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Sunday 8 December 2019

बॉल पॉइंट पेन

बैंक में प्रमोशन मिली तो उसके बाद दो साल के लिए किसी गाँव में जा कर नौकरी करनी जरूरी थी. चिट्ठी ले कर दिल्ली से पहुंचे मेरठ रीजनल ऑफिस. बॉस से मुलाकात हुई, 
- दिल्ली के नज़दीक ब्रांच दे रहा हूँ क्यूंकि दिल्ली वालों की नाक दिल्ली की तरफ ही रहती है. दिल्ली मत भागते रहना कुछ काम कर के भी दिखाना है.
- जी सर ! बिलकुल सर ! ( चिलम तो आप की ही भरनी है सरकार !). 

बॉस ने भुड़बराल शाखा में भेज दिया. शाखा की लोकेशन तो बढ़िया थी. मोदीनगर से मेरठ की तरफ जाएं तो दस बारह किमी आगे गाँव था. मेन रोड से दो तीन किमी अंदर गाँव में शाखा थी. शाखा पहुंचे तो देखा के गेट पर डीज़ल का जनरेटर भड़भड़ की आवाज़ के साथ स्वागत में धुंआ फेंक रहा था. अंदर काउंटर पर भीड़ थी जिसमें अंगूठा टेक ज्यादा नज़र आ रहे थे. याने इस प्रदेश की एक नार्मल ब्रांच थी. 

बैठ कर हिसाब लगाया कि फटफटिया से दिल्ली तक डेली अप-डाउन किया जा सकता है या नहीं. पर बारिश या ठण्ड में दिक्कत हो सकती है. और फिर बॉस को भी खुश रखना था इसलिए गाँव में आपातकालीन व्यवस्था कर लेना ही ठीक था. बड़ी मुश्किल से एक चौधरी साब के हाते में कोने वाले कमरे में जगह मिली. बाथरूम तो अटैच कहाँ से होना था वो तो हाते से भी डिटैच था. साल में 10-15 दिन की बात है चलो यही सही.

हमारे मकान मालिक चौ'साब के दो बेटे फ़ौज में थे. तीन बेटियों में से बड़ी शायद 14-15 साल की थी और दो छोटी स्कूल जाती थीं. बड़ी वाली आठ पास कर चुकी थी इसलिए आगे क्या पढ़ाई करवानी थी. उसने कोई नौकरी थोड़े ही करनी है. आगे चल कर घर परिवार संभालना है, रोटीयां बेलनी हैं. सो वो कर भी रही थी. दो भैंसों का चारा भूसा डालना, दूध निकालना, घर की साफ़ सफाई और परिवार की रोटी टिक्कड़ सब ख़ुशी ख़ुशी अकेले संभाल लेती थी. उसे भी पता था कि आगे भी ज़िन्दगी ऐसे ही चलती है. 

एक शनिवार दोपहर को काली घटा के साथ जोरदार बारिश शुरू हो गई. फटफटिया पर दिल्ली जाने का मतलब नहीं था. तो वहीं रुकने का फैसला कर लिया. इतवार को कहीं आसपास घूम लेंगे. सुबह देखा तो अहाते में सफाई अभियान चल रहा था और पूरे घर में पकवान बनने की खुशबू फैली हुई थी. 
चौ'साब ने दरवाजा खटखटाया और पूछा,
- मनीजर साब पेन है जी आपके धोरे?
- हाँ हाँ. मैंने एक बॉल पॉइंट पेन पकड़ा दिया और पूछा,
- चौ'साब बड़ी तैयारी हो रही है?
- ना ना बस जी आज मेहमान आ रए.
- ठीक ठीक. मैं तो ज़रा निकलूंगा शहर की तरफ.
- हाँ जी हाँ घूम लो जी आप. 
आधे घंटे बाद जब तैयार होकर बाहर निकला तो बड़ी लड़की शर्माती हुई मिली. अच्छे से कपड़े पहन कर सुंदर लग रही थी. पर गले में वही पेन धागे में पिरो कर पहना हुआ था. जल्दी में मैंने पूछा नहीं ऐसा क्यूँ किया. शाम को वापिस आया तो चौ'साब से बातचीत हुई,
- मेहमान चले गए?
- जी वे तो दोपहर को ही जा लिए. मनीजर साब बड़ी बिटिया सयानी हो गई जी उसी का रिश्ता लेकर आये थे जी. 
- अभी तो छोटी लगती है चौ'साब. और वो बिटिया ने पेन गले में टांग रखा था तो मैंने सोचा फिर से पढ़ने जाएगी. 
- ना जी अब क्या पढेगी. पेन तो नूं टांग राख्या था जी की लड़के वालन को भी पता लग जा के लड़की पढी लिखी है.

मन ही मन बिटिया को आशीर्वाद दे दिया.
  
पेन 



11 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

इस किस्से का लिंक
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2019/12/blog-post_8.html

Anonymous said...

Very true. ��������

sunil kumar agrawal said...

सूझ बूझ वाला तरीका।☺️☺️

Harsh Wardhan Jog said...

Thanks Anonymous!

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Sunil.

A.K.SAXENA said...

Romanchak. Generator ne bhadbhad karte huye dhuyen se swagat kiya. Dilli balon ki naak Dilli ki taraf hi rahti hai.

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Saxena Saab.

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

रोचक संस्मरण। यह पढ़ते हए दसवें में पढ़ी हुई एक एकांकी याद आ गयी। रीढ़ की हड्डी उसमें घर वालों की कोशिश रहती है कि कहीं लड़के वालों को पता न चल जाये कि लड़की पढ़ी लिखी है। इस कारण वो चश्मे एक विषय में भी मनगढ़ंत कहानी बना दी थी। इधर मामला उसके उल्ट हो गया।

Navrajvir Singh said...

great

https://sauvewomen.com/husband-wife-jokes/

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद विकास नैनवाल 'अंजान'.
अब तो लड़की का पढ़ना जरूरी है.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Navrajvir Singh.
Interesting jokes on your site.