Pages

Wednesday 15 September 2021

शहर का नाम देहरादून कैसे पड़ा

देहरादून उत्तराखंड का सबसे बड़ा और और ज्यादा जनसँख्या वाला शहर है. ये शहर गढ़वाल क्षेत्र के दून घाटी में स्थित है. सन 2000  में जब उत्तराखंड नया राज्य बना था तो देहरादून को अंतरिम राजधानी बनाया गया था और गैरसैण को नई राजधानी. पर कुल मिला कर अब तक राज्य का काम काज यहीं से ही होता है.  

देहरादून को डेरा दून भी कह देते हैं जिसके पीछे तीन सौ पचास साल पुरानी कहानी है. गढ़वाली बोली में दून शब्द घाटी के लिए इस्तेमाल होता है जैसे कि कोटली दून, पटली दून या फिर पिंजौर दून. ये सभी दून शिवालिक पहड़ियों में हैं. और डेरा शब्द इस लिए कहा गया कि गुरु राम राय जी ने 1675 में यहाँ डेरा डाला था. संक्षेप में ये इतिहास इस प्रकार है:

गुरु राम राय जी का जन्म 1646 में किरतपुर, पंजाब में हुआ था. वे गुरु हर राय जी और माता कोट कल्याणी ( माता सुलक्खनी ) के ज्येष्ठ पुत्र थे. गुरु हर राय जी सिखों के सातवें गुरु ( सातवीं पातशाही ) थे. बचपन में गुरु राम राय जी ने पंडित दामोदर दास जी के घर रह कर संस्कृत भाषा और प्राचीन धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया. पिता के दरबार के विद्वान दुर्गामल ( दरगाह मल ) से गुरमुखी और फ़ारसी सीखी और पिता से ज्ञान ध्यान और गुरु ग्रन्थ साहिब और कई अन्य वाणियों का पाठ सीखा. निरंतर अभ्यास करके कई सिद्धियां भी प्राप्त कर लीं. उन्होंने उदासीन संत बालू हसना से भी दीक्षा ली थी. 

1661 में आमेर, जयपुर के दीवान औरंजेब का फरमान लेकर आये कि गुरु हर राय जी को दिल्ली दरबार में हाजिर होना है. फरमान गंभीर था और औरंगजेब के विचार सभी जानते थे. गुरु हर राय जी ने कहा कि उनका प्रण है कि उस अत्याचारी का मुंह नहीं देखेंगे. गुरु हर राय जी और सिपहसालारों ने काफी सोच विचार के बाद गुरु राम राय जी को दिल्ली जाने का आदेश दे दिया. भाई दरिया सिंह और दीवान दरगाह मल को साथ जाने का निर्देश हुआ. पर किसी तरह के चमत्कार दिखाने की मनाही कर दी. इस पर 'महिमा प्रकाश' ग्रन्थ में लिखा गया है:

"सुनो पुत्र वचन जो कहौ तुम्हरे संग सदा मैं रहौ, दिल्ली पंत से जाय तुम मिलो कुछ शंक भै नहीं मन में गिलो,      

श्री करतापुरख बिदा जब भये, भले सुचेत फ़क़ीर संग लये, बर्तन सामग्री संग गुरु दीना मारग दिल्ली का तब लीना"  

1. श्री गुरु राम राय दरबार साहिब 

गुरु राम राय जी किरतपुर से जींद, अम्बाला, रोहतक, कुरुक्षेत्र आदि में उपदेश देते हुए दिल्ली के पास पहुँचे और मजनू के टीले पर डेरा डाल दिया. अगले दिन दिल्ली दरबार में आने की सूचना भेज दी गई.

औरंगजेब ने उन्हें परेशान करने की कई कोशिशें की. जहर बुझे कपड़े पहनने के लिए दिए गए जो गुरु साहिबान ने पहने पर उन कपड़ों का कोई असर नहीं हुआ. उन्हें औरंजेब ने अपने ईरानी मेहमानों के साथ खाने पर बुलाया गया. सारे मेहमानों का खाना गुरु जी के सामने रख दिया गया और कहा गया की ये आपने खाना है. गुरु जी ने उस पर सरोपा रख दिया. जब सरोपा उठाया गया तो वहां फूल पड़े मिले. सभी चकित रह गए. फिर भरे दरबार में औरंगजेब ने गुरु ग्रन्थ साहिब की एक पंक्ति सुनाई - "मिट्टी मुस्लमान की पैंड़े पई कुमिहार" और कहा की इसमें हमारी बेइज़्जती की गई है. गुरु राम राय जी को जवाब देना था. यह बड़े धर्म संकट की घड़ी थी. वाक्य सही था पर समझाना सरल नहीं था कि ये पंक्ति सब के लिए है. गुरु नानक धर्म या जातपांत का भेद नहीं करते थे. सबका शरीर मिट्टी में मिल जाता है और उसी मिट्टी को कुम्हार पैर से गूंध कर बर्तन बनाता है. 

गुरु राम राय जी ने कहा कि आप ग्रन्थ साहिब को दुबारा देखें. दुबारा देखने पर मुसलमान शब्द की जगह बेईमान शब्द पाया गया जो कि एक चमत्कार था. औरंगजेब की तसल्ली हुई और उसने गुरु राम राय जी को 'हिन्दू फ़क़ीर' और 'कामिल फ़क़ीर' का दर्जा दे दिया. पर बाबा राम राय जी के इस चमत्कार से उनके पिता गुरु हर राय जी सख्त नाराज़ हुए. गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी के कारण नाराज़ पिता ने पुत्र को गद्दी से वंचित कर दिया और कह दिया कि तुम्हारा यहां रहना संभव नहीं है. 

अब गुरु राम राय जी यात्रा पर निकल पड़े और रास्ते में बहुत से लोग साथ हो लिए. बहुत से गांवों और शहरों में उपदेश देते हुए वो एक दिन उत्तराँचल पहुंचे. उत्तरांचल पहुँच कर दून घाटी में टोंस नदी किनारे काण्डली गॉव में रुके. आजकल यह स्थान देहरादून में गढ़ी कैंट में है. इसकी खबर औरंगजेब तक भी पहुंची. उसने गढ़वाल के तत्कालीन नरेश फ़तेह शाह को हर संभव सहायता देने को कहा. फ़तेह शाह आकर मिले, प्रभावित हुए और गुरु जी से यहीं बसने की प्रार्थना की. तीन गांव दान में दे दिए गए - खुड़बुड़ा, राजपुरा और चामासारी. कालांतर में राजा फ़तेह शाह के पोते प्रदीप शाह ने चार और गांव - धामावाला, मियांवाला,पंडितवाड़ी और छरतावाला दान में दे दिए. इस तरह गुरु साहिब का डेरा दून घाटी में स्थापित हो गया. बाद में डेरा दून नाम का अंग्रेजीकरण हो गया - देहरादून, Dehradun या Dehradoon. 

गुरु राम राय जी 4  सितम्बर 1687 को परमात्मा में लीन हो गए. उनके बाद डेरे का प्रबंध उनकी चौथी पत्नी माता पंजाब कौर ने संभाला. कहा जाता है कि उनकी कोई संतान न थी. माता ने डेरे को लोक कल्याण के लिए समर्पित कर दिया. उन्होंने ब्रह्मचारी महंत रखने की प्रथा शुरू की. आजकल दसवें महंत श्री देवेंद्र दास जी हैं जो 25  जून 2000 से गद्दी नशीन हैं.

देहरादून के झंडा बाज़ार में बने वर्तमान दरबार साहिब का निर्माण 1707 में संपन्न हुआ था. दरबार साहिब की दीवारों पर कमाल की पुरानी भित्ति चित्रकारी है जो उत्तराखंड में अनूठी है. दरबार साहिब के सामने सौ फुटा झंडा है और यहाँ हर साल होली के पांचवें दिन से झंडा मेला आरम्भ हो जाता है. झंडा साहिब को उतार कर पुराने रुमाल, दुपट्टे उतर दिए जाते हैं और दूध, दही, गंगा जल से धो कर नए रुमाल, दुपट्टे और आवरण बांधे जाते हैं. इसके बाद एक बार फिर से झंडा साहिब को स्थापित कर दिया जाता है. परिसर में गुरु राम राय जी की समाधी के अलावा चार और समाधियां भी हैं जिन्हें माता की समाधियां कहा जाता है. 

श्री गुरु राम राय दरबार साहिब एक सौ बीस से अधिक शिक्षण संस्थाएं चला रहा है जिन में एक विश्वविद्यालय, मेडिकल कॉलेज, स्कूल, कॉलेज, अनाथालय और अस्पताल भी हैं. वर्तमान महराज जी सदाचारी समाज का निर्माण करना चाहते हैं जिसके लिए शुभकामनाएं.

प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:


2. झंडा चबूतरा 

3. बाहरी दीवार पर भित्ति चित्र

4. सुदामा भगत जब भगवान् कृष्ण से मिलने पधारे 

5. माता पार्वती की गोद में बाल गणेश 

6. ऊपर बाएं से दूसरे चित्र में रामपरकास जी जिन्हें एक सेवक पंखा झल रहा है. उस से अगले चित्र में महंत पराग दास कुर्सी पर बैठे हैं. दूसरी लाइन में शिव जी, गणेश जी और माता पार्वती उनसे आगे एक साध्वी, कोई सेठ और फिर साधु विराजमान हैं  

  7. चित्र के ऊपर वाले भाग में ग्रन्थ साहिब के पाठ का एक दृश्य और निचले भाग में गोपीचंद राजा और रानी


8. चित्र में सबसे ऊपर नीले घोड़े पर जाहर दीवान, उस से आगे प्रहलाद 

 9. चित्र के सबसे ऊपर दाहिने झरोखे में मंगलदास और अन्य लोग फ़ौज को देखते हुए, उसके नीचे वाले चित्र में  बंदी ले जाए जा रहे हैं, सबसे नीचे कीर्तन और प्रसाद वितरण  

10. ड्योढ़ी की छत पर फूल पत्तों की चित्रकारी 


  11. चित्र के ऊपर वाले भाग में इन्दर सभा का एक दृश्य, निचले भाग में बीच में गणेश जी, बाएं कौरव सभा और दाएं पांडव सभा  


12. सूचना पट पर इतिहास 



यह लेख इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी और दरबार साहिब से प्राप्त पुस्तिका - श्री गुरु राम राय दरबार साहिब पर आधारित है. त्रुटि रह गई हो तो क्षमा प्रार्थी. 
दरबार साहिब का फ़ोन नंबर- 0135-2726693, 2623635. विश्वविद्यालय की साइट - www.sgrru.in 


27 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2021/09/blog-post_15.html

Unknown said...

सुन्दर वणॅन लेखन शैली अति उत्तम

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद 'Unknown. कृपया अपनी प्रोफाइल पूरी करें या अपना नाम लिख दिया करें।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद yashoda Agrwal. 'सांध्य दैनिक मुखरित मौन' में भी हाजिरी लगेगी।

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 16.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क

अनीता सैनी said...

पढ़कर बहुत अच्छा लगा सर।
सादर नमस्कार

Ravindra Singh Yadav said...

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 16 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

!

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुन्दर लेख सुन्दर चित्रण

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद अनीता सैनी. आपका दिन शुभ हो.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद सुशील कुमार जोशी साब. मंगलमय दिन की कामना.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Ravindra Singh Yadav. 'पांच लिंकों का आनंद' भी लेंगे।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद दिलबागसिंह विर्क। 'चर्च मंच' पर भी उपस्थिति होगी।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत वर्ष बचपन में देहरादून रहे । लेकिन इस इतिहास के बारे में नहीं जाना था। बहुत आभार इस जानकारी के लिए ।

Anupama Tripathi said...

अच्छी जानकारी,सुंदर चित्र भी !!

मन की वीणा said...

रोचक जानकारी युक्त सुंदर पोस्ट।

विष्णु बैरागी said...

नामकरण को लेकर जनसामान्‍य उदासीन और अजिज्ञासु ही रहता है। किन्‍तु जब भरपूर रोचकता के साथ ऐसी जानकारी सामने आती है तो पाठक चकित हो जाता है।
बहुत अच्‍छी प्रस्‍तुति है यह। उम्‍मीद है कि नामकरण की कहानियों का यह सिलसिला जारी रहेगा।

Harsh Wardhan Jog said...

ब्लॉग पर पधारने के लिए धन्यवाद विष्णु बैरागी जी. आपने ठीक कहा की आम तौर पर नाम पर ध्यान नहीं दिया जाता और न ही कोशिश की जाती है जानकारी जुटाने की. इस दिशा में प्रयास जारी रहेगा।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद मन की वीणा।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Anupama Tripathi

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद संगीता स्वरुप ( गीत ).यह दरबार पुराने देहरादून में है. झंडा बाज़ार, खुड़बुड़ा मोहल्ला, वही स्थान हैं. सहारनपुर चौक के पास हैं.

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

बहुत सुंदर विवरण। कई ऐतिहासिक तथ्यों से आपने परिचय करवाया।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद विकास नैनवाल 'अंजान'

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you IFMS Information.

ASHOK KUMAR GANDHI said...

Thanks for giving us good knowledge, history about Dehradun.

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Ashok Gandhi.

Pooja said...

बहुत खूब । आप के सभी लेख बहुत अच्छे होते है इसे भी पढ़े उत्तराखंड की राजधानी

Anonymous said...

Also check: उत्तराखंड की राजधानी कहां है ?