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Sunday 17 March 2019

तानसेन

संगीत सम्राट तानसेन का जन्म ग्वालियर से 45 किमी दूर एक गाँव बेहट में 1506 में हुआ था. तानसेन के पिता का नाम मकरंद पाल था जिन्होने अपने बेटे का नाम रामतन्नु पाल रखा. इन्टरनेट पर देखें तो पिता का नाम मकरंद पांडे या मुकुंद पांडे या मुकुंद मिश्रा भी लिखा मिलता है. और तानसेन का नाम तन्नु पाण्डे या तन्नु मिश्र या तनसुख या त्रिलोचन भी दिया हुआ है. कुछ लोगों का कहना है की 'तानसेन' एक नाम नहीं था बल्कि एक उपाधि थी. इसी तरह से तानसेन के जन्म / मृत्यु वर्ष में भी अंतर है. 

तानसेन ने संगीत की शिक्षा वृन्दावन के स्वामी हरिदास से और ग्वालियर के सूफी संत मोहम्मद गौस से ली. पहले तो तानसेन ग्वालियर के संगीत प्रेमी राजा मन सिंह तोमर के दरबार में रहे. राजा मान सिंह तोमर की मृत्यु के बाद संगीत मण्डली बिखर गई और तानसेन वृन्दावन चले गए. उसके बाद तानसेन कुछ समय दौलत खां पुत्र शेरशाह सूरी के दरबार में रहे. वहां से वे बांधव गढ़, रीवा के राजा रामचंद्र के दरबार में पहुँच गए जहां उनका बहुत सम्मान हुआ. इस दरबार से तानसेन की शानदार गायकी की खबर मुग़ल सम्राट अकबर के दरबार में पहुंची. अकबर ने तानसेन को अपने दरबार में बुला लिया और मियां और नवरत्न की पदवी दी.

तानसेन की शादी ग्वालियर की रानी मृगनयनी की दासी हुसैनी से हुई थी. तानसेन के चार पुत्र हुए - सुरतसेन, शरतसेन, तरंगसेन और विलास खान. एक पुत्री थी जिसका नाम सरस्वती था. तानसेन कवि भी थे और उन्होंने  तीन ग्रन्थ भी लिखे - संगीतसार, रागमाला और श्रीगणेश स्तोत्र.  तानसेन ने कई राग रागिनियों की रचना भी की - मियां का मल्हार, दरबारी कान्हड़ा और गुजरी तोड़ी / मियाँ की तोड़ी. तानसेन की मृत्यु अस्सी साल की आयु में हुई. उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें उनके गुरु मोहम्मद गौस की समाधि के पास दफनाया गया जहां अब हर साल दिसम्बर में संगीत महोत्सव मनाया जाता है.

तानसेन की जीवनी में गायकी की एक घटना बताना जरूरी है. अकबर के जिद करने पर तानसेन ने राग दीपक छेड़ दिया. राग ज्यूँ ज्यूँ राग ऊँचे स्वर में उठता गया, तानसेन का शरीर तपने लगा. आसपास बैठे दरबारी घबरा कर उठ गए. ऐसा लगा कि तानसेन इस तपिश में नहीं बचेंगे तो उनकी पुत्री सरस्वती ने राग मल्हार शुरू किया और तानसेन शांत हुए. बाद में अकबर ने अपनी जिद पर अफ़सोस जाहिर किया.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

1. तानसेन का मक़बरा

2. मियां तानसेन का अंतिम पड़ाव 

3. नारायण गाइड तानसेन के बारे में बताते हुए. पीछे है तानसेन के गुरु सूफी संत मोहम्मद गौस की दरगाह 

4. सूफी संत मोहम्मद गौस की दरगाह  

5. दरगाह का पिछला हिस्सा 

6. दरगाह में समाधियाँ 

7. ऊँचे खम्बों वाली छतें और सुंदर जाली का काम 

8. छत पर बने फूल पत्ते 

9. ऊँचे खम्बों पर नक्काशी 

10. दरगाह का एक और दृश्य 
11. सोलहवीं सदी में बनी दरगाह 
12. तानसेन के मकबरे के पास इमली का बूटा जिसके बारे में मशहूर है कि इसके पत्ते चूसने से गला सुरीला हो जाता है 


13. अकबर के दरबार के नवरत्न की यादगार  



16 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2019/03/blog-post.html

शिवम् मिश्रा said...

ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 17/03/2019 की बुलेटिन, " होली का टोटका - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुन्दर

RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' said...

आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/03/113.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

Kamini Sinha said...

बहुत ही सुंदर ,तानसेन की जीवनी और उनके सुंदर मकबरे का दर्शन करने के लिए आभर ,सादर नमस्कार

Jyotirmoy Sarkar said...

Interesting post and nice captures, heard about the incident you mentioned at the end.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद शिवम् मिश्रा.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद सुशिल कुमार जोशी साब.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद कामिनी सिन्हा जी

Harsh Wardhan Jog said...

शुक्रिया ज्योतिर्मोय सरकार

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद राकेश कुमार श्रीवास्तव राही जी.

दिगम्बर नासवा said...

इतिहास के एक जान्ने वाले प्रसिद्द शक्सियत तानसेन जी के मकबरे को देखना अच्छा लगा ... रोचक इतिहास भी अच्छा लगा ... पर उनका मकबरा क्यों था ... वो तो कहीं जलाए गए होंगे ...

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद दिगम्बर जी. तानसेन की अंतिम इच्छा के अनुसार उन्हें अपने गुरु मुहम्मद गौस की दरगाह के पास ही दफना दिया गया था.

Unknown said...

सुंदर संग्रह

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Unknown. Please update your profile.

Anonymous said...

बहुत सुन्दर
विजय निश्छल