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Thursday, 30 June 2016

प्रमोसन

रीजनल मैनेजर बनना आसान काम नहीं ना है भैय्या. बहुत तैयारी करना पड़ता है इंटरभ्यु के लिए. पढ़ाई करना जरूरी है और बढ़िया से सूट सिलवाना भी जरूरी है जी. और जो है सो बहुत पैरवी भी कराना पड़ता है जी. और जब एक बार बन गए तो पोस्टिंग कराना कौनों कम झमेला है. बहुत जोर का सिफारिस लगाना पड़ता है इधर ससुरा कम्पीटीसन भी बहुत बढ़ गया है ना.

आप जानिए की हमारे झुमरी तलैय्या रीज़न का बहुत नाम है आल इंडिया में टॉप. आप समझिये की रीजन बहुत बड़ा है, स्टाफ बहुत है और काम बहुत है जी. अब जहां स्टाफ बहुत है तो वहां लाल झंडा का लफड़ा बहुत है. और जहां काम बहुत है वहां माल भी बहुत है समझ गए ना जी. इसलिए झुमरी रीजन बड़ा मसहूर है और हर कोई प्रमोसन लेकर झुमरी का रीजनल मैनेजर बनना चाहता है.

पिछले सोमवार ही तो नए आर. एम. साब आए हैं. हम बता रहे हैं ना जी गोयल साब आए हैं दिल्ली से. 55 साल की उमर है, रंग सांवला, चश्मा लगा हुआ है और सर का बाल फिनिस हो गया है. सफ़ेद कमीज और लाल टाई पहनते हैं. पेट जरा सा बड़ा है. कमीज जो है पेट पर से जोर से दाएं बाएं खिंचा रहता है. वहां का जो दो ठो बटन हैं ना जी वो कमीज को बहुत मुस्किल से रोकता है. अगर बटन टूटा तो समझिये कि एक ठो बटन तो बंगाल की खाड़ी में गिरेगा और दूसरा बटन जो है गिरेगा अरब सागर में.

हमसे बात हुआ था आर. एम. साब का. हम बता दिए हैं कि झुमरी रीजन का भूगोल इतिहास क्या है. बड़ी खुसी से सुने गोयल साब. आपको भी बताए देते हैं की 40 मैनेजर गोयल साब के अंडर में रहेंगे. इनमें से सात तो 'ना जी, ना जी' हैं. मतलब कुछ काम बता दिया जाए जवाब एक ही है - ना जी ये तो नहीं हो पाएगा. कोई बिसनेस टारगेट दे दिया जाए तो जवाब एक ही मिलेगा - ना जी नहीं हो पाएगा.

पांच मैनेजर जो हैं तत्काल 'हाँ जी, हाँ जी' करते हैं. कुछ भी काम हो, कोई भी बिजनेस टारगेट दे दिया जाए तुरन्त जवाब मिलेगा - यस सर ! कैसे करते हैं ईस्वर ही जानता है पर कर लेते हैं ये मानना पड़ेगा.

पांच सात बड़े सयाने हैं जानते हैं ना कैसे घी निकलेगा सीधी अंगुली से या नहीं. बाकी मैनेजर तो डांवाडोल मैनेजर हैं जी कभी इस तरफ कभी उस तरफ. समझिये थाली के बैंगन.

एक दिन आर.एम. साब झा साब से कहे - 'भई झा साब गाँव जाते रहते हो कौनो गाय भैंसिया भी पाले हो ?' झा साब इसारा समझ गए. साम को बाज़ार से किलो भर डालडा लिए, आध किलो अमूल का देसी घी लिए और आध किलो मूलचंद डेरी का देसी घी लिए. घर में ला करके सबको फेंटा मार दिए और दूध वाले डोल में भर के साब के घर पहुंचा दिए - 'साब अपने ही घर का है जी एकदम सुद्ध'. जरा सा समझिये सेवा भाव भी है और बुद्धि भी.

परसों आर.एम. साब मेहता जी से कहे - 'बहुत बढ़िया सफारी पहने हो भई मेहता जी'. बस अगले दिन साब के घर दो ठो सफारी सूट का बढ़िया वाला कपड़ा पहुँच गया. जरा सा समझिये की मेहता जी का सेवा भाव कितना गजब है तब मेवा नहीं मिलेगा मेहता जी को ?

अपने नरूला साब को जानते हैं ? उनका तो एक ही काम है जी साब कोई भी हो ध्यान साब की मैडम का रखना है. और अगर मैडम जी खुस हैं तो काम सोलो आना पक्का. दिवाली में मैडम को सोने का चेन दीजिये और चैन की बंसी बजाइए.

जरा सा समझिये बात को प्रमोसन लेना है की नहीं ?

नियम पे चलना छोड़ दो 


पहाड़ी गाँव

पिछले दिनों लैंसडाउन, जिला पौड़ी गढ़वाल के नजदीक गाँव जिबल्खाल में जाने का मौका मिला जो दिल्ली से लगभग 260 किमी दूर है. लैंसडाउन तो हरा भरा और ठंडा है 1700 मीटर की उंचाई की वजह से. पर गाँव नीचे होने के कारण कम ठंडा और धूल भरा था. पिछली बार बारिश कम रही थी शायद इसलिए सूखे खेत और सूखी झाड़ियाँ ज्यादा मिली. दिमाग में गाँव की जो हरी भरी छवि लेकर गया था वह ज़रा फीकी पड़ गई. पर फिर भी एक अलग मज़ा है आबो-हवा में, यहाँ के ज़मीं-आसमां में, पौधों और चिड़ियों में. आइये फोटो के माध्यम से वहां के जीवन की एक झलक देखते हैं :

दावत ! आलू बैंगन की सब्जी, अरहर-उड़द की दाल और छे रोटियाँ. शहरी मानुस के लिए तो दो ही काफी थी. इस पर टिपण्णी हुई 'इत्गई' याने इतना ही ? कमरे में पीछे लगे चित्रों के अलावा दाएं बाएं दीवारों पर और भी चित्र थे जिनमें थे - भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गाँधी और इंडिया गेट 

रास्ते में बरस्वार गांव का एक प्राइमरी स्कूल भी था. लड़के लड़कियां कैमरा देख कर मुस्कराने लगे. पर फिर भी थोड़ी झिझक थी बात करने में. उनको वादा किया था की ये सभी फोटो उन तक पहुँच जाएंगी क्यूंकि गांव का एक लड़का फेसबुक में है !  
दूर दूर से बच्चे पढ़ने आते हैं. कुछ बच्चों को आने जाने में आठ दस किमी तक की ट्रैकिंग करनी पड़ जाती है जो आसान नहीं है. दोपहर में खाना स्कूल में ही मिल जाता है जिससे हाजिरी बनी रहती है 

लड़के लड़कियां शारीरिक तौर पर चुस्त दुरुस्त हैं. लड़कों को बड़ा होकर फ़ौज, सरकारी नौकरी या फिर जंगलात की नौकरी में जाने की इच्छा ज्यादा है. लड़कियां ज्यादातर टीचर बनना चाहती हैं. उच्च शिक्षा क्या है, कहाँ है और कैसे हो पाएगी इस बारे में जानकारी ना के बराबर है  

खेलों में बच्चों को फुटबाल ज्यादा पसंद है हालांकि क्रिकेट भी जानते हैं. पर यहाँ एक छक्के की शॉट में बॉल कहाँ तक जाएगी ? अंदाज़ा नहीं लगा सकते और जब तक वापिस आएगी तब तक शाम हो जाएगी ! 

कच्चे रास्ते ज्यादा हैं और इस ओर अभी बहुत काम बाकी है. कुछ टावर लग रहे हैं जिससे मोबाइल की घुसपैठ बढ़ रही है. कहीं कहीं टीवी की डिश भी दिखाई दे जाती है. खेती में रूचि घट रही है जिसका एक कारण है ज्यादा मेहनत कम उपज. दूसरा कारण है बंदर, लंगूर, जंगली सूअर की बढ़ती जनसंख्या जो खाते कम हैं बरबाद ज्यादा करते हैं. सूअर जमीन खोद कर आलू वगैरा निकाल लेते हैं. इनको मारना भी मना है. इसके अलावा दो तीन महीने में तेंदुआ भी चक्कर लगा लेता है और एकाध बकरी या फिर कुत्ता गटक जाता है. जीने का संघर्ष सबके लिए कड़ा है

गांव का एक मकान. नीचे पशु, चारे और लकड़ियों का गोदाम है. ऊपर रसोई और कमरे हैं. रसोई में अभी भी लकड़ियाँ जलाते हैं. गैस का सिलिंडर पहुंचाने के 400 -500 रूपये अलग से भाड़ा लगता है. बिजली पहुँच गई है और पानी की पाइप लाइन भी आ गयी है. पर घरों में अभी शौचालय नहीं हैं. इसलिए सुबह लोटा लेकर जंगल की ओर प्रस्थान करें ! 

बरसाती नदियों पर छोटे छोटे चेक डैम की व्यवस्था नहीं है. पानी ऊपर से आया और नीचे बह गया बस कथा समाप्त. थोड़ी थोड़ी दूर पर छोटे ताल तलैय्या बनाकर पानी संजोया जा सकता है. पानी के प्रबंधन की सोच बनानी पड़ेगी  

बरस्वार का भोलेनाथ मंदिर. अंदर भगवान शंकर और पार्वती देवी बिराजमान हैं और बाहर मुंडेर पर हमारी देवी   
लैंसडाउन की ठंडक का राज़ - 1700 मीटर की उंचाई, चीड़ के जंगल और हरियाली 



Thursday, 23 June 2016

Aihole temples, Karnataka

Aihole is situated on the banks of river Malaprabha in Bagalkot district of Karnataka. It is an old small village amid vast agriculture fields. It is 33 km from Badami, nearly 500 km from Bangalore & 140 km from Hampi. Nearby roads are not in good condition.

This sleepy little place has seen better days during Badami Chalukyas times who ruled from the year 540 to 753 AD. It was in fact a capital & a trading center in their initial days before Pulkesi II shifted the capital to Badami 33 km away.

A local mythological legend says that Saint Parshurama avenged his father's death by killing the giant Ilavala brother of demon Vatapi here hence the name Ilavalapura. There are about 125 small & large temples scattered all over the fields & are in crumbling conditions. The place has rock-cut temples in early variety of Vedic, Jain & Budhist architectural styles. These temples have been divided by Archaeological Survey of India (ASI) in 22 groups based on architectural styles & age.

ASI has lot of work to do here & has done also. Entry fee for Indians is Rs. 10/- & for the foreigners Rs.250/-. This 'discrimination' to me is unwarranted. In such far flung places only backpackers turn up & not all of them are millionaires. This is likely to discourage visitors. Another thing that irks is poor maintenance of monuments & their surroundings. There is a need to bring local population & administration on board & make them understand the importance of heritage.
Some photos.

This narrow road amid the agriculture land takes you to Aihole.

One of the 125 ancient temples

Another one

Main attraction in Aihole is Durga Temple also called Durg Temple as it was primarily meant for the people in Durg or Fort.

Magnificent carvings on pillars & walls

Water management - steps lead to the well

Crumbling stone pillars

Temples in Jain Basadis 

Protected monument says the blue board on left. In use for meetings, parking & cattle yard.

Temples of Huchchapayya Math

Temple in the village getting ready for festival season

Wednesday, 22 June 2016

ज़ेब

सगाई पांच सितारा होटल में थी इसलिए तैयारी भी उसके मुकाबले की चल रही थी. बहुत सारे सवाल जवाब साथ साथ चल रहे थे. कमरे के एक कोने से आवाज़ आ रही थी,
- सूट ये वाला चलेगा या काला वाला ?
- शर्ट नीली है तो टाई भी नीली चलेगी या लाल ?
कमरे के दूसरे कोने से दूसरी आवाज़ आ रही थी,
- अरे सूट काला हो या पीला कौन देखता है. छोड़ो उसे. पहले यहाँ आओ और ये साड़ी की फाल पकड़ो नीचे से. अरे नीचे बैठ कर पकड़ो. हाँ ऐसे. तुम्हारे तैयार होने में पांच मिनट लगने हैं. मेरे बाद तैयार होना. काले पर्स में परफ्यूम की छोटी शीशी है वो भी पकड़ा दो. अभी यहीं रुकना भागना नहीं.
- अरे रेरे कहीं नहीं जा रहा यार. अभी तो कह रही हो कौन कपड़े देखता है वापिस आकर कहोगी जी एम साब की टाई ज्यादा अच्छी लग रही थी. अब जाऊं या यहीं खड़ा रहूँ?
- रुको ना प्लीज बस पांच मिनट की तो बात है. वो पतले दांत वाली काली कंघी पकड़ा दो प्लीज.
- ये लो. पर मेरे सूट का रंग तो बता दो तब तक. टाई मैं खुद ही सलेक्ट कर लूँगा.
- ज़रा पेशेंस नहीं है ज़रा भी. लिफाफा बना लिया?
- लिफाफा ये पड़ा और ये पड़े पैसे. कितने डालने हैं - 1100, 2100 या 2500 ?
- ये भी बताना पड़ेगा ? 2100 डाल दो और कुछ लिफाफे और भी रख लो. कोई मिल ही जाता है.
- किसने मिलना है जी ? बॉस ने ज्यादा लोगों को नहीं बुलाया है तुम्हें पता तो है उसका. वैसे लिफाफे गाड़ी में भी पड़े हैं. तुम्हारे पर्स में रख दूं ?
- पहले ये कंघी और परफ्यूम वापिस रख दो ठीक से. लिफाफे मेरे पास भी हैं. मुझे पता है तुमने तो ड्रिंक्स देखते ही खिसक जाना है और पता भी नहीं लगने देना कहाँ हो.
- यार अब तो एक ही पेग रह गया है वो भी अमावस जैसी काली रातों में. आज टंगड़ी भी पता नहीं मिलेगी या नहीं. अब मुझे फ्री करो तो मैं भी तैयार हो जाऊं.
- मैंने कब रोका है ? फ़टाफ़ट रेडी हो जाओ टाइम हो गया है. मैं तब तक ताले लगाती हूँ.
- मुझे लेकर चलना, ताला न लगा देना.

- लो अपनी कार का हाल देखो आज सफाई वाला नहीं आया था क्या ?
- आया था सुबह. पर दिल्ली की धूल मिट्टी को कोई रोक सकता है ? कितने मंत्री आए और आँखों में धूल डालकर चले गये, दिल्ली ना सुधरी. बैठो और साड़ी संभाल लेना हैं जी, दरवाज़े के बाहर ना निकली रहे.
- मर्दों के कपड़े कितने अच्छे हैं फ़टाफ़ट तैयार और चुस्ती वाले. हमारे तो हवा में ही उड़ते रहते हैं. साड़ी का पल्लू सँभालते रहो या फिर दुपट्टा.
- मर्द भी तो अच्छे होते हैं चुस्त और हैंडसम !
- आगे देखो आगे. सिग्नल आने वाला है. तुम्हारे बॉस ने बेटे की सगाई बड़ी जल्दी कर दी नहीं ? अभी तो नौकरी लगी है लड़के की.
- अरे यार इसी साल रिटायर हो रहा गोयल टकलू. जरा कलेक्शन अच्छी हो जाएगी है ना. उसकी धन्नो अभी सिंगापुर हो कर आई है बेटे के पास. वहीं कुछ चक्कर चला दिया होगा उसने.
- तुम तो कानपुर भी नहीं ले जाते और वो धन्नो सिंगापुर भी हो आई है. और सिंगापुर में रिश्ता भी कर आई है. इस बार ऐसी जगह चलो जिसका उसे नाम भी ना पता हो. चाहे वो जगह उसकी पिछली गली में ही क्यूँ ना हो.
- चलो चलो. होनोलुलु है, टिम्बकटू है, झुमरी तल्लैय्या है .....
- ये नहीं कोई मुश्किल सा नाम बताओ जिसकी स्पेल्लिंग भी धन्नो को ना आती हो. इस धन्नो की अकड़ मुझे बिलकुल पसंद नहीं आती.
- हाहाहा ओके ओके. सेरेंघेटी कैसा रहेगा. टीवी पर देखा होगा वो जहाँ ज़ेबरे दौड़ते रहते हैं ? कभी मगरमच्छ उन्हें खा जाता है और कभी चीता शिकार कर लेता है. अच्छा चलो तुम उतरो और लॉबी में बैठो मैं गाड़ी पार्किंग में लगा कर आता हूँ फिर इकट्ठे चलेंगे.
- गाड़ी ठीक से बंद कर देना.

अगले दिन :

- हेल्लो सर गुड मोर्निंग. मैं जी एम साब की पी ए बोल रही हूँ. साब बात करेंगे अभी लाइन देती हूँ.
- गुड मोर्निंग सर. मैं बस फोन करने ही वाला था आपको. रात की पार्टी बहुत अच्छी रही सर. खाना वाकई बढ़िया था सर और कॉकटेल भी एनजॉय की सर.
- ठीक रही पार्टी ? थैंक्यू डीयर. अच्छा ये बताओ ये सिरपटी या सिरगटी कहाँ है ? जहां ज़ेबरे वगैरा दौड़ते रहते हैं ?

सगाई की पार्टी 


Saturday, 18 June 2016

टेलकम पाउडर

स्कूटर पर बैठे नरूला साब गुनगुनाते हुए ख़रामा ख़रामा 30-35 की स्पीड पर बैंक की तरफ जा रहे थे. चेहरे पर हलकी हलकी हवा लग रही थी बस आनंद आ रहा था. शनिवार का दिन था इसलिए शंकर रोड पर ट्रैफिक बहुत कम था. वैसे भी पहले दिल्ली में ट्रैफिक कम ही हुआ करता था. निर्मला सुबह सात बजे स्कूल पढ़ाने निकल गयी थी और छवि बिटिया सुबह नौ बजे पढ़ने चली गयी थी. छवि पहले आएगी तो दादी संभाल लेगी फिर निर्मला आ जाएगी और फिर नरूला साब पहुच जाएंगे. बैंक की नौकरी भी आज आधे दिन की है. 15 साल के बाद अफसर बने थे नरूला साब पर खुश थे. बस ऐसी ही ख़ुशी और शांति बरकरार रहनी चाहिए जिंदगी में क्यूँ जी ?

पर जब स्कूटर ने मंदिर मार्ग की तरफ मोड़ काटा तो शांति भंग हो गयी. सिर्फ 50 मीटर आगे खाली सड़क पर एक सुन्दरी रुकने का इशारा कर रही थी. उतावलेपन से हाथ हिला रही थी और एक सेकंड को नरूला साब को लगा कहीं सुंदरी स्कूटर से टकरा ही ना आ जाए. फ़ौरन ब्रेक लगाई. ऊपर से नीचे तक नज़र मारी तो देखा की सुंदरी के गले में लाल स्कार्फ, सफ़ेद ब्लाउज और लाल स्कर्ट. नरूला जी मन ही मन बड़बड़ाए,
- ओये नरूला कहाँ तेरी बैंक की अफसरी और कहाँ ये एयरलाइन की उड़न तश्तरी ?
- प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़ ज़रा रीगल तक ड्राप कर दो ? थैंक्यू थैंक्यू.
इसके पहले कि नरूला साब कुछ सोच पाते, हाँ या ना कर पाते, उड़न तश्तरी पिछली सीट पर बैठ चुकी थी. रीगल तक की यात्रा आठ मिनट में तय की जानी थी. उस आठ मिनट में नरूला साब के दिमाग में आठ सौ विचार बिजली की तरह कौंध गए. यहाँ सारे विचार लिख कर देना उचित नहीं होगा क्यूंकि आपके पास तो समय नहीं है पढ़ने का. नरूला साब के लिए भी उचित नहीं है क्यूंकि उनकी शान्ति भंग होने का खतरा है. नरूला साब स्कूटर भी चला रहे थे और साथ ही साथ उनका दिमाग हिचकोले खा रहा था. पर उमड़ते घुमड़ते विचारों के कुछ नमूने तो पेश किये ही जा सकते हैं क्यूँ जी ?

मंदिर मार्ग से गोल डाकखाने की तरफ मुड़े तो उन्हें लगा कि पांच साल हो गए स्कूटर चलाते चलाते पर आज पहली बार कोई सुन्दरी बैठी है अपने स्कूटर पर. निर्मला तो खैर घर की बात है क्यूँ जी?
नरूला साब गोल डाकखाने से बाबा खड़क सिंह मार्ग की तरफ बढ़े तो ख्याल आया की स्कूटर के बजाय फर्राटेदार फटफट होनी चाहिए थी. स्कूटर तो ढीला है नहीं जी?
रीगल के नज़दीक विचार आया की हाँ आज तो टेलकम पाउडर लगाया हुआ है. लेकिन आज ही अपने लिए एक अलग पाउडर का डब्बा लेकर आता हूँ बढ़िया वाला क्यूँ जी?
इसी उधेड़बुन में रीगल आ गया और सुन्दरी ने उतरते ही ढेर सारे थैंक्स दे दिए साथ में ये भी पूछ लिया,
- आप कहाँ काम करते हैं?
- वो सामने बैंक में.
- ओके, ओके, ओके. बाय-बाय !
नरूला जी ने सोचा हाय री किस्मत अपना पता तो बताया नहीं मेरा पता पूछ कर फुर्र हो गई. पर नरूला साब की ग़लतफ़हमी थी की वो फुर्र हो गयी. मंगलवार को बैंक में फिर फुर्र से आ गई और काउंटर की पीछे आकर नरूला साब के टेबल के सामने प्रकट हो गई. सारे स्टाफ की नज़रें नरूला साब पर टिक गईं.
- हेल्लो सर नमस्ते. प्लीज ज़रा हेल्प कर दो. कुछ पैसे थे मेरे पास मेरी एक फिक्स बनवा दो.
नरूला साब ने बिजली की रफ़्तार से काम किया. इससे पहले कि कैशियर मैडम के नोट गिनता और क्लर्क अपने लेजर में फिक्स डिपाजिट का नया खाता खोलता उन्होंने अपने हाथ से फिक्स डिपाजिट रसीद बना कर मैडम को थमा दी. बाकी काम तो ये निकम्मे लड़के करते रहेंगे. मैडम ने हाथ मिलाया चार पांच बार थैंक्स बोला और फिर से फुर्र हो गयी. मैनेजर साब ने भी नरूला साब को दाद दी और स्टाफ से कहा,
- ये होती है कस्टमर सर्विस और ऐसे होते हैं अफसर. आप लोग भी कुछ सीखो नरूला साब से.

अगले शनिवार को नरूला साब ने बड़ी मेहनत से शेव बनाई. बाथरूम में और ज्यादा टाइम लगाया और फिर खूब सारा नया टेलकम पाउडर भी छिड़क लिया. इत्मीनान से 30-35 की स्पीड पर स्कूटर फिर मन्दिर मार्ग से निकाला पर मैदान साफ़ था. बल्कि वहां से रीगल तक नरूला साब नज़रें घुमाते रहे पर मैडम नदारद. पर क्या किया जा सकता है नहीं आई तो नहीं आई.

पर 12 बजे बैंक में मैडम फिर प्रकट हो गई. इस बार चेहरा उतरा हुआ था और पीछे पीछे हवालदार भी था. सारे स्टाफ की नज़रें नरूला साब पर टिक गयीं. हवालदार भारी ऊँची आवाज़ में बोला,
- इनकी ये रसीद कैंसिल करके पीसे दे दो मैडम को. इन की जमानत होणी है आज. सीधे आदमी लग रहे हो नरूला साब. बस किस्मत अच्छी थी की बच गए आप. यो तो बम्बैया गिरोह की मेम्बर है और हफ्ते दस दिन में आपका नंबर भी लग जाणा था.

नरूला जी ने जल्दी से कैशियर से पैसे लाकर मैडम के हवाले किये और उन दोनों को विदा कर दिया. कूलर के ठन्डे पानी के छींटे मुंह पर मारे और सोफे पर लेट गए. थोड़ी देर बाद कुछ खुशबू सी महसूस हुई. ओहो आज तो नया टेलकम पाउडर लगाया था. नरूला साब के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई.

चलो रीगल 

Thursday, 16 June 2016

कामागाटा मारू घटना

पिछले दिनों 18 मई 2016 को कनाडा के प्रधान मंत्री ने 1914 की कामागाटा मारू घटना के लिए अपनी सरकार की ओर से माफ़ी मांगी. उन्होंने कहा:

I rise to offer an apology on behalf of the Canada government, for our role in Komagata Maru incident. First & foremost, to the victims of incident, no words can erase the pain & suffering they experienced. None of the passengers are alive today to hear our apology, still, we offer it, fully & sincerely.

उत्सुकता हुई की ये १०२ साल पुरानी कैसी घटना है जिसकी अब माफ़ी मांगी जा रही है ? इस विषय पर इन्टरनेट में खोजबीन शुरू की. विकिपीडिया, कनाडा की इनसाइक्लोपीडिया और बहुत से लेख पढ़े. पढ़ कर अच्छा लगा और जोश भी आया. यह घटना तो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक अहम हिस्सा है परन्तु इसकी चर्चा कम सुनने में आई है. यह ब्लॉग लिखने का कारण यही है की इस रोचक किस्से की दोबारा चर्चा हो जाए .

कामागाटा मारू भाप से चलने वाला एक समुद्री जहाज था जो ब्रिटेन में बनाया गया था और जिसके मालिक समय समय पर बदलते रहे थे. 1914 की घटना के समय इस जहाज़ की उम्र 20 साल की थी मिल्कियत एक छोटी जापानी कम्पनी के नाम थी. इस जहाज ने और इस घटना ने नस्लवाद के खिलाफ और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढ़ाने और अंतराष्ट्रीय आयाम देने में बखूबी भाग लिया.

यहाँ ग़दर पार्टी का जिक्र करना भी ठीक रहेगा. जून 1913 में अमरीका और कनाडा में बसे भारतियों ने एक संस्था बनाई हिंदी एसोसिएशन ऑफ़ पसिफ़िक कोस्ट या ग़दर पार्टी जिसका उद्देश्य था भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराना. जनवरी 1914 में हांगकांग के गुरदित्त सिंह संधू ने, जिन्हें बाबा भी कहा जाता है, ग़दर पार्टी का समर्थन घोषित कर दिया.

बाबा गुरदित्त सिंह संधू एक समृद्ध व्यापारी थे जो सिंगापुर, हांगकांग और आसपास व्यापार करते थे पर पंजाब से भी संपर्क बनाए हुए थे. इसके अलावा बहुत से भारतीय जो पूर्वी एशिया में थे उनसे भी संपर्क में थे. बाबा का विचार था कि स्वतंत्र देशों कि यात्रा करने से और वहां के लोगों से मिलने से गुलामी में जकड़े लोगों के विचार भी आज़ादी की ओर बढ़ेंगे. बाबा कुछ लोगों को अमरीका या कनाडा भेजना चाहते थे जिसके लिए गैर ब्रिटिश जहाज की तलाश थी. फिर उन्हें जापानी जहाज कामागाटा मारू का पता लगा तो तैयारी शुरू हो गई. परन्तु हांगकांग के गवर्नर ने बाबा गुरदित्त सिंह को अवैध यात्रा के टिकट बेचने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया. जमानत हुई और फिर किसी तरह जहाज़ को जाने की अनुमति मिल गई. 4 अप्रैल 1914 को 165 यात्रियों को लेकर रवाना हुआ. कुछ लोग शंघाई और योकोहोमा में शामिल हो गए. 3 मई को जहाज योकोहोमा से 340 सिख, 24 मुस्लिम और 12 हिन्दू सवारियों को लेकर कनाडा की ओर बढ़ने लगा. इन यात्रियों की धार्मिक गिनती कैसे हुई इसकी पुष्टि नहीं हुई पर सभी जगह यही गिनती दी गई है. ये सभी पूर्व पंजाब से थे - दोआबा, मालवा और माझा इलाकों से थे. कनाडा के इनसाइक्लोपीडिया में यात्रियों में दो पत्नियाँ और चार बच्चों का जहाज में होने का जिक्र है जो और कहीं नहीं पढ़ा. 23 मई को जहाज वैनकूवर, कनाडा के किनारे बुर्रार्ड इनलेट में दाखिल हुआ. जहाज को दूर ही रखा गया और यात्रियों को उतरने नहीं दिया गया. कनाडा के प्रान्त ब्रिटिश कोलम्बिया के प्रधान मंत्री सर रिचर्ड मैकब्राइड ने कहा:

"To admit Orientals in large numbers would mean the end, the extinction of the white people. And we always have in mind of keeping this a white man's country."


जगह जगह विरोध सभाएं हुईं. सोहन लाल पाठक और हसन रहीम के नेतृत्व में 'शोर समिति' बनी और कानूनी करवाई के लिए $ 22,000 भी इकट्ठे कर लिए गए और साथ ही साथ यात्रियों को ना उतारने पर  'ग़दर' की धमकी भी दे दी गई. घटना की चर्चा अंतर्राष्ट्रीय अखबारों में भी फ़ैल गयी. इस घटना के चलते ग़दर पार्टी का काफी विस्तार हुआ. उस वक़्त के ग़दर पार्टी के कुछ प्रमुख नाम हैं बरकतुल्लाह, तारक नाथ दास और सोहन सिंह.  

एक यात्री मुंशी सिंह की ओर से मुक़दमा भी दायर किया गया. परन्तु कोर्ट ने वहां के क़ानून के मुताबिक यात्रियों को उतरने की इजाज़त नहीं दी. गुस्से में यात्रियों ने जहाज के जापानी कप्तान से भी मारपीट की और उसे भगा दिया. स्थानीय अधिकारियों ने जहाज में घुसने की कोशिश की तो उन पर कोयले और पत्थरों की बौछार कर दी. अंत में नौसेना के जहाज़ों ने कामागाटा मारू को घेर लिया. केवल 20 यात्रियों को जुरमाना भरने के बाद उतरने दिया गया. वापिस जाने के लिए राशन आदि को लेकर भी झगड़े होते रहे. अंत में प्रांतीय सरकार द्वारा हांगकांग तक की रसद जहाज में डलवा दी गयी. 23 जुलाई को जहाज को जबरदस्ती घुमा कर वापिस एशिया की तरफ मोड़ दिया गया और खुले समन्दर में धकेल दिया गया.

कोमागाटा मारू 27 सितम्बर को बचे हुए 321 यात्रियों को लेकर कोलकात्ता वापिस पहुंचा. ब्रिटिश तोपची जहाज की निगरानी में कोमगाटा मारू का बज बज में लंगर डलवा दिया गया. ब्रिटिश राज की नज़र में सारे यात्री खतरनाक अपराधी और ग़द्दार थे. पुलिस जहाज पर बाबा गुरदित्त सिंह और 20 अन्य लोगों की लिस्ट लेकर गिरफ्तार करने जा पहुंची. जहाज में यात्रियों ने पुलिस वालों को पीटना शुरू कर दिया और दंगा हो गया. पुलिस ने फायरिंग कर दी. 19 यात्री वहीँ मारे गए. बाबा गुरदित्त सिंह समेत बहुत से लोग फरार हो गए और बाकी गिरफ्तार कर लिए गए. गिरफ्तार लोगों को पंजाब की जेलों में डाल दिया गया. उनमें से कुछ को वहां फांसी दे दी गई या फिर उनके गाँव में नज़रबंद कर दिया गया. बाबा गुरदित्त सिंह 1922 तक ज़मींदोज़ रहे. महात्मा गाँधी ने बाबा गुरदित्त सिंह को सच्चा देश भक्त बताया और उन्होंने बाबा से आग्रह किया कि वे बाहर आ जाएं. बाबा आये, उन पर मुकदमा चला और पांच साल की जेल हुई.

बाबा गुरदित्त सिंह - विकिपीडिया से साभार  

यह एक असाधारण घटना है जिसमें बेहतर जीवन के लिए लोगों ने महीनों समुद्री जहाज में गुज़ार दिए. कुछ पहुंचे, कुछ मारे गए, कुछ फांसी चढ़े. घटना में नस्लभेद की भीषण प्रतिक्रिया है और गुलामी से निकलने की प्रबल इच्छा है. अच्छा हो अगर भारत सरकार इस घटना का प्रमाणिक और विस्तृत विवरण जारी कर दे. अलग अलग साईट में अलग अलग तारीखें और यात्रियों की गिनती अलग अलग मिलती हैं. घटना से जुड़े कुछ यादगार -
* पं. नेहरु ने बज बज में 1952 में इस घटना के स्मारक का उद्घाटन किया.
* इस घटना के सौ साल होने पर पांच रूपए का सिक्का रिज़र्व बैंक द्वारा निकाला गया.
* वैनकूवर, कनाडा के गुरुद्वारे में 23 जुलाई 1989 को 75 साल पूरे होने पर एक प्लेक लगाई गई.
* कोल हारबर, वैनकूवर में 23 जुलाई 2012 को एक स्मारक का उद्घाटन हुआ.
* कनाडा पोस्ट ने 1 मई 2014 को याने कोमागाटा मारू के आने के सौ साल बाद एक डाक टिकट जारी किया.
* जालन्धर में ग़दर पार्टी की याद में बनाए गए देशभगत यादगारी हाल में 1992 से 'गदरी बाबाओं का वार्षिक मेला' लग रहा है.

Sikh men and a boy are pictured onboard the Komagata Maru. Businessman Gurdit Singh is seen wearing a light-coloured suit in the left foreground.
गुरदित्त सिंह एक बच्चे और अन्य सवारियों के साथ कामागाटा मारू जहाज में - फोटो वैनकूवर पब्लिक लाइब्रेरी से सधन्यवाद 



इससे मिलता जुलता एक और किस्सा -

Historical Dagshai, Himachal
http://jogharshwardhan.blogspot.com/2015/06/historical-dagshai-himachal-pradesh.html






Tuesday, 14 June 2016

दांतों का डॉक्टर

हमारे रीजनल मैनेजर गोयल साब आजकल बड़े खुश नज़र आ रहे हैं. मुस्कराहट एक कान से दूसरे कान तक पहुँच रही है. गोल गोल सांवले चेहरे पर सफ़ेद दांतों की झलक तो बस कमाल कर रही है. बॉस की सफ़ेद कमीज़ पर लाल टाई मटके जैसे पेट पर आकर रुक जाती है पर आज उसे भी बड़े प्यार से बार बार सेट कर रहे हैं. बॉस बियर के शौक़ीन हैं ना इस वजह से टंकी बड़ी है. आज शाम गोयल साब अपने घर ख़ास ख़ास लोगों को बियर पार्टी में बुला रहे हैं. क्या खुशखबरी है ये तो वहीँ जा के पता लगेगा.

नरूला साब बॉस के घर जाने में बड़ा झिझकते हैं. दो भारी समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं - एक तो कौन सा गिफ्ट लेकर जाओ दूसरे श्रीमति को लेकर जाओ या नहीं? ये दोनों गंभीर मुद्दे काफी समय लेते हैं और खामखा की टेंशन देते हैं. पर जैसे ही श्रीमति से जिकर किया तो तपाक से उन्होंने तबियत साफ़ कर दी,
- तुम्हें तो फाइलों से कब फुर्सत मिलती है. कुछ सीख लो अपने बॉस से. मुझे मिसेज़ गोयल से सब पता लग गया है. उनका बेटा डेंटिस्ट का कोर्स कर चुका है शिकागो में और अब अगले महीने आने वाला है. कुछ समझे? चार लोगों में बात करेंगे इस बहाने उन्हें कोई अच्छा रिश्ता भी मिलेगा. तुम्हारा बॉस दूर की सोच रखता है तुम्हारी तरह फाइलों में नहीं घुसा रहता. कुछ समझे?

समझे तो जाकर पार्टी में. बॉस ने बियर के साथ चियर्स किया और कहा,
- अब तो डेंटिस्ट बन ही गया है हमारी चिंता दूर हुई. पर भई बचपन में बड़ा ही नटखट था और पढ़ाई से दूर भागता था. कई बार पिटते पिटते बचा. चलो खैर अंत भले का भला. एन्जॉय!
- और नरूला साब किसी ब्रांच से लोन की बात कर लो. साहबजादे को क्लिनिक भी तो बनवा के देना है. दो चार मशीन लगेंगी कुछ फर्नीचर वगैरा लेना होगा बस 25 लाख के आस पास का लोन काफी रहेगा. अभी तो एक दो महीने लगेंगे इतने फाइल तैयार करवा देना.
- सर सारा झुमरी तलैय्या रीजन आपका है. आप तो बस आदेश करें. आपके बेटे का काम सेकंड्स में होगा सर सेकंड्स में. मैं कल ही जैसवाल को फोन कर देता हूँ आके पेपर ले जाएगा. नो प्रॉब्लम सर नो प्रोब्लम.
जैसवाल जी सीनियर मैनेजर हैं शहर की ब्रांच के. बाल और दाढ़ी सफ़ेद हो चुकी है. बस केवल चार महीने रह गये थे रिटायर होने में. उन्होंने सोचा लोन तो सेफ है जाते जाते कर ही देता हूँ. लड़का आए तो लोन के कागज़ साइन करा कर चेक पकड़ा देंगे और फिर बाय बाय कर देंगे. बुढ़ापे में दांत तो गिरने ही हैं यहीं आ जाया करेंगे - 'ले बेटा मैंने तुझे लोन दिया था अब तू मुझे दांत दे दे!'

जैसवाल जी की ब्रांच के पास ही क्लिनिक तैयार हो रहा था. अगले महीने साहबजादे भी आ गए और क्लिनिक में आ बैठे हालांकि अभी मशीन आनी थी. साहबजादे को कोई इंडियन मशीन पसंद नहीं आ रही थी कभी अमरीका से मंगवाना चाहता था तो कभी ताइवान से. बैंक से लोन की पेमेंट भी रुकी हुई थी. इस बारे में जैसवाल जी अपनी देसी भाषा में पूछते तो जवाब में साहबजादे अमरीकी इंग्लिश में जवाब देते. जैसवाल जी ने सोचा छोड़ो क्या बात करनी है इस अंग्रेज से, जब ये मशीन पसंद कर लेगा तो पेमेंट कर देंगे.

लेकिन बात तो करनी पड़ गई वो ऐसे कि सन्डे शाम जैसवाल जी ने शौक से चिकेन बिरयानी खाई पर टंगड़ी दांत में अटक गई. दांत में दर्द होने लगी और सारे घरेलु नुस्खे फेल हो गए. रात के दस बजे क्या करें? फिर याद आया तो अंग्रेज साहबजादे को फोन लगाया. समझाना मुश्किल हो रहा था पर किसी तरह 20 मिनट की गुफ्तगू के बाद कागज़ पर दवाई नोट की और बेटे को दौड़ाया बाज़ार. 11 बजे कैप्सूल खाकर लेट गए. 11.30 बजे हड़कंप मच गया. जैसवाल जी का चेहरा सूज गया और रंग लाल हो गया. दवाई का रिएक्शन हो गया. 12 बजे नर्सिंग होम में दाखिल हो गए. दो दिन वहां रहे, तीसरे दिन घर में आराम किया और चौथे दिन ब्रांच पहुंचे. सीट पर बैठते ही नरूला साब को गुस्से में फोन लगाया.
- अबे नरूला ये किस बेवकूफ डेंटिस्ट की लोन फाइल मुझे भेज दी? हैं? मरते मरते बचा हूँ इसकी दवाई से. हैं? इस स्साले साहबजादे ने डेंटिस्ट का कोर्स किया है या डंगर डॉक्टर का? हैं? इसे तो मैं एक पैसे का लोन ना दूँ. फाइल वापिस भेज रहा हूँ बता देना आर.एम. को. ये भी पूछ लेना कि साहबज़ादा है या हरामज़ादा है? 

दांतों का ध्यान रखें    

  

Wednesday, 8 June 2016

गरम सूट

चीफ साब का प्रवचन चल रहा था और ब्रांच के चारों मैनेजर ध्यान से सुन रहे थे. या फिर ध्यान से सुनने का नाटक कर रहे थे कौन जाने? चीफ साब के साथ विचारों का आदान प्रदान बहुत ही कम होता है केवल आदान आदान ही होता है. वो बोलते हैं मैनेजर सुनते हैं. ऐसा सुना गया है कि चीफ साब भी वही बोलते हैं जो उनके जनरल मैनेजर ने मीटिंग में कहा था. याने जैसे पानी ऊपर से नीचे चलता है वैसे ही डांट, फटकार और झिड़कियाँ ऊपर से चालू होती हैं और नीचे की ओर चल पड़ती हैं. कुछ समय बाद नीचे धीरे धीरे शान्ति हो जाती है तब तक ऊपर से फटकार की दूसरी लहर चल पड़ती है!

अभी डांट फटकार पूरी भी नहीं हो पाई थी कि उस से पहले ही फ़ोन बज गया. लीजिये ऑडिटर आने की खबर आ गई. चीफ साब ने घोषणा कर दी कि सोमवार को गुड़गांव से ऑडिट टीम आ रही है तैयारी कर ली जाए. बंगाली बाबू आ रहे हैं. ऑडिट याने गरीबी में आटा गीला, सन्डे की छुट्टी भी गई!

मैनेजर 1 ने सोचा यार 30 साल की सर्विस हो गयी है. 30 ऑडिटर आये और 30 आ कर चले गए. एक और आ जाएगा तो कौन सी बड़ी बात है. बस खड़ूस नहीं होना चाहिए. आये गपशप मारे, किताबें चेक कर ले और छुट्टी करे. कौन सा हमारे घर का काम है. जवाब दे देंगे गलती होगी तो ठीक कर देंगे क्यूँ जी ? ये तो ज़िन्दगी के मेले हैं चलते रहेंगे.

मैनेजर 2 ने सोचा हर साल का लफड़ा है स्साला. टाइम भी लगाओ, खातिरदारी भी करो,और फिर भी गलतियां निकालते रहते हैं. काम हम करते हैं और हमारे सर पे सवारी ये करते हैं. पिछले साल की ऑडिट रिपोर्ट अभी बंद नहीं हुई है और नया ऑडिटर आ गया है. स्सालों को बुलाते ही क्यूँ हैं?

मैनेजर 3 ने मन ही मन अपने जॉब-चार्ट पर नज़र डाली दो कमज़ोर एरिया याद आये. उसे लगा कि ऑडिटर के आने से पहले सफाई की जा सकती है. फिकरनॉट आने दो बंगाली बाबू को माछ-भात की दावत होगी.

मैनेजर 4 आने दो आने दो. इन्हें क्या चाहिए सब पता है अपन को, दिन में मीठी बोतल रात में कड़वी और सन्डे का सैर सपाटा बस हो गया ऑडिट. बाबू मोशाय को घुमा भी देंगे और बोतलें भी पिला देंगे कौन सा अपने पल्ले से पिलानी है?

सोमवार को ऑडिटर बनर्जी अपनी टीम के साथ आ गए. परिचय के लिए मीटिंग बुलाई गई उसमें ऑडिटर साब बोले,
- मैं फ़ास्ट काम करना पसंद करता हूँ. इसलिए आप अपना काम करते रहें मुझे डिस्टर्ब ना करें. लंच में केवल एक प्लेट सलाद लूँगा बस. सन्डे को आसपास कहीं घूमने घामने का इरादा नहीं है बल्कि काम करूंगा आप इंतज़ाम कर लो. मेरे पास पेन, पेंसिल और लैपटॉप है इसलिए आप ये जो स्टेशनरी लाए हो अपने पास रख लो.
ऑडिट आनन फानन में समय से पहले समाप्त हो गया. जाने से पहले चीफ साब के केबिन में विदाई समारोह का प्रबंध किया गया. धन्यवाद प्रस्ताव के साथ गरम सूट का गिफ्ट पैक पेश किया गया तो ऑडिटर बाबू बोले,
- मैं नहीं लूँगा ये और ना ही आपने मेरी टीम में किसी को कुछ देना है. धन्यवाद, बाय !

सब ने खड़े हो कर नमस्ते की और ऑडिटर साब को विदा कर दिया.
सभी मैनेजरों को लगा कि ऑडिट और ऑडिटर के बारे में अपने विचार एडजस्ट करने की ज़रुरत है. 
हाँ वो गरम सूट? वो तो चीफ साब ने सिलवा लिया है.

नया सवेरा नए विचार

Sunday, 5 June 2016

मैसूर पैलेस

मैसूर शहर बंगलौर से लगभग 150 किमी की दूरी पर है और समुद्र तल से इसकी उंचाई 770 मीटर है. शहर की आबादी दस लाख से कम है और मौसम गर्म और उमस भरा है. परन्तु अक्टूबर से मार्च तक सुहावना रहता है. मैसूर चामुंडी हिल्स की तलहटी में बसा है.
बहुत पुराने समय से मैसूर एक अलग राज रहा है और 1339 से लेकर 1950 तक यहाँ वाडियार ( कन्नड़ में ओडियार भी कहते हैं ) घराने का राज रहा है. मैसूर के पच्चीसवें और अंतिम महाराजा थे जयचामराज वाडियार जिन्होंने 1940 से 1950 तक राज किया और फिर मैसूर का भारत में विलय हो गया.

मैसूर राजमहल सबसे पहले 14वीं सदी में महराजा यदुराया ने पुराने किले के अंदर बनवाया. उसके बाद इसे कई बार बनवाया गया. महाराजा कृष्णाराजा वाडियार चतुर्थ ने ब्रिटिश वास्तुकार हेनरी इरविन के द्वारा 1897 में नया राजमहल बनवाना शुरू कराया जो 1912 में पूरा हुआ. महल तीन मंजिला है और पत्थर / संगमरमर का बना हुआ है. एक टावर पांच मंजिला याने 145 फीट का है. महल के चारों ओर बड़े बड़े लॉन और सुंदर बगीचे हैं. महल के एक भाग में काफी बड़ा म्यूजियम है जो जनता के लिए खुला है. कहा जाता है की सालाना लगभग 40 लाख लोग यहाँ आते हैं.
कुछ फोटो:


राजमहल का एक दृश्य 
राजमहल का एक प्रवेश द्वार जनता के लिए 

महल पर मानसून के बादल  
बड़े और हरे भरे लॉन महल की विशेषता हैं  

लॉन में बाघ 
खूंखार बाघ हमले के लिए तैयार. धातु पर सुंदर और बारीक नक्काशी 

महल का सामने का एक दृश्य 
महल का दाहिना हिस्सा 



Saturday, 4 June 2016

कसौली, हिमाचल

कसौली एक सैनिक छावनी है और जो शिमला हिल्स में बसा एक छोटा सा शहर भी है। शिमला से लगभग 77 किमी और चंडीगढ़ से 65 किमी दूर है। हिमालय एक्सप्रेस मार्ग बनने से अपनी गाड़ी ले जाना काफ़ी आसान हो गया है। पर जैसे जैसे उपर जाते हैं उतराव, चढ़ाव और तीखे घूम हैं ध्यान से चलाएँ। 

कसौली सोलन ज़िले का हिस्सा है और इसकी ऊँचाई 6300 फ़ीट से ज्यादा है। तापमान सर्दियों में 2 डिग्री से गरमियों में 32 डिग्री तक जा सकता है। बारिश भी काफ़ी होती है - 1020 मिलीमीटर। इसलिए पेड़, पौधों, फूलों और चिड़ियों की भरमार है। एक सुंदर हनुमान मंदिर  'मनकी प्वाईंट' है (मंकी नहीं बल्कि मनकी) पर वायुसेना के परिसर के भीतर होने के कारण फ़ोटो नहीं ली जा सकी। क़रीब  500 सीढ़ियों की घुटने-तोड़ चढ़ाई है। 

शांत और हरे भरे वातावरण का कुछ दिन रह कर आनंद लिया जा सकता है। बजट होटल और मंहगे रिसोर्ट सभी तरह के ठिकाने उपलब्ध हैं। कसौली में पेट्रोल पम्प नहीं है इसलिए इंतज़ाम कर के चलें। रास्ते में परवानू के पास टिम्बर ट्रेल में रोपवे याने उड़न खटोले का भी आनंद लिया जा सकता है। प्रस्तुत हैं कुछ चित्र :


टीवी टावर 

सिनेमा हाल की मरम्मत जारी है। यहीं केतन मेहता की फ़िल्म 'माया मेमसाब' की शूटिंग हुई थी जिसमें दीपा मेहता और शाहरुख़ खान भी थे


हॉकी के ओलम्पियन खिलाड़ी मेजर ध्यान चंद का स्मारक 


कसौली की सबसे पुरानी - लगभग 150 साल पुरानी, ऐतिहासिक इमारत लोअर पाइन मॉल में


क्राईस्ट चर्च कसौली। 26 अक्तूबर 1844 को इस चर्च की नींव रखी गई थी। लगभग नौ सालों में तैयार हुई चर्च पर 18300 ₹ की लागत आई


लोअर बाज़ार। चाय, गरम समोसे, जलेबी, शालें, हिमाचली टोपियाँ वग़ैरा आप ले सकते हैं 


"दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ, बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ"


रंग बिरंगी छाते। अगर कसौली में कुछ दिन रहना है तो एक छाता और एक टोर्च अपने साथ ज़रूर रखें। मौसम बेईमान होते और अंधेरा छाते देर नहीं लगती !

पुराना कसौली

उड़न खटोला-आना जाना मात्र 770 ₹ में