भारतीय धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं में संख्याओं का विशेष स्थान रहा है। इनमें चौरासी, चौरासी हजार और चौरासी लाख जैसी संख्याएं विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। ये संख्याएँ केवल गणनात्मक महत्व नहीं रखतीं, बल्कि दार्शनिक अर्थ भी व्यक्त करती हैं।
बौद्ध धर्म में 84,000 का प्रयोग बुद्ध की शिक्षाओं की समग्रता और सम्राट अशोक के धर्म प्रचार को दर्शाने के लिए किया गया है, जबकि हिंदू और जैन धर्म में 84,00,000 संसार के बंधन और मोक्ष की दुर्लभता का प्रतीक है।
बौद्ध धर्म में 84,000 का महत्व
बौद्ध ग्रंथों के अनुसार बुद्ध ने 84,000 धम्मखंड (Dhammakkhandha) की शिक्षाएँ दीं। यह संख्या मानवीय कष्टों के समाधान और विभिन्न मानसिक स्थितियों के लिए बुद्ध के शिक्षण की व्यापकता को दर्शाती है। यह कोई साधारण गिनती नहीं है बल्कि असंख्य शिक्षाओं का प्रतीक मानी जाती है।
सम्राट अशोक के 84,000 स्तूप: बौद्ध इतिहास के प्रसिद्ध शासक सम्राट अशोक ने बुद्ध के अवशेषों को संरक्षित करने के लिए 84,000 स्तूप बनवाए। यह कार्य उनकी धर्म के प्रति समर्पण और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार की इच्छा को दर्शाता है।
राजसी ऐश्वर्य का प्रतीक: बौद्ध ग्रंथों (जैसे दीघ निकाय ) में राजा महासुदर्शन का वर्णन मिलता है, जिसके पास 84,000 हाथी, 84,000 रथ और 84,000 घोड़े थे। यह संख्या अपार संपदा और शासक की शक्ति का प्रतीक है, न कि वास्तविक गिनती प्रतीत होती है।
प्रतीकात्मक अर्थ: 84 को 7 × 12 = 84 के रूप में देखा जाता है, जहाँ सप्ताह के दिनों के लिए 7 ( या शायद 7 लोक - जैसे स्वर्ग लोक , पाताल लोक आदि से सम्बंधित हो। ये सात लोक मुख्य सूत्रों में नहीं हैं शायद बाद में जोड़े गए हैं ) और महीनों के लिए 12 ( या फिर राशियों के लिए 12 ) का प्रतीकात्मक प्रयोग किया गया है। इस प्रकार अंक 84 पूर्ण चक्र को या पूर्णता को दर्शाता है।
हिंदू और जैन परंपरा में 84,00,000 (चौरासी लाख) का महत्व
84 लाख योनियाँ: हिंदू और जैन खगोल शास्त्र (Cosmology) के अनुसार 84,00,000 (चौरासी लाख) योनियाँ होती हैं, अर्थात् जीवात्मा को मोक्ष से पहले इन सभी योनियों में से गुजरना पड़ता है।मनुष्य जन्म इन सभी योनियों के बाद मिलता है और इसीलिए इसे सबसे दुर्लभ और मोक्ष प्राप्ति का सुनहरा अवसर माना जाता है।
योनियों का विभाजन: पद्म पुराण ( चौथी से पंद्रहवीं शताब्दी के बीच रचित ) के अनुसार इन 84 लाख योनियों का विभाजन इस प्रकार है:
9,00,000 जल जीव (जल में रहने वाले प्राणी)
20,00,000 वनस्पति जगत (पेड़-पौधे)
11,00,000 कीट-पतंगे
10,00,000 पक्षी
30,00,000 भूमि पर रहने वाले प्राणी
4,00,000 मानव योनियाँ
9,00,000 जल जीव (जल में रहने वाले प्राणी)
20,00,000 वनस्पति जगत (पेड़-पौधे)
11,00,000 कीट-पतंगे
10,00,000 पक्षी
30,00,000 भूमि पर रहने वाले प्राणी
4,00,000 मानव योनियाँ
स्कंध पुराण ( छठी से आठवीं शताब्दी में रचित ) 3.2.8.26-29 में भी चौरासी लाख योनियों का उल्लेख है।
जैन धर्म में संख्या: जैन धर्म में भी 84 लाख योनियों की अवधारणा है और माना जाता है कि जीवात्मा को मोक्ष तक पहुँचने के लिए इन सभी चौरासी लाख योनियों में से गुजरना पड़ता है। इसीलिए मनुष्य जन्म को बहुमूल्य माना जाता है और अच्छे कर्म करने पर जोर दिया जाता है ताकि मोक्ष प्राप्त हो सके।
84,000 और 84,00,000 की तुलना और साझा महत्व
ऊपर लिखित दोनों ही संख्याओं में 84 एक आधार संख्या है जो पूर्णता और पूर्ण-चक्र का प्रतीक है। बौद्ध धर्म में इसे 1,000 से गुणा किया गया है जबकि हिंदू/जैन धर्म में 1,00,000 से। यह गुणन दर्शाता है कि बौद्ध धर्म में मौजूदा जीवन की पूर्णता पर जोर है जबकि हिंदू/जैन धर्म में पुनर्जन्म के चक्र की विशालता पर। इस तरह बौद्ध धर्म: 84,000 बुद्ध की शिक्षाओं की सम्पूर्णता और अशोक के धर्म प्रचार का प्रतीक है और हिंदू/जैन धर्म: 84,00,000 संसार के बंधन और मोक्ष की दुर्लभता का प्रतीक है।
बौद्ध और हिंदू/जैन परंपराओं में 84 का प्रतीकात्मक उपयोग
पहलू बौद्ध धर्म हिंदू/जैन धर्म मूल संख्या 84,000 84,00,000 प्रतीकवाद शिक्षाओं की पूर्णता, राजसी ऐश्वर्य योनियों का चक्र, संसार का बंधन उदाहरण धम्मखंड, अशोक के स्तूप 84 लाख योनियाँ, ( पद्म पुराण ) दार्शनिक अर्थ मौजूदा जीवन में धर्म की पूर्णता योनि चक्र के बाद मोक्ष की प्राप्ति
पहलू | बौद्ध धर्म | हिंदू/जैन धर्म |
---|---|---|
मूल संख्या | 84,000 | 84,00,000 |
प्रतीकवाद | शिक्षाओं की पूर्णता, राजसी ऐश्वर्य | योनियों का चक्र, संसार का बंधन |
उदाहरण | धम्मखंड, अशोक के स्तूप | 84 लाख योनियाँ, ( पद्म पुराण ) |
दार्शनिक अर्थ | मौजूदा जीवन में धर्म की पूर्णता | योनि चक्र के बाद मोक्ष की प्राप्ति |
अतिरिक्त रोचक तथ्य और सामान्य प्रश्न
बौद्ध धर्म में 84,000 से जुड़े अन्य उदाहरण:
84 महासिद्ध: वज्रयान बौद्ध धर्म में 84 महासिद्धों (सिद्धियाँ प्राप्त योगियों) की मान्यता है।
84,000 मंदिर: तिब्बती बौद्ध धर्म में 84,000 मंदिरों का उल्लेख मिलता है जो बुद्ध के शरीर के 84,000 अणुओं के प्रतीक हैं।
मन के 84,000 विकार या कांटे: कुछ Zen बौद्ध ग्रंथों में मन के 84,000 हुक ( विकार या कांटे ) का उल्लेख मिलता है जो मन की जटिलताओं को दर्शाते हैं।
84 महासिद्ध: वज्रयान बौद्ध धर्म में 84 महासिद्धों (सिद्धियाँ प्राप्त योगियों) की मान्यता है।
84,000 मंदिर: तिब्बती बौद्ध धर्म में 84,000 मंदिरों का उल्लेख मिलता है जो बुद्ध के शरीर के 84,000 अणुओं के प्रतीक हैं।
मन के 84,000 विकार या कांटे: कुछ Zen बौद्ध ग्रंथों में मन के 84,000 हुक ( विकार या कांटे ) का उल्लेख मिलता है जो मन की जटिलताओं को दर्शाते हैं।
खगोलीय संबंध:
कुछ विद्वानों का मानना है कि 84 का आंकड़ा खगोलीय चक्रों से सम्बंधित है। उदाहरण के लिए:
वृहस्पति (Jupiter) और शनि (Saturn) का महायोग लगभग 84 वर्ष में एक बार होता है।
यूरेनस (Uranus या अरुण ग्रह) की सूर्य परिक्रमा लगभग 84 वर्ष में पूरी होती है (हालाँकि प्राचीन भारत में यूरेनस की जानकारी नहीं थी )।
वृहस्पति (Jupiter) और शनि (Saturn) का महायोग लगभग 84 वर्ष में एक बार होता है।
यूरेनस (Uranus या अरुण ग्रह) की सूर्य परिक्रमा लगभग 84 वर्ष में पूरी होती है (हालाँकि प्राचीन भारत में यूरेनस की जानकारी नहीं थी )।
ऐतिहासिक विकास:
बौद्ध धर्म में 84,000 का उल्लेख अंगुत्तर निकाय और अशोकावदान (दूसरी-तीसरी शताब्दी) में मिलता है।
हिंदू धर्म में 84 लाख योनियों का उल्लेख पद्म पुराण और स्कंध पुराण में मिलता है जो बाद के ग्रंथ हैं।
बौद्ध धर्म में 84,000 का उल्लेख अंगुत्तर निकाय और अशोकावदान (दूसरी-तीसरी शताब्दी) में मिलता है।
हिंदू धर्म में 84 लाख योनियों का उल्लेख पद्म पुराण और स्कंध पुराण में मिलता है जो बाद के ग्रंथ हैं।
सामान्य प्रश्न:
क्या वास्तव में 84,000 बुद्ध की शिक्षाएँ हैं?
नहीं, यह संख्या प्रतीकात्मक है। वास्तव में बौद्ध ग्रंथों में हज़ारों सूत्र हैं, लेकिन 84,000 का आंकड़ा बुध्द के उपदेशों की पूर्णता को दर्शाता है।
क्या अशोक ने वास्तव में 84,000 स्तूप बनवाए?
इतिहासकारों का मानना है कि अशोक ने बहुत से स्तूप बनवाए लेकिन 84,000 की संख्या उन की दानशीलता की विशालता को दर्शाने के लिए प्रयुक्त हुई है।
चौरासी लाख योनियों में मनुष्य योनि क्यों सबसे महत्वपूर्ण है?
क्योंकि मनुष्य योनि में ही आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष प्राप्ति की संभावना होती है जिसके लिए वह प्रयास कर सकता है। अन्य योनियों में जीव केवल सुख-दुख में लिप्त रहता है भव-चक्र से मुक्त नहीं होता है।
क्या वास्तव में 84,000 बुद्ध की शिक्षाएँ हैं?
नहीं, यह संख्या प्रतीकात्मक है। वास्तव में बौद्ध ग्रंथों में हज़ारों सूत्र हैं, लेकिन 84,000 का आंकड़ा बुध्द के उपदेशों की पूर्णता को दर्शाता है।
क्या अशोक ने वास्तव में 84,000 स्तूप बनवाए?
इतिहासकारों का मानना है कि अशोक ने बहुत से स्तूप बनवाए लेकिन 84,000 की संख्या उन की दानशीलता की विशालता को दर्शाने के लिए प्रयुक्त हुई है।
चौरासी लाख योनियों में मनुष्य योनि क्यों सबसे महत्वपूर्ण है?
क्योंकि मनुष्य योनि में ही आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष प्राप्ति की संभावना होती है जिसके लिए वह प्रयास कर सकता है। अन्य योनियों में जीव केवल सुख-दुख में लिप्त रहता है भव-चक्र से मुक्त नहीं होता है।
निष्कर्ष
भारतीय धर्मों और दर्शन में 84,000 और 84,00,000 जैसी संख्याएँ मात्र गिनती नहीं हैं बल्कि दार्शनिक गहनता को प्रकट करती हैं। बौद्ध धर्म में यह संख्या धर्म की समग्रता और शाश्वत सत्य का प्रतीक है तो हिंदू/जैन धर्म में संसार के चक्र और मोक्ष की दुर्लभता का। इन संख्याओं के पीछे छिपा प्रतीकात्मक महत्व भारतीय चिंतन की गहराई और सूक्ष्मता को दर्शाता है।
आज भी ये संख्याएँ धार्मिक क्रिया कलाप और सांस्कृतिक परंपराओं में जीवित हैं और हमें हमारे पूर्वजों की बुद्धिमत्ता की याद दिलाती हैं। इन्हें समझना भारतीय दर्शन की गहन समझ प्रदान करता है।
संदर्भ
André Bareau, Recherches sur la biographie du Buddha dans les Sūtrapiṭaka et les Vinayapiṭaka anciens (Paris: École Française d’Extrême-Orient, 1963), 246–248.
Étienne Lamotte, Histoire du Bouddhisme Indien: des origines à l’ère Śaka (Louvain-la-Neuve: Institut Orientaliste, 1958), 613–615.
Digha Nikaya (DN 17), trans. Rahul Sankrityayan (New Delhi: Samyak Prakashan, 2022).
Padma Purana, Uttara-khaṇḍa 1.43–45.
Tattvartha Sutra 2.33 with Umasvati’s commentary.
[ NOTE: THIS ARTICLE IS A MODIFIED/SIMPLIFIED PART OF ONGOING RESEARCH WORK ]
André Bareau, Recherches sur la biographie du Buddha dans les Sūtrapiṭaka et les Vinayapiṭaka anciens (Paris: École Française d’Extrême-Orient, 1963), 246–248.
Étienne Lamotte, Histoire du Bouddhisme Indien: des origines à l’ère Śaka (Louvain-la-Neuve: Institut Orientaliste, 1958), 613–615.
Digha Nikaya (DN 17), trans. Rahul Sankrityayan (New Delhi: Samyak Prakashan, 2022).
Padma Purana, Uttara-khaṇḍa 1.43–45.
Tattvartha Sutra 2.33 with Umasvati’s commentary.
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