मध्य प्रदेश का छोटा सा शहर खजुराहो अपने मंदिरों के कारण विश्व प्रसिद्द है. ये सभी मंदिर विश्व धरोहर - World Heritage Site में आते हैं. भोपाल से खजुराहो की दूरी 380 किमी है और झांसी से 175 किमी. खजुराहो हवाई जहाज, रेल या सड़क से पहुंचा जा सकता है. हर तरह के होटल और अन्य सुविधाएं उपलब्ध हैं.
खजुराहो की स्थापना करने वाले चन्देल राजा चंद्र्वर्मन थे जिन्होंने इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया था. चन्देल राजवंश ने लगभग नौवीं शताब्दी से लगभग तेरहवीं शताब्दी तक बुंदेलखंड के कुछ हिस्सों और उसके आस पास राज किया था. खजुराहो के ज्यादातर मंदिर सन 850 से सन 1150 के बीच चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए थे. बीस वर्ग किमी में फैले क्षेत्र में पच्चासी मंदिरों का निर्माण हुआ था. इन पच्चासी मंदिरों में से अब पच्चीस मंदिर ही शेष हैं जो छै वर्ग किमी में फैले हुए हैं. तेरहवीं सदी में यहाँ दिल्ली के सुल्तानों के हमले हुए और वो इस इलाके पर काबिज हो गए. मंदिरों को नुक्सान पहुंचा और मंदिरों की देखभाल और उनका महत्व घट गया. ज्यादातर मंदिर झाड़ झंखाड़ और जंगल में खो गए. 1830 में ब्रिटिश सर्वेयर टी एस बर्ट ने मंदिरों की पुनः खोज की.इस खोज के कुछ बरस बाद एलेग्जेंडर कन्निन्घम ने मंदिरों की विस्तृत जानकारी दी और 1852 में मैसी ने मंदिरों के पहले रेखा चित्र बनाए.
मंदिरों में भारी, मज़बूत और बढ़िया किस्म का बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट का प्रयोग किया गया है. पत्थर जोड़ने के लिए कोई सीमेंट नहीं इस्तेमाल किया गया है बल्कि इन पत्थरों में खांचे बना कर एक दूसरे में फंसा दिया गया है जो कमाल की कारीगरी है. सभी मंदिर ऊँचे और लम्बे-चौड़े चबूतरों पर बनाए गए हैं. ये मंदिर और मूर्तियाँ वास्तु और मूर्तिकला के बेमिसाल नमूने हैं.
मंदिरों की बाहरी दीवारों पर लगभग आठ नौं फुट की ऊँचाई पर दो या तीन कतारों में सैकड़ों सुंदर मूर्तियां बनी हुई है. इनमें विष्णु और उनके अवतार, शिव, पार्वती, गणेश के अलावा यक्ष, यक्षिणी, देवियाँ, सैनिक, जानवर, पेड़, पौधे, और राजा रानियाँ हैं और जीवन के हर पहलु के विभिन्न दृश्य हैं.
सभी मंदिरों को मिला कर देखा जाए तो महिलाओं की मूर्तियों की बहुतायात लगती है. लगभग 8-10% कामुक या मिथुन मूर्तियाँ हैं जो विश्व प्रसिद्द हैं और जो खजुराहो की पहचान बन गई हैं. सभी मूर्तियों में चाहे महिला हो या पुरुष, हृष्ट पुष्ट और भरपूर शरीर के बनाए गए हैं. स्त्रियों के वक्ष स्थल, नितम्ब, बाहें, टांगें, और चेहरे सही अनुपात में और सुंदर तरीके से दर्शाए गए हैं. बालों के जूड़े और स्टाइल, शरीर के विभिन्न भागों में पहने हुए जेवर बारीकी से बनाए गए हैं. पुरुषों ने भी बहुत से जेवर पहन रखे हैं, या कई तरह की दाढ़ियाँ रखी हैं. सभी के चेहरों पर अलग अलग परन्तु यथा-योग्य भाव हैं. ज्यादातर पुरुषों का हल्का सा बढ़ा हुआ पेट भी बनाया गया है याने ये लोग खाते पीते घर के हैं!
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
......भाग - 2 में जारी रहेगा ......
खजुराहो की स्थापना करने वाले चन्देल राजा चंद्र्वर्मन थे जिन्होंने इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया था. चन्देल राजवंश ने लगभग नौवीं शताब्दी से लगभग तेरहवीं शताब्दी तक बुंदेलखंड के कुछ हिस्सों और उसके आस पास राज किया था. खजुराहो के ज्यादातर मंदिर सन 850 से सन 1150 के बीच चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए थे. बीस वर्ग किमी में फैले क्षेत्र में पच्चासी मंदिरों का निर्माण हुआ था. इन पच्चासी मंदिरों में से अब पच्चीस मंदिर ही शेष हैं जो छै वर्ग किमी में फैले हुए हैं. तेरहवीं सदी में यहाँ दिल्ली के सुल्तानों के हमले हुए और वो इस इलाके पर काबिज हो गए. मंदिरों को नुक्सान पहुंचा और मंदिरों की देखभाल और उनका महत्व घट गया. ज्यादातर मंदिर झाड़ झंखाड़ और जंगल में खो गए. 1830 में ब्रिटिश सर्वेयर टी एस बर्ट ने मंदिरों की पुनः खोज की.इस खोज के कुछ बरस बाद एलेग्जेंडर कन्निन्घम ने मंदिरों की विस्तृत जानकारी दी और 1852 में मैसी ने मंदिरों के पहले रेखा चित्र बनाए.
मंदिरों में भारी, मज़बूत और बढ़िया किस्म का बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट का प्रयोग किया गया है. पत्थर जोड़ने के लिए कोई सीमेंट नहीं इस्तेमाल किया गया है बल्कि इन पत्थरों में खांचे बना कर एक दूसरे में फंसा दिया गया है जो कमाल की कारीगरी है. सभी मंदिर ऊँचे और लम्बे-चौड़े चबूतरों पर बनाए गए हैं. ये मंदिर और मूर्तियाँ वास्तु और मूर्तिकला के बेमिसाल नमूने हैं.
मंदिरों की बाहरी दीवारों पर लगभग आठ नौं फुट की ऊँचाई पर दो या तीन कतारों में सैकड़ों सुंदर मूर्तियां बनी हुई है. इनमें विष्णु और उनके अवतार, शिव, पार्वती, गणेश के अलावा यक्ष, यक्षिणी, देवियाँ, सैनिक, जानवर, पेड़, पौधे, और राजा रानियाँ हैं और जीवन के हर पहलु के विभिन्न दृश्य हैं.
सभी मंदिरों को मिला कर देखा जाए तो महिलाओं की मूर्तियों की बहुतायात लगती है. लगभग 8-10% कामुक या मिथुन मूर्तियाँ हैं जो विश्व प्रसिद्द हैं और जो खजुराहो की पहचान बन गई हैं. सभी मूर्तियों में चाहे महिला हो या पुरुष, हृष्ट पुष्ट और भरपूर शरीर के बनाए गए हैं. स्त्रियों के वक्ष स्थल, नितम्ब, बाहें, टांगें, और चेहरे सही अनुपात में और सुंदर तरीके से दर्शाए गए हैं. बालों के जूड़े और स्टाइल, शरीर के विभिन्न भागों में पहने हुए जेवर बारीकी से बनाए गए हैं. पुरुषों ने भी बहुत से जेवर पहन रखे हैं, या कई तरह की दाढ़ियाँ रखी हैं. सभी के चेहरों पर अलग अलग परन्तु यथा-योग्य भाव हैं. ज्यादातर पुरुषों का हल्का सा बढ़ा हुआ पेट भी बनाया गया है याने ये लोग खाते पीते घर के हैं!
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
प्रणय मुद्रा में युगल शालीनता और धैर्य के साथ. अंगों का पारस्परिक अनुपात, हाथों, बाहों और टांगों की स्थिति बेहतरीन ढंग से बनाई गई है |
कामुक युगल. हाथों पैरों की स्थिति और चेहरे पर भाव में सुंदर बारीकी है |
सिर पर मुकुट के कारण राजा रानी लग रहे हैं. चेहरों पर सौम्य भाव है. शारीरिक मुद्रा दोनों का अन्तरंग होना सुन्दरता से दिखाया गया है |
कामुक युगल की सुंदर भाव भंगिमाएं |
छोटे छोटे आलों में बनी कामुक युगल मूर्तियाँ शायद आम लोगों की हैं. ये ज्यादा सुघड़ और उतनी सुंदर नहीं हैं जितनी की राजा रानियों की |
प्यार में पुरुष की दाढ़ी सहलाती महिला ! दोनों के चेहरे के भाव आकर्षक हैं |
चुम्बन लेते मिथुन युगल की सुंदर मुद्रा |
डांस में मस्त युगल. पत्थर की युगल मूर्ती में पैरों, टांगों और हाथों का गजब का प्रदर्शन |
पत्थर के बने चुम्बन लेते कामुक युगल की शानदार प्रतिमा. पत्थर में होते हुए भी दोनों की शारीरिक भाषा में एक प्रवाह और आकर्षण है |
ऊँचे और विशाल जैन मंदिर की बाहरी दीवार में छोटी छोटी मूर्तिकारी की तीन पंक्तियाँ |
......भाग - 2 में जारी रहेगा ......
9 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2019/04/1.html
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 29/04/2019 की बुलेटिन, " अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस - 29 अप्रैल - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
प्रतीक्षा में..
सादर..
धन्यवाद शिवम् मिश्रा जी.
धन्यवाद यशोदा अग्रवाल जी
वाहह्हह..बेहद सराहनीय कलाकृत्तियों का शानदार विवरण दिया है आपने.सर।
धन्यवाद श्वेता सिन्हा
बहुत अच्छी जानकारी। अत्यन्त बारीकी से विश्लेशण किया है आपने। विश्व की धरोहर है। अद्भुत कलाकारी।
Thank you A.K.Saxena ji
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