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Wednesday, 12 September 2018

बाल की खाल

आन्ध्र प्रदेश के शहर विजयवाड़ा के प्रसाद जब इंजिनियर बन गए तो उन्होंने नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी. इराक़ की एक तेल कंपनी में नौकरी मिल गई. दो साल बाद छलांग मार कर 2016 में कज़ाख़स्तान की तेल कंपनी में नई नौकरी करने पहुँच गए. वहां प्रसाद को मिस शाखिस्ता मिली. दोनों में प्यार हो गया. दोनों के माता पिता ने भी मंज़ूरी दे दी. अगस्त 18 में विजयवाड़ा में शादी हो गई. देसी लड़का और परदेसी लड़की की शादी में पत्रकार भी पहुँच गए. 27 अगस्त के The Hindu में फोटो भी छप गई. एक पत्रकार ने प्रसाद से पूछा कि परदेसी लड़की कैसे पसंद कर ली तो जवाब में प्रसाद ने कहा,
- उसके लम्बे बाल बड़े पसंद आए !
आप फोटो देख लें देसी दूल्हा और परदेसी दुल्हन दोनों खुश नज़र आ रहे हैं. दोनों को हमारा आशीर्वाद.

Prasad and Shakhista during their wedding in Vijayawada on Sunday. Vijaya Bhaskar CH_VIJAYA BHASKAR
मुस्कुराती जोड़ी - The Hindu dated 27 August 2018 से साभार 

लम्बे बाल या छोटे बाल ये तो अपनी व्यक्तिगत पसंद है. कहा है ना,
पसंद अपनी अपनी ख़याल अपना अपना,
सवाल अपना अपना जवाब अपना अपना !

हमारे जैसे पेंशनर के लिए तो बालों का महत्व समाप्त हो गया है. पर कुंवारों के लिए लगता है कि लम्बे बालों या ज़ुल्फों का आकर्षण बड़ा जबरदस्त है. कुंवारों के अलावा कवियों और शायरों को तो लम्बी काली ज़ुल्फें दिख भर जाएं तो बस तुरंत शायरी शुरू हो जाती है. काली ज़ुल्फ़ों को काले बादलों या काली घटाओं से कम नहीं मानते. और कुछ शायर ज़ुल्फों को ढलती शाम, अँधेरी रात, मकड़ जाल और ज़ंजीर जैसा भी मानते हैं. जुल्फों की ये कल्पना तो कमाल की है -
"बाल उसने जब सँवारे, लोटे दिल पर सांप हमारे" !
पता नहीं शायर ने डर की वजह से ऐसा लिख दिया हो ?

इस बात के प्रमाण नहीं मिलते की लैला की ज़ुल्फ़ें कितनी लम्बी थी पर ये तो बात पक्की है की उन दिनों लैला ने ना तो बाल कटवाए होंगे ना ही कोई कलर लगाया होगा. हाँ ज़ुल्फ़ों में कोई ना कोई तेल जरूर लगाया होगा. उधर मजनूं अपनी लैला से मिलने निकल पड़ा था. गर्म  रेगिस्तान में बिना मेट्रो या टैक्सी के सफ़र करता करता थक गया होगा. तो ऐसे में अगर मजनूं अपनी लैला की जुल्फों के साए में ठंडक पाना चाहे तो क्या बुरा है -
"तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साए में शाम कर लूँगा, सफ़र इस उम्र का पल में तमाम कर लूँगा" !
लैला की ज़ुल्फ़ में मजनूं को थोड़ी बहुत ए सी जैसी ठंडक भी मिली होगी और सफ़र भी फ़ास्ट हो गया होगा. है ना कमाल की चीज़ है ये ज़ुल्फ़ !

रेगिस्तान में मजनूं और लैला दोनों के लिए पानी की कमी थी वरना मजनूं लैला को कुछ यूँ कहता -
"ना झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएंगे" !
कहने का असली मतलब तो मजनूं की सलाह थी की पानी ज्यादा से ज्यादा देर ज़ुल्फ़ों में रोक ले लैला, ठंडक मिलेगी और ठंडक देर तक रहेगी. इस नगर निगम की सप्लाई का भरोसा नहीं है कब पानी आए कब ना आए. ज़माना खराब है आजकल.

ज़माना तो कमबख्त खराब ही रहा है. कहाँ मिलने देता है लैला मजनूं को ? मजनूंओं को तो पत्थर मारने पर तुले रहते हैं. समाज की डांट फटकार और पत्थर खाकर भी मजनूं को फिर जुल्फें ही याद आती हैं -
"तेरी ज़ुल्फ़ों से जुदाई तो नहीं माँगी थी, कैद मांगी थी रिहाई तो नहीं माँगी थी" !

पर सभी मजनुओं को चचा ग़ालिब की सलाह पर भी गौर कर लेना चाहिए. इशक में सब्र की ज़रुरत है जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. इश्क का मामला गंभीर मामला है कोई हंसी ठट्ठा नहीं है. चचा फरमाते हैं -
"आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक, कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक" !


Saturday, 8 September 2018

जीवन धारा

गुड़िया का नाम श्वेता जरूर था पर रंग थोड़ा सांवला ही था. तीन साल की श्वेता सारे कमरों में उछलती कूदती रहती थी. उसकी दोस्ती महतो से ज्यादा थी जो उसे किचन से कुछ ना कुछ खाने के लिए देता या फिर रोती तो दूध की बोतल तैयार कर के दे देता था. शाम की दोस्ती दादी से थी जो उससे धीमी धीमी आवाज़ में प्यार से बातें करती. बातें करते करते दादी उसे लिटा देती और प्यार से बोतल मुंह में लगा देती और श्वेता दूध पीते पीते सो जाती. दादी भी लाइट बंद कर के सो जाती.

श्वेता की नहीं बनती थी तो अपनी मम्मी से जो सौतेली थी. उसे झिड़कती थी, डांटती थी पर कभी पुचकारती नहीं थी ना ही गोदी में लेती थी. मम्मी के सामने श्वेता सहमी सी मम्मी की चेहरे को गौर से देखती रहती. जैसे ही मम्मी के चेहरे का भाव बदलता फ़ौरन पढ़ लेती थी. दोनों हाथ पीछे जोड़ लेती और अपराधी की तरह डांट खाने के लिए मन बना लेती. मम्मी के डायलॉग सिमित से ही होते थे -
- नहा लिया या नहीं? माया इसे नहलाया था?
- हुंह देखो नंगे पैर घूम रही है? महतो इसकी चप्पल कहाँ है?
- देख लॉन में पापा के साथ कोई बैठा हुआ है. खबरदार जो पापा के पास गई.

पापा अक्सर देश विदेश के टूर पर रहते थे. आते जाते श्वेता को प्यार से मिलते थे और टाइम हो तो साथ खेलते भी थे. खूब सारे खिलौने और कपड़े लाते और फिर फुर्र हो जाते. दादी ही मम्मी पापा का रोल करती और थोड़ा बहुत मम्मी पापा का रोल महतो करता था. स्कूल में दाखिल करने का टाइम आ गया तो पापा ने एक और नौकर रख लिया जो श्वेता को सुबह बस में बैठा कर आता, दोपहर को घर लेकर आता और उसके कपड़े खिलौने वगैरा समेटता रहता.

स्कूल में लंच टाइम में बच्चे अपनी अपनी मम्मी का बनाया कुछ लाते तो श्वेता को आश्चर्य होता की इनकी मम्मी किचन में काम करती हैं. हमारे घर में तो महतो है. स्कूल के फंक्शन में दादी ही जाती थी पापा या मम्मी कभी नहीं गए थे. स्कूल में सभी को दादी के बारे में पता था. पर श्वेता को आश्चर्य होता कि दूसरे बच्चों के माता पिता क्यूँ आते हैं उनकी भी दादी को ही आना चाहिए. किसी दिन इस बात पर क्लास में लड़ भी पड़ती थी. पर घर वापिस आने पर दादी उसे समझा बुझा देती थी. स्कूल में दो तीन साल गुज़ारने के बाद धीरे धीरे श्वेता का स्वभाव अक्खड़ सा होने लगा था. अब सौतेली मम्मी से थोड़ी थोड़ी नाराज़गी रहने लगी थी. अगर मम्मी डांटती या नाराज़ होती तो श्वेता रोती नहीं थी परन्तु उसकी नन्हीं मुठ्ठीयां थोड़ा सा कस जाती थीं.

श्वेता बड़ी हो रही थी और दादी बूढ़ी हो रही थी. बड़ी सी कोठी में दादी और श्वेता का का लाड़ प्यार बढ़ रहा था. श्वेता के कॉलेज के एडमिशन के समय मम्मी पापा भी ढल गए थे. उन दोनों की नोंक झोंक कभी कभी अब झगड़े में बदल जाती थी. पर अब श्वेता को काफी कुछ समझ आने लगा था. उसने ज़िद करके अपने लिए कार भी ले ली. दादी अब कोठी से बाहर कम ही जाती थी और गोलियां खाती रहती थी. मम्मी क्लब और किट्टी में बिज़ी रहती थी. और मम्मी की तल्ख़ जुबान अब पापा, दादी, श्वेता और नौकरों पर भी चलने लगी थी. श्वेता भी उकसाने में और जवाब देने में कमी नहीं रखती थी. इस से घरेलू वातावरण तनाव और बिखराव वाला हो गया था.

कॉलेज से डिग्री लेते ही श्वेता ने इधर उधर नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी. एक सहेली की सहायता से एक विदेशी एम्बेसी में नौकरी लग गयी. श्वेता अपनी दादी की वजह से पापा की कोठी में ही रह रही थी वरना तो वो अलग अकेली रहना चाहती थी. मन ही मन दादी जाने से पहले उसकी शादी देखना चाहती थी और पापा से लगातार कहती रहती थी. पापा ने भी आखिर एक दोस्त का लड़का देख लिया. वो भी कहीं बाहर ही यूरोप में काम करता था. उसे श्वेता से मिलवाया. हाँ ना करते करते शादी हो ही गई. श्वेता ने दादी को भारी मन से पापा के पास छोड़ा और इंग्लैंड चली गई.

यूरोप की आबो हवा और तौर तरीके श्वेता को भा गए. पुरानी दुनिया भूल भाल गयी. शायद ही कभी दादी या पापा के अलावा उसने किसी को याद किया हो. कुछ ही दिनों बाद श्वेता के घर नन्हा बंटी आ गया. उसके पालन पोषण में कुछ ज्यादा ही समय लगाने लगी और पति से दूर होती गई. पति की नाराजगी और कटाक्ष बढ़ने लगे. तीन चार महीने के चिक चिक के बाद दोनों अलग हो गए. श्वेता ने बंटी को अपने पास रख तो लिया पर साथ में नौकरी करना मुश्किल हो रहा था. पूरे दिन की मेंड रखना खर्चीला पड़ रहा था. काफी सोचने के बाद एक दिन पापा को फोन लगाया. लम्बी वार्तालाप के बाद तय हुआ कि पापा उसके लिए एक अलग मकान का इंतज़ाम कर देंगे जो फिलहाल मम्मी को नहीं बताया जाएगा. बाद में श्वेता जैसा ठीक समझेगी बता देगी. श्वेता ने बोरिया बिस्तर बांधा और बंटी को ले कर वापिस आ गयी.

श्वेता ने फिर से नौकरी कर ली. मेड और नौकर रख लिए. खुद तो एडजस्ट हो गयी पर बंटी के लिए चिंतित रहती थी. यहाँ के स्कूल और पढ़ाई यूरोप के मुकाबले उसे ठीक नहीं लग रही थी. बंटी चार साल का हुआ तो उसे इंग्लैंड के एक अच्छे हॉस्टल वाले स्कूल में दाखिल करा दिया. उसको यहाँ बुलाने के बजाए खुद उसकी छुट्टियों में मिलने चली जाती थी.

इंडिया में अकेले रहना कभी अच्छा और कभी बुरा भी लगता था. यहाँ ताका झांकी बहुत थी. श्वेता के अकेले रहने पर कई तरह की अफवाहें और किस्से कॉलोनी में चलते रहते थे पर इन सब से उसे चिढ़ थी और लोगों से दूर रहना ही पसंद करती थी. कई बार विचार आया यूरोप जाने का. फिर सोच बंटी कुछ काम या नौकरी शुरू कर ले तब जाउंगी.

इसी सब उधेड़बुन में श्वेता के बाल श्वेत हो चले थे और घुटने परेशान करने लगे थे. फिर भी साल में एक बार बंटी से मिलने चली जाती थी. बंटी ने डिग्री ले ली और किसी दोस्त के साथ रेस्तरां खोल लिया. श्वेता को काम पसंद नहीं आया पर कुछ नहीं हो सकता था. बंटी ने वहीँ की एक लड़की से शादी कर ली और श्वेता को फोन पर बता दिया. फोन पर माँ बेटे की खूब तू तू मैं मैं हुई. उसके बाद काफी देर तक तो ये सवाल हल नहीं हुआ की पहले फोन कौन करे माँ या बेटा? बहु ने तो कभी फोन किया ही नहीं.

इधर पिताजी की तबियत खराब हुई और उनका स्वर्गवास हो गया. श्वेता के लिए काफी कुछ छोड़ गए पर कमी तो महसूस होती थी. मम्मी की हालत भी विशेष अच्छी नहीं रहती थी. दूसरे साल मम्मी भी चली गयी. कुछ कैश श्वेता को मिला पर मम्मी ज्यादातर जमीन जायदाद अपने रिश्तेदारों में बाँट गयी.

बंटी से बातचीत कम ही होती थी. उसने अपना फ्लैट भी खरीद लिया था और इंडिया आने से मना कर दिया था. बहुत सोच विचार करने के बाद श्वेता ने टिकट बुक कराई और मन मार कर बेटे बहू को मिलने का प्रोग्राम बना लिया. बेटे बहू के लिए कुछ कपड़े और गिफ्ट खरीदे. घुटने और शुगर की परेशानी भूल कर वहां पहुच गई. बेटा बहू दोनों खूब शौक से मिले पर उनके फ्लैट में रात नहीं रह पाई. कारण ये कि उन्होंने पास के एक होटल में श्वेता के रहने का इंतज़ाम कर दिया था. सारी रात श्वेता सो नहीं पाई, बेचैन रही और करवट बदलती रही. सुबह बेटा मिलने आया तो खीझ, गुस्से और प्यार के आंसू रोती रही. बोली मेरा टिकट करा दे मैं वापिस जाउंगी.

वापिस आने के बाद श्वेता का स्वास्थ गिरने लगा. सात महीने बाद वो आई सी यू में पहुँच गई. अड़ोसी पड़ोसीयों ने बंटी को फोन से खबर कर दी कि हालत नाज़ुक है आ जाओ. बंटी ने कहा की फ्लाइट बुक करा रहा हूँ एक हफ्ते से पहले नहीं आ पाऊंगा. हॉस्पिटल के बेड पर पड़ी श्वेता की बड़बड़ाहट में बंटी शब्द ही समझ आता था.

बंटी एक सप्ताह बाद आ गया. बंटी की आवाज़ कान में पड़ी तो माँ ने अधखुली आँखों से बंटी को पहचान लिया और बहुत खुश हुई. ख़ुशी में आंसू निकल पड़े. लरज़ती आवाज़ में बहू का हाल भी पूछा जो बंटी के साथ नहीं आई थी. तीसरे दिन श्वेता ने आँखें मूँद लीं.

बंटी ने अंतिम संस्कार कर दिया. साथ ही मम्मी का मकान बेचने के लिए पेपर में विज्ञापन दे दिया. उसे उम्मीद थी कि वापिस जाने से पहले मकान की डील हो जाएगी.   

जीवन धारा

   

Tuesday, 4 September 2018

केरल की यादगार यात्रा

सितम्बर 2014 में कन्याकुमारी से दिल्ली तक मारुती 800 में यात्रा की थी. अरब सागर के किनारे किनारे एडापल्ली-पनवेल हाईवे जिसे अब NH 66 कहते हैं, कार चलाई थी. चलते चलाते रास्ते में केरल के कई मंदिर, किले और शहर देखते आए और इन निम्नलिखित शहरों में एक एक दो दो दिन ठहरे भी थे:
थिरुवनंतपुरम ( Trivandrum ),
अल्लेप्पी ( Alleppy / Alappuzha / अलेपूझा / अलेपूया ),
कोची ( Kochi /  कोचीन /  Cochin ),
मुन्नार ( Munnar )
त्रिचूर ( Trichur / Thrissur ) और
कालीकट ( Calicut / कोझिकोड / कोशिक्कोड / Kozhikode ).
बहुत सुंदर, हरा भरा, पहाड़ियों और झरनों से भरपूर और समन्दर के साथ साथ फैला हुआ प्रदेश है. यहाँ चालीस से ज्यादा नदियाँ बहती हैं जिन पर 80 छोटे बड़े बाँध हैं. इसलिए केरल में बिजली, पानी और हरियाली की कमी नहीं है. प्रदेश का गठन 01.11.1956 में हुआ था. 14 जिले हैं जिनमें से थिरुवनंतपुरम शहर सबसे बड़ा है और राजधानी भी है. प्रदेश की आबादी 3.34 करोड़ है जबकि 1850 में यहाँ की आबादी 45 लाख थी. पर्यटन के प्रति समाज में दोस्ताना माहौल है जिसकी वजह से लाखों की तादाद में देशी विदेशी पर्यटक आते रहते हैं.

पिछले दिनों आई अभूतपूर्व बाढ़ में यहाँ जान माल का काफी नुकसान हुआ. भगवान से प्रार्थना है कि जल्दी से जल्दी वहां सामान्य स्थिति बहाल हो जाए. रास्ते में ली गई कुछ फोटो प्रस्तुत हैं :

1. कोची का backwaters. जब समन्दर में ज्वार आता है तो पानी शहर की नहरों में अंदर आ जाता है और भाटा के साथ पानी वापिस चला जाता है और शहर की सफाई भी हो जाती है 

2. थिरुवनंतपुरम की ओर जाती सड़क. सारा केरल इसी तरह से हरा भरा है  

3. अल्लेप्पी सागर तट पर मत्स्य कन्या या mermaid 

4. कालीकट से आगे चलते हुए एक बोर्ड नज़र आया 'Handicrafts Village' तो गाड़ी उधर मोड़ ली. पर टिकट के लिए थोड़ी देर इंतज़ार करना पड़ा. अंदर कारीगर सुंदर सुंदर चीज़ें बना रहे थे   

5. कालीकट का सागर तट

6. थिरुवनंतपुरम का सरकारी होटल जिसके पांचवें माले पर रुके थे 

7. शाम के समय थिरुवनंतपुरम का साफ़ सुथरा बस अड्डा 

8. ओणम त्यौहार वाले दिन बस की इंतज़ार. महिलाओं ने बिंदास सोना पहन रखा है क्यूंकि बस के सफ़र में कोई ख़तरा नहीं है. मौसम गरम और उमस भरा रहता है इसलिए खादी या सूती कपड़े ही आराम देते हैं. उमस और अचानक बारिश के कारण पैर में जूते जुराबें पहनना मुश्किल है चप्पल ही बेहतर है    

9. कोची फोर्ट के पास फुटपाथिये रेस्तरां. यहाँ समन्दर की हवा लगातार चलती रहती है पर धूल बिलकुल नहीं है. और पंखा भी नहीं चलाना पड़ता. इसलिए फुटपाथिये रेस्तरां का अलग ही मज़ा है. तरह तरह के व्यंजन मिल जाते हैं 

10. हरे भरे मुन्नार के हरे भरे रास्ते में 

11. मुन्नार के सुंदर चाय बगान  

12. श्रीपद्मनाभास्वामी मंदिर थिरुवनंतपुरम. दुनिया के सबसे बड़े खज़ाने वाला मंदिर  

13. यहूदी मंदिर या परदेसी सिनागोग. ये 1568 में बना था. इसके दूसरे नाम हैं - Cochin Jewish Synagogue / Mataancherry Synagogue. मूल रूप से चौथी सदी में परदेसी सिनागोग कोदुन्ग्लुर में बना था. यहूदी यहाँ मसालों के व्यापार के लिए आते थे जिनमें से कुछ यहाँ बस भी गए और मालाबार यहूदी कहलाये  

14. श्रीगुरुवायूर मंदिर का आंगन. मंदिर में कृष्ण के बाल स्वरुप की पूजा होती है        

15. आधुनिक मस्जिद. सातवीं आठवीं शताब्दी से अरब व्यापारी केरल में मसालों के लिए आ रहे थे 

16. त्रिचूर में एक चर्च. जीसस क्राइस्ट के शिष्य संत थॉमस यहाँ सन 52 में अर्थात पहली शताब्दी में केरल आये थे.  

17. बेकल फोर्ट से लिया गया फोटो  

18. त्रिचूर का वडक्कुनाथन याने उत्तर के नाथ, शिव मंदिर. मंदिर का इतिहास एक हज़ार साल से भी पुराना है   

19. श्री कृष्णा मंदिर त्रिचूर में शादी. यहाँ शादियाँ सुबह सुबह ही हो जाती हैं  

20. मुन्नार के रास्ते में एक झरना 

केरल जाएं तो छुट्टी ज्यादा लेकर जाएं. प्रदेश के 14 जिलों में से हर एक में कुछ ना कुछ देखने समझने के लिए है. पर्यटकों के लिए माहौल अच्छा है क्यूंकि यहाँ पर्यटक और मसाला व्यापारी सदियों से आते रहे हैं. प्रदेश भारत के उत्तरी राज्यों से ज्यादा समृद्ध, शिक्षित और अनुशासित लगा. घूमने की सभी सुविधाएं आसानी से मिल जाती हैं.
एक बार जरूर जाएं.

20. हरा भरा केरल 




Monday, 3 September 2018

नंदी बैल

नंदी बैल भगवान शिव के वाहन हैं। बैल में शक्ति है, बैल कर्मठ है और बैल भरोसे लायक है पंगे कम करता है। भगवान शिव के मंदिर के सामने डटा रहता है। दक्षिण भारत के कई मंदिरों में नंदी की बड़ी बड़ी मूर्तियों हैं। लीपाक्षी, आंध्रा में नंदी की सबसे बड़ी मूर्ति बताई जाती है। नंदी की सुंदर मूर्तियां सभी शिवालयों में हैं.
बैलों का उपयोग प्राचीन समय से पूरे भारत और लगभग पूरे विश्व में खेती और माल ढुलाई के लिए किया जा रहा है। गरमी हो या ठंड या बारिश, नंदी बैल जुता ही रहता है। खाने का तो पता नहीं पर डंडे ज़रूर खाता रहता है। भारत के विभिन्न स्थानों में ली गई कुछ फ़ोटो प्रस्तुत हैं:


हालेबिडू, कर्नाटक में नंदी की नक्काशी की हुई विशालकाय मूर्ति

क्यूंकालेश्वर मंदिर, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड में नंदी 

मीनाक्षी मंदिर, मदुराई, तमिलनाडू में नंदी की मूर्ति. नंदी के कान में बात कहने से आपकी मनोकामना पूरी होगी 

रिम झिम में किसान और उसके हीरा मोती खेतों की ओर बेलूर, कर्नाटक में. दक्षिण भारत में बैलों के सींग लम्बे, नुकीले और घुमावदार हैं

नंदी माल ढुलाई में. मदुराई, तमिलनाडु में 

हीरा मोती और धान की बुआई की तैयारी हम्पी, कर्नाटक में 


बैल, बैलगाड़ी, चालक और मोबाईल फ़ोन मेरठ, उत्तरप्रदेश में 

केदारनाथ मंदिर के सामने चबूतरे पर नंदी की मूर्ति 

विशाल नंदी, नरेंद्र नगर, उत्तराखंड में  



लेपाक्षी नंदी, अनंतपुरम. बीस फुट ऊँचा और तीस फुट लम्बा. भारत का सबसे बड़ा नंदी