दस प्रश्न
गौतम बुद्ध अपने उपदेशों के दौरान उठाए गए सवालों का जवाब भी देते थे. सवाल किसी के भी हों शिष्य के, साधू-संत के, व्यापारी के, यात्री के या फिर किसी राजा के. वे सभी को यथा योग्य उत्तर देते थे. फिर भी कुछ प्रश्न ऐसे थे जिनका बुद्ध ने उत्तर नहीं दिया. इन दस प्रश्नों को अव्याकृत ( अकथनीय ), प्रतिक्षिप्त ( जिनका उत्तर देना अस्वीकृत हो गया ) या अनुत्तर प्रश्न कहा जाता है. गौतम बुद्ध ने कहा की ये सवाल सार्थक नहीं हैं, उपयोगी नहीं हैं, तथा शांति, ज्ञान और निर्वाण के लिए आवश्यक भी नहीं हैं.
इन सभी बातों का जिक्र 'सुत्त पिटक' के 'मज्झिम निकाय' में 63वें सुत्त में आता है जिसका शीर्षक है - चूलमालुंक्या-सुत्त. यहाँ चूल का मतलब है छोटा या short सुत्त और 'मालुंक्य' शिष्य का नाम है ( पूरा नाम मालुंक्य-पुत्त है ).
एक समय में गौतम बुद्ध श्रावस्ती में अनाथपिण्डीक के आश्रम जेतवन में रह रहे थे. वहीं एक शिष्य मालुंक्य-पुत्त भी था जो कुछ सवालों को लेकर बहुत बेचैन था. काफी सोच विचार के बाद उसने फैसला किया की गौतम बुद्ध से ये दस सवाल पूछेगा और अगर सही जवाब नहीं मिला तो गृहस्थ आश्रम में वापिस चला जाएगा. सांयकाल की सभा के बाद उसने भगवान् बुद्ध को अभिवादन किया और इन दस सवालों के जवाब पूछे और साथ ही कह दिया कि अगर उचित जवाब ना मिले तो वह वापिस चला जाएगा. ये सवाल थे :
1. लोक शाश्वत है ?,
2. लोक अ-शाश्वत्व है ?,
3. लोक का अंत है ?,
4. लोक अनंत है ?,
5. जीव और शरीर एक हैं ?,
6. जीव अलग है और शरीर अलग है ?,
7. मरने के बाद तथागत विद्यमान रहते हैं ?,
8. मरने के बाद तथागत विद्यमान नहीं रहते ?,
9. मरने के बाद तथागत होते भी हैं और नहीं भी ? और
10. मरने के बाद तथागत न-होते हैं और न-नहीं-होते हैं ?.
भगवान् गौतम बुद्ध ने जवाब में कहा,
- हे मालुंक्या-पुत्त क्या मैंने तुम्हें बुलाया था और कहा था कि मैं इन दस सवालों के उत्तर दूंगा ?
- नहीं भन्ते.
- क्या तुमने ऐसा कहा था कि तुम यहाँ तब रहोगे जब मैं इन सवालों का उत्तर दूंगा ?
- नहीं भन्ते.
- तो सुनो मूर्ख पुरुष. यहाँ आकर इन सवालों के जवाब के लिए कोई रहेगा तो जीवन ही समाप्त हो जाएगा पर उत्तर नहीं मिल पाएगा. इन प्रश्नों पर तर्क वितर्क अंतहीन है. उदाहरण के लिए बाण से घायल एक व्यक्ति को उसके नाते रिश्तेदार वैद्य के पास लाए. क्या घायल व्यक्ति पहले बाण चलाने वाले का नाम, पता और जात पूछेगा फिर उपचार करवाएगा ? या कहेगा की पहले बताओ की बाण मारने वाला लम्बा था या नाटा था फिर उपचार करो ? या कहेगा की पहले बताओ कि बाण मारने वाला काला था या गोरा और किस गाँव का था फिर उपचार करना ? अर्थात जब तक इन सवालों का जवाब मिले तब तक तो घायल व्यक्ति स्वर्ग सिधार जाएगा !
- मालुंक्य-पुत्त तुम्हारे सवाल सार्थक और उपयोगी नहीं हैं. ज्ञान, मन की शांति और निर्वाण के लिए यह प्रश्न व्यर्थ हैं. इसीलिए इन्हें अव्याकृत कहा है. जो व्याकृत हैं वही मैं कहता हूँ -
1. जीवन में दुःख है,
2. दुःख का कोई ना कोई कारण है,
3. दुःख का अंत है और
4. दुःख अंत करने का एक मार्ग है. मैं यही मार्ग समझाता हूँ. इस मार्ग पर चलने के लिए दस सवाल जरूरी नहीं हैं और इसीलिए अव्याकृत हैं. जिसे मैं व्याकृत कहूँ उसे ही व्याकृत के तौर पर धारण कर.
सन्दर्भ :
1. मज्झिम निकाय - अनुवादक महापंडित राहुल सांकृत्यायन
2. Cula-Malunkyovada Sutta translated from Pali by Thanissaro Bhikhu
गौतम बुद्ध अपने उपदेशों के दौरान उठाए गए सवालों का जवाब भी देते थे. सवाल किसी के भी हों शिष्य के, साधू-संत के, व्यापारी के, यात्री के या फिर किसी राजा के. वे सभी को यथा योग्य उत्तर देते थे. फिर भी कुछ प्रश्न ऐसे थे जिनका बुद्ध ने उत्तर नहीं दिया. इन दस प्रश्नों को अव्याकृत ( अकथनीय ), प्रतिक्षिप्त ( जिनका उत्तर देना अस्वीकृत हो गया ) या अनुत्तर प्रश्न कहा जाता है. गौतम बुद्ध ने कहा की ये सवाल सार्थक नहीं हैं, उपयोगी नहीं हैं, तथा शांति, ज्ञान और निर्वाण के लिए आवश्यक भी नहीं हैं.
इन सभी बातों का जिक्र 'सुत्त पिटक' के 'मज्झिम निकाय' में 63वें सुत्त में आता है जिसका शीर्षक है - चूलमालुंक्या-सुत्त. यहाँ चूल का मतलब है छोटा या short सुत्त और 'मालुंक्य' शिष्य का नाम है ( पूरा नाम मालुंक्य-पुत्त है ).
एक समय में गौतम बुद्ध श्रावस्ती में अनाथपिण्डीक के आश्रम जेतवन में रह रहे थे. वहीं एक शिष्य मालुंक्य-पुत्त भी था जो कुछ सवालों को लेकर बहुत बेचैन था. काफी सोच विचार के बाद उसने फैसला किया की गौतम बुद्ध से ये दस सवाल पूछेगा और अगर सही जवाब नहीं मिला तो गृहस्थ आश्रम में वापिस चला जाएगा. सांयकाल की सभा के बाद उसने भगवान् बुद्ध को अभिवादन किया और इन दस सवालों के जवाब पूछे और साथ ही कह दिया कि अगर उचित जवाब ना मिले तो वह वापिस चला जाएगा. ये सवाल थे :
1. लोक शाश्वत है ?,
2. लोक अ-शाश्वत्व है ?,
3. लोक का अंत है ?,
4. लोक अनंत है ?,
5. जीव और शरीर एक हैं ?,
6. जीव अलग है और शरीर अलग है ?,
7. मरने के बाद तथागत विद्यमान रहते हैं ?,
8. मरने के बाद तथागत विद्यमान नहीं रहते ?,
9. मरने के बाद तथागत होते भी हैं और नहीं भी ? और
10. मरने के बाद तथागत न-होते हैं और न-नहीं-होते हैं ?.
भगवान् गौतम बुद्ध ने जवाब में कहा,
- हे मालुंक्या-पुत्त क्या मैंने तुम्हें बुलाया था और कहा था कि मैं इन दस सवालों के उत्तर दूंगा ?
- नहीं भन्ते.
- क्या तुमने ऐसा कहा था कि तुम यहाँ तब रहोगे जब मैं इन सवालों का उत्तर दूंगा ?
- नहीं भन्ते.
- तो सुनो मूर्ख पुरुष. यहाँ आकर इन सवालों के जवाब के लिए कोई रहेगा तो जीवन ही समाप्त हो जाएगा पर उत्तर नहीं मिल पाएगा. इन प्रश्नों पर तर्क वितर्क अंतहीन है. उदाहरण के लिए बाण से घायल एक व्यक्ति को उसके नाते रिश्तेदार वैद्य के पास लाए. क्या घायल व्यक्ति पहले बाण चलाने वाले का नाम, पता और जात पूछेगा फिर उपचार करवाएगा ? या कहेगा की पहले बताओ की बाण मारने वाला लम्बा था या नाटा था फिर उपचार करो ? या कहेगा की पहले बताओ कि बाण मारने वाला काला था या गोरा और किस गाँव का था फिर उपचार करना ? अर्थात जब तक इन सवालों का जवाब मिले तब तक तो घायल व्यक्ति स्वर्ग सिधार जाएगा !
- मालुंक्य-पुत्त तुम्हारे सवाल सार्थक और उपयोगी नहीं हैं. ज्ञान, मन की शांति और निर्वाण के लिए यह प्रश्न व्यर्थ हैं. इसीलिए इन्हें अव्याकृत कहा है. जो व्याकृत हैं वही मैं कहता हूँ -
1. जीवन में दुःख है,
2. दुःख का कोई ना कोई कारण है,
3. दुःख का अंत है और
4. दुःख अंत करने का एक मार्ग है. मैं यही मार्ग समझाता हूँ. इस मार्ग पर चलने के लिए दस सवाल जरूरी नहीं हैं और इसीलिए अव्याकृत हैं. जिसे मैं व्याकृत कहूँ उसे ही व्याकृत के तौर पर धारण कर.
बुद्धम शरणम् गच्छामि |
1. मज्झिम निकाय - अनुवादक महापंडित राहुल सांकृत्यायन
2. Cula-Malunkyovada Sutta translated from Pali by Thanissaro Bhikhu
3 comments:
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https://jogharshwardhan.blogspot.com/2019/12/7.html
सरल व्याख्या है ।
Thank you Deepak Dang
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