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Saturday, 29 June 2019

सुंदर जोड़ी

चंद्रा साब ने गौर से अपना चौखटा शीशे में देखा. ओफ्फो मूंछ सही तरीके से काली नहीं हुई. एक बार फिर काली स्याही का ब्रश लगाया तो तसल्ली हुई. अब ठीक है. सर पर गिनती के बाल बचे हुए थे जिन्हें चंद्रा साब पहले ही काले कर चुके थे. अब रह गई परफ्यूम जो उन्होंने बाहर निकाल कर टेबल पर रख ली. चलते हुए इसे फुस फुस कर लेंगें.

चंद्रा साब याद करने लगे कि जवानी में मूंछे और बाल रंगने का झंझट नहीं था. और जब चंद्रा साब अपनी फट-फटिया पर चलते थे तो घनी काली जुल्फें लहराया करती और जब शर्ट का कालर फड़ फड़ करता था तो मोटरसाइकिल के पैसे वसूल हो जाते थे. कभी कभी जब जी.एफ़. पीछे बैठती थी तो उस पर भी गजब का जादू चल जाता था. उन दिनों चंद्रा साब साब नहीं थे बस चंद्रू थे. पर यार अब कार में तो वो फीलिंग ही नहीं आती. अब तो कई सालों से बैंक का ड्राईवर गाड़ी चला रहा है और चंद्रा साब पिछली सीट पर बैठ रहे हैं तो वो मज़ा नहीं रहा. अब तो बियर पी पी के टंकी भी बड़ी हो गई है और पतलून भी कमबख्त खिसकती रहती है.

साब ने दाएं बाएँ फुस फुस फेंकी, गाल पर आफ्टर शेव थपथपाया और दरवाज़े की तरफ आवाज़ लगा दी,
-  मैं तो तैयार हूँ.!
- सुन लिया सुन लिया.
आधे घंटे बाद सजी धजी जोड़ी चल पड़ी पार्टी में. मिसेज़ चंद्रा ने बढ़िया सी हलके हरे रंग की साड़ी बड़ी सलीके से पहनी हुई थी. वो अच्छी अच्छी चीज़ों की शौक़ीन हैं - अच्छी साड़ी, अच्छी परफ्यूम, अच्छे जेवर वगैरा. और अपनी फिगर का भी बड़ा ध्यान रखती हैं. शुरू में जब दोनों की जोड़ी बनी थी तो सुंदर जोड़ियों में गिनती हुआ  करती थी. पर फिर चंद्रा साब प्रमोशन लेते गए नए नए शहरों में पोस्ट होते गए. कई बार अकेले भी रहना पड़ा. बस वहीँ से पीने खाने का चस्का लग गया. धीरे धीरे चंद्रा साब गोल मटोल हो गए और जोड़ी थोड़ी सी बेमेल हो गई. खैर अब तो हमारे जनरल मैनेजर साब रिटायर होने वाले हैं.

हॉल में अंदर घुसते ही दोनों का स्वागत हुआ. हेलो, नमस्ते और गुड इवनिंग के बाद श्रीमती चंद्रा दूसरी श्रीमतियों से बतियाने लगी. साड़ियाँ, हेयर स्टाइल और बच्चों का हाल चाल बयान हुआ. कौन अमरीका गया और और कौन मॉरिशस और वहां से क्या क्या लाया इस पर नोट्स एक्सचेंज हुए. किसके लड़के आगे निकल रहे हैं वो भी नोट किया गया. आखिर श्रीमतियों को बेटियों के भविष्य का ज्यादा ख्याल रहता है ना.

उधर चंद्रा साब ने हाल में नज़र घुमाई. एक कोने में प्याऊ लगा हुआ था और वहां काफी लोग गिलास हाथ में लिए खड़े बतिया भी रहे थे. चंद्रा साब आश्वस्त हो गए कि आज की शाम सही गुजरेगी. अभी उधर जाने की सोच ही रहे थे कि जगतियानी ने कंधा थपथपाया,
- सर के दर्शन ही नहीं हो रहे हैं आजकल?
- मैं भी यही सोच रहा हूँ की जगतियानी कहाँ है मिला नहीं बहुत दिनों से!
- हा हा हा बहुत खूब चंद्रा साब. आइये कौन सा बनाऊं आपके लिए? सोडा और पानी तो फिफ्टी फिफ्टी है ना जी! ऐसी कोई बात नहीं मुझे याद है जी चंद्रा साब. ये लीजिये सर.
- जगतियानी व्हाट इस कुकिंग?
- सर एक प्रोजेक्ट लगवा रहा हूँ. एक एकड़ जमीन फाइनल हो गई है, बयाना हो गया है. 143 के लिए अप्लाई कर दिया है. ठेकेदार से बिल्डिंग की बात हो गई है 32 cr का प्रोजेक्ट है.
- ये तो बताओ किस चीज़ की यूनिट है?
- ये हुई ना असली बैंकर की बात चंद्रा साब. फट नब्ज़ पकड़ ली. सर दवाइयां बनानी हैं.
- भाई पोल्लूशन का बड़ा लफड़ा रहता है उसमें तो?
- सर ये बन्दे की दूसरी यूनिट है. पूरा जानकार है. साथ में सर जमीन से करीबन 700 गज पर बरसाती नाला है, बस छुट्टी कोई ऐसी बात नहीं सर!
- लंबा प्रोजेक्ट है तब तक तो मैं रिटायर हो जाउंगा भई.
- अरे सर आपने तो जगतियानी से पहले भी डील करा है. पूरा पूरा ख्याल रखता हूँ चंद्रा साब. ऐसी कोई बात नहीं सर जी. आप तो सिर्फ इन प्रिंसिपल सेंकशन करा दो बस आपको रिटायरमेंट पार्टी के बाद नई गाड़ी में घर छुड़वाऊंगा सर ऐसी कोई बात ही नहीं.
- हूँ ! अच्छा एक लार्ज बनाओ.
- लो सर लो सर ऐसी कोई बात नहीं जी.
मेहता जी भी आ गए और बोले,
- चंद्रा साब सुधर जाओ आपकी टम्मी कहाँ जा रही है?
- ओ ठीक है ना यार
- जैसी मर्ज़ी आपकी. भाभी से मिलकर आ रहा हूँ. कोई मोटापा नहीं. अपना ध्यान रखती हैं और आप हो की मानते नहीं. जनाब की मर्ज़ी!
- छोड़ ना यार.
चंद्रा साब का मूड ऑफ हो गया. एक लार्ज और गटक गए खाना खाया और पत्नी को खोजने लगे. मिली तो लाल आँखें दिखा कर बोले,
- चलो!
- आई जी.

मिसेज़ चंद्रा ने चलने से पहले अपनी सहेली से कहा की पार्टी में आये तो बड़े शौक से थे पर अब जाने क्यूँ मूड ऑफ हो गया है?
पार्टी की तैयारी 


      

Sunday, 23 June 2019

फ़िल्टर कॉफ़ी

फ़िल्टर कॉफ़ी का आनंद 
जब भी बैंगलोर या दक्षिण भारत जाना होता है तो चाय बंद हो जाती है और उस की जगह कॉफ़ी ले लेती है. कुछ मौसम का या शायद कॉफ़ी की खुशबू का असर होता है जिसके कारण चाय के बजाए कॉफ़ी पीने का मन करता है. एक और कारण भी है साउथ में चाय के ढाबे कम हैं और 'कॉफ़ी हाउस' ज्यादा लोकप्रिय हैं. सभी राजमार्गों पर जगह जगह दोसे, चावल-सांभर, इडली वड़े के साथ कॉफ़ी ही मिलती है. पूछताछ करने पर किस्सा-ए-कॉफ़ी कुछ यूँ पता लगा -
   
* फ़िल्टर कॉफ़ी या जिसे आम भाषा में यहाँ 'कॉपी' या कोप्पि पुकारते हैं, केवल दक्षिण भारत में ही बनाई जाती है. कॉफ़ी बीन्स को भून कर पाउडर बनाया जाता है. थोड़ा सा पाउडर लेकर उसके ऊपर उबलता हुआ पानी और फिर उबलता हुआ दूध डाला जाता है. चीनी मिलाइए और 'फ़िल्टर कॉपी' तैयार. इसे मद्रास फ़िल्टर कॉपी, कुम्बकोणम कॉपी, मायलापोर कोप्पि या मैसूर कोप्पि भी कहते हैं. यहाँ कॉफ़ी पाउडर में भुनी हुई चिकोरी ( या सिकोरी या कासनी ) पाउडर भी 10 से 30 प्रतिशत तक मिलाया जाता है.

* कॉफ़ी का उत्पादन बहुत पहले से यमन और कई अरब देशों में होता था और वो लोग इसको दवाई की तरह इस्तेमाल करते थे. इसकी जानकारी बड़ी सीक्रेट रखते थे. लोक कथा है कि कर्णाटक के सूफी संत बाबा बुदन सन 1600 में हज करने गए. वापसी में यमन से कॉफ़ी की सात बीन्स या फलियाँ अपने कपड़ों में छुपा कर ले आये ( कुछ लोग कहते हैं कि दाढ़ी में छुपा कर ले आए ). बहरहाल उन्होंने वापिस आकर चन्द्रागिरी में कॉफ़ी के बीज बो दिए, पौधे निकल आए और कुछ समय बाद कॉफ़ी की फलियाँ भी निकल आईं. इस तरह से कॉफ़ी भारत में भी शुरू हो गई. बाद में चंद्रागिरी पहाड़ी का नाम बाबा बुदन गिरी रख दिया गया.

* दो तरह की कॉफ़ी मशहूर है - अरेबिक और रोबस्टा ( arabic or robusta ). कॉफ़ी के बागान कर्णाटक में कोडागु, चिकमंगलूर और हासन जिलों में हैं, तमिलनाडु में नीलगिरी, यारकुड और कोडाईकनाल में हैं, आंध्र में अराकू घाटी में हैं और केरल के मालाबार इलाके में हैं.

फ़िल्टर कोप्पि की जगह उत्तर भारत में एस्प्रेसो कॉफ़ी ही चलती है वो भी शादी वगैरा में. घर में कॉफ़ी पीने का रिवाज़ कम है. अब अगर आपने फ़िल्टर कोप्पि का मज़ा लेना हो तो आपको कॉफ़ी हाउस तलाश करना पड़ेगा. या फिर ठेठ मद्रासी रेस्टोरेंट. आजकल दिल्ली और आसपास कैफ़े काफी खुल गए हैं जिनमें कई तरह की एस्प्रेसो स्टाइल की कॉफ़ी मिलती हैं पर फ़िल्टर कोप्पि नहीं मिलती.

पिछले दिनों मेरठ में एक साउथ इंडियन रेस्टोरेंट के मीनू में लिखी फ़िल्टर कोप्पि देखि तो मंगा ली. छोटे से ख़ास तरह के स्टील के गिलास और कटोरी में पेश की जाती है ये कोप्पि. इस गिलास और कटोरी को शायद डेबरा या डेवरा कहते हैं. पी कर आनंद आया और बैंगलोर की फ़िल्टर कोप्पि याद आ गई ! मौका लगे तो आप भी फ़िल्टर कोप्पि का मज़ा लें.
फ़िल्टर कोप्पि 


Monday, 3 June 2019

World Bicycle Day

The Blog and the ChatGPT : Part I of this blog was published on 03.06.2019, that is on World Bicycle Day. Since then lot of water has flown under the bridge and now AI based ChatGPT has made its appearance. As an experiment I referred Part I to ChatGPT as to how this article could be made more interesting. His (or may be her) suggestions came promptly to my surprise. These suggestions and my replies thereto  appear in Part II.  




Part I 
June third is celebrated as World Bicycle Day.
Cycling is fun,
cycling is exercise,
cycling is easy on pocket and 
cycling is eco friendly activity. 
According to World Health Organisation.....walking and cycling can provide a form of transport while reducing the risk of heart disease, stroke, certain cancers, diabetes etc. It is healthy, it is also equitable and cost-effective.
Start today!

That's our 'tandem' bicycle bought in 2015. 


Additional driver means more speed and more fun! 

Shweta & Rohit Taneja ready to go 

Suman, Amit Bhatt & their twins from Delhi trying tandem bicycle

Members of Cyclofit Club, Meerut riding 'tandem' bicycle. In many countries 3 or 4 seater cycles are also available but are not seen in India


Swati and Vijay Bhatt of Dehradun having fun

PART II
Suggestions of ChatGPT are given below in bold letters:
1. Add more context: The article could benefit from more context on why World Bicycle Day was established and its importance. For example, you could provide information on the health and environmental benefits of cycling as well as statistics on the number of people who use bicycles as a mode of transportation around the world.
Reply: I checked up United Nation's site wherein UN declares World Bicycle Day for following reasons: 

"Acknowledging the uniqueness, longevity and versatility of the bicycle, which has been in use for two centuries, and that it is a simple, affordable, reliable, clean and environmentally fit sustainable means of transportation, fostering environmental stewardship and health, the General Assembly decided to declare 3 June World Bicycle Day."

Well ChatGPT you had a point there thank you 👍

Statistics 

Well it is difficult to find world figures relating to cycles. It is guestimated that figure could be as high as one billion to 1.5 billion. Highest number of cycles are in China estimated to be 45 crores.  Largest manufacturers and exporters of cycles are China, India and Vietnam. Highest per capita number of cycles are in Netherlands where even ministers also use cycles for commuting to office. 

As regards India, cycle made its appearance in 1890. Initially most of the cycles came from Britain. A survey conducted by Min of Health and Family Welfare in 2019-21, only 8% of Indian households own cars, 55% have scooters and motorcycles and 54% have cycles. Sale of cycles has gone up by 15% after lockdowns and is estimated to go up to one crore cycles per annum by 2027. Eastern India has more cycles than other parts of India. West Bengal tops in number of cycles in households compared to other states of India. Ludhiana and Sonepat are manufacturing hubs of cycles in India. Absolute numbers for cycles could not be found. Cycle friendly cities as mentioned in various sites on internet are Bangaluru, Delhi NCR, Chandigarh and Bhubneshwar.   


2. Add some personal experiences: Personal anecdotes or experiences can make an article more engaging and relatable. You could consider adding a personal story or interview with someone who regularly cycles and why they find it enjoyable or beneficial.
Reply: As for personal experience of bicycle, I learnt to ride a cycle at the age of 10 or 11 perhaps, using help and cycles of friends. I got my own cycle when I passed High School. Such a coveted prize and what fun riding independently! Used to clean it daily taking care not to tear off brown paper and board wrapped around various parts of the cycle. Kept it well oiled and used it daily for going to inter mediate college and thereafter to college as well 😁 
3. Provide more resources: At the end of the article, you could provide links or resources for readers who are interested in learning more about cycling, such as local bike clubs, cycling advocacy organisations, or tips for safe cycling.
Reply: If you look for 'bike' in google most of the responses are of scooters and motorcycles therefore look for cycle or cycling instead. However on browsing further I could locate an e-magazine- cyclists.in. Simple and plain website useful to cyclists. Supposed to be first such e-mag in India. Cycle India Magazine is available in Facebook. Many local city cycle clubs can be found in Facebook. Here in Meerut club named Cyclofit is operating successfully and is available in Facebook.

4. Formatting and readability: The article could benefit from better formatting and organisation to make it more readable. For example: you could break up long paragraphs into shorter ones and use subheadings to divide the content into sections.
Reply: There were and are not many paragraphs. Nevertheless ChatGPT, I have noted this! 😎 

Cyclofit Club has a catchy slogan-"When in doubt pedal it out"