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Monday, 30 April 2018

Hot cup of tea






Cold morning & hot tea. Snow capped mountains form part of Gangotri Range. Somwhere to the left is Kedarnath. Some white clouds are seen which form an umbrella over Srinagar, Garhwal.



Wednesday, 25 April 2018

नकली मूर्ती

शादी में जाने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. और लो टैक्सी भी आ गई. सामान गाड़ी में डाल दिया और दोनों पिछली सीट पर बैठ गए. चंद्रू ड्राईवर से बोला,
- चलो भई स्टार्ट!
गाड़ी गीयर बदलते हुए हाईवे पर आ गई और देहरादून की चार घंटे की यात्रा शुरू हो गई. उसके साथ ही मन में विचारों की गाड़ी भी चल पड़ी. वहां मम्मी पापा भी इंतज़ार कर रहे होंगे दो दिन वहां भी रुकेंगे और फिर सभी शादी में भी शामिल हो जाएंगे. एक बजे तक पहुँच जाएंगे. मम्मी तो तुरंत लिपट जाएँगी और एक पेट डायलॉग जरूर बोलेंगी 'कुछ दुबला  दुबला लग रहा है ख्याल रखा कर!' फिर लिपटेंगी पूजा को 'आ गई आ गई तू जल्दी जल्दी आया कर अच्छा लगता है'. पापा मिलेंगे अपने फौजी अंदाज़ में. ऊपर से नीचे तक देखेंगे, आशीर्वाद देते देते दोनों के सर पर बारी बारी हाथ फेरेंगे. बस उसके बाद हाहा होहो शुरू हो जाएगी.
सामान बरांडे में फेंक कर वहीँ बेंत की कुर्सियों में बैठ कर चारों एक साथ ही आपस में बातें करने लग जाएंगे. यात्रा, सड़कें, कपड़े, नौकरी, मौसम, शादी सब आनन फानन में डिस्कस होने लग जाएगा. बेतरतीब बातें, प्यार भरी बातें और ख़ुशी फैलानी वाली बातें. पर तभी मम्मी को याद आ जाएगा और पूछ लेगी,
- अरे चाय तो पूछी ही नहीं. चाय या ठंडा?
- अरे बियर लेंगे भई बियर.
ऐसे ही किसी बात पर ब्रेक हो जाएगा. पर रुक रुक के सिलसिला जारी रहेगा. मामा भी तो होंगे शादी में? बस यहाँ आकर चंद्रू की खुशनुमा विचारों पर रुकावट आ गई. पियक्कड़ और गुस्सैल मामा के साथ कई कड़वी यादों के विडियो चल पड़े. चेहरा थोड़ा उतर गया. सोच में पड़ गया.

- पूजा तो केवल शादी में मामा से मिली थी अब तो शायद याद भी नहीं होगा उसे. मामा के बारे में कभी उसे बताया भी नहीं. शादी की एल्बम में जरुर मामा नज़र आये होंगे. अब पूजा को बताऊँ या ना बताऊँ? बताने से उसे बुरा लगेगा. क्या पता खानदान पे कुछ बोल पड़े? अगर ना बताया और वहां जाकर उसे पता लगा तो हो सकता है लड़ पड़े? हो सकता है नाराज़ हो जाए और आइन्दा देहरादून जाने से मना कर दे. क्या किया जाए? चलो बता दूंगा. फिलहाल तो सो रही है.

- मैं भी मामा से नमस्ते करके किनारा कर लूँगा. फ़िज़ूल की बातें करते हैं, बार बार कहते हैं 'पेग ले ले यार पेग ले ले'. पी लो तो भी मज़ाक उड़ाते हैं ना पियो तो दूध पीने वाला बच्चा कहते हैं. बीच बीच में मामी को फटकार लगाएंगे या किसी बच्चे को डांट मारेंगे. उनकी नौकरी के किस्से सुन सुन कर कान पाक चुके हैं. 

- लेकिन कन्नी काट लो तो मम्मी भांप जाती है. फिर समझाने का दौर शुरू हो जाता है. भाई बहन की इज्ज़त, आपसी प्यार मोहब्बत जैसे डायलॉग चल पड़ते हैं और काफिया तंग होने लगता है. अब भी मम्मी उम्मीद करेगी की हम दोनों मामा के घर जाएं, कुछ गिफ्ट भी साथ जाएं और दो चार घंटे मामा मामी के संग गुजारें. नो वे! मामा के घिसे पिटे किस्से और मामा का मामी पर गुर्राना हम क्यूँ सुने ? या मामी तिरछी नज़रों से मामा को देखे और हम देख कर भी अनदेखा करें? ना ना हम नहीं जाएंगे. जाते ही मम्मी को कह दूंगा.

- पर फिर हल्का सा ये भी खयाल आ जाता है की यार अब मामा पेंशनर हैं जैसा चाहें रहें हमें क्या करना है. बस हाल चाल पूछ कर छुट्टी कर लेंगे. दुनियादारी निभाओ और आगे चलते रहो. जहाँ देखो यही रोना लगा हुआ है प्रोटोकॉल का और फॉर्मेलिटी का. बेचैनी होने लगती है इन सब बातों से. सिर भारी हो जाता है.

चंद्रू ने ड्राईवर से कहा फलां ढाबा आने वाला है वहां रोकना. पूजा से कहा उठो यहाँ कुछ ले लेते हैं. चाय पीते हुए फिर से चंद्रू के मन में आया की पूजा को मामा के बारे में बता दे. हाँ - ना - हाँ? चलो बाद में देखता हूँ. नहीं बता देता हूँ और बता ही दिया. 

पूजा ने सुन लिया पर क्या कहना था? बोली,
- चंदर छोडो भी. लोग कैसे कैसे स्वाभाव के होते हैं और क्या क्या करते हैं इसका हमें हिसाब रखना है क्या ? सब परिवारों में एक आधा जोकर रहता है कहीं मामा, कहीं फूफा, कहीं ताऊ. जैसा मौका आएगा निपट लेंगे.
चंद्रू को बात समझ आई और मन ज़रा हल्का हुआ. बाकी रास्ता गप्पों में गुज़र गया और बाकी दिन भी. जैसा की उम्मीद थी अगले दिन मम्मी ने दोनों को कहा की दस मिनट के लिए मामा मामी से भी मिल आओ. उन्हें पता तो है की तुम आने वाले हो जाओ बस शकल दिखा कर आ जाना. 

एक घंटे की कसैली कड़वी बहस के बाद चंद्रू ने कपड़े बदले और पूजा को लेकर मामा के घर पहुंचा. मामा को देख कर बोला,
- ये क्या मामा जी? स्टिक पकड़ी हुई है?
- अरे यार कुछ दिन पहले पार्क के गेट से बाहर निकला कोई गाड़ी हिट कर गई थी और मैं सड़क पर जा गिरा था. तीन घंटे बाद आँख खुली तो डॉक्टर खड़ा देखा. खैर शाम तक वहीँ क्लिनिक में रहा फिर मामी ले आई. ऐसा लगा दुबारा पैदा हो गया हूँ हाहाहा ! इस नए जन्म के साइड इफ़ेक्ट भी हुए जैसे की अब श्रीमती के साथ ज्यादा टाइम बिताता हूँ और बताऊँ हें हें हें नए जनम में दारु बंद कर दी है !

कुछ देर बाद घर की तरफ वापिस चले तो पूजा ने कहा,
- चंदर तुमने बेकार में मामा की नकली मूर्ती बना कर सिर पर बोझ की तरह रखी हुई थी.     

नकली 


Sunday, 22 April 2018

अजब तोरी दुनिया

हरिद्वार हो या ऋषिकेश आना जाना होता रहता है कभी किसी धार्मिक अनुष्ठान के कारण या  कभी सैर सपाटे के लिए. कभी और ऊपर याने टेहरी या पौड़ी गढ़वाल जाना हो तो एक रात का हाल्ट भी हो जाता है. दोनों जगहों पर बहरुपिए, अपाहिज और भिखमंगे बहुत मिलते हैं. कई बार देख कर लगता है कि वाकई जरूरत मंद होगा पर कई बार देते हुए हाथ रुकता है. ये फैसला करना मुश्किल हो जाता है कि कुछ दें या न दें? दो बीघा जमीन  (1953 ) फिल्म का गाना याद आ जाता है:

हो मोरे रामा अजब तोरी दुनिया 
कदम कदम देखी भूल भुल्लैय्या 
गजब तोरी दुनिया  !

बहरूपियों की बात तो समझ में आती है की रंग-रोगन करते हैं, कपड़े दाढ़ी मूंछ वगैरा लगाते हैं और 'self employed' हैं. आप उनके अभिनय को सराहने के एवज़ में पैसे दे देते हैं. या कई बार पीछा छुड़ाने के लिए भी दे देते हैं. हर की पौड़ी पर दो को मैंने गौर से देखा - एक हनुमान बना हुआ था और दूसरा काली माई. दोनों महिलाओं की ओर पहले कटोरा फैलाते हैं. अगर गाँव की महिला या बुज़ुर्ग या बच्चे हों तो और भी अच्छा है क्यूंकि कुछ न कुछ मिल ही जाता है. काली माई तो हाथ उठाकर चांवर 'कस्टमर' के सिर पर फेरने लग जाती थी. दक्षिणा मिली तो तुरंत दूसरे कस्टमर की तरफ रूख कर लिया. बच्चों को हनुमान में ज्यादा रूचि होती है. माँ की ऊँगली पकड़ आगे आगे चलना है पर तिरछी गर्दन से हनुमान को भी देखते रहना है.

पर जब भला चंगा आदमी हाथ फैलता है तो फैसला करना मुश्किल हो जाता है की क्यूँ दिया जाए. ये लोग क्यूँ घुमंतू बन गए? पढ़े या नहीं? घर क्यूँ छोड़ा होगा? क्या सच में साधू हैं या ये भी एक रूप ही बनाया हुआ है? या फिर पापी पेट का सवाल है?

चलिए साब जो दे उसका भी भला और जो ना दे उसका भी भला !


पार्किंग में घुसते ही, अभी गाडी खड़ी भी नहीं हुई थी कि हाथ फैला दिया. कितना सच कितनी नौटंकी ?
हो मोरे रामा अजब तेरी दुनिया 

मिलते हैं सुट्टा ब्रेक के बाद
हो मोरे रामा अजब तेरी दुनिया 


सौ वर्ष से भी पुराना श्री सिद्ध बाबा स्वतन्त्र पूरी जी का धूना. धूने का धूआँ तने पर धूने की राख शरीर पर
हो मोरे रामा अजब तेरी दुनिया   

   इस नौजवान ने अपना नाम, पता, गाँव, शहर कुछ नहीं बताया पर नाश्ता करने के लिए पैसे जरूर मांगे.
फोटो की अनुमति दे दी जिस के दस रुपए लगे
हो मोरे रामा बेढब  तेरी दुनिया   

काली माई - पापी पेट का सवाल है
हो मोरे रामा अजब तेरी दुनिया  

फोटो खींचने के दस रूपए
हो मोरे रामा अजब तेरी दुनिया  

हो मोरे रामा अजब तोरी दुनिया
कोई कहे जग झूटा सपना पानी की बुलबुलिया,
हर किताब में अलग अलग है इस दुनिया की हुलिया !
सच मानो या इसको झूटी मानो,
हो मोरे रामा अजब तेरी दुनिया 

हो मोरे रामा अजब तोरी दुनिया
हो के हमारी हुई ना हमारी,
अलग तोरी दुनिया,
 हो मोरे रामा अजब तेरी दुनिया 

हो मोरे रामा अजब तेरी दुनिया
दया धर्म सब कुछ बिकता है लोग लगाएं बोली,
मुश्किल है हम जैसों की खाली है जिनकी झोली,
जब तेरे बन्दों की जान बिके ना है तब तोरी दुनिया
हो मोरे रामा गजब तेरी दुनिया   




Friday, 13 April 2018

राफ्टिंग के झटके

ऋषिकेश में हमारे ग्रुप ने डेरा डाला हुआ था और बात चल रही थी कि सुबह किस किस ने राफ्टिंग करनी है. सात नौजवान तैयार थे जिनकी उम्र 15 से 35 की थी और आठ सीनियर्स थे जिनका राफ्टिंग का मन नहीं था. बहरहाल राफ्ट तो बुक हो चुकी थी. सुबह सात बजे से 'बच्चों' की तैयारी शुरू हो गई. किसी ने कहा आठवीं सीट खाली जा रही है कोई तो चलो. मेरी तरफ देखा तो मैंने कहा,
- देखो भई ना तो मुझे तैरना ही आता है और ना ही चप्पू चलाना. हम तो बोटिंग कर लेंगे.
कई एक साथ बोल पड़े,
- चलो अंकल चलो !
- आप ने कुछ नहीं करना !
- चप्पू नहीं चलाना बस आप बोट के बीच में बैठ जाना !
तो साब हम भी चल पड़े अब जो होगा देखा जाएगा. राम झूला पहुँच कर राम भरोसे बोलेरो में बैठे और सभी आठों दिलेर बन्दे 20 किमी दूर शिवपुरी पहुँच गए. बोलेरो की छत से रबड़ की बोट उतार कर नीचे ले जाई गई और गंगा किनारे रेत पर रख दी गई. इस बोट को बोट कहने के बजाए राफ्ट या रैफ्ट कहना बेहतर है. इसी की सवारी करनी थी. आसमान पर बादल छाए थे और बूंदाबांदी हो रही थी. तेज़ और ठंडी हवा के झोंके आ रहे थे. गंगा के हरियल पानी के दोनों तरफ ऊँची ऊँची पहाड़ियाँ थी. गाइड नेगी ने नमस्ते करके भाषण देना शुरू कर दिया:
- सभी हेलमेट पहन लें. राफ्ट से कभी कोई गिर जाए और किसी चट्टान से टकरा जाए तो चोट ना लगे इसलिए ये पहनना बहुत ज़रूरी है. 
- ( सुबह सुबह गंगा किनारे यही बताना था क्या? ).
- लाइफ-जैकेट कसकर बाँध लें. पानी में गिरने के बाद जैकेट ऊपर की ओर उठाती है और ढीली हो सकती है. अगर ढीली हो जाए तो बेल्ट खींच कर कस लें.
- ( ये लो सुबह सुबह ठन्डे पानी में गिरा रहा है! कैसा आदमी है ये? ).
-  जूते चप्पलें उतार दें, मोबाइल और पर्स इस वाटरप्रूफ थैले में डाल दें, चप्पू को ऐसे पकड़ना है, ऐसे फॉरवर्ड चलाना है, ऐसे बैकवर्ड चलाना है, इस थैली में लम्बी रस्सी है अगर कोई बोट से गिरा तो जल्दी से रस्सी निकाल कर उसकी तरफ फेंकनी है ( मरवा देगा आज क्या? ), टीम की तरह काम करना है, एक दूसरे की हेल्प करनी है और टीम को बोट सुरक्षा के साथ आगे ले जानी है, चलिए बैठिये, सबसे आगे कौन बैठेगा?

Ready to Raft. From left to right - 1. Selfie Master Ankit Taneja, 2. Cliff Jumper Dhruv Gera, 3. Lightweight Sippy Taneja Wardhan, 4. Ustad Mukul Wardhan, 5.  White Beard Harsh Wardhan,  6. Expert Commentator Swati Singh Taneja, 7. Expert Rafter Divya Gera and  8. Fearless Swimmer Garima Gera

राफ्टिंग क्या है?
ये राफ्टिंग एक खेल समझ लीजिये जिसमें जोश है, मनोरंजन है, एडवेंचर है और ख़तरा भी है. टीम के हर सदस्य का एक दूसरे का ख़याल रखना और सहयोग करना भी सिखाता है. यह खेल नदियों के ढलान पर ही खेला जाता है. ऐसे में पानी का बहाव तेज़ होता है जिसकी वजह से रबड़ का हवा भरा हुआ राफ्ट खुद ही तेज़ी से आगे भागता है. कुछ कुछ दूरी पर पानी झरने की तरह नीचे पत्थरों या चट्टानों पर गिरता है. कहीं कहीं भंवर बनते हैं कहीं बीच में चट्टान खड़ी मिलती है तो कहीं किनारे पर रेतीला बीच - river beech मिलता है. हलके चप्पुओं द्वारा अपने राफ्ट को पत्थरों, चट्टानों और भंवरों से बचा कर निकालना होता है. और of course खुद को भी गिरने से बचाना होता है.

1970 से यह खेल अमरीका में शुरू हुआ और फिर पूरे विश्व में फ़ैल गया. इस खेल के तमाम पहलुओं पर नज़र रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय राफ्टिंग संघ भी बन गया है. इस खतरे वाले खेल के खतरों को एक से दस तक के स्केल पर इस तरह से क्लास में बाँट दिया गया है:
क्लास 1 - पानी का बहाव धीमा और उबड़ खाबड़ पथरीला इलाका कम जिसे नौसिखिये भी पार कर सकें.
क्लास 2 - पानी थोड़ा ज्यादा और बहाव भी. बड़ा पथरीला इलाका और थोड़ा सा ख़तरा.
क्लास 3 - सफ़ेद झागदार पानी ( white water ) और हलकी ऊँची नीची लहरें भी.
क्लास 4 - सफ़ेद झागदार तेज़ पानी, मध्यम ऊँचाई वाली लहरें और चट्टानें. ताकत और कौशल की जरूरत.
क्लास 5 - सफ़ेद झागदार तेज़ धारा ऊँची तरंगें और बड़ा एरिया. ज्यादा ताकत और कुशलता की जरूरत और
क्लास 6 - सफ़ेद झागदार ऊँची ऊँची लहरें, बड़े बड़े पत्थर, तेज़ बहाव और बड़ी चट्टानें याने खतरनाक राफ्टिंग.

इस खेल में राफ्ट बाई या दाईं ओर उलट सकता है, किसी चट्टान से टकरा कर अगला हिस्सा ऊपर उठ कर पीछे की और पलटी खा सकता है. ऐसा भी हो सकता है की ढलान पर जब राफ्ट की नाक पानी में जाए तो राफ्ट उठ ही ना पाए. उस स्थिति में पिछला हिस्सा ऊपर उठ जाएगा और शायद सभी सवारियों को गिरा देगा. राफ्ट किसी नुकीले पत्थर से टकरा कर कट फट जाने का भी ख़तरा हो सकता है हालांकि ये राफ्ट गाड़ियों के टायर जैसे सख्त रबड़ के बने होते हैं.

भारत में राफ्टिंग 
भारत में ये खेल बहुत पुराना नहीं है शायद 15 से 20 साल पुराना होगा. यहाँ कई जगह पर राफ्टिंग का मज़ा लिया जा सकता है. इनमें से कुछ हैं -
- शिवपुरी से लक्षमण झुला ऋषिकेश तक लगभग 16 किमी की लम्बाई में कई पथरीले ढलान ( rapid ) हैं, चट्टानें हैं और बहुत सी जगह भंवर भी हैं. यहाँ क्लास 1 से लेकर क्लास 4 तक के खतरे हैं. हॉलीवुड एक्टर ब्रैड पिट भी यहाँ राफ्टिंग कर चुके हैं. यहाँ रैपिड्स के नाम भी रखे हुए हैं जैसे कि - Return to Sender, Roller Coaster, Three Blind Mice, Double Trouble, Golf Course वगैरा.  
- इसके अलावा उत्तराखंड में  25 किमी लम्बाई में मन्दाकिनी पर चन्द्रपुरी - रूद्रप्रयाग, मतली - डुंडा में 12 किमी लम्बाई में, जंगला - झाला में 20 किमी लम्बाई में और धारसू - छाम में १२ किमी लम्बाई में भागीरथी पर राफ्टिंग की जा सकती है. पर ये सभी ज्यादा खतरे वाली राफ्टिंग हैं. 
- लद्दाख में ज़न्स्कार नदी पर पादुम - जिमो के बीच बर्फीले पानी में राफ्टिंग की जा सकती है. ये नदी सर्दियों में जम जाती है. खतरा क्लास 4 या ऊपर का है. नुरला में बहुत लम्बी ढाल या rapids हैं.
- सिक्किम में तीस्ता नदी पर भी राफ्टिंग के कई स्थान हैं .
- अरुणाचल में सुबनसरी नदी में टूटिंग - पासी घाट तक क्लास 4 या ऊपर के खतरे वाली राफ्टिंग की जा सकती है.
- हिमाचल में कुल्लू मनाली में भी राफ्टिंग हो सकती है पर ख़तरा ज्यादा है.
- कोलाड, महाराष्ट्र में कुंडलिका नदी की 15 किमी की लम्बाई में राफ्टिंग की जा सकती है.
- बारापोल नदी कुर्ग, कर्णाटक में भी राफ्टिंग की जा सकती है.

चार दाएं बैठो 

और चार बाएँ बैठो  

लो राफ्ट चली!
अब गाइड ने हमें बैठाना शुरू कर दिया. चार बाएँ बैठेंगे, चार दाएँ और पीछे गाइड नेगी जी पधारेंगे. सबको एक एक चप्पू दे दिया गया. एक हाथ चप्पू के हैंडल के टॉप पर रखना है और दूसरा पीले ब्लेड से चार छे इंच ऊपर. बैठ तो गए पर बैठ कर पकड़ें किसको? दोनों हाथ में तो पैडल पकड़ना था. बोट के अंदर चार गोल तकिये से लगे हुए थे. अपने अगले पैर के पंजे को फर्श और गोल तकिये के बीच फसाना है और पिछले पैर के पंजे को गोल मुंडेरी और फर्श के बीच फ़साना है. फर्श में छेद थे जिसमें से ठंडा पानी आ रहा था. बोट के चारों तरफ एक रस्सी थी उसे इमरजेंसी में पकड़ा जा सकता था.
- बाप रे बाप! नेगी जी ये क्या करवा रहे हो? गिर जाएंगे यार.
पर नेगी जी कहाँ सुन रहे थे. उन्होंने तो जोर से नारा लगा दिया 'हर हर गंगे' और अपने चप्पू को पत्थर से लगाकर जोर मारा और राफ्ट को धारा में धकेल दिया! सबने जवाब दिया 'हर हर गंगे'.
राफ्ट ठन्डे पानी में हिचकोले खाता हुआ स्पीड पकड़ने लगा. कुछ राफ्ट के फर्श से और कुछ चप्पुओं के छपाक छपाक करने से तुरंत सब गीले हो गए. नेगी जी जोश दिलवा रहे थे,
- पैडल फा-र-वा-र्ड! पै-ड-ल फा-र-वा-र्ड! जोर लगा के! लेफ्ट साइड में पहला नंबर ठीक से चप्पू चलाओ!
इशारा मेरी तरफ था. पीछे बैठी गरिमा चिल्लाई,
- अंकल आपको ही कह रहा है!
- अरे तू छोड़ उसको. यहाँ समझ नहीं आ रहा की चप्पू पकडूँ, रस्सी पकड़ूं या पैर फसा कर रखूं ? सब कुछ तो हिचकोले खा रहा है और ठण्ड अलग रही है. चलने से पहले अखबार में अपना होरोस्कोप भी नहीं देखा !

धारा के बीच में आकर राफ्ट की रफ़्तार और तेज़ हो गई, हिचकोले तेज़ हो गए और राफ्ट आड़ी तिरछी आगे भागने लगी. ऊपर-नीचे, दाएं-बाएँ फिर भी आगे और आगे.
- 'पै-ड-ल -- फा-र-वा-र्ड'! तैयार हो जाओ रैपिड आने वाला है ! स्टॉप पैडल---स्टॉप पैडल !
अभी सम्भल भी ना पाए थे कि बोट ने डाईव मार दी. बर्फीले पानी की लहर छपाक से सिर पर आकर गिरी. पता नहीं कितनी बार ऊपर नीचे और दाएं बाएँ हुए. चश्मे पर पानी पड़ा और दिखना बंद हो गया. याद आया कि अभी तक कमबख्त वसीयत भी नहीं लिखी थी ! अब वापिस जा कर सबसे पहले यही काम करना है. तब तक नेगी जी की जोरदार आवाज़ आई,
- पै-ड-ल फा-र-वा-र्ड ---- पै-ड-ल - फा-र-व-र्ड. रैपिड निकल गया बहुत अच्छे !

बोट थोड़ा संभल गई और समतल पानी में बढ़ने लगी. यहाँ गंगा का पाट चौड़ा था. आसपास नज़र डाली तो तीन बोट आगे भी भागी जा रही थीं. उनमें बैठे छोरे छोरियां जोश में चिल्ला रहे थे और सभी मजे ले रहे थे. नेगी जी बिना रुके बोले जा रहे थे,
- बहुत अच्छे बहुत अच्छे. रोलर कोस्टर आने वाला है. शाबाश शाबाश. चप्पू तैयार है? टी-म फा-र-व-र्ड!
पांच सौ मीटर सामने लहरों का मेला नज़र आ रहा था. अंदाज़न तीन फीट ऊँची होंगी. और सौ मीटर आगे जाने पर नज़र आया की इन लहरों के बाच दो से चार फुट तक के गैप भी हैं और इसका मतलब है की बोट खूब उछ्लेगी और सीधी नहीं रह पाएगी. रौंगटे खड़े हो गए और सारे शरीर में सिहरन दौड़ गई. रस्सी और पैडल को उँगलियों और अंगूठे में कस लिया. दोनों पैर फिर से अच्छी तरह फंसा लिए. बुरे फंसे आज तो. गौतम बुद्ध का डायलॉग याद आ गया - वर्तमान पर ध्यान दो भूत या भविष्य पर नहीं ! सही बिलकुल सही केवल लहरों को ही देखना है स्वर्ग की तरफ नहीं. तो फिर लहरों पर नज़र गड़ा दी ready, steady & go!

राफ्ट तेजी से नीचे गई और एक ऊँची लहर सबके ऊपर गिरी. फिर राफ्ट ऊपर उठी सबने चीख मार दी. बौछार चश्में पर पड़ी और दिखना बंद हो गया और दो, तीन या शायद चार मिनट कुछ नहीं पता चला क्या हुआ. बर्फीले पानी की भारी बौछार, लहरों का शोर, राफ्ट के हिचकोले, सबकी चिल्लाहट और गाइड की आवाज़ सब कुछ एक साथ हो रहा था.

फिर से राफ्ट सीधी हो गयी, सबने एक दूसरे को देखा और गाइड की आवाज़ भी कान में पड़ने लगी - 'शाबाश शाबाश'. अब तो सारे हंस रहे थे. सांस में सांस आ गई. अगले तीन चार किमी गंगा शांत नज़र आ रही थी. नेगी जी ने कहा जिसने पानी में उतरना है वो उतर सकता है और राफ्ट की रस्सी पकड़ कर साथ साथ तैर सकता है. बारी बारी से सब ने मज़ा लिया पर भई अपने बस की बात नहीं थी. 67 के ना हो कर 27 या 37 के होते तो शायद हम भी करतब दिखाते. ध्रुव और गरिमा ने बहादुरी दिखाई और रस्सी छोड़ कर बोट से आगे निकल गए और तैर कर फिर नजदीक आ गए तो गाइड ने उन्हें जैकेट से पकड़ कर ऊपर उठा लिया.

और आगे चले तो Cliff Jumping Point आ गया. वहां धीरे से लहरों को काटते हुए राफ्ट को किनारे लगा दिया गया. किनारे पर उबड़ खाबड़ पत्थरों पर चाय और मैगी के खोखे थे. लगभग 50 - 60 नंगे पैर राफ्टर वहां जमा थे. गरमा गरम चाय पीकर जान आ गई हालांकि सर्दी की वजह से कंपकपी जारी थी. तब तक ध्रुव Cliff पर चढ़ गया और ऊपर से जम्प लगा दी शायद 20 - 25 फुट की ऊँचाई रही होगी.

Tea break के बाद एक बार फिर से राफ्ट पर सभी सवार हो गए. ब्रेक से पहले मेरी सीट बाएँ तरफ से पहली थी अब दाएं साइड में चौथी हो गयी. गाइड ने बताया कि मुश्किल वाले रैपिड खत्म हो गए और आगे पानी सीधा सीधा सा ही है. धीरे धीरे राफ्ट को आगे ले जा कर फिर से दाहिने किनारे पर ले गए. लगभग 12- 13  किमी लम्बी यात्रा समाप्त हुई जो हमेशा के लिए याद रहेगी.
मेरे कंधे अभी भी दुःख रहे हैं. मैं याद करने की कोशिश कर रहा हूँ कि ये किसने कहा था कि बस अंकल आपने बीच में बैठे रहना है और आपने कुछ नहीं करना है! 😠😜

Team of Eight Greats


Friday, 6 April 2018

बुद्ध का मार्ग - कर्म और फल

कर्म और फल     

बौद्ध दर्शन में एक मूल, मौलिक और महत्वपूर्ण सिद्धांत है कर्म और फल का सिद्धांत जिसे पाली भाषा में पटिच्चसमुप्पाद, संस्कृत में 'प्रतीत्य समुत्पाद' और इंग्लिश में dependent coarising कहा जाता है. हिंदी में इसे कार्य-कारण, कारण-परिणाम या फिर कर्म और विपाक( विपाक अर्थात कर्म का फल ) का सिद्धांत भी कहा जाता है. प्रतीत्य समुत्पाद को 'भवचक्र' भी कहा जाता है क्यूंकि ये हमारे भव या becoming का विश्लेषण है. प्रतीत्य समुत्पाद को  'द्वादशनिदान' भी कहा जाता है क्यूंकि इसमें बारह बिंदु हैं और इन बिन्दुओं में पूरे जीवन का निदान या diagnosis है.

प्रतीत्य समुत्पाद में  प्रतीत्य शब्द का अर्थ है घटना घटित हो जाने पर या घटना के बीत जाने पर और समुत्प्पाद का अर्थ है नई घटना का घटना या कुछ नया उत्पन्न होना. सरल शब्दों में इसका अर्थ हुआ कि एक घटना घटित हो जाने के परिणाम स्वरुप कोई और घटना घट जाती है और यह सिलसिला जारी रहता है. यह क्रम सीधा और सरल ना होकर एक जटिल जाल की तरह है. जल, थल और नभ में हर क्षण कुछ न कुछ घटित होता रहता है और इन घटनाओं के मिलेजुले परिणाम होते रहते हैं जो दूसरी घटनाओं को उत्पन्न करते रहते हैं. इन सब घटनाओं का एक प्रवाह चलता रहता है. अर्थात संसार परिवर्तनशील है. ये घटनाएं भौतिक हों या अभौतिक, चेतन हों या अचेतन, विचार हों या वस्तु किसी ना किसी कारण से होती हैं बिना कारण के नहीं. इसका कोई अपवाद नहीं है.

प्राणी समाज के लिए घटनाएं कर्म पर आधारित हैं और उनके परिणाम ( विपाक ) के अनुसार फिर कर्म का चक्र आगे चलता रहता है. क्यूंकि संसार का चक्र परिवर्तनशील है इसलिए दुखदायी है. दूसरे शब्दों में कारण के होने पर ही कार्य होता है और कारण ना होने पर कार्य नहीं होता जिसका अर्थ है की हम दुःख को समझ लें, कारण ढूँढ लें तो दुःख को रोक पाएंगे.

प्रतीत्य समुत्पाद को ध्यान में रखते हुए जटिल जीवन चक्र को गौतम बुद्ध ने कैसे सरलता से समझाया आइये देखते हैं. संयुक्त निकाय के बुद्ध वर्ग के विपस्सी सुत्त में गौतम बुद्ध कहते हैं कि
- भिक्खुओ बौद्ध होने से पहले जब मैं विपश्यना ( मैडिटेशन ) कर रहा था तो मन में सवाल थे - यह लोक दुखों से घिरा हुआ है. मानव पैदा होता है, बूढ़ा होता है, मर जाता है, और फिर जन्म ले लेता है. इस दुःख भरे चक्र से छुटकारा कैसे हो सकता है? कब मैं इस जरा-मरण के दुःख से छुटकारा जान पाऊंगा?

1. जरा-मरण क्या है?
किसी भी जीव का ढल जाना, दांत गिरना, झुर्रियां पड़ना, बाल सफ़ेद हो जाना, इन्द्रियों का शिथिल पड़ जाना, बूढ़ा होना इत्यादि 'जरा' या जर्जर होना या aging कहलाता है. पांच स्कंधों का छिन्न भिन्न हो जाना, चोला त्याग देना, सांस का न आना मरण कहलाता है. यही जरा-मरण है.

- भिक्खुओ मन में चिंतन किया. किसके होने से जरा-मरण होता है? जरा-मरण का कारण क्या है?
भली प्रकार चिंतन मनन से ज्ञात हुआ कि जन्म के होने से जरा-मरण होता है. जाति ही जरा-मरण का हेतु है.

2. जाति / जन्म क्या है?
जीव का प्रकट होना, पैदा हो जाना, पांच स्कंधों का मिलना, इन्द्रियों का जुड़ कर काम करने लग जाना यही जाति या जन्म या birth है.

चिंतन मनन का अगला सवाल था - किसके होने से जाति या जन्म होता है? जन्म का हेतु क्या है?
विचारने पर ज्ञात हुआ कि भव के होने से जाति होती है. भव ही जाति का हेतु है.

3. भव क्या है?
भव तीन प्रकार के हैं- 1. काम लोक में बने रहने की इच्छा अर्थात काम-भव या sensual becoming है, 2. रूप लोक में बने रहना की इच्छा रूप-भव या form becoming है और 3. अरूप लोक में बने रहना अरूप-भव या formless becoming है.

इस पर प्रश्न उठा कि किसके होने से भव होता है? भव का हेतु क्या है?
विचार करने के बाद ज्ञात हुआ कि उपादान के होने से भव होता है. उपादान भव का हेतु है.

4. उपादान क्या है? 
उपादान या आसक्ति या craving चार तरह की हैं. 1. काम से आसक्ति या sensuality clinging, 2.  मिथ्या दृष्टि से आसक्ति या false view clinging, 3. शीलव्रत से आसक्ति या precept & practice clinging और 4. आत्मवाद से आसक्ति या doctrine of self clinging.

अब सवाल ये था कि किसके होने से उपादान होता है? उपादान का हेतु क्या है?
गहन मनन के बाद प्रज्ञा जागी कि तृष्णा होने से उपादान होता है. तृष्णा ही उपादान का हेतु है.

5. तृष्णा कितने प्रकार की है?
तृष्णा छे प्रकार की है. 1. रूप तृष्णा या craving for forms, 2. शब्द तृष्णा या craving for sounds, 3. गंध तृष्णा या craving for smells, 4. रस तृष्णा या craving for tastes, 5. स्पर्श तृष्णा या craving for touch और 6. धर्म तृष्णा या craving for ideas.

प्रश्न है की किसके होने से तृष्णा होती है? तृष्णा का हेतु क्या है?
उत्तर है कि वेदना होने से तृष्णा होती है. वेदना ही तृष्णा का हेतु है.

6. वेदना कितने प्रकार की है?
 वेदनाएं छे प्रकार की हैं. 1. चक्षु के माध्यम से होने वाली वेदना या feeling born from eye contact, 2. कान के माध्यम से से होने वाली वेदना, 3. नाक के माध्यम से होने वाली वेदना, 4. जीभ के माध्यम से होने वाली वेदना, 5. काया से होने वाला स्पर्श और 6. मन के संस्पर्श से होने वाली वेदना.

प्रश्न उठा कि किसके होने से वेदना होती है? वेदना का हेतु क्या है?
चिंतन मनन करने से उत्तर मिला कि स्पर्श के होने से वेदना होती है. स्पर्श ही वेदना का हेतु है.

7. स्पर्श कितने प्रकार के हैं?
छे तरह के स्पर्श हैं. 1. चक्षु स्पर्श या eye contact, 2. कान , 3. नाक, 4. जीभ, 5. काया और 6. मन स्पर्श.

इस पर फिर प्रश्न किया कि किसके होने से स्पर्श होता है? स्पर्श का हेतु क्या है?
विचार करने पर जाना कि षड़ायतन होने से स्पर्श होता है. षड़ायतन ही स्पर्श का हेतु है.

8. षड़ायतन क्या है?
षड़ायतन या सलायतन या six senses इस प्रकार हैं: 1. चक्षु आयतन या eye medium, 2. कान आयतन, 3. नाक आयतन, 4. जीभ आयतन, 5. काया आयतन और 6. मन आयतन.

अब प्रश्न ये था कि किसके होने से सलायतन होता है? सलायतन का क्या हेतु है?
विचार किया तो उत्तर मिला कि नाम-रूप होने से सलायतन होता है. नाम-रूप ही सलायतन का कारण है.

9. नाम-रूप क्या है? 
पृथ्वी,जल,वायु और अग्नि जैसे महाभूतों के संयोग से रूप बना. वेदना, संज्ञा, चेतना, और स्पर्श से मन और सबको मिला कर बना नाम-रूप या name-&-form.

अब सवाल ये उठा कि किसके होने से नाम-रूप होता है? नाम-रूप का हेतु क्या है?
विचार करने पर प्रज्ञा जागी कि विज्ञान के होने से नाम-रूप होता है. विज्ञान ही नाम-रूप का हेतु है.

10. विज्ञान कितने प्रकार के हैं?
विज्ञान छे प्रकार के हैं. 1. चक्षु विज्ञान या eye consciouness 2. कान, 3. नाक, 4. जीभ, 5. काया और 6. मन विज्ञान या intellect consciousness.

प्रश्न ये आया कि किसके होने से विज्ञान होता है? विज्ञान का क्या हेतु है?
मनन करने पर पाया की संस्कार के होने से विज्ञान होता है. संस्कार विज्ञान का हेतु है.

 11. संस्कार कितनी तरह के हैं?
संस्कार तीन प्रकार के  हैं. 1. काया संस्कार या bodily fabrications, 2. वाक् संस्कार या verbal fabrications और 3. चित्त संस्कार या mental fabrications.

मन में प्रश्न आया कि किसके होने से संस्कार होते हैं? संस्कारों का हेतु क्या है?
गहन चिंतन से पाया कि अविद्या के होने से संस्कार होते हैं. अविद्या ही संस्कारों का हेतु है.

12. अविद्या क्या है?
दुःख को ना जानना, दुःख के उदय को ना जानना, दुःख-निरोध को ना समझना और दुःख त्यागने का मार्ग ना जानना अविद्या कहलाता है.

यह बारह बिन्दुओं की श्रंखला हमें दुःख और दुःख के कारण बताती है . साथ ही अगर कारण पता हैं तो उन्हें दूर करने का उपाय भी मिल सकता है. इसी श्रंखला के बारवें बिंदु से पहले बिंदु तक भी विचार कर सकते हैं जैसे की:

अविद्या हो तो संस्कार जागते हैं,
> संस्कारों की वजह से विज्ञान है,
> विज्ञान है तो नाम-रूप है,
> नाम-रूप है तो षड़ायतन हैं,
> षड़ायतन के कारण स्पर्श हो जाता है,
> स्पर्श के कारण वेदना होती है,
> वेदना से तृष्णा उपजती है,
> तृष्णा से उपादान या आसक्ति हो जाती है,
> आसक्ति से भव जागता है,
> भव से जाति या जन्म होता है और
> जन्म से जरा मरण होता है.

अब अगर अविद्या का विनाश कर दिया जाए तो संस्कारों का विनाश हो जाएगा, संस्कारों के विनाश से विज्ञान का खात्मा हो जाएगा, विज्ञान का विनाश होगा तो नाम-रूप का भी विनाश होगा, नाम-रूप का विनाश होगा तो सलायतन का, सलायातन का विनाश हो जाए तो स्पर्श का विनाश हो जाए, स्पर्श का विनाश हो तो वेदना का विनाश हो जाए, अगर वेदना गयी तो तृष्णा भी गई, तृष्णा के विनाश से आसक्ति समाप्त होगी, आसक्ति नहीं तो भव नहीं, भव न हो तो जन्म नहीं और अगर जन्म नहीं तो जरा-मरण दुःख, चिंताएं और परेशानी नहीं.

अविद्या, संस्कार, वेदना, तृष्णा इत्यादि कैसे दूर होंगी? इसके लिए गौतम बुद्ध द्वारा बताई गई विपश्यना मैडिटेशन सीखनी होगी.

एकला चलो रे