Pages

Sunday 23 June 2019

फ़िल्टर कॉफ़ी

फ़िल्टर कॉफ़ी का आनंद 
जब भी बैंगलोर या दक्षिण भारत जाना होता है तो चाय बंद हो जाती है और उस की जगह कॉफ़ी ले लेती है. कुछ मौसम का या शायद कॉफ़ी की खुशबू का असर होता है जिसके कारण चाय के बजाए कॉफ़ी पीने का मन करता है. एक और कारण भी है साउथ में चाय के ढाबे कम हैं और 'कॉफ़ी हाउस' ज्यादा लोकप्रिय हैं. सभी राजमार्गों पर जगह जगह दोसे, चावल-सांभर, इडली वड़े के साथ कॉफ़ी ही मिलती है. पूछताछ करने पर किस्सा-ए-कॉफ़ी कुछ यूँ पता लगा -
   
* फ़िल्टर कॉफ़ी या जिसे आम भाषा में यहाँ 'कॉपी' या कोप्पि पुकारते हैं, केवल दक्षिण भारत में ही बनाई जाती है. कॉफ़ी बीन्स को भून कर पाउडर बनाया जाता है. थोड़ा सा पाउडर लेकर उसके ऊपर उबलता हुआ पानी और फिर उबलता हुआ दूध डाला जाता है. चीनी मिलाइए और 'फ़िल्टर कॉपी' तैयार. इसे मद्रास फ़िल्टर कॉपी, कुम्बकोणम कॉपी, मायलापोर कोप्पि या मैसूर कोप्पि भी कहते हैं. यहाँ कॉफ़ी पाउडर में भुनी हुई चिकोरी ( या सिकोरी या कासनी ) पाउडर भी 10 से 30 प्रतिशत तक मिलाया जाता है.

* कॉफ़ी का उत्पादन बहुत पहले से यमन और कई अरब देशों में होता था और वो लोग इसको दवाई की तरह इस्तेमाल करते थे. इसकी जानकारी बड़ी सीक्रेट रखते थे. लोक कथा है कि कर्णाटक के सूफी संत बाबा बुदन सन 1600 में हज करने गए. वापसी में यमन से कॉफ़ी की सात बीन्स या फलियाँ अपने कपड़ों में छुपा कर ले आये ( कुछ लोग कहते हैं कि दाढ़ी में छुपा कर ले आए ). बहरहाल उन्होंने वापिस आकर चन्द्रागिरी में कॉफ़ी के बीज बो दिए, पौधे निकल आए और कुछ समय बाद कॉफ़ी की फलियाँ भी निकल आईं. इस तरह से कॉफ़ी भारत में भी शुरू हो गई. बाद में चंद्रागिरी पहाड़ी का नाम बाबा बुदन गिरी रख दिया गया.

* दो तरह की कॉफ़ी मशहूर है - अरेबिक और रोबस्टा ( arabic or robusta ). कॉफ़ी के बागान कर्णाटक में कोडागु, चिकमंगलूर और हासन जिलों में हैं, तमिलनाडु में नीलगिरी, यारकुड और कोडाईकनाल में हैं, आंध्र में अराकू घाटी में हैं और केरल के मालाबार इलाके में हैं.

फ़िल्टर कोप्पि की जगह उत्तर भारत में एस्प्रेसो कॉफ़ी ही चलती है वो भी शादी वगैरा में. घर में कॉफ़ी पीने का रिवाज़ कम है. अब अगर आपने फ़िल्टर कोप्पि का मज़ा लेना हो तो आपको कॉफ़ी हाउस तलाश करना पड़ेगा. या फिर ठेठ मद्रासी रेस्टोरेंट. आजकल दिल्ली और आसपास कैफ़े काफी खुल गए हैं जिनमें कई तरह की एस्प्रेसो स्टाइल की कॉफ़ी मिलती हैं पर फ़िल्टर कोप्पि नहीं मिलती.

पिछले दिनों मेरठ में एक साउथ इंडियन रेस्टोरेंट के मीनू में लिखी फ़िल्टर कोप्पि देखि तो मंगा ली. छोटे से ख़ास तरह के स्टील के गिलास और कटोरी में पेश की जाती है ये कोप्पि. इस गिलास और कटोरी को शायद डेबरा या डेवरा कहते हैं. पी कर आनंद आया और बैंगलोर की फ़िल्टर कोप्पि याद आ गई ! मौका लगे तो आप भी फ़िल्टर कोप्पि का मज़ा लें.
फ़िल्टर कोप्पि 


17 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2019/06/blog-post.html

sunil kumar agrawal said...

मेरठ में किधर

Unknown said...

यह फोटो सागर रत्ना रैसटोरैनट मेरठ का लग रहा है यहां की काफ़ी का स्वाद दक्षिण भारत जैसा ही है भाई साहब घर पर कैसे कैसे बनाएं यह भी ब्लॉक में लिखो और यह वाले बर्तन कहां से मिलेंगे ब्लॉक बहुत अच्छा लगा

Unknown said...

अनजान अनिल जुनेजा

Sabhya Juneja said...

आजकल घर पे फिल्टर कॉफी कैसे बनाएं YouTube पर सिखाया जा रहा है।

Harsh Wardhan Jog said...

सुनील अग्रवाल ये सागर रत्ना रेस्तरां है जो लाल कुर्ती के पास है.

Harsh Wardhan Jog said...

अनिल जुनेजा साब धन्यवाद !ये फोटो सागर रत्ना का ही है. फ़िल्टर कॉफ़ी बनाने के लिए कॉफ़ी पाउडर लेना होगा. यहाँ मेरठ में पता नहीं कहाँ मिलेगा पर दिल्ली गया तो ले आऊंगा.

शिवम् मिश्रा said...

ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 23/06/2019 की बुलेटिन, " अमर शहीद राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी जी की ११८ वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Onkar said...

वाह,बहुत खूब

वाणी गीत said...

फिल्टर कॉफी का स्वाद निराला होता है. छोटी गिलास , कटोरी दक्षिण की याद दिला दी आपकी पोस्ट ने !

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद वाणी गीत !
मुझे खुद दक्षिण की याद आ गई. बैंगलोर या और आगे घुमने के वक्त फ़िल्टर कॉफ़ी का मज़ा आता था. खास किस्म की कटोरी और गिलास भी याद आता है.

Harsh Wardhan Jog said...

बहुत बहुत धन्यवाद शिवम् मिश्रा जी.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Onkar

Sunil Deepak said...

कॉफी का भारत का सारा इतिहास खूब खोज निकाला

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद सुनील दीपक.

A.K.SAXENA said...

वाह वाह क्या मजेदार जानकारी दी है फ़िल्टर कॉफ़ी की। अपनी दाढ़ि में छूपा के ले आये इसके बीज। अच्छी और मनोरंजक कथा।धन्यवाद्।

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Saxena ji.