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Saturday, 7 August 2021

चिड़िया और भैंस

नई दिल्ली में एक पॉश इलाका है जोरबाग. यहाँ बड़ी बड़ी कोठियां और सुंदर बंगले हैं. रहने वाले कम दिखते हैं और नौकर, मेड और ड्राईवर ज्यादा नज़र आते हैं. चकाचक एरिया है और हरा भरा भी है. ऐसे इलाके में नगर निगम भी सफाई पर ज्यादा ध्यान देता है और पेड़ पौधे लगवाता है. जहां तक मेरी जानकारी है यहाँ पचास साठ साल पहले एक गाँव था और गाँव में एक जोहड़ याने तालाब हुआ करता था. इस जोहड़ किनारे एक बाग़ हुआ करता था. अब तो ये जोहड़ + बाग़ मिला कर जोरबाग हो गया याने गाँव तरक्की कर गया और अब तो कहीं खो गया है. 

इस जोरबाग में इंदिरा पर्यावरण भवन है. इस भवन की खासियत है कि पर्यावरण को देख समझ कर बनाया गया है. मसलन भवन में बिजली कम खर्च होती है क्यूंकि कुदरती रौशनी ज्यादा रहती है. पानी को भी रीसायकल किया जाता है इसलिए भवन को ऊँची 'ग्रीन रेटिंग' मिली हुई है. लोचा एक ही है कि यह भवन चिड़ियों और कबूतरों को भी बहुत पसंद है! जहां पक्षी होंगे तो पक्षियों की पंचायत भी लगती होगी, शोर भी होगा और उनकी बीट का भी ढेर लगेगा. वही हुआ भी. भवन के बीच का आँगन और आसपास बीट की वजह से गंदगी भी हो जाती है और फिर बदबू फैलने लग जाती है.

काफी सोच विचार के बाद अखबार में एक विज्ञापन निकाला गया की पक्षियों की बीट और उससे फैलने वाली बदबू से छुटकारा पाने के लिए उपाय बताया जाए. उपाय पसंद आने पर और कारगर होने पर एक लाख रूपए मिलेंगे! 

इस खबर की चर्चा हमारे वरिष्ठ नागरिक ग्रुप में खूब चली. तरह तरह के विचार, समाधान और सुझाव पेश किये गए. इनमें से कुछ आप भी पढ़िए और बहुमूल्य राय दीजिये.

- भई अब पेड़ काटे जाएंगे तो चिड़ियाँ कबूतर बेचारे कहाँ जाएंगे? वो भी आसपास के मकानों और भवनों में ही डेरा डालेंगे.

- मेरे विचार से तो बदला ले रहे हैं. पूरी कुदरत ही बदला लेने पर तुली हुई है. आप ताबड़तोड़ बारिश को देख तो रहे हैं जी. क्या हिमाचल, क्या चीन, क्या यूरोप सभी बाढ़ की लपेट में हैं. मैं तो कहता हूँ प्रकृति से मत लड़ो. क्यूँ गोयल साब?

- हाँ जी हाँ जी. क्या पता ये कबूतर मिल कर किसी दिन अट्टेक कर दें? मैंने एक हिचकोक की फिल्म देखी थी 'द बर्ड्स' जिस में गुस्सैल चिड़ियों ने आदमियों पर हमला बोल दिया था.  

- सवाल तो बीट और बदबू का था सर जी आप पहुँच गए यूरोप और आप तो अट्टेक ही कराने लग गए. एक काम करना चाहिए की इन कबूतरों को पकड़ पकड़ के लंगोटियां पहना देनी चाहिए. हाहाहा!

- आजकल डायपर का ज़माना है जी अब लंगोटियां कहाँ रहीं? इनके लिए तो टॉयलेट बनाना ज्यादा अच्छा रहेगा. पर शौचालय इस्तेमाल करने के लिए ट्रेनिंग देनी पड़ेगी. 

- इससे तो अच्छा है साहनी साब के इनको गिरफ्तार करते जाओ और बॉर्डर पर छोड़ते जाओ. चीन, बांग्लादेश और पकिस्तान बॉर्डर पर झुण्ड के झुण्ड छोड़ दो. मामला खतम है.

- ये आईडिया भी ठीक है जी. फिर भी अगर बचें तो दूसरे शहरों को तोहफे में बाँट दो. 

- वैसे आजकल टूरिस्ट कम आ रहे हैं पर जो भी घूमघाम के वापिस जा रहे हों उन्हें भी सौ सौ कबूतर फ्री दे 
दिए जाएं. 

- अजी छोड़िए जनाब. मान लो अगर पशु भी उड़ने लगते? कहीं भैंस ही उड़ कर बिल्डिंग पर बैठ जाती तो? 

खैर साब जितने मुंह उतनी बातें. पर ये तो सभी कहेंगे की पेड़ लगाना अच्छी बात है. 

चिड़िया 

और भैंस 

वैसे अब तक किसी ना किसी को चिड़िया उड़ाने का ठेका मिल ही गया होगा. अखबार में निकली खबर पढ़ना चाहें तो इस लिंक पर उपलब्ध है. लाख टके की मसला है साहब.  

Govt seeks help as bird droppings soil building - https://www.hindustantimes.com/india-news/environment-ministry-offers-rs-1-lakh-award-for-solution-to-bird-droppings-101625053161294.html?utm_source=whatsapp&utm_medium=social&utm_campaign=ht_AMP