अस्पताल दाखिल हुए रामनाथ जी को दो दिन ही हुए थे. डॉक्टरों का कहना था की चिंता की कोई बात नहीं है पर रामनाथ जी का स्वर्गवास हो गया. सत्तर साल के थे. बड़े बुज़ुर्ग कह गए हैं की ऊपर यमराज के पास उमर से नहीं बल्कि साँसों की गिनती से हिसाब रखा जाता है. गिनती पूरी हुई और खेल ख़तम.
रामनाथ जी अपने पीछे पत्नी, दो बेटे और दो बेटियां छोड़ गए. चारों बच्चों के आगे पांच बच्चे भी हैं याने भरा पूरा परिवार है. बड़ी बेटी सुधा बैंगलोर से अपनी बेटी और पति को छोड़ कर आई थी. पिताजी का स्वर्गवास का समाचार सुन कर वे दोनों भी आ गए थे. अब आने जाने की हवाई यात्रा का खर्चा जो है सो है पर वापिस जाने की जल्दी थी. छुट्टी नहीं थी और तेरहवीं तक तो रुकने का सवाल ही नहीं था. सुधा को अम्मा से कहना अटपटा लग रहा था. छोटी के पास पहुंची और हाल बताया.
छोटी अपने बेटे और पति के साथ दिल्ली से कार में आई थी बोली,
- हाँ दी ये भी कह रहे थे की ज्यादा देर रुक नहीं पाएंगे. आजकल शेयर बाज़ार चढ़ा हुआ है तो इन्हें फुर्सत नहीं है. अम्मा से बात करती हूँ कि चौथा कर लें हम सभी निकल लेंगे. अगर तेरहवीं के लिए अम्मा ने कहा तो ठीक है मैं आ जाउंगी तुम निकल जाना. अमरीका से तो भइय्या आएगा नहीं और मनीष भी रुकने वाला नहीं है. चलो ठीक है अम्मा से बात करती हूँ. अम्मा कहाँ रहना चाहेंगी बाद में वो भी बात करनी है.
अमरीकी भाई मम्मी से फोन पर रोज़ हाल पूछ लेता था. बोला,
- माँ इच्छा बहुत है आने की पर मजबूरी भी है. देखो ना सुनीता की नौकरी छुड़वाई और होम लोन की किश्त यहाँ से भेजता हूँ क्या करूँ? अब अगर इंडिया आया तो ये लोग वापिस नहीं घुसने देंगे और नई नौकरी भी मिलनी मुश्किल है. और हाँ मैं तीन लाख भेज रहा हूँ आपके खाते में किसी के साथ जाकर निकलवा लेना.
छोटे ने पहुँच कर हालात का जायज़ा लिया और फिर दोनों बहनों से दरख्वास्त की कि तेरहवीं तक रुकना मुश्किल है. अंतिम संस्कार के बाद वह निकल जाएगा. फिर भी अगर बहुत ज़रूरी हुआ तो तेरहवीं को किसी ना किसी तरह से पहुँच जाएगा.
इस तरह की बातें चलते चलते पड़ोसियों तक भी पहुँच गईं. रस्तोगी साब पधारे और कहने लगे,
- आजकल बच्चे नौकरियों में बहुत व्यस्त रहते हैं जी. नहीं रुक सकते तो कोई बात नहीं हम लोग तो यहीं हैं आपके साथ. जैसा भी आगे होगा संभाल लेंगे भाभी जी. हमारे समय और अब के समय की नौकरियों में बहुत अंतर आ गया है. समय के साथ हम को भी बदलना होगा. अब जो पुरानी रीत और रस्में थी ऐसे ही बदलेंगी. कुछ अब बदलेंगी कुछ ये बच्चे बदल देंगे. हम आपके साथ हैं जैसे कहोगे इंतज़ाम कर देंगे.
श्रीमती रामनाथ को लग रहा था की अचानक समय का प्रवाह तेज़ हो गया है जिसमें अब डूबी की तब डूबी. बेटे बेटियों के सवाल जवाब पराए से लगने लगे. मान शांत भी था और अशांत भी. कभी आंसू आ जाते कभी सूख जाते. इस बीच कब अंतिम संस्कार हो गया, चौथा, तेरहवीं, पूजा, हवन भी हो गया पता ही नहीं लगा. हरिद्वार में गंगा स्नान हो गया और उसके बाद पेंशन का काम भी करवा दिया गया. अब मिसेज़ रामनाथ घर में अकेली रह गईं और कुछ दिन अकेले रहना चाहती भी थीं. उन्हें अब घर शांत नहीं सुनसान और खाली खाली लगने लगा. रह रह के ख़याल आने लगा की यहीं रहूँ या किसी बेटा बेटी के साथ? मिसेज़ रामनाथ को लगा की ज़िन्दगी में इससे मुश्किल सवाल कोई नहीं है.
रामनाथ जी अपने पीछे पत्नी, दो बेटे और दो बेटियां छोड़ गए. चारों बच्चों के आगे पांच बच्चे भी हैं याने भरा पूरा परिवार है. बड़ी बेटी सुधा बैंगलोर से अपनी बेटी और पति को छोड़ कर आई थी. पिताजी का स्वर्गवास का समाचार सुन कर वे दोनों भी आ गए थे. अब आने जाने की हवाई यात्रा का खर्चा जो है सो है पर वापिस जाने की जल्दी थी. छुट्टी नहीं थी और तेरहवीं तक तो रुकने का सवाल ही नहीं था. सुधा को अम्मा से कहना अटपटा लग रहा था. छोटी के पास पहुंची और हाल बताया.
छोटी अपने बेटे और पति के साथ दिल्ली से कार में आई थी बोली,
- हाँ दी ये भी कह रहे थे की ज्यादा देर रुक नहीं पाएंगे. आजकल शेयर बाज़ार चढ़ा हुआ है तो इन्हें फुर्सत नहीं है. अम्मा से बात करती हूँ कि चौथा कर लें हम सभी निकल लेंगे. अगर तेरहवीं के लिए अम्मा ने कहा तो ठीक है मैं आ जाउंगी तुम निकल जाना. अमरीका से तो भइय्या आएगा नहीं और मनीष भी रुकने वाला नहीं है. चलो ठीक है अम्मा से बात करती हूँ. अम्मा कहाँ रहना चाहेंगी बाद में वो भी बात करनी है.
अमरीकी भाई मम्मी से फोन पर रोज़ हाल पूछ लेता था. बोला,
- माँ इच्छा बहुत है आने की पर मजबूरी भी है. देखो ना सुनीता की नौकरी छुड़वाई और होम लोन की किश्त यहाँ से भेजता हूँ क्या करूँ? अब अगर इंडिया आया तो ये लोग वापिस नहीं घुसने देंगे और नई नौकरी भी मिलनी मुश्किल है. और हाँ मैं तीन लाख भेज रहा हूँ आपके खाते में किसी के साथ जाकर निकलवा लेना.
छोटे ने पहुँच कर हालात का जायज़ा लिया और फिर दोनों बहनों से दरख्वास्त की कि तेरहवीं तक रुकना मुश्किल है. अंतिम संस्कार के बाद वह निकल जाएगा. फिर भी अगर बहुत ज़रूरी हुआ तो तेरहवीं को किसी ना किसी तरह से पहुँच जाएगा.
इस तरह की बातें चलते चलते पड़ोसियों तक भी पहुँच गईं. रस्तोगी साब पधारे और कहने लगे,
- आजकल बच्चे नौकरियों में बहुत व्यस्त रहते हैं जी. नहीं रुक सकते तो कोई बात नहीं हम लोग तो यहीं हैं आपके साथ. जैसा भी आगे होगा संभाल लेंगे भाभी जी. हमारे समय और अब के समय की नौकरियों में बहुत अंतर आ गया है. समय के साथ हम को भी बदलना होगा. अब जो पुरानी रीत और रस्में थी ऐसे ही बदलेंगी. कुछ अब बदलेंगी कुछ ये बच्चे बदल देंगे. हम आपके साथ हैं जैसे कहोगे इंतज़ाम कर देंगे.
श्रीमती रामनाथ को लग रहा था की अचानक समय का प्रवाह तेज़ हो गया है जिसमें अब डूबी की तब डूबी. बेटे बेटियों के सवाल जवाब पराए से लगने लगे. मान शांत भी था और अशांत भी. कभी आंसू आ जाते कभी सूख जाते. इस बीच कब अंतिम संस्कार हो गया, चौथा, तेरहवीं, पूजा, हवन भी हो गया पता ही नहीं लगा. हरिद्वार में गंगा स्नान हो गया और उसके बाद पेंशन का काम भी करवा दिया गया. अब मिसेज़ रामनाथ घर में अकेली रह गईं और कुछ दिन अकेले रहना चाहती भी थीं. उन्हें अब घर शांत नहीं सुनसान और खाली खाली लगने लगा. रह रह के ख़याल आने लगा की यहीं रहूँ या किसी बेटा बेटी के साथ? मिसेज़ रामनाथ को लगा की ज़िन्दगी में इससे मुश्किल सवाल कोई नहीं है.
कहीं हरियाली कहीं पतझड़ |
2 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/07/blog-post_20.html
Harshji appka lekhan ekdam yatharth par aadmi ko le atta hai, aise lagta hai ye ghatna apke same ho rahi hai aur aap uske drishta hain. Dhanyawad. God bless you and your family members.
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