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Sunday, 20 June 2021

योग दिवस 2021

इस बार के अन्तराष्ट्रीय योग दिवस ( 21.06.2021)  की थीम है - 'घर में योग करें और परिवार के साथ करें' - Yoga at home and yoga with family. वैसे तो कोरोना की वजह से मार्च 20 में ही पार्क में योगाभ्यास बंद ही हो गया था. तब से हम तो घर में ही कर रहे थे. पार्क की नर्म घास और सुबह की हवा का मज़ा बेहतर था. घर में ज़रा सा भी पसीना आ जाए तो पंखा चल पड़ता है. खैर करना तो है ही और रोज़ करना भी जरूरी है नर्म घास हो या सख्त फर्श! 

योग है क्या? प्राचीन ग्रंथों में योग की परिभाषाएँ अलग अलग हैं जैसे कि, 

- चित्त की वृत्तियों को निरूद्ध करना ही योग है. ये परिभाषा पातंजल योग दर्शन के अनुसार है - योग्शचित्त्वृत्तिनिरोध:

- पुरुष और प्रकृति की भिन्नता को स्थापित करना और पुरुष का स्व स्वरुप में स्थापित होना योग है.  ये परिभाषा सांख्य दर्शन से है - पुरुषप्रकृत्योर्वियोगेपि योगइत्यमिधीयते। 

- जीवात्मा और परमात्मा का पूर्ण मिलन ही योग है. ये परिभाषा विष्णुपुराण के अनुसार है - योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मने 

दुःख-सुख, शीत-उष्ण, लाभ-हानि, शत्रु-मित्र आदि द्वंद की स्थितियों में सम भाव  बनाए रखना योग है और दूसरी है - निष्काम भाव से प्रेरित होकर कर्तव्य करने का कौशल योग है. ये भगवतगीता की परिभाषाएँ हैं - सिद्धासिद्धयो समोभूत्वा समत्वं योग उच्चते और तस्माद्दयोगाययुज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् 

- कुशल चित्त की एकाग्रता योग है. ये परिभाषा बौद्ध धर्म की है कुशल चितैकग्गता योगः 

ये सब तो प्राचीन दार्शिनिक परिभाषाएं हैं. आजकल ज्यादातर लोगों की परिभाषा में योग शरीर को स्वस्थ रखने के लिए है! कुछ की परिभाषा में योग नाम और धन कमाने का साधन है! बहरहाल पिछले २३ साल का अनुभव बताता है की स्वस्थ रहने का और ध्यान लगाने का एक अच्छा उपाय है. शरीर स्वस्थ और मन शांत रहे तो ज़िन्दगी बेहतर गुज़रती है. डॉक्टर के पास कम जाना पड़ता है, कड़वी गोलियां कम खानी पड़ती हैं और आलस्य नहीं रहता. पर योगासन और प्राणयाम के साथ साथ खाने और रहने की स्टाइल में भी अनुशासन जरूरी है. योग दरअसल अष्टांगिक मार्ग है जिसमें डिसिप्लिन बहुत सख्त है - 

- यम , नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि.

विषय गहन है गंभीर है पर शुरुआत योगासन और प्राणायाम से की जा सकती है. नियमित करने के बाद तो जितना अध्ययन करेंगे, जितना गहरे पैठेंगे उतने ही मोती मिलते जाएंगे. साथ में ये भी निवेदन है की टीवी या यूट्यूब से ना सीखें तो अच्छा है. नीम हकीमों से बचें. शुरुआत में छोटे ग्रुप में किसी अनुभवी शिक्षक की देखरेख में सीखना ठीक रहेगा. भारतीय योग संस्थान दिल्ली बहुत बढ़िया संस्था है जिसकी बहुत से शहरों में शाखाएँ हैं. अगर संपर्क कर सकें तो अच्छा रहेगा.  

हमारे दैनिक अभ्यास में से लिए गए कुछ चित्र प्रस्तुत हैं: 

जानु शीर्षासन 

कोण आसन 


सुप्तवज्र आसन 

भ्रामरी गुंजन 

वृक्ष आसन 


वृक्ष आसन 

उष्ट आसन 


Friday, 11 June 2021

झाड़ू का दूसरा साल

लॉकडाउन जब पहली बार पिछले साल लगा था तो झाड़ू उठाना पड़ गया था. वो इसलिए की सोसाइटी ने मेन गेट बंद कर दिया, ना कोई आ सकता और ना ही कोई जा सकता था. गेट बंद हो गया तो काम वाली कैसे आती? और अगर काम वाली नहीं आती तो सफाई कैसे होती? पर हमारी 65 बरस की बुढ़िया गर्ल फ्रेंड को जोश आ गया,

-  काम वाली नहीं आएगी तो क्या काम नहीं होगा? हम खुद कर लेंगे!

उस वक़्त 'हम' का अर्थ हमने हम ही लगाया अर्थात रोज़ के सफाई अभियान में हमें योगदान करना ठीक रहेगा. झाड़ू उठाएं या पोछा लगाएं? झाड़ू? पोछा? हमने फैसला कर लिया और प्रस्ताव पेश किया कर दिया झाड़ू उठाने का. श्रीमति जी ने एक क्षण को मुस्कराहट दी और हमने भी काम चालू कर दिया है. 

उस वक़्त तो सोचा था की चलो दो चार दिन की बात है कर लेंगे. पर फिर दो हफ्ते और फिर दो महीने खिंच गए. फिर सोचा चलो दो महीने निकल गए हैं अब जल्दी छुटकारा मिलेगा पर नहीं मिला. करते कराते पूरा साल निकल गया. हमें क्या पता कि दूसरी लहर भी आनी है? और दूसरी लहर आ भी आ ही गई है. पहली लहर का झाड़ू घिस चुका था. श्रीमति कई बार सुझाव दे चुकी हैं की नया ले लो. पर साब पहली झाड़ू से बड़ा प्यार हो गया था. आप तो जानते ही हैं पहला पहला प्यार, पहली पहली तनखा, पहली पहली फटफटिया भूलती नहीं हैं तो पहला झाड़ू कैसे भूलेगा?

पर अब कोविड भी कमबख्त बदल गया था. पहले जैसा नहीं रहा था बल्कि  दूसरी लहर में नया रूप धर कर आ गया था. अब दूसरी लहर का मुकाबला करने के लिए दूसरा झाड़ू लेना जरूरी हो गया था. एक दूकान जिस से घर का सामान फोन पर मंगाते थे उसे फोनवा लगाया,

- गुप्ता जी सुनो आपको तो पता ही है की दूसरी लहर आ गई है. अब इस लहर के लिए एक अदद फूल झाड़ू चाहिए. और ऐसा होना चाहिये जो पूरी दूसरी लहर में काम आए. पहला वाला जो है अब काफी घिस गया है और नया लेना जरूरी हो गया है. पर मैं उसे यादगार के तौर पर पहले झाड़ू को संभाल के रखना चाहता हूँ. 

- हर्ष जी कैसी बातें कर रहे हैं? घिस गया है तो फेंकिये उसे. मैं नया भिजवा देता हूँ.  

- गुप्ता जी बात ये है की सत्तर साल की ज़िन्दगी में पहली बार झाड़ू लगाया है और वो भी लगातार एक साल. अब इस झाड़ू से लगाव सा हो गया है इसको फेंकना नहीं चाहता. बल्कि सहेज संवार के सुरक्षित रखना चाहता हूँ.  

- ओहो तो आप एक काम करो हर्ष जी अपना पुराना झाड़ू भिजवा दो. मैं पास वाले मनोहर स्टेशनरी से बोलता हूँ की आपके झाड़ू की सुंदर सी पैकिंग कर दे. फिर उसे आप जहां रखना चाहें रख लेना.

- बात तो आपकी ठीक लग रही है गुप्ता जी. ज़रा मनोहर से पूछो उस पर चांदी का पतरा चढ़ा सकता है क्या? ढंग से चढ़ा दे तो मैं अपने ड्राइंग रूम में सजा दूंगा. 

- कमाल है जी हर्ष जी कमाल है! ही ही ही ! झाड़ू की पैकिंग चांदी के वर्क में ? एक सेकंड. ये लो मनोहर मेरे सामने खड़ा है आप खुद ही बात कर लो जी.

- अरे मनोहर जी मैं कह रहा था की मेरा पहला झाड़ू है पूरा साल मैंने इससे काम किया है और ज़िन्दगी में इतने दिन कभी झाड़ू नहीं लगाया तो इसे मैं यादगार के रूप में रखना चाहता हूँ. क्या विचार है? 

- सर जी जैसे कहोगे वैसा ही तैयार कर दूंगा जी. आप चाहो तो पतला मैचिंग कलर का प्लास्टिक लगा दूँ, या रंगीन शीट लगा दूँ. गुप्ता जी बता रहें हैं कि आप चांदी का पतरा चढ़ाना चाहते हैं तो वो भी करा सकता हूँ. और अगर बहुत ज्यादा ही प्यार है तो फिर तो जी सोने के पत्तर से मढ़वा लो. पीढ़ी दर पीढ़ी निशानी के तौर पर चलता रहेगा. 

- आपकी बात में दम है मनोहर जी. हाँ मेरे जाने के बाद भी यादगार रहेगी. लोग याद करेंगे कि बन्दा कोरोना काल में झाड़ू लगाना नहीं भूला। कोरोना के साइड इफेक्ट्स को भी तो लोग याद करें. खर्चा बताओ खर्चा?

- सर जी सोने वाला लगभग तीस हज़ार में तैयार हो जाएगा. और चांदी वाला यूँ समझिये दस हज़ार के आसपास. अगर मेरी राय मानो और मेरे पे छोड़ दो जी तो सिर्फ पांच सौ में. वो भी ऐसी सजावट कर के दूंगा की देखते ही लोग कहेंगे की किसने पैक किया है.

- चलो मनोहर जी मैं कल फोन करता हूँ.

झाड़ू की पैकिंग पर बातचीत करने का मौका ही नहीं मिल रहा था. मामला जटिल था थोड़ा सावधानी से प्रस्तुत करना था. दो दिन बाद श्रीमति जी बाथरूम से गुनगुनाते हुए निकली - 

- "ना जाने कहाँ तुम थे, ना जाने कहाँ हम थे, जादू ये देखो हम तुम मिले हैं!"

सही समय है मुद्दा उठाने का. यही सोच कर बात छेड़ दी, 

- यार वो पुराना झाड़ू जो है ना मेमेंटो की तरह रखना चाहता हूँ. पैकिंग करा लूँ? सात आठ हज़ार का ही खर्चा है?

- क्या? झाड़ू की पैकिंग? सात आठ हज़ार की? श्रीमति का गाना रुक गया और सुर ऊँचे हो गए.  इधर दिखाओ झाड़ू! 

झाड़ू ले कर बाहर पिछवाड़े फेंक दिया. 

मैं तो पहले ही सोचता था- पत्नी वो जो पति पर तनी रहे.