाषाएँ भी गायब हो सकती हैं. इसका मतलब है कि भाषाई अल्पसंख्यक तो घटते ही जाएंगे. क्या पता पचास साल बाद क्या होगा ?

* पर धार्मिक अल्पसंख्यक के पंगों का कोई अंत नहीं नज़र आता. कुल मिला के धार्मिक अल्प और बहु संख्यकों की खिचड़ी स्वाद भी है और बेस्वाद भी. बहरहाल बहुत खोज के बाद भी आर्थिक आधार पर अल्पसंख्यक / बहुसंख्यक का कहीं जिक्र नहीं मिला. वर्ना तो देश में हमारी तरह पेंशनर अल्पसंख्यक हैं. उस पर तुर्रा ये कि पेंशन पर भी आयकर भिड़े रहे हैं. हमारे जैसे अल्पसंख्यक वर्ग पर ज़्यादती हो रही है. कम्बख्त बीयर के पैसे निकालने मुश्किल हो रहे हैं. अल्पसंख्यक समझ कर हमारा भी कुछ उद्धार होना चाहिए !

संख्या का खेल 



1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2018/06/blog-post_10.html