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Thursday, 4 July 2024

भगदड़

Two things are infinite: the universe and human stupidity. And I am not sure about universe - Albert Einstein


भारत में मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों और चर्चों की संख्या के कोई सरकारी आँकड़े नहीं मिलते। इन इमारतों की अलग से रजिस्टर करने की कोई प्रथा नहीं है न ही कोई नियम है। चर्च की संख्या हज़ारों में हो सकती है क्यूँकि अंग्रेज़ों के जाने के बाद कोई विशेष बढ़ोतरी नहीं हुई होगी। पर मसजिदें काफ़ी ज्यादा होंगी शायद लाखों में हों। मंदिरों की संख्या शायद दस लाख से ऊपर ही होगी।

भारत में छै लाख से ज्यादा गाँव हैं, पाँच हज़ार छोटे शहर हैं और चार सौ बड़े शहर हैं और इन सब में एक सौ चालीस करोड़ लोग समाए हुए हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या और भौगोलिक फैलाव वाले देश में दस पंद्रह लाख मंदिर ज्यादा नहीं हैं। चाहे बिजली पानी सब तक न पहुँचा हो पर धर्म हर नुक्कड़ हर गली में किसी न किसी रूप में पहुँचा हुआ है। और धर्म की विभिन्नता के साथ देश के कोने कोने में कई तरह की मान्यताएं, कर्म काण्ड, पूजा पाठ की विधियाँ, भ्रांतियाँ, जादू टोने और अंधविश्वास भी ख़ूब पहुँचे हुए हैं। बाबा, गुरू, गुरुदेव और गुरूघंटाल भी दूर दूर तक फैले हुए हैं।

फ़िल्म इंडस्ट्री, बैंकिंग इंडस्ट्री, सीमेंट इंडस्ट्री की तरह धार्मिक इंडस्ट्री भी चल रही है। भक्तों और अंधभक्तों की भारी भीड़ है। दान देने वालों की कमी नहीं क्यूँकि इस इंडस्ट्री में काले या सफेद धन का झंझट नहीं है। बिचौलियों की कमी नहीं है। साथ ही आम आदमी की ख़्वाहिशों में कमी नहीं है इसलिए इस इंडस्ट्री के अच्छे दिन चल रहे हैं। 

धार्मिक संगठन हैं जिसमें और इंडस्ट्री की तरह CEO हैं, जनरल मैनेजर हैं, मैनेजर हैं, सफ़ेदपोश वर्कर हैं और नीलपोश मज़दूर भी हैं। किताबें, मैगज़ीन, वीडियो बनते और छपते हैं। चूरन, दवाइयाँ, तेल और साबुन भी बनवाए जाते हैं। जन्म कुण्डली, हस्त रेखा और ग्रह जनता के दिमाग़ को घुमा रहे हैं। टीवी चैनल हैं और अख़बारों में विज्ञापन हैं। पर कभी कभी इस इंडस्ट्री में भी भूचाल आ जाता है। 

नीचे दिए गए आँकड़े इंटरनेट से लिए गए हैं। इस तरह के आँकड़े और भी होंगे। घायल भी बहुत हुए होंगे और दुर्घटना के कारण भी रहे होंगे। हर दुर्घटना के बाद जांच पड़ताल भी हुई होगी और कुछ मुआवज़ा भी दिया गया होगा और फ़ाइलें रद्दी में फेंक दी गई होंगी :

03-02-1954 - कुम्भ मेले में भगदड़ मच गई और लगभग 800 लोग मरे। 

23-11-1994 - गोवारी आदिवासियों पर नागपुर पुलिस ने लाठी चलाई और भगदड़ में 114 लोग  मरे।                   

15-07-1996 - भगदड़ की दो वारदातें हुईं : हरिद्वार में 21 लोग मारे गए और उज्जैन में 39 लोग। 

14-01-1999 - मकर ज्योति के दिन पामबा, केरल में भगदड़ मच गई जिसमें 53 लोग मरे। 

25-01-2005 - मंधेर देवी मंदिर, सतारा, महाराष्ट्र में पूर्णिमा के दिन मची भगदड़ में 291 लोग मरे।                

03-08-2008 - नैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश में भगदड़ के कारण 146 तीर्थ यात्री मारे गए। 

04-03-2010 - कृपालु महाराज आश्रम, ज़िला प्रताप गढ़, उत्तर प्रदेश में भगदड़ के कारण 63 लोग मरे।  

14-01-2011 - मकर ज्योति के दिन पुल्लूमेदू , सबरीमाला, केरल में भगदड़ मच गई और 106 लोग मारे गए। 

24-09-2012 - सत्संग देवघर, झारखंड में हुई भगदड़ में 12 लोग मारे गए। 

13-02-2013 - कुम्भ मेला इलाहाबाद में भगदड़ मची और 36 लोग मारे गए। 

13-10-2013 - नवरात्रों में पुल पर जो रतनगढ़ माता मंदिर के नज़दीक है, भगदड़ मच गई और 115 लोग मरे।   

08-01-2014 - मालाबार हिल, मुम्बई में सैयदना मोहम्मद बुरहान्नुद्दीन के अंतिम दर्शन में भगदड़ में 18 मरे। 
 
03-10-2014 - दशहरे के मेले में गांधी मैदान पटना में भगदड़ मची और 32 लोग मारे गए। 

14-07-2015 - राजमुंदरी, आंध्र में गोदावरी के घाट पर पुष्करम त्यौहार में  भगदड़ से 27 लोग मारे गए। 

01-01-2022 - माता वैष्णो देवी मन्दिर में मची भगदड़ के कारण 12 लोगों की मृत्यु हो गई। 

02-07-2024 - हाथरस उत्तर प्रदेश में नारायण साकार बाबा के समागम में भगदड़ से 121 जानें गईं।  

12-08-2024 - जहानाबाद बिहार में बाबा सिद्धनाथ मंदिर में 7 मरे और 10 घायल।  



अंधेरे से उजाले की ओर चलें 

इनक्वायरी कमीशन तो इस पर भी बैठना चाहिए की किस भ्रम में थे ये ग़रीब मरने वाले ?
क्या इच्छा या मान्यता लेकर जा रहे थे ये लोग और क्यूँ ? 
किसने बरगलाया इन्हें कि गुरु और पीर क़िस्मत चमका देंगे ?
बिना पुरुषार्थ के कुछ होने वाला नहीं है। बिना अपने अंदर झाँके ज्ञान मिलने वाला नहीं है।


Sunday, 23 June 2024

गोल गुम्बज़ बीजापुर, कर्णाटक

गोल गुम्बज़ बीजापुर का सबसे मशहूर स्मारक है. यह स्मारक सत्रहवीं सदी में बना और मोहम्मद आदिल शाह ( शासन 1627 - 1656 ) के परिवार के सदस्यों का मकबरा है. इस विशालकाय गुम्बद के नीचे कोई स्तम्भ या आधार नहीं है बस एक बहुत बड़ा और बहुत ऊँचा हाल है. इस बनावट के कारण ही इसे 2014 में यूनेस्को ने अपनी अस्थाई विश्व धरोहर की लिस्ट - 'दक्कनी सुल्तानों के किले और स्मारक' में शामिल किया था. 

बीजापुर कर्णाटक प्रदेश का एक जिला है जिस का नाम अब विजयपुरा है. यह शहर बैंगलोर से 520 किमी और मुंबई से 550 किमी दूर है. आदिल शाही ( 1490 - 1686 ) ज़माने की बहुत सी सुन्दर इमारतों के लिए बीजापुर मशहूर है. 

गोल गुम्बज का डिज़ाइन फ़ारसी वास्तुकार याकूत ने तैयार किया था. यह इमारत 1626 में बननी  शुरू हुई और 1656 में मुकम्मल हुई. इसमें हलके पीले रंग का बेसाल्ट पत्थर और चूना- पीसा शंख का पलस्तर किया गया है. चार बड़ी और सात मंजिल ऊँची मीनारें गुम्बद को सपोर्ट करती हैं. इन मीनारों में ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां हैं. चारों 'खम्बों' के ऊपर छोटे गुम्बद हैं. छठी मंज़िल से बालकनी या गलियारे में जा सकते हैं और नीचे हाल की कार्रवाई को बखूबी देख सकते हैं. वेटिकन सिटी रोम के आलावा ये दूसरा बड़ा गुम्बज कहा जाता है.

गोल गुम्बज़ की एक और खासियत है acoustics या ध्वनि प्रबंधन. गैलरी में बैठे लोगों की बातचीत या फुसफुसाहट भी सुनी जा सकती है. अर्थात किसी को गला फाड़ कर बोलने की ज़रुरत नहीं थी. और अगर कोई षड्यंत्रकारी किसी के कान में फुसफुसा कर बोल रहा हो तो वो भी सुना जा सकता था और सिपाहियों को सतर्क किया जा सकता था. 

बीजापुर का इतिहास बड़ा उथल पुथल वाला और रोचक रहा है. देखिये कितने राजा, सुल्तान और पेशवा यहाँ आए:

ये शहर बसाया था पश्चिमी चालुक्य राजाओं ने, जिन्होंने 535 से 757 तक राज किया. 

राष्ट्रकूट राजा यहाँ 757 से 973 तक रहे. 

इस से आगे लगभग 1200 तक कलचुरी और होयसला शासन रहा. 

कुछ समय देवगिरि, यादव और उसके बाद 1312 में मुस्लिम शासन शुरू हुआ. 

1347 में बिदर के बहमनी वंश ने बीजापुर पर कब्ज़ा कर लिया और बहमनी राज 1489 तक चलता रहा. 

उसके बाद आदिल शाही वंश शुरू हुआ और यह वंश 1686 तक यहाँ काबिज रहा. 

औरंगजेब ने आदिल शाही सुल्तान को हरा दिया और बीजापुर पर मुग़ल शासन 1723 तक चला. 

1724 में स्वतंत्र हैदराबाद राज्य के निज़ाम ने बीजापुर को अपने राज में मिला लिया. 

1760 में मराठा फ़ौज ने बीजापुर पर अधिकार जमा लिया.

1818  के मराठा - ब्रिटिश युद्ध में अंग्रेजों की जीत के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बीजापुर पर अधिकार जमा लिया और सतारा के राजा को दे दिया.

1848 में अंग्रेजों ने बीजापुर वापिस ले लिया क्यूंकि सतारा के राजा की कोई संतान न थी. 

1885 में बीजापुर को मुख्यालय बना दिया गया.

1956 में बीजापुर मैसूर राज्य में शामिल हुआ जो बाद में कर्णाटक कहलाया.

प्रस्तुत हैं गोल गुम्बद की कुछ फोटो और दो वीडियो: 

गोल गुम्बज़. इस गोल गुम्बद का व्यास 44 मीटर है 

दाहिनी ओर का सात मंजिला 'स्तम्भ' 
    
बाईं ओर का सात मंज़िला 'स्तम्भ' जिसके ऊपर एक छोटा गुम्बद है. इस तरह के चार स्तम्भों पर मुख्य गुम्बद टिका हुआ है 

पुरातत्व विभाग का संग्रहालय जो कभी नक़्क़ारखाना हुआ करता था 

म्यूजियम के बाहर आदिल शाही तोप 

गुम्बद के नीचे हॉल जो 41 मीटर X 41 मीटर है 

एक बड़े और ऊँचे चबूतरे पर परिवार की कब्रें 

रौशनी के लिए बनाए गए रौशनदान. फर्श से छत की ऊंचाई 60 मीटर है 

शायद इस फोटो से हॉल का अंदाज़ा लग जाएगा  

लैंप-पोस्ट 

रिसेप्शन जिसमें सुरक्षा व्यवस्था थी. यहाँ से अंदर आने वालों पर नज़र रखी जाती थी और अंदर आने वालों की   जांच भी की जाती थी 

गोल गुम्बज़ का नक्शा विकिपीडिया से सधन्यवाद 

गोल गुम्बज़ पर जारी पुराना डाक टिकट 
   
                                                         गोल गुम्बज़ बीजापुर कर्णाटक  

                                                              गोल गुम्बज बीजापुर कर्णाटक 


बीजापुर कर्णाटक से सम्बंधित अन्य फोटो ब्लॉग :

1. बीजापुर कर्णाटक -https://jogharshwardhan.blogspot.com/2024/01/11.html

2. बीजापुर के स्मारक -- https://jogharshwardhan.blogspot.com/2024/06/blog-post_13.html

                                               मेरठ - बैंगलोर - मेरठ कार यात्रा, भाग - 32