चौंसठ योगिनी मंदिर का नाम जैसा अनोखा है वैसा ही मंदिर भी अनोखा पर बहुत सुंदर है. इस गोलाकार मंदिर में 64 cell या प्रकोष्ठ हैं जिनके द्वार गर्भ गृह की ओर खुले हुए हैं. इनमें से ज्यादातर में शिवलिंग है पर और कोई मूर्ति नहीं है. बीच के बहुत बड़े गोलाकार आँगन में एक गोलाकार चबूतरे पर मंडप में गर्भ गृह है जिसमें शिव लिंग स्थापित है. इस सुंदर गोलाकार चौंसठ योगिनी मंदिर का दूसरा नाम इकोत्तरसो या इकंतेश्वर महादेव मंदिर भी बताया जाता है. इकोत्तरसो / इकंतेश्वर जैसे शब्द क्यूँ इस्तेमाल में आए इसके बारे में पता नहीं लगा.
ये मंदिर मध्य प्रदेश के मोरेना जिले के मितावली ( अंग्रेज़ी में Mitawali / Mitaoli / Mitavali ) गाँव में है. वैसे मितावली गाँव ग्वालियर से 40 किमी दूर है और ग्वालियर से मंदिर तक आना जाना ज्यादा आसान है. मितावली गाँव के खेतों के बीच में सौ फुट ऊँची एक पहाड़ी है जिस पर ये मंदिर बना हुआ है. ऊपर चढ़ने के लिए आड़े टेढ़े पत्थरों को सौ पायदान वाली सीढ़ी है. पहाड़ी के ऊपर बड़ी और चौड़ी चट्टानें हैं जिस पर ये गोलाकार मंदिर बनाया गया है. गोले का व्यास 340 फुट है. मुख्य मंदिर के ऊपर या 64 प्रकोष्ठों के ऊपर सपाट छत है और कोई शिखर नहीं है. ASI का कहना है की शिखर थे पर अगर कभी रहे हों तो अब नहीं है. मंदिर का उद्धार धीरे धीरे पिछले सौ वर्षों में ही हुआ है. मंदिर में 1323 के लिखे हुए एक अभिलेख - inscription के अनुसार ये मंदिर राजा देवपाल ( राज काज 1055- 1075 ) ने बनवाया था. ASI ने राजा देवपाल का नाम तो लिखा है पर 1055-1075 का जिक्र नहीं किया है. इसी तरह के गोलाकार चौंसठ योगिनी मंदिर हीरापुर ओडिशा, रानीपुर ओडिशा और जबलपुर में भी हैं. एक चौंसठ योगिनी मंदिर खजुराहो में भी है परन्तु वह गोलाकार ना होकर आयताकार है.
योगी / योगिन / योगिनी या जोगी जोगिन शब्द तो परिचित शब्द हैं. इन शब्दों का इस्तेमाल हिन्दू, जैन और तांत्रिक बौद्ध साहित्य में हुआ है. पर यहाँ पूरा का पूरा मंदिर ही जोगिनों को समर्पित है. इसका क्या उद्देश्य या कैसा उपयोग रहा होगा यह तो इतिहास में दबा ही रह गया. इतना ज़रूर है कि इन चौंसठ योगिनियों के नाम और चौंसठ ही मन्त्र इन्टरनेट में मिल जाएंगे जिनका सम्बन्ध तांत्रिक विद्या से बताया जाता है. वहां मौजूद पंडित जी भी ज्यादा बता नहीं पाए. उनके अनुसार पार्वती अपनी 64 योगिनियों के साथ भगवान् शिव को रिझाने के लिए या फिर उनकी आराधना करने के लिए यहाँ आती थी.
कुछ लोगों का ये भी कहना है की नई दिल्ली के संसद भवन का डिजाईन भी यहीं से लिया गया है. इस बात की पुख्ता जानकारी नहीं मिली.
अगर आप जाना चाहें तो मोरेना से या ग्वालियर से जा सकते हैं. बसों के बजाए अपनी गाड़ी या पूरे दिन की टैक्सी बेहतर रहेगी. इस मंदिर के अलावा आप बटेसर मंदिर, गढ़ी पड़ावली और शनिचरा भी देख सकेंगे. ध्यान रहे कि दोपहर की धूप यहाँ तीखी है और पत्थर / चट्टानें गर्म हो जाती हैं. आसपास कोई रेस्टोरेंट नहीं है. GPS भी बीच बीच में गायब हो जाता है. टिकट नहीं है और गाइड भी नहीं मिलते. आधी अधूरी भावनात्मक जानकारी स्थानीय लोगों से मिलती है. इन स्मारकों के आस पास साफ़ सफाई की कमी है और ये सभी सुंदर और कीमती धरोहर उपेक्षा की शिकार लगती है.
शुभकामनाओं के साथ कुछ फोटो प्रस्तुत हैं:
मंदिर के अंदर का 29 सेकंड का वीडियो >
ये मंदिर मध्य प्रदेश के मोरेना जिले के मितावली ( अंग्रेज़ी में Mitawali / Mitaoli / Mitavali ) गाँव में है. वैसे मितावली गाँव ग्वालियर से 40 किमी दूर है और ग्वालियर से मंदिर तक आना जाना ज्यादा आसान है. मितावली गाँव के खेतों के बीच में सौ फुट ऊँची एक पहाड़ी है जिस पर ये मंदिर बना हुआ है. ऊपर चढ़ने के लिए आड़े टेढ़े पत्थरों को सौ पायदान वाली सीढ़ी है. पहाड़ी के ऊपर बड़ी और चौड़ी चट्टानें हैं जिस पर ये गोलाकार मंदिर बनाया गया है. गोले का व्यास 340 फुट है. मुख्य मंदिर के ऊपर या 64 प्रकोष्ठों के ऊपर सपाट छत है और कोई शिखर नहीं है. ASI का कहना है की शिखर थे पर अगर कभी रहे हों तो अब नहीं है. मंदिर का उद्धार धीरे धीरे पिछले सौ वर्षों में ही हुआ है. मंदिर में 1323 के लिखे हुए एक अभिलेख - inscription के अनुसार ये मंदिर राजा देवपाल ( राज काज 1055- 1075 ) ने बनवाया था. ASI ने राजा देवपाल का नाम तो लिखा है पर 1055-1075 का जिक्र नहीं किया है. इसी तरह के गोलाकार चौंसठ योगिनी मंदिर हीरापुर ओडिशा, रानीपुर ओडिशा और जबलपुर में भी हैं. एक चौंसठ योगिनी मंदिर खजुराहो में भी है परन्तु वह गोलाकार ना होकर आयताकार है.
योगी / योगिन / योगिनी या जोगी जोगिन शब्द तो परिचित शब्द हैं. इन शब्दों का इस्तेमाल हिन्दू, जैन और तांत्रिक बौद्ध साहित्य में हुआ है. पर यहाँ पूरा का पूरा मंदिर ही जोगिनों को समर्पित है. इसका क्या उद्देश्य या कैसा उपयोग रहा होगा यह तो इतिहास में दबा ही रह गया. इतना ज़रूर है कि इन चौंसठ योगिनियों के नाम और चौंसठ ही मन्त्र इन्टरनेट में मिल जाएंगे जिनका सम्बन्ध तांत्रिक विद्या से बताया जाता है. वहां मौजूद पंडित जी भी ज्यादा बता नहीं पाए. उनके अनुसार पार्वती अपनी 64 योगिनियों के साथ भगवान् शिव को रिझाने के लिए या फिर उनकी आराधना करने के लिए यहाँ आती थी.
कुछ लोगों का ये भी कहना है की नई दिल्ली के संसद भवन का डिजाईन भी यहीं से लिया गया है. इस बात की पुख्ता जानकारी नहीं मिली.
अगर आप जाना चाहें तो मोरेना से या ग्वालियर से जा सकते हैं. बसों के बजाए अपनी गाड़ी या पूरे दिन की टैक्सी बेहतर रहेगी. इस मंदिर के अलावा आप बटेसर मंदिर, गढ़ी पड़ावली और शनिचरा भी देख सकेंगे. ध्यान रहे कि दोपहर की धूप यहाँ तीखी है और पत्थर / चट्टानें गर्म हो जाती हैं. आसपास कोई रेस्टोरेंट नहीं है. GPS भी बीच बीच में गायब हो जाता है. टिकट नहीं है और गाइड भी नहीं मिलते. आधी अधूरी भावनात्मक जानकारी स्थानीय लोगों से मिलती है. इन स्मारकों के आस पास साफ़ सफाई की कमी है और ये सभी सुंदर और कीमती धरोहर उपेक्षा की शिकार लगती है.
शुभकामनाओं के साथ कुछ फोटो प्रस्तुत हैं:
चौंसठ योगिनी मंदिर का आँगन |
प्रवेश द्वार |
प्रवेश के दाहिनी ओर पूजा |
परिक्रमा |
इस प्रकार के 34 खम्बे हैं |
गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग |
मंदिर में अभी भी पूजा पाठ होती है |
गर्भ गृह के पहले वृत्त में 17 खम्बे हैं , बीच के वृत्त में 34 और तीसरे बड़े वृत्त में 68 खम्बे हैं |
ऐसे दो शिवलिंग गर्भ गृह के बाहर हैं |
कुछ पल आराम के! यहाँ तक आना मुश्किल जरूर था पर इस पुरातन मंदिर की बनावट, पत्थर का काम और सुन्दरता देख कर बहुत ख़ुशी हुई और थकावट दूर हो गई |
पहाड़ी के ऊपर |
ASI का नोटिस बोर्ड. ये भी लिखा है कि पहाड़ी की तलहटी में भारी भरकम आभूषणों युक्त आदमकद कुषाण कालीन पाषाण प्रतिमाएं प्राप्त हुई है जो ग्वालियर किले के म्यूजियम में रखी गई हैं |
इस छोटे से केबिन में कोई मूर्ती नहीं है |
पहाड़ी पर बना मंदिर दूर से संसद भवन जैसा लगता है. यह अधूरी मूर्ती शायद नंदी की लगती है. ये कब लगाईं गई इसका पता नहीं लगा |
आड़ी तिरछी पत्थर की सीढ़ी पर सौ फुट ऊँची चढ़ाई |
पहाड़ी की तलहटी में शायद गार्ड रूम बना होगा. अब गाँव के लोगों के लिए आरामगाह है |
बाहर का दृश्य |