गेट खोल कर हमारे गोयल साब ने सड़क पर कदम रखा ही था कि उन्हें लगा दाहिना घुटना नाराज़ हो रहा है. सर्दी का महीना हो तो ये दाहिना घुटना उम्र याद करा ही देता है. तब गोयल सा को लगता है की मेरी उम्र के नौजवानों में मेरा ही घुटना क्यूँ दुखता है? न तो मित्तल का घुटना दुखता है, न शर्मा का. दुनिया जहान में मेरा ही घुटना है जो परेशान करता है. अभी सोच ही रहे थे की सैर के लिए आगे जाऊं या नहीं इतने में ही एक बड़ी गाड़ी आकर रुकी.
- नमस्ते सर जी इवनिंग वाक पर जा रहे हो क्या?
- अरे हेड तुम कहाँ से आ टपके?
- टपका नहीं गोयल सा इब आपसे ही तो मिलने आया था. इब आप अंदर चलो तो बैठते हैं, कुछ ठंडा गरम पिलाओ सर जी.
- आ जाओ आ जाओ.
- अरे सुनो संध्या, ये मनोहर है जो अपनी झुमरी ब्रांच थी न वहां ये हेड केशियर थे और मैं मैनेजर था, ब्रांच में ज्यादातर लोग मनोहर को हेड के नाम से पुकारते थे. अब तो रिटायर हो गया है. बड़ी गाड़ी लेकर आये हो हेड. नई खरीदी है क्या?
- हाँ जी हाँ जी. ये तो बे बेट्टे की मेहरबानी है सर जी. डॉलर भेज दे है कदि कदि. यूँ बोला के बड़ी गाडी ले लेना मैं आऊंगा तो घूमने चलेंगे. जब आएगा तब आएगा फिलहाल तो हमीं घूम लेते हैं हीहीही!
- बहुत अच्छा करते हो. साथ ही मन ही मन बुदबुदाए मैं घुटने से परेशान हूँ ये गाड़ी में घूम रहा है ससुरा.
- क्या लोगे हेड जी? संध्या ने पूछा.
- भाभी जी पहले तो ये लड्डू खाओ. हम तो एकाध पेग ले लेंगे साब के साथ बस. क्यूँ सरजी? आप ज़रा सा नमकीन दे दो हीहीही! गोयल सा गाडी में रखी है जोनी वाकर निकालूं के?
- अरे बैठो तो सही. मेरे पास भी है. अभी निकालता हूँ. फिर मन ही मन सोचने लगे की आ गया अपनी नक़्शेबाजी दिखाने. मेरे पास गाड़ी है बोतल है. अरे मेरे पास भी तो है. मुझे क्या दिखा रहा है. जिसे देखो चला आता है दिखावा करने. मैं ही मिला हूँ इस काम के लिए. साले सारे मौज मस्ती में है और मैं हूँ की कभी घुटना दर्द और कभी मोतिया बिन्द का ऑपरेशन.
खैर महफ़िल जल्दी बर्खास्त हो गई. गोयल सा ने रोटी और दाल का डिनर किया, कुछ देर अनमने से टीवी की चैनल बदलते रहे और फिर टीवी बंद कर के बिस्तर में लेट गए. मोबाइल में इधर उधर बे मतलब ऊँगली घुमाते रहे. ना कोई काल आई ना कोई मेसेज. बस पड़े पड़े पोते पोती की पुरानी फोटो देखते रहे और बोर होकर बिस्तर पर फोन फेंक दिया. तब तक संध्या आ गई और बोली,
- हेड केशियर रिटायर हुआ है और इतनी बड़ी गाड़ी लिए घूम रहा है!
- अरे छोड़ ना. जब ये साइकिल पे आता था तब मैंने गाड़ी ले चुका था. अब तो इसे बेटा भेज रहा है तो इसने खरीद ली. एक हमारा बेटा है जो मोपेड खरीदने के पैसे ना भेजे.
- अच्छा छोड़ो इन बातों को और भगवान् का नाम लेकर सो जाओ. संध्या समझ गई की बात बढ़ाने से अच्छा है सो जाओ. क्यूँ अपना मूड खराब करना है?
- हुंह! गोयल साब आँख बंद कर के सोचने लगे की कम तो ये भी नहीं है. अब तो ये भी सुनती नहीं है. मेरी बात काट देती है सब के सामने. पता नहीं मेरे साथ ही ऐसा होता है या फिर सभी के हस्बैंड ऐसा महसूस करते होंगे? मेहरा, शर्मा और मित्तल को देख कर ऐसा लगता नहीं. हो ना हो ये ही ज्यादती करती है मेरे साथ. बेटा भी इसी से बतियाता रहता है. एक बेटी को छोड़ कर सभी मेरे खिलाफ होते जा रहे हैं. गोयल साब को सोच सोच कर घबराहट होने लगी. आगे कैसे चलेगा मेरे भगवान्? किरपा बनाए रखना. दुनिया की चाल उलटी कैसे हो गई समझ में नहीं आ रहा.
गोयल साब बिस्तर में दाएं बाएँ करवट बदलने लगे. थोड़ी देर बाद आधी आँख खोल कर संध्या की तरफ देखा. ये सो रही होगी या नाटक कर रही होगी? जरूर नाटक कर रही है. उठ कर टॉयलेट तक जाता हूँ खटर पटर होगी तो देखता हूँ क्या करती है.
उठे और पैर फर्श पर रख कर अँधेरे में चप्पल टटोली. एक पैर की चप्पल मिल गई. बांया पैर फर्श पर इधर उधर घुमाया पर चप्पल नहीं मिली. खड़े हो कर पलंग के नीचे जहाँ तक पैर जा सकता था पहुंचा दिया पर चप्पल से संपर्क नहीं हुआ. लाइट जलानी ठीक नहीं लगी सो बजाए टॉयलेट जाने के वो वापिस पलंग पर लेट गए. कुछ मिनटों तक तरह तरह के विचार मन में उमड़ते घुमड़ते रहे. एक सेकंड को ये भी विचार आया कि संध्या ने ही चप्पल सरका दी होगी. पर नहीं ऐसा तो नहीं करेगी. कुछ देर की उधेड़ बुन के बाद खर्राटे लेने लगे.
सुबह उठे तो एक चप्पल पहनी फिर दाएं बाएँ देखा तो दूसरी चप्पल थोड़ा दूर पड़ी थी. पाँव बढ़ा कर चप्पल पहनी और टॉयलेट की तरफ चल दिए. रात की बातें उन्हें याद ही नहीं थीं.
ये भी मेरे खिलाफ हैं क्या? |