Pages

Thursday 16 June 2016

कामागाटा मारू घटना

पिछले दिनों 18 मई 2016 को कनाडा के प्रधान मंत्री ने 1914 की कामागाटा मारू घटना के लिए अपनी सरकार की ओर से माफ़ी मांगी. उन्होंने कहा:

I rise to offer an apology on behalf of the Canada government, for our role in Komagata Maru incident. First & foremost, to the victims of incident, no words can erase the pain & suffering they experienced. None of the passengers are alive today to hear our apology, still, we offer it, fully & sincerely.

उत्सुकता हुई की ये १०२ साल पुरानी कैसी घटना है जिसकी अब माफ़ी मांगी जा रही है ? इस विषय पर इन्टरनेट में खोजबीन शुरू की. विकिपीडिया, कनाडा की इनसाइक्लोपीडिया और बहुत से लेख पढ़े. पढ़ कर अच्छा लगा और जोश भी आया. यह घटना तो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक अहम हिस्सा है परन्तु इसकी चर्चा कम सुनने में आई है. यह ब्लॉग लिखने का कारण यही है की इस रोचक किस्से की दोबारा चर्चा हो जाए .

कामागाटा मारू भाप से चलने वाला एक समुद्री जहाज था जो ब्रिटेन में बनाया गया था और जिसके मालिक समय समय पर बदलते रहे थे. 1914 की घटना के समय इस जहाज़ की उम्र 20 साल की थी मिल्कियत एक छोटी जापानी कम्पनी के नाम थी. इस जहाज ने और इस घटना ने नस्लवाद के खिलाफ और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढ़ाने और अंतराष्ट्रीय आयाम देने में बखूबी भाग लिया.

यहाँ ग़दर पार्टी का जिक्र करना भी ठीक रहेगा. जून 1913 में अमरीका और कनाडा में बसे भारतियों ने एक संस्था बनाई हिंदी एसोसिएशन ऑफ़ पसिफ़िक कोस्ट या ग़दर पार्टी जिसका उद्देश्य था भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराना. जनवरी 1914 में हांगकांग के गुरदित्त सिंह संधू ने, जिन्हें बाबा भी कहा जाता है, ग़दर पार्टी का समर्थन घोषित कर दिया.

बाबा गुरदित्त सिंह संधू एक समृद्ध व्यापारी थे जो सिंगापुर, हांगकांग और आसपास व्यापार करते थे पर पंजाब से भी संपर्क बनाए हुए थे. इसके अलावा बहुत से भारतीय जो पूर्वी एशिया में थे उनसे भी संपर्क में थे. बाबा का विचार था कि स्वतंत्र देशों कि यात्रा करने से और वहां के लोगों से मिलने से गुलामी में जकड़े लोगों के विचार भी आज़ादी की ओर बढ़ेंगे. बाबा कुछ लोगों को अमरीका या कनाडा भेजना चाहते थे जिसके लिए गैर ब्रिटिश जहाज की तलाश थी. फिर उन्हें जापानी जहाज कामागाटा मारू का पता लगा तो तैयारी शुरू हो गई. परन्तु हांगकांग के गवर्नर ने बाबा गुरदित्त सिंह को अवैध यात्रा के टिकट बेचने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया. जमानत हुई और फिर किसी तरह जहाज़ को जाने की अनुमति मिल गई. 4 अप्रैल 1914 को 165 यात्रियों को लेकर रवाना हुआ. कुछ लोग शंघाई और योकोहोमा में शामिल हो गए. 3 मई को जहाज योकोहोमा से 340 सिख, 24 मुस्लिम और 12 हिन्दू सवारियों को लेकर कनाडा की ओर बढ़ने लगा. इन यात्रियों की धार्मिक गिनती कैसे हुई इसकी पुष्टि नहीं हुई पर सभी जगह यही गिनती दी गई है. ये सभी पूर्व पंजाब से थे - दोआबा, मालवा और माझा इलाकों से थे. कनाडा के इनसाइक्लोपीडिया में यात्रियों में दो पत्नियाँ और चार बच्चों का जहाज में होने का जिक्र है जो और कहीं नहीं पढ़ा. 23 मई को जहाज वैनकूवर, कनाडा के किनारे बुर्रार्ड इनलेट में दाखिल हुआ. जहाज को दूर ही रखा गया और यात्रियों को उतरने नहीं दिया गया. कनाडा के प्रान्त ब्रिटिश कोलम्बिया के प्रधान मंत्री सर रिचर्ड मैकब्राइड ने कहा:

"To admit Orientals in large numbers would mean the end, the extinction of the white people. And we always have in mind of keeping this a white man's country."


जगह जगह विरोध सभाएं हुईं. सोहन लाल पाठक और हसन रहीम के नेतृत्व में 'शोर समिति' बनी और कानूनी करवाई के लिए $ 22,000 भी इकट्ठे कर लिए गए और साथ ही साथ यात्रियों को ना उतारने पर  'ग़दर' की धमकी भी दे दी गई. घटना की चर्चा अंतर्राष्ट्रीय अखबारों में भी फ़ैल गयी. इस घटना के चलते ग़दर पार्टी का काफी विस्तार हुआ. उस वक़्त के ग़दर पार्टी के कुछ प्रमुख नाम हैं बरकतुल्लाह, तारक नाथ दास और सोहन सिंह.  

एक यात्री मुंशी सिंह की ओर से मुक़दमा भी दायर किया गया. परन्तु कोर्ट ने वहां के क़ानून के मुताबिक यात्रियों को उतरने की इजाज़त नहीं दी. गुस्से में यात्रियों ने जहाज के जापानी कप्तान से भी मारपीट की और उसे भगा दिया. स्थानीय अधिकारियों ने जहाज में घुसने की कोशिश की तो उन पर कोयले और पत्थरों की बौछार कर दी. अंत में नौसेना के जहाज़ों ने कामागाटा मारू को घेर लिया. केवल 20 यात्रियों को जुरमाना भरने के बाद उतरने दिया गया. वापिस जाने के लिए राशन आदि को लेकर भी झगड़े होते रहे. अंत में प्रांतीय सरकार द्वारा हांगकांग तक की रसद जहाज में डलवा दी गयी. 23 जुलाई को जहाज को जबरदस्ती घुमा कर वापिस एशिया की तरफ मोड़ दिया गया और खुले समन्दर में धकेल दिया गया.

कोमागाटा मारू 27 सितम्बर को बचे हुए 321 यात्रियों को लेकर कोलकात्ता वापिस पहुंचा. ब्रिटिश तोपची जहाज की निगरानी में कोमगाटा मारू का बज बज में लंगर डलवा दिया गया. ब्रिटिश राज की नज़र में सारे यात्री खतरनाक अपराधी और ग़द्दार थे. पुलिस जहाज पर बाबा गुरदित्त सिंह और 20 अन्य लोगों की लिस्ट लेकर गिरफ्तार करने जा पहुंची. जहाज में यात्रियों ने पुलिस वालों को पीटना शुरू कर दिया और दंगा हो गया. पुलिस ने फायरिंग कर दी. 19 यात्री वहीँ मारे गए. बाबा गुरदित्त सिंह समेत बहुत से लोग फरार हो गए और बाकी गिरफ्तार कर लिए गए. गिरफ्तार लोगों को पंजाब की जेलों में डाल दिया गया. उनमें से कुछ को वहां फांसी दे दी गई या फिर उनके गाँव में नज़रबंद कर दिया गया. बाबा गुरदित्त सिंह 1922 तक ज़मींदोज़ रहे. महात्मा गाँधी ने बाबा गुरदित्त सिंह को सच्चा देश भक्त बताया और उन्होंने बाबा से आग्रह किया कि वे बाहर आ जाएं. बाबा आये, उन पर मुकदमा चला और पांच साल की जेल हुई.

बाबा गुरदित्त सिंह - विकिपीडिया से साभार  

यह एक असाधारण घटना है जिसमें बेहतर जीवन के लिए लोगों ने महीनों समुद्री जहाज में गुज़ार दिए. कुछ पहुंचे, कुछ मारे गए, कुछ फांसी चढ़े. घटना में नस्लभेद की भीषण प्रतिक्रिया है और गुलामी से निकलने की प्रबल इच्छा है. अच्छा हो अगर भारत सरकार इस घटना का प्रमाणिक और विस्तृत विवरण जारी कर दे. अलग अलग साईट में अलग अलग तारीखें और यात्रियों की गिनती अलग अलग मिलती हैं. घटना से जुड़े कुछ यादगार -
* पं. नेहरु ने बज बज में 1952 में इस घटना के स्मारक का उद्घाटन किया.
* इस घटना के सौ साल होने पर पांच रूपए का सिक्का रिज़र्व बैंक द्वारा निकाला गया.
* वैनकूवर, कनाडा के गुरुद्वारे में 23 जुलाई 1989 को 75 साल पूरे होने पर एक प्लेक लगाई गई.
* कोल हारबर, वैनकूवर में 23 जुलाई 2012 को एक स्मारक का उद्घाटन हुआ.
* कनाडा पोस्ट ने 1 मई 2014 को याने कोमागाटा मारू के आने के सौ साल बाद एक डाक टिकट जारी किया.
* जालन्धर में ग़दर पार्टी की याद में बनाए गए देशभगत यादगारी हाल में 1992 से 'गदरी बाबाओं का वार्षिक मेला' लग रहा है.

Sikh men and a boy are pictured onboard the Komagata Maru. Businessman Gurdit Singh is seen wearing a light-coloured suit in the left foreground.
गुरदित्त सिंह एक बच्चे और अन्य सवारियों के साथ कामागाटा मारू जहाज में - फोटो वैनकूवर पब्लिक लाइब्रेरी से सधन्यवाद 



इससे मिलता जुलता एक और किस्सा -

Historical Dagshai, Himachal
http://jogharshwardhan.blogspot.com/2015/06/historical-dagshai-himachal-pradesh.html






No comments: