प्राचीन काल से ही धार्मिक, नैतिक और दर्शन शास्त्र के विचारकों का ध्यान इस सवाल पर गया है कि आत्मा क्या है? मृत्यु के बाद जीव का क्या होता है? क्या उसका पुनर्जन्म होता है? या नहीं होता? इसका जवाब शायद धार्मिक मान्यता, श्रद्धा और विश्वास में ही है विज्ञान में अभी तक तो नहीं है.
दुनिया के लगभग सभी धर्मों में आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म आदि का किसी न किसी रूप में जिक्र है. इन विषयों पर भारत के विभिन्न प्राचीन धर्म ग्रन्थ बहुत समृद्ध हैं. पुनर्जन्म, पुनुरुत्थान और अवतार जैसे शब्दों का प्रयोग सर्व प्रथम भारतीय दर्शन में ही हुआ है. लगभग सभी धर्म ग्रन्थ संस्कृत में हैं और बौद्ध त्रिपिटक पाली भाषा में है. दोनों भाषाओँ में इन शब्दों की परिभाषाएँ और अर्थ इस प्रकार हैं :-
पुनर्जन्म : संस्कृत में 'पुनर्जन्म' का मतलब है: पुनः+भव है. भव के अर्थ हैं जन्म, जाति, सतत, संसार, आप्ति(obtaining ), प्राप्ति( acquisition ). पाली भाषा में पुनर्जन्म है: पुना+भव और अर्थ है संसार, होना, अस्तित्व( existence, to be ). अंग्रेजी में पुनर्जन्म कहलाता है- rebirth, revival, spiritual regeneration, a new or second birth. पुनर्जन्म का अर्थ इसी शरीर में जन्म होना नहीं है बल्कि किसी दूसरे शरीर या किसी दूसरे रूप में पैदा होना है.
पुनरुत्थान : का अर्थ है पुनः उठना, जी उठना या पतन के बाद उठने की क्रिया. अंग्रेजी में इसे Resurrection कहा जाता है. ये शब्द ख़ास तौर से ईसा मसीह के लिए इस्तेमाल होता है. मान्यता है कि जब ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया तो कुछ समय बाद उनका देहांत हो गया. फिर उन्हें दफना दिया गया. तीन दिन बाद वे जीवित हो उठे जिसे पुनरुत्थान या Resurrection कहा जाता है. हालांकि इसे शारीरिक या भौतिक घटना न मान कर आध्यात्मिक घटना कहा गया है.
एक प्राचीन कथा है की सावित्री अपने पति सत्यवान से बहुत प्रेम करती थी. उसे बताया गया था की सत्यवान की आयु केवल एक वर्ष बची है. समय पूरा होने पर यमराज सत्यवान को लेने आये तो सावित्री ने ले जाने नहीं दिया. सावित्री के तप के कारण यमराज ने सत्यवान के मृत शरीर को पुनर्जीवित कर दिया अर्थात उसी शरीर में पुनरुत्थान हो गया. पुनरुत्थान या पुनर्जीवन का अर्थ उसी मृत शरीर में जीवित हो उठना है.
अवतार : अवतार या अवतरण संस्कृत का शब्द है जिसका मुख्य अर्थ है उतरना. भारतीय धार्मिक साहित्य में इसका अर्थ भगवान का अवतरण है. जब जब पृथ्वी पर संकट बढ़ जाता है तब तब भगवान का अवतरण होता है. अंग्रेजी में इसे avtar, reincarnation, incarnation, advent, personification, embodiment भी कहते हैं.
इन तीन शब्दों का प्रयोग मुख्य धर्मों में इस प्रकार है:-
हिन्दू धर्म
जन्म, मरण और पुनर्जन्म का एक चक्र है जो कार्य-कारण से जुड़ा हुआ है. हितकर किये गए कार्य हितकर प्रभाव लाते है और हानिकारक कार्यों का प्रभाव हानिकारक ही होता है. इन क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं की श्रृंखला बनती जाती है और आजीवन चलती रहती है. यह प्रक्रिया केवल भौतिक संसार में ही नहीं बल्कि हमारे विचारों, शब्दों और कार्यों पर भी लागू होती है. या प्रणाली उन कार्यों पर भी लागू होती है जो हम किसी और से करवाते हैं.
पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म और मृत्यु का चक्र चौरासी लाख योनियों में चलता रहता है जिन में मानव योनि भी शामिल है. लेकिन केवल मानव योनि ही ऐसी है जिसमें जन्म-मृत्यु-पुनर्जन्म से छुटकारा हो सकता है. कर्मयोग का ज्ञान देते हुए भगवन श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा- 'सृष्टि के आरम्भ में मैंने ये ज्ञान सूर्य को दिया था आज तुम्हें दे रहा हूँ'. अर्जुन ने आश्चर्यचकित हो कर पुछा कि -'आपका जन्म तो अभी कुछ साल पूर्व हुआ और सूर्य तो कई सालों से है. सृष्टि के आरम्भ में सूर्य को ये ज्ञान कब दिया?'. श्रीकृष्ण भगवन ने उत्तर दिया-'तेरे और मेरे अनेक जन्म हो चुके हैं, तुम भूल चुके हो किन्तु मुझे याद है'.
प्राचीन ऋषि मुनियों ने कठिन तपस्या के बाद खोज की और पाया शरीर में स्थित निराकार आत्मा मनुष्य का मूल स्वरुप है. आत्मा के साक्षात्कार हेतु योग, ज्ञान और भक्ति की पद्धतियां सुझाई गई हैं. स्वयं का मूल स्वरुप आत्मा पहले था, आज है और कल भी रहेगा. शारीरिक मृत्यु के बाद जीवात्मा पुन: जन्म धारण कर लेता है और ये चक्र चलता रहता है. पुनर्जन्म का कारण स्वयं में और सांसारिक पदार्थों में आसक्ति है. साधना के बल पर स्वयं को जानकार इस चक्र से मुक्ति मिल सकती है. कभी कभी ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं कि किसी बालक को पूर्वजन्म के बारे में पता था.
गीता के एक और श्लोक में भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है कि है कि जब जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि तब तब ही मैं अपने आप को साकार रूप में प्रकट करता हूँ. अवतार ले कर क्रिया ( लीला ) करता हूँ और धर्म की स्थापना करता हूँ. भगवान के जन्म के लिए अवतार या अवतरण शब्द प्रयोग किये जाते हैं.
बौद्ध धर्म
बौद्ध धर्म में जीवन मरण को संसार का एक चक्र बताया है. इस लगातार चलने वाले चक्र में दुःख भी साथ साथ चलता रहता है. यह सांसारिक चक्र और दुःख तभी समाप्त होते हैं जब इच्छाओं का अंत हो जाए और ज्ञान प्राप्त हो जाए अर्थात निर्वाण की अवस्था प्राप्त हो जाए. सांसारिक पुनर्जन्म न होने से दुखों से भी मुक्ति मिल जाती है. यह मुक्ति इसी शरीर और इसी जन्म में प्राप्त की जा सकती है. बौद्ध धर्म में आत्मा, परमात्मा और किसी संसार चलाने वाले की मान्यता नहीं है.
पुनर्जन्म के सिद्धांत के साथ बौद्ध धर्म में कर्म-फल और निर्वाण के सिद्धांत भी जुड़े हुए हैं. सरल भाषा में कहा जाए तो कर्म शरीर, वाणी, या मन से किया जा सकता है और कोई कोई विरला कर्म खुद ना करके किसी और से भी करवाया जा सकता है. ये कर्म तीन प्रकार के हो सकते हैं कुशल, अकुशल और तटस्थ या न्यूट्रल. इन कर्मों के फल भी उसी तरह से अच्छे, बुरे या तटस्थ होते हैं. इन्हीं के आधार पर व्यक्ति का भविष्य तय होता है.
कर्मों के फल हो सकता है तुरंत मिल जाएं या कुछ समय बाद या फिर अगले जन्म में. यह कर्म करने के समय और उसके फलित होने के समय की स्थितियों पर निर्भर करता है. बौद्ध धर्म के अनुसार अस्तित्व या भव के मौलिक स्वाभाव का रूप अगला पुनर्भव होता है. यह किसी स्थायी, अ-नश्वर या हमेशा के लिए रहने वाली आत्मा पर निर्भर नहीं है. दूसरे शब्दों में हिन्दू धर्म में reincarnation है और बौद्ध धर्म में rebirth है.
जैन धर्म
जैन धर्म के अनुसार जीवन मरण और पुनर्जन्म एक लगातार चलने वाला चक्र है. हर सांसारिक जीव का जन्म मरण इन चार गतियों में होता रहता है - देव गति, मनुष्य गति, तिर्यंच( पशु ) गति और नारकीय गति. इन जन्म मरण की गतियों से छुटकारा भी मिल सकता है जिसे मोक्ष या पंचम गति कहते हैं. जैन ग्रंथों के अनुसार संसार अनादी है और इस संसार का कोई कर्ता नहीं है. कोई अन्य किसी जीव को किसी तरह का सुख या दुःख देने वाला नहीं है. हर जीव अपने कर्मों के अनुसार सुख या दुःख पाता है. जीव और आत्मा का मूल स्वभाव शुद्ध, बुद्ध और आनंदमय है पर उस पर कर्म के आवरण आच्छादित हो जाते हैं. जब ये आवरण हट जाते हैं तो जीव परमात्मा की उच्च दशा को प्राप्त हो जाता है और पुनर्जन्म से छुटकारा पा जाता है.
अहिंसा और अनेकान्तवाद के अलावा जैन धर्म का महत्वपूर्ण सिद्धांत है कर्म और फल. चौबीसवें तीर्थंकर महावीर ने बार बार कहा है कि मनुष्य जैसा कर्म करता है वैसा ही फल अवश्य भोगता है. कर्मों के फलित होने में देर सबेर हो सकती है. कुछ कर्मों का फल इसी जन्म में मिल जाता है और कुछ कर्म ऐसे भी हो सकते हैं जिनका फल भोगने के लिए पुनर्जन्म लेना पड़ता है. इस जन्म और मृत्यु के बीच रूप या शरीर बदलता है. अच्छे कर्म कर के मनुष्य जो चाहे प्राप्त कर सकता है यहाँ तक की वह स्वयं का भाग्य विधाता भी बन जाता है. अच्छे कर्म कर के तथा राग द्वेष से मुक्त हो कर वह पुनर्जन्म के चक्र में नहीं पड़ता है.
सिक्ख धर्म
सिक्ख धर्म में भी अन्य भारतीय धर्मों की तरह जीवन चक्र अर्थात जन्म, मरण और पुनर्जन्म की चर्चा है. कर्म और फल का भी महत्व है. हर जीव की एक आत्मा है जो शरीर त्यागने पर दूसरा शरीर धारण करती है. यह सिलसिला तब तक जारी रहता है जब तक कि उसका उद्धार नहीं हो जाता. उद्धार से तात्पर्य स्वर्ग या नर्क नहीं है बल्कि सत्य को पाना है. निराकार परमात्मा सच है जो आदि काल से सच था, सच है और सच रहेगा: आदि सच जुगादि सच ॥ है भी सच नानक होसी भी सच॥
सिख धर्म में कर्म-फल सिद्धांत थोड़ा सा अलग है. इंसान सोचने तक सीमित है और वही करता है जो 'हुकम' में है. हुक्मे अंदर सब्ब है बाहर हुकम न कोए इस को ध्यान में रखते हुए इन्सान जो करे वो अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन कर ही करे. इंसान गुरु ग्रन्थ साहिब का अध्ययन और आत्म चिंतन करे जिस से सत्य का ज्ञान प्राप्त होगा. मन और आत्मा पर लगातार काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार( पंज चोर ) का हमला होता रहता है जिससे बचना है. हर जीव को एक अवतार कहा गया है और उसकी आत्मा निराकार है. आत्मा निराकार परमात्मा का अंश है. लगातार ध्यान और अच्छे कर्म करने से ज्ञान बढ़ता जाता है और फिर परमात्मा से संयोग हो कर इन्सान मुक्त हो जाता है. जीव मनुष्य योनी में ज्ञान पूरा करने के लिए अवतरित होता है जबकि निराकार परमात्मा की कोई योनी नहीं है वो अयोनि या अजूनी है.
इसाई धर्म
इसाई धर्म की मान्यता है की शरीर त्यागने के बाद दैविक न्याय होता है और मृतक को स्वर्ग या नरक में स्थाई रूप से भेज दिया जाता है. पुनर्जन्म नहीं होता है.
एक मान्यता है जिसके अनुसार ईसा मसीह को सूली पर चढ़ा दिया गया और उनका देहांत हो गया. देहांत के बाद दफना दिया गया और फिर तीसरे दिन मृत्यु से पुनः जी उठे. ईसामसीह के फिर जीवित हो जाने की घटना को Resurrection कहा जाता है अर्थात पुनुर्त्थान. इसे पुनर्जन्म नहीं कहा जाता. बहुत से ईसाई इस घटना को नहीं भी मानते. और कुछ का कहना है कि ईसा मसीह उसी शरीर में जीवित हो उठे थे, कुछ का कहना है की ये उत्थान आध्यत्मिक घटना है.
एक ईसाई मान्यता और है कि एक दिन सृष्टि का समय समाप्त हो जाएगा और भगवान आकर सभी मृत लोगों को जीवित करेंगे. जो जीवित होंगे और जिन्हें जीवित कर दिया जाएगा, उन सभी के गुनाह माफ़ कर दिए जाएंगे और सब की आत्मा मुक्त कर दी जाएगी. इस अंतिम दिन को Judgment Day, Day of the Lord, Last Judgment या फिर Final Judgment भी कहा जाता है.
बहुत से पश्चिमी विचारकों ने भी पुनर्जन्म पर अपनी धारणाएं बताई हैं. प्लेटो ने कहा था कि जो आत्माएं शुद्ध हो चुकी हैं और जिनका शरीर से लगाव नहीं है वे फिर नहीं आएंगी.
इसी तरह पाइथागोरस ने कहा था कि मरने के बाद आत्मा प्रकृति के किसी भी जीव में कर्म फल के आधार पर पहुँच जाती है.
इस्लाम
इस्लाम धर्म में पुनर्जन्म या पुनरुत्थान या अवतार मान्य नहीं है. मनुष्य का एक ही जीवन है और मृत्यु के बाद बार बार जन्म लेना विधान में नहीं है. देहांत के बाद ख़ुदा की तरफ से तय किया जाता है कि मृतक को स्वर्ग में भेजा जाना है या नर्क में.
क़यामत के दिन की चर्चा है जो कि सृष्टि का अंतिम दिन होगा. इस दिन सभी मृत पुनः उठ खड़े होंगे और सभी का अंतिम हिसाब किया जाएगा. इस अंतिम दिन के विधि विधान में बहुत विस्तार से बताया गया है. परन्तु इस पर शिया, सुन्नी और अहमदिया मतों में थोड़े बहुत अंतर हैं.
यहूदी
यहूदी परंपरा में पुनर्जन्म या 'गिलगुलिम' के बारे में 'कबल्लाह' में बताया गया है. वैसे गिलगुलिम का शाब्दिक अर्थ चक्र है. यहूदी धर्म के कुछ मतों और ग्रंथों में अन्यथा भी कहा गया है.
लेकिन सृष्टि का 'अंतिम दिन' जिसे हिब्रू भाषा में 'अहरित हा यामिम' कहा जाता है, की आम तौर पर मान्यता है. अंतिम दिन यहूदी मसीहा सब मृतकों को जीवित कर देगा और सभी कबीलों को इकठ्ठा कर देगा. किसी को सजा या इनाम अलग अलग नहीं दिया जाएगा बल्कि सभी पर दया दृष्टि कर के खुशहाल कर दिया जाएगा.
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प्रकृति |
13 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2021/12/blog-post_6.html
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 07 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुन्दर
धन्यवाद जोशी जी.
धन्यवाद यशोदा अग्रवाल जी. 'पांच लिंकों का आनंद' का भी आनंद लेंगे।
सार्थक लेखन
Sabhi dharmon ki vistrat jankari. Adbhut-bemisal.Dhanywad.
धन्यवाद सक्सेना जी
धन्यवाद Anita जी.
विभिन्न धर्मों की मान्यताओं की रोचक जानकारी देता आलेख। आभार।
धन्यवाद विकास नैनवाल 'अंजान'.
बहुत रोचक जानकारी, हर धर्म की अपनी आस्थाएं, अपने विचार, और उनके पीछे के कारण।
सुंदर पोस्ट।
Thank you मन की वीणा
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