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Friday, 11 June 2021

झाड़ू का दूसरा साल

लॉकडाउन जब पहली बार पिछले साल लगा था तो झाड़ू उठाना पड़ गया था. वो इसलिए की सोसाइटी ने मेन गेट बंद कर दिया, ना कोई आ सकता और ना ही कोई जा सकता था. गेट बंद हो गया तो काम वाली कैसे आती? और अगर काम वाली नहीं आती तो सफाई कैसे होती? पर हमारी 65 बरस की बुढ़िया गर्ल फ्रेंड को जोश आ गया,

-  काम वाली नहीं आएगी तो क्या काम नहीं होगा? हम खुद कर लेंगे!

उस वक़्त 'हम' का अर्थ हमने हम ही लगाया अर्थात रोज़ के सफाई अभियान में हमें योगदान करना ठीक रहेगा. झाड़ू उठाएं या पोछा लगाएं? झाड़ू? पोछा? हमने फैसला कर लिया और प्रस्ताव पेश किया कर दिया झाड़ू उठाने का. श्रीमति जी ने एक क्षण को मुस्कराहट दी और हमने भी काम चालू कर दिया है. 

उस वक़्त तो सोचा था की चलो दो चार दिन की बात है कर लेंगे. पर फिर दो हफ्ते और फिर दो महीने खिंच गए. फिर सोचा चलो दो महीने निकल गए हैं अब जल्दी छुटकारा मिलेगा पर नहीं मिला. करते कराते पूरा साल निकल गया. हमें क्या पता कि दूसरी लहर भी आनी है? और दूसरी लहर आ भी आ ही गई है. पहली लहर का झाड़ू घिस चुका था. श्रीमति कई बार सुझाव दे चुकी हैं की नया ले लो. पर साब पहली झाड़ू से बड़ा प्यार हो गया था. आप तो जानते ही हैं पहला पहला प्यार, पहली पहली तनखा, पहली पहली फटफटिया भूलती नहीं हैं तो पहला झाड़ू कैसे भूलेगा?

पर अब कोविड भी कमबख्त बदल गया था. पहले जैसा नहीं रहा था बल्कि  दूसरी लहर में नया रूप धर कर आ गया था. अब दूसरी लहर का मुकाबला करने के लिए दूसरा झाड़ू लेना जरूरी हो गया था. एक दूकान जिस से घर का सामान फोन पर मंगाते थे उसे फोनवा लगाया,

- गुप्ता जी सुनो आपको तो पता ही है की दूसरी लहर आ गई है. अब इस लहर के लिए एक अदद फूल झाड़ू चाहिए. और ऐसा होना चाहिये जो पूरी दूसरी लहर में काम आए. पहला वाला जो है अब काफी घिस गया है और नया लेना जरूरी हो गया है. पर मैं उसे यादगार के तौर पर पहले झाड़ू को संभाल के रखना चाहता हूँ. 

- हर्ष जी कैसी बातें कर रहे हैं? घिस गया है तो फेंकिये उसे. मैं नया भिजवा देता हूँ.  

- गुप्ता जी बात ये है की सत्तर साल की ज़िन्दगी में पहली बार झाड़ू लगाया है और वो भी लगातार एक साल. अब इस झाड़ू से लगाव सा हो गया है इसको फेंकना नहीं चाहता. बल्कि सहेज संवार के सुरक्षित रखना चाहता हूँ.  

- ओहो तो आप एक काम करो हर्ष जी अपना पुराना झाड़ू भिजवा दो. मैं पास वाले मनोहर स्टेशनरी से बोलता हूँ की आपके झाड़ू की सुंदर सी पैकिंग कर दे. फिर उसे आप जहां रखना चाहें रख लेना.

- बात तो आपकी ठीक लग रही है गुप्ता जी. ज़रा मनोहर से पूछो उस पर चांदी का पतरा चढ़ा सकता है क्या? ढंग से चढ़ा दे तो मैं अपने ड्राइंग रूम में सजा दूंगा. 

- कमाल है जी हर्ष जी कमाल है! ही ही ही ! झाड़ू की पैकिंग चांदी के वर्क में ? एक सेकंड. ये लो मनोहर मेरे सामने खड़ा है आप खुद ही बात कर लो जी.

- अरे मनोहर जी मैं कह रहा था की मेरा पहला झाड़ू है पूरा साल मैंने इससे काम किया है और ज़िन्दगी में इतने दिन कभी झाड़ू नहीं लगाया तो इसे मैं यादगार के रूप में रखना चाहता हूँ. क्या विचार है? 

- सर जी जैसे कहोगे वैसा ही तैयार कर दूंगा जी. आप चाहो तो पतला मैचिंग कलर का प्लास्टिक लगा दूँ, या रंगीन शीट लगा दूँ. गुप्ता जी बता रहें हैं कि आप चांदी का पतरा चढ़ाना चाहते हैं तो वो भी करा सकता हूँ. और अगर बहुत ज्यादा ही प्यार है तो फिर तो जी सोने के पत्तर से मढ़वा लो. पीढ़ी दर पीढ़ी निशानी के तौर पर चलता रहेगा. 

- आपकी बात में दम है मनोहर जी. हाँ मेरे जाने के बाद भी यादगार रहेगी. लोग याद करेंगे कि बन्दा कोरोना काल में झाड़ू लगाना नहीं भूला। कोरोना के साइड इफेक्ट्स को भी तो लोग याद करें. खर्चा बताओ खर्चा?

- सर जी सोने वाला लगभग तीस हज़ार में तैयार हो जाएगा. और चांदी वाला यूँ समझिये दस हज़ार के आसपास. अगर मेरी राय मानो और मेरे पे छोड़ दो जी तो सिर्फ पांच सौ में. वो भी ऐसी सजावट कर के दूंगा की देखते ही लोग कहेंगे की किसने पैक किया है.

- चलो मनोहर जी मैं कल फोन करता हूँ.

झाड़ू की पैकिंग पर बातचीत करने का मौका ही नहीं मिल रहा था. मामला जटिल था थोड़ा सावधानी से प्रस्तुत करना था. दो दिन बाद श्रीमति जी बाथरूम से गुनगुनाते हुए निकली - 

- "ना जाने कहाँ तुम थे, ना जाने कहाँ हम थे, जादू ये देखो हम तुम मिले हैं!"

सही समय है मुद्दा उठाने का. यही सोच कर बात छेड़ दी, 

- यार वो पुराना झाड़ू जो है ना मेमेंटो की तरह रखना चाहता हूँ. पैकिंग करा लूँ? सात आठ हज़ार का ही खर्चा है?

- क्या? झाड़ू की पैकिंग? सात आठ हज़ार की? श्रीमति का गाना रुक गया और सुर ऊँचे हो गए.  इधर दिखाओ झाड़ू! 

झाड़ू ले कर बाहर पिछवाड़े फेंक दिया. 

मैं तो पहले ही सोचता था- पत्नी वो जो पति पर तनी रहे. 

 



 

11 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2021/06/blog-post.html

ASHOK KUMAR GANDHI said...

Good

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Ashok Kumar Gandhi

N P Singh said...

Very said, it could ñot be preserved

Harsh Wardhan Jog said...

Yes sad!

Rohitas Ghorela said...

ओहो... बुरा हुआ पहली निशानी के साथ.
शायद कभी सोने का पतरा देखा कहानी मोदी जी के सफाई अभियान से जोड़ दी जाती.
सच में बड़ा मजा आया पढ़ के.

मैंने ऐसे विषय पर; जो आज की जरूरत है एक नया ब्लॉग बनाया है. कृपया आप एक बार जरुर आयें. ब्लॉग का लिंक यहाँ साँझा कर रहा हूँ- नया ब्लॉग नई रचना
अच्छा लगे तो फॉलो भी करियेगा.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Rohitas Ghorela जी. पहली निशानी बच नहीं पाई.

रेणु said...

😀😀😀😀😀😀😂 हंसी रूके तो कुछ अर्ज़ करें हर्ष जी।😀😂 सबसे पहले अपने शब्द वापिस ले। हमारी बड़ी बहन ने आपके साठ हजार रूपए बचाए और आप ढके लिपटे शब्दों में उनकी उम्र याद दिला रहे हैं 😀😀 इतनी रोचक बतकही के लिए आभार कहूं, शुक्रिया कहूं समझ नहीं आता।झाड़ू का एक साल मुबारक हो 👌👌👌👌🙏🙏🙏😂😂🌷💐💐🌷

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद रेणु. शब्द तो अब छप गए वापिस कहाँ से होंगे? और फिर उम्र के प्रभाव से कौन बचा है? आप इस झाड़ू से मुक्त करा देते तो अच्छा था!

रेणु said...

����������������

Harsh Wardhan Jog said...

मतलब कोई उपाय नहीं है!