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Monday, 29 October 2018

चौंसठ योगिनी मंदिर, मोरेना

चौंसठ योगिनी मंदिर का नाम जैसा अनोखा है वैसा ही मंदिर भी अनोखा पर बहुत सुंदर है. इस गोलाकार मंदिर में 64 cell या प्रकोष्ठ हैं जिनके द्वार गर्भ गृह की ओर खुले हुए हैं. इनमें से ज्यादातर में शिवलिंग है पर और कोई मूर्ति नहीं है. बीच के बहुत बड़े गोलाकार आँगन में एक गोलाकार चबूतरे पर मंडप में गर्भ गृह है जिसमें शिव लिंग स्थापित है. इस सुंदर गोलाकार चौंसठ योगिनी मंदिर का दूसरा नाम इकोत्तरसो या इकंतेश्वर महादेव मंदिर भी बताया जाता है. इकोत्तरसो / इकंतेश्वर जैसे शब्द क्यूँ इस्तेमाल में आए इसके बारे में पता नहीं लगा.

ये मंदिर मध्य प्रदेश के मोरेना जिले के मितावली ( अंग्रेज़ी में Mitawali / Mitaoli / Mitavali ) गाँव में है. वैसे मितावली गाँव ग्वालियर से 40 किमी दूर है और ग्वालियर से मंदिर तक आना जाना ज्यादा आसान है. मितावली गाँव के खेतों के बीच में सौ फुट ऊँची एक पहाड़ी है जिस पर ये मंदिर बना हुआ है. ऊपर चढ़ने के लिए आड़े टेढ़े पत्थरों को सौ पायदान वाली सीढ़ी है. पहाड़ी के ऊपर बड़ी और चौड़ी चट्टानें हैं जिस पर ये गोलाकार मंदिर बनाया गया है. गोले का व्यास 340 फुट है. मुख्य मंदिर के ऊपर या 64 प्रकोष्ठों के ऊपर सपाट छत है और कोई शिखर नहीं है. ASI का कहना है की शिखर थे पर अगर कभी रहे हों तो अब नहीं है. मंदिर का उद्धार धीरे धीरे पिछले सौ वर्षों में ही हुआ है. मंदिर में 1323 के लिखे हुए एक अभिलेख - inscription के अनुसार ये मंदिर राजा देवपाल ( राज काज 1055- 1075 ) ने बनवाया था. ASI ने राजा देवपाल का नाम तो लिखा है पर 1055-1075 का जिक्र नहीं किया है. इसी तरह के गोलाकार चौंसठ योगिनी मंदिर हीरापुर ओडिशा, रानीपुर ओडिशा और जबलपुर में भी हैं. एक चौंसठ योगिनी मंदिर खजुराहो में भी है परन्तु वह गोलाकार ना होकर आयताकार है.

योगी / योगिन / योगिनी या जोगी जोगिन शब्द तो परिचित शब्द हैं. इन शब्दों का इस्तेमाल हिन्दू, जैन और तांत्रिक बौद्ध साहित्य में हुआ है. पर यहाँ पूरा का पूरा मंदिर ही जोगिनों को समर्पित है. इसका क्या उद्देश्य या कैसा उपयोग रहा होगा यह तो इतिहास में दबा ही रह गया. इतना ज़रूर है कि इन चौंसठ योगिनियों के नाम और चौंसठ ही मन्त्र इन्टरनेट में मिल जाएंगे जिनका सम्बन्ध तांत्रिक विद्या से बताया जाता है. वहां मौजूद पंडित जी भी ज्यादा बता नहीं पाए. उनके अनुसार पार्वती अपनी 64 योगिनियों के साथ भगवान् शिव को रिझाने के लिए या फिर उनकी आराधना करने के लिए यहाँ आती थी.

कुछ लोगों का ये भी कहना है की नई दिल्ली के संसद भवन का डिजाईन भी यहीं से लिया गया है. इस बात की पुख्ता जानकारी नहीं मिली.

अगर आप जाना चाहें तो मोरेना से या ग्वालियर से जा सकते हैं. बसों के बजाए अपनी गाड़ी या पूरे दिन की टैक्सी बेहतर रहेगी. इस मंदिर के अलावा आप बटेसर मंदिर, गढ़ी पड़ावली और शनिचरा भी देख सकेंगे. ध्यान रहे कि दोपहर की धूप यहाँ तीखी है और पत्थर / चट्टानें गर्म हो जाती हैं. आसपास कोई रेस्टोरेंट नहीं है. GPS भी बीच बीच में गायब हो जाता है. टिकट नहीं है और गाइड भी नहीं मिलते. आधी अधूरी भावनात्मक जानकारी स्थानीय लोगों से मिलती है. इन स्मारकों के आस पास साफ़ सफाई की कमी है और ये सभी सुंदर और कीमती धरोहर उपेक्षा की शिकार लगती है.
शुभकामनाओं के साथ कुछ फोटो प्रस्तुत हैं:

चौंसठ योगिनी मंदिर का आँगन 
प्रवेश द्वार 

प्रवेश के दाहिनी ओर पूजा 

परिक्रमा 

इस प्रकार के 34 खम्बे हैं 

गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग 

मंदिर में अभी भी पूजा पाठ होती है 

गर्भ गृह के पहले वृत्त में 17 खम्बे हैं , बीच के वृत्त में 34 और तीसरे बड़े वृत्त में 68 खम्बे हैं 

ऐसे दो शिवलिंग गर्भ गृह के बाहर हैं 

कुछ पल आराम के! यहाँ तक आना मुश्किल जरूर था पर इस पुरातन मंदिर की बनावट, पत्थर का काम और सुन्दरता देख कर बहुत ख़ुशी हुई और थकावट दूर हो गई 
पहाड़ी के ऊपर  

ASI का नोटिस बोर्ड. ये भी लिखा है कि पहाड़ी की तलहटी में भारी भरकम आभूषणों युक्त आदमकद कुषाण कालीन पाषाण प्रतिमाएं प्राप्त हुई है जो ग्वालियर किले के म्यूजियम में रखी गई हैं  

इस छोटे से केबिन में कोई मूर्ती नहीं है 

पहाड़ी पर बना मंदिर दूर से संसद भवन जैसा लगता है. यह अधूरी मूर्ती शायद नंदी की लगती है. ये कब लगाईं गई इसका पता नहीं लगा  

आड़ी तिरछी पत्थर की सीढ़ी पर सौ फुट ऊँची चढ़ाई 

पहाड़ी की तलहटी में शायद गार्ड रूम बना होगा. अब गाँव के लोगों के लिए आरामगाह है 


बाहर का दृश्य 
मंदिर के अंदर का 29 सेकंड का वीडियो >






Friday, 26 October 2018

ज़ीरो माइल स्टोन

दिल्ली के राजघाट और मुम्बई के होर्निमैन सर्किल में क्या सम्बन्ध है? इस प्रश्न का उत्तर ये है कि दोनों जगहों पर ज़ीरो माइल स्टोन हैं याने जहां से दूरियां नापी जाती हैं. इसी तरह हैदराबाद में आल इंडिया रेडियो के पास, नागपुर में रिज़र्व बैंक चौराहे के पास और मेरठ में बेगम पुल के पास ज़ीरो मील पत्थर लगे हुए हैं. आपके शहर में भी एक ज़ीरो का मील पत्थर होगा जो दूरियां नापने का मानक या standard benchmark माना जाता है.

तो फिर देश का ज़ीरो माइल स्टोन कहाँ है? ज्यादातर देशों में ज़ीरो उन देशों की राजधानी में है. परन्तु भारत में 1907 में नागपुर को ब्रिटिश राज का केंद्र बिंदु मान कर ज़ीरो माइल स्टोन का पत्थर लगाया गया. इस पत्थर से राजघाट दिल्ली के ज़ीरो मील पत्थर की दूरी 1078 किमी है. इसी पत्थर से समुद्री सतह - mean sea level की  ऊँचाई भी नापी गई.

नीचे दी हुई पहली फोटो ज़ीरो माइल स्टोन नागपुर की है जिसमे बलुए पत्थर का खम्बा 6.5 मी ऊँचा है. खम्बे का गोलाकार आधार 7.90 मी व्यास का है. इसके उपर का चबूतरा षटकोणीय है जिस पर आठ शहरों के नाम और उनकी दूरीयां दर्ज हैं जैसे कि हैदराबाद 318 मील.

तीसरी फोटो में एक पत्थर है जिस पर G.T.S लिखा हुआ है याने Great Trigonometrical Survey. पहला सर्वे 1802 में ईस्ट इंडिया कंपनी के फौजी ऑफिसर विलियम लैम्पटन ने शुरू कराया जो रुक रुक कर चलता रहा और 1871 में सम्पूर्ण अविभाजित भारत का पहला नक्शा तैयार हुआ. नपाई की एक खासियत थी की इसकी शुरुआत एक त्रिभुज से की गई और उसमें आगे त्रिभुज जोड़ते चले गए. पहला त्रिभुज मद्रास / चिन्नई, में बनाया गया. इस त्रिभुज का आधार 7.5 मील लम्बी समतल लाइन थी, एक भुजा माउंट डेल्ले की पहाड़ी तक थी और दूसरी तड़ीयाडमोल पहाड़ी तक. यहाँ से फिर भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी समुद्र तट याने चेन्नई तट से पश्चिमी तट तक के सर्वे में पांच साल लगे थे.

ज़ीरो मील पत्थर का स्मारक राष्ट्रीय राजमार्ग 7 पर है. स्मारक देखने का कोई टिकट नहीं है क्यूंकि ये सड़क के किनारे ही है और 24 घंटे खुला है कभी भी देखा जा सकता है. पार्किंग की जगह नहीं है. चार घोड़े और खम्बा किसने लगाया इसका रिकॉर्ड नहीं है.

बहरहाल आपके शहर का ज़ीरो मील पत्थर याने खूँटी कहाँ है?

1. ज़ीरो माइल स्टोन नागपुर 

2. ज़ीरो मील पत्थर - भारत का केंद्र 

3. ये वो पत्थर है जिसे शून्य बिंदु मान कर शहरों की दूरियां नापी गईं Standard Bench Mark

भारत के नक़्शे में ज़ीरो मील पत्थर 

विकिपीडिया से साभार - ये नक्शा जो Great Trigonometrical Survey में इस्तेमाल किया गया. त्रिभुजों की सहायता से नपाई की गई   




Tuesday, 23 October 2018

तेली का मंदिर, ग्वालियर

ग्वालियर के किले में स्थित तेली का मंदिर अनूठा मंदिर है. यह मंदिर लगभग तीस मीटर ऊँचा है और इस विशालकाय मंदिर की बनावट में नागर और द्रविड़ शैलियों का मिश्रण है. मंदिर के अगले भाग की बनावट शिखर  ^  जैसी है परन्तु उस के ऊपर  T  की तरह, द्रविड़ शैली का गोपुरम भी है. मंदिर विष्णु, शिव और शक्ति को समर्पित है पर फिलहाल अंदर कोई मूर्ति नहीं है शिवलिंग है. दीवारों पर तरह तरह की नक्काशी है जिनमें गरुड़ प्रमुख है. चार दिशाओं में दरवाज़े हैं परन्तु पूर्वी प्रवेश ही खुला है. बाकी तीन दिशाओं के दरवाज़ों पर एहतियातन पत्थर लगा दिए गए हैं. हज़ार बारह सौ साल पुराने मंदिर में जगह जगह दरारें पड़ी हुई हैं.

तेली का मंदिर कब बना इस के बारे में इतिहासकार सहमत नहीं हैं और सन 700 से लेकर सन 900 तक के अलग अलग समय बताते हैं. शायद इसीलिए बनाने वाले के बारे में भी पुख्ता जानकारी नहीं है. बनावट, डिजाईन और शैली के अनुसार गुर्जर-प्रतिहार काल में बना माना जाता है. कुछ का कहना है की गुर्जर-प्रतिहार राजा मिहिर भोज ( जिन्होंने सन 836 से 885 तक राज किया ) के राज काल में बनाया गया होगा. बहरहाल पहले कुतुबुद्दीन ऐबक और फिर इल्तुतमश के हमले में 1231 में मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा. इसके बाद मंदिर का खंडहर झाड़ झंखाड़ से ढक गया. कुछ समय बाद जब किले पर मराठा शासन हुआ तो उस दौरान मंदिर में सुधार किया गया.

फिर किले पर अंग्रेजों ने हमला बोला और अधिकार जमा लिया. फिर मन्दिर छुप गया. किले में ब्रिटिश फ़ौज एक टुकड़ी तैनात कर दी गई. 1881- 82 में मेजर कीथ ने किले के अंदर की तीन इमारतों - मान मंदिर महल, तेली का मंदिर और सहस्त्र बाहू मंदिर का जीर्णोद्धार किया. इस काम पर 7625 रूपए शाही ब्रिटिश खजाने से खर्च हुए और 4000 रुपए महाराजा सिंदिया की और से खर्चे गए.

मंदिर के नामकरण के बारे में भी अलग अलग विचार हैं. मंदिर किसी तेली ने बनाया या फिर तेल के व्यापारियों ने मिलकर बनाया इस सवाल का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है. विकिपीडिया में इसे तेलकी मंदिर भी कहा गया है. हम हिन्दुस्तानी कहाँ अपनी धरोहर पर ध्यान देते हैं जो नाम पर ध्यान दें या खोज कर के सही बात का पता लगाएं. सब चलता है! तेली के मंदिर के पास ही सहस्त्रबाहू मंदिर भी है जिसे आम भाषा में सास बहु मंदिर नाम दे दिया गया है! इत्तेफाक से सहस्त्रबाहु मंदिर असल में दो मंदिर हैं एक बड़ा और दूसरा छोटा. बड़े को सास मंदिर और छोटे को बहू मंदिर पुकारा जाता है.

मंदिर सुबह से शाम तक खुला है. किले के टिकट पर ये मंदिर भी देखा जा सकता है. मंदिर में कोई गाइड हमें मिला नहीं. अगर आपने जाना हो तो दोपहर की धूप से बचें और पानी का इंतज़ाम रखें. अपनी गाड़ी से अगर किले में जा रहे हों तो उरवाई गेट की तरफ से जाएं. सड़क के कुछ हिस्से में खड़ी चढ़ाई है और सड़क संकरी इसलिए सावधानी रखनी होगी. इस मंदिर की ऊँचाई को देखते हुए और ऊँचाई पर की गई नकाशी की फोटो के लिए बेहतर कैमरे की जरूरत है.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो जो मोबाइल और आईपैड से ली गई हैं:


तेली का मंदिर 

मंदिर का प्रवेश द्वार जो कभी बाद में बना 

मंदिर बहुत ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है 

बचाव के लिए पत्थर के खम्बे और स्लैब लगाए हुए हैं 


मंदिर के बाएँ भाग का दृश्य 

मेजर कीथ का लगाया पत्थर 

अंदर की ओर से नज़र आता तोरण 

हरियाली में छुपा मंदिर