सावन का महीना याने 10 जुलाई आते ही कांवड़ यात्रा शुरू हो गई. अखबारी अनुमान के अनुसार इस यात्रा में एक करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु हर की पौड़ी, हरिद्वार में गंगा जल लेने पहुंचते हैं. राजस्थान, हरयाणा और उत्तर प्रदेश के दूर दराज जिलों से भी भारी संख्या में श्रद्धालु कांवड़ लेकर हरिद्वार की ओर चलते हैं. ये कॉंवड़िये हर की पौड़ी से गंगा जल लेकर वापिस घर के या गाँव के मंदिर में शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं.
वैसे तो यात्रा का एक प्रमुख पड़ाव है पूरा महादेव का मंदिर जहाँ कांवड़िये शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं. यह मंदिर मेरठ से करीब 25 किमी दूर बागपत जिले के बालैनी क्षेत्र में है. कांवड़ यात्रा से जुड़ी मान्यता संक्षेप में इस प्रकार है :
मंदिर के आसपास का इलाका पुराने समय में कजरी वन कहलाता था. इस वन में ऋषि जमदाग्नि अपनी पत्नी रेणुका तथा परिवार के साथ रहते थे. एक दिन ऋषि की अनुपस्थिति में राजा सहस्त्रबाहू शिकार पर आये और रेणुका को उठवा कर ले गए. पर सहस्त्रबाहू की रानी ने - जो रेणुका की बहन थी, मौक़ा पाते ही रेणुका को महल से निकाल कर वापिस आश्रम भिजवा दिया. परन्तु जमदाग्नि इस बात पर क्रोधित हो गए और रेणुका को आश्रम से निकाल दिया. पुत्रों को आदेश दिया की रेणुका का सर धड़ से अलग कर दिया जाए. तीन पुत्रों ने मना कर दिया जिस पर ऋषि जमदाग्नि ने उन्हें श्राप देकर पत्थर बना दिया. चौथे ने जिसका नाम राम था, आज्ञा मान ली और माँ का वध कर दिया.
परन्तु राम को इस कर्म से बड़ी पीड़ा और ग्लानि हुई. प्रायश्चित करने के लिए राम ने हिंडन नदी के किनारे शिवलिंग की स्थापना की और तपस्या शुरू कर दी. घोर तपस्या के बाद भगवान शिव प्रकट हुए. राम ने माँ को जीवित करने का आग्रह किया जो पूरा हुआ. भगवान ने दुष्टों का नाश करने के लिया एक परशु या फरसा प्रदान किया. इस फरसे से राम ने राजा सहस्त्रबाहू और अन्य दुष्टों का सफाया कर दिया और उनका नाम परशुराम पड़ गया. माना जाता है की परशुराम ने कांवड़ में गंगा जल लाकर सावन के प्रथम सोमवार को शिवलिंग का अभिषेक किया जिससे कांवड़ परम्परा शुरू हुई.
कांवड़ यात्रा 2017 के कुछ फोटो प्रस्तुत हैं जो ज्यादातर मेरठ के आसपास राष्ट्रिय राजमार्ग NH 58 पर लिए गए हैं :
वैसे तो यात्रा का एक प्रमुख पड़ाव है पूरा महादेव का मंदिर जहाँ कांवड़िये शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं. यह मंदिर मेरठ से करीब 25 किमी दूर बागपत जिले के बालैनी क्षेत्र में है. कांवड़ यात्रा से जुड़ी मान्यता संक्षेप में इस प्रकार है :
मंदिर के आसपास का इलाका पुराने समय में कजरी वन कहलाता था. इस वन में ऋषि जमदाग्नि अपनी पत्नी रेणुका तथा परिवार के साथ रहते थे. एक दिन ऋषि की अनुपस्थिति में राजा सहस्त्रबाहू शिकार पर आये और रेणुका को उठवा कर ले गए. पर सहस्त्रबाहू की रानी ने - जो रेणुका की बहन थी, मौक़ा पाते ही रेणुका को महल से निकाल कर वापिस आश्रम भिजवा दिया. परन्तु जमदाग्नि इस बात पर क्रोधित हो गए और रेणुका को आश्रम से निकाल दिया. पुत्रों को आदेश दिया की रेणुका का सर धड़ से अलग कर दिया जाए. तीन पुत्रों ने मना कर दिया जिस पर ऋषि जमदाग्नि ने उन्हें श्राप देकर पत्थर बना दिया. चौथे ने जिसका नाम राम था, आज्ञा मान ली और माँ का वध कर दिया.
परन्तु राम को इस कर्म से बड़ी पीड़ा और ग्लानि हुई. प्रायश्चित करने के लिए राम ने हिंडन नदी के किनारे शिवलिंग की स्थापना की और तपस्या शुरू कर दी. घोर तपस्या के बाद भगवान शिव प्रकट हुए. राम ने माँ को जीवित करने का आग्रह किया जो पूरा हुआ. भगवान ने दुष्टों का नाश करने के लिया एक परशु या फरसा प्रदान किया. इस फरसे से राम ने राजा सहस्त्रबाहू और अन्य दुष्टों का सफाया कर दिया और उनका नाम परशुराम पड़ गया. माना जाता है की परशुराम ने कांवड़ में गंगा जल लाकर सावन के प्रथम सोमवार को शिवलिंग का अभिषेक किया जिससे कांवड़ परम्परा शुरू हुई.
कांवड़ यात्रा 2017 के कुछ फोटो प्रस्तुत हैं जो ज्यादातर मेरठ के आसपास राष्ट्रिय राजमार्ग NH 58 पर लिए गए हैं :
1. कांवड़ की एक झांकी |
2. कांवड़ में सजे हैं मटके और और डमरू |
3. विश्राम |
4. बड़ी कांवड़ जिसे 8-10 कांवड़ियों की टोली लेकर चलती है |
5. कन्धों पर उठा कर लेजाने वाली कांवड़ |
6. महिलाओं की संख्या भी बढती जा रही है |
7. महिला कांवड़ को आम तौर पर भोली और पुरुष कांवड़ को भोला कहते हैं |
8. डाक कांवड़ |
9. आस्था के बल पर |
10. ये परिवार शाहदरा दिल्ली से हरिद्वार पैदल यात्रा पर निकला है |
11. पैरों में अक्सर छाले पड़ जाते हैं |
12. यात्रा के लिए साइकिल तैयार है |
13. ये लोग यात्रा स्केट्स पर कर रहे हैं |
14. उमस भरी गर्मी में बोझ ले कर चलना आसान नहीं है |
15. बिटिया भी यात्रा में शामिल |
16. शहीदों के नाम की कांवड़ 51 फुटे तिरंगे के साथ |
17. एक मित्र ने ये फोटो WhatsApp ग्रुप में भेजी थी |
1 comment:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/07/2017.html
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