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Wednesday 31 July 2019

कांवड़ यात्रा 2019

सावन का महीना आने के साथ ही कांवड़ यात्रा की तैयारी शुरू हो जाती है. लाखों की संख्या में शिव भक्त कांवड़ लेकर हर की पौड़ी की ओर चल पड़ते हैं और वहां से गंगा जल लाकर शिव मंदिरों में चढ़ाते हैं. ज्यादातर भक्त जल चढ़ाने के लिए पूरा महादेव मंदिर जाते हैं. इसे परशुरामेश्वर मंदिर भी कहा जाता है. इस मंदिर की मान्यता है कि परशुराम पहली बार कांवड़ में हर की पौड़ी से जल लाए और शिवलिंग का अभिषेक किया. यह मंदिर बागपत जिले के बालौनी क्षेत्र में है और मेरठ से 20-22 किमी दूर है. 
2019 की कांवड़ यात्रा के कुछ दृश्य:

जय भोले नाथ 

मोरों से सजी कांवड़

बल्बों से सजी कांवड़

 एकला चलो रे  

भोले बाबा कंधे पर 

चलता फिरता मंदिर 

गंगा जल की गगरियाँ 

बम बम भोले 

महिलाएं भी शामिल 

पाँव में छाले पड़ गए पर अब मंजिल दूर नहीं 

नन्हें भोले भी कम नहीं हैं 

कांवड़ का एक दूसरा रूप 



Friday 26 July 2019

राष्ट्रीयकृत बैंक की नौकरी की

नोटबंदी के बाद बैंक के आगे लगी लाइन 

बैंकों का राष्ट्रीयकरण 19 जुलाई 1969 को हुआ जो उस वक़्त की एक धमाकेदार खबर थी. बैंक धन्ना सेठों के थे और सेठ लोग राजनैतिक पार्टियों को चंदा देते थे. अब भी देते हैं. ऐसी स्थिति में सरमायेदारों से पंगा लेना आसान नहीं था. फिर भी तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी ने साहसी कदम लिया और चौदह बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया. 

दूसरे बैंकों का तो पता नहीं उस वक्त पंजाब नेशनल बैंक की 619 शाखाएं थीं, डिपाजिट 383.4 करोड़ था, लोन 187.3 करोड़ थे और बैंक के मालिकान को 1020 करोड़ मुआवज़ा दिया गया था. 

रिटायर होने के बाद अब पीछे मुड़ कर देखो तो राष्ट्रीयकृत बैंक की नौकरी की कुछ खट्टी मीठी यादें ज़हन में आ जाती हैं. 

चलो गाँव की ओर: राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य था की बैंकों को दूर दराज़ के इलाकों में छोटे किसानों और उद्यमियों की भी सहायता करनी है जिसके लिए बहुत सी नई शाखाएं भी खोलनी थीं. जल्दी जल्दी शाखाएं खुलने लगीं. राष्ट्रीयकृत बैंकों में होड़ लग गई कि कौन कितनी ब्रांचें पहले खोलेगा. बैंकों की सालाना बैलेंस शीट जब अखबारों में छपती थी तो सबसे ऊपर नई खुली शाखाओं की गिनती लिखी होती थी. गाँव खेड़े, कस्बों और शहर के छोटे छोटे बाज़ारों में शाखाएं खुलने लगीं. ऐसी शाखाओं के अजब गजब नाम सुनने को मिलते थे: - अड्डा कोट पतूही, जीरा, पापा पारे!

अब प्रमोशन होने पर गाँव की शाखाओं में भेजा जाने लगा. पता लगता था की उत्तराखंड के एक गाँव में श्री गोयल ने ब्रांच देर से बंद की और घर की ओर चले. अँधेरे में दो चमकती आँखें और बाघ की गुर्राहट सुनी. भाग कर नजदीक की दुकान में घुस गए. सुबह ऑफिस में आ कर पहला काम किया कि वापिस ट्रान्सफर की चिट्ठी लिख दी. 
श्री चावला ने जब राजस्थान में गाँव की ब्रांच में घड़े से पानी लेना चाहा तो देखा कि घड़े के पास सांप बैठा हुआ है. शायद खाता न खुलने के कारण नाराज़ था और फुंकार रहा था. 
एक मित्र की पोस्टिंग बद्रीनाथ में हुई तो लगभग दो साल उसने चढ़ावे के सिक्के गिनकर और मंदिर के प्रसाद खा कर ही गुज़ार दिए. 
एक गाँव की ब्रांच में लोन न देने पर गोली चल गई. 
एक मित्र गाँव की ब्रांच से वापिस ही नहीं आना चाहते थे. कहते थे की यहाँ नौकरानियां बड़ी अच्छी मिल जाती हैं!
जो भी हो बैंकों का कारवाँ चलता ही गया और फैलाव बढ़ता ही गया. 

नौकरियाँ ही नौकरियाँ: जैसे जैसे बैंक अपनी शाखाएं खोलते गए तो और कर्मचारियों की ज़रूरत पड़ने लगी. एक संस्था बना दी गई Banking Services Recruitment Board जो लिखित टेस्ट लेती थी. हमने भी टेस्ट पास कर लिया और इंटरव्यू में हाज़िर हो गए. 
-अच्छा तो आपका नाम हर्षवर्धन है. इस नाम का एक राजा भी हुआ करता था पता है आपको?
- जी सर. हर्षवर्धन 590 AD में पैदा हुआ था और 606 से 647 तक उसने राज किया था. उसकी पहली राजधानी थानेसर थी और दूसरी कन्नौज. उसके पिता का नाम प्रभाकरवर्धन ......
- थैंक यू थैंक यू.
पक्की नौकरी लग गई साब. गाँव कसेरू खेड़ा जिला मेरठ से पंजाब नेशनल बैंक संसद मार्ग शाखा नई दिल्ली पहुँच गए. इसी तरह हजारों हमउम्र लोगों ने उन दिनों टेस्ट पास कर लिया और बैंक में लग गए. ये सिलसिला लगभग पंद्रह साल तक चलता रहा. मेरा अंदाजा है की लगभग पंद्रह लाख लोगों की नौकरी बैंकों में लगी होगी. अच्छी तनख्वाह, जल्दी जल्दी प्रमोशन और दूसरी सुविधाओं के चलते इन सभी लोगों का लाइफस्टाइल ही बदल गया. सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले और साइकिल चलाने वाले लोअर क्लास से मिडिल क्लास में आ गए और कुछ ने अपर क्लास में छलांग लगा दी.

यूनियन बाज़ी: जहां इतने ज़्यादा कर्मचारी हों तो यूनियन का बनना स्वाभाविक ही है. राष्ट्रीयकरण से पहले भी यूनियन थी पर कमजोर थी. अब बड़ी और ताकतवर हो गई. यूनियन में छोटे बड़े बहुत से नेता थे जिनकी अपनी अपनी छोटी बड़ी सल्तनत हुआ करती थी. अपने अपने 'इलाके' में ट्रान्सफर करवाना, सीटें बदलवाना, मैनेजर को 'सेट' करना इनके काम हुआ करते थे. स्टाफ में से कुछ साइड बिज़नेस भी किया करते थे मसलन ट्रेवल एजेंट, धूप अगरबत्ती बेचना, ट्यूशन पढ़ाना, कीर्तन मण्डली चलाना वगैरह. इन लोगों की यूनियन नेताओं से अच्छी छनती थी. 

एक नियम ये भी था कि यूनियन का एक प्रतिनिधि बैंक के बोर्ड में डायरेक्टर बनेगा. ये लालच की पुड़िया झगड़े करवाती थी. डायरेक्टर तो वही बनेगा जिसे कम्युनिस्ट पार्टी चाहेगी और उसके बाद सरकार हाँ करेगी. डायरेक्टर की कुर्सी के उम्मीदवार के चुनाव में जम कर रस्साकशी होती थी. 

राष्ट्रीयकरण से पहले का स्टाफ बताता था कि पहले नौकरी मुश्किल हुआ करती थी. अक्सर रात को घर लेट पहुँचते थे. बल्कि रास्ते में पीछे पीछे कुत्ते भौंकते हुए चलते रहते थे! राष्ट्रीयकरण और यूनियन की वजह से पुराने स्टाफ की भी जून सुधर गई थी!     

लोन बांटो: राष्ट्रीयकरण के कुछ समय बाद 1975-76 के आस पास हुकुम जारी हुआ कि पांच हज़ार तक के लोन बिना किसी गारंटी या सिक्यूरिटी के दिए जाएं. अब मैनेजरों का घबराने का टाइम था. ये कैसे होगा? लोग पैसा वापिस ही नहीं करेंगे. एक रास्ता निकाला गया. लोन तो दे देते पर लोनी के किसी भाई भतीजे की गारंटी साइन करा के फाइल में लगा लेते. उसके बाद मैनेजरों से लिखवाया गया कि मैं छोटे लोन के लिए कोई गारंटी नहीं लूंगा. बमुश्किल छोटे लोन की सिक्यूरिटी बंद हुई. 

हाकिम को खुश करने के लिए लोन मेले लगने लगे. पहले लोन ज्यादातर व्यापारी के गोदाम पर ताला लगाकर और कुछ जमीन जायदाद के कागज़ बैंक में रख कर होते थे. फिर hypothecation आ गया जिसमें माल का कब्ज़ा भी लोनी के पास चला गया. पुराने मैनेजरों को इससे काफी बैचैनी होती थी. पर हौले हौले ढर्रा बदल गया.

कंप्यूटर बाबा: कम्पू बाबा शायद 1996-97 के आसपास प्रकट हुए थे. यूनियन में हल्ला मच गया, हड़ताल हो गई और फिर सबको एक एक स्पेशल इन्क्रीमेंट दी गई और फिर धड़ल्ले से कम्पू लगने शुरू हो गए. काउंटर चाहे टूटा फूटा हो पर उसके ऊपर कम्पू नया होना ज़रूरी था. 

अब फिर से a b c d सीखनी पड़ी. काफी लोगों ने कम्पू के गेम्स जरूर सीख लिए. काउंटर पर बैठे बैठे कम्पू में ताश तो खूब खेली जाती थी. फिर दिसम्बर 2000 के आखिरी रात तक 2K की धूम रही. फिर बाद में CBS का हंगामा शुरू हो गया था जो अब तक ख़तम होता नहीं नज़र आ रहा क्यूंकि इसमें समय समय पर अपग्रेड भी होने हैं और स्टाफ की ट्रेनिंग भी. वैसे अब हिन्दुस्तानी जनता जान चुकी है कि कनेक्टिविटी न होने, कंप्यूटर डाउन होने या सर्वर डाउन होने का क्या मतलब होता है. 

पेंशन नो टेंशन: भई अब तो ज़िन्दगी पेंशन पर गुज़र रही है ये भी काफी हद तक राष्ट्रीयकरण और कुछ हद तक यूनियन के कारण है. खैर 2004 की अटल सरकार के समय से पेंशन बंद हो गई. और अब की सरकार वापिस निजीकरण चाहती है. अब अगर आप पेंशन लेना चाहते हैं तो आप एमपी या एमएलए बन जाएं तो टैक्स फ्री पेंशन ले सकते हैं. 

राष्ट्रीयकृत बैंक की समस्याएँ भी थीं, कुछ यूनियन की थीं और कुछ मैनेजमेंट की पर काम भी हुए और प्रगति भी हुई जैसा की उद्देश्य था. पर साब ये राजरोग कब ख़त्म हुए हैं? ये तो चलते रहते हैं. बहरहाल आजकल के राष्ट्रीयकृत बैंकों में कार्यरत कर्मचारियों और अफसरों को शुभकामनाएं.

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 राष्ट्रीयकरण पर आर के लक्ष्मण का कार्टून जो 19 जुलाई 2019 को नवभारत टाइम्स में पुनः प्रकाशित हुआ 


Sunday 21 July 2019

खजुराहो के जैन मंदिर

मध्य प्रदेश का एक छोटा सा शहर खजुराहो अपने सुंदर मंदिरों के कारण विश्व प्रसिद्द है. ये सभी मंदिर विश्व धरोहर - World Heritage Site की सूची में आते हैं. 
भोपाल से खजुराहो की दूरी 380 किमी है और झांसी से 175 किमी. खजुराहो हवाई जहाज, रेल या सड़क से आसानी से पहुंचा जा सकता है और यहाँ हर तरह के होटल और सुविधाएं उपलब्ध हैं. 

खजुराहो की स्थापना करने वाले चंदेल राजा चंद्र्वर्मन थे जिन्होनें इसे बुंदेलखंड राज्य की राजधानी बनाया था. चंदेल राजवंश ने लगभग नौंवी से बारहवीं शताब्दी तक राज किया. यहाँ के मंदिर लगभग सन 850 से 1150 में बनाए गए थे. पच्चासी मंदिरों का निर्माण हुआ जिनमें से अब पच्चीस ही बचे हैं. तेरहवीं शताब्दी में दिल्ली के सुलतानों के हमलों में यहाँ काफी नुक्सान हुआ. मंदिरों का महत्व और देखभाल घट गई. धीरे धीरे मंदिर झाड़ झंखाड़ और जंगल में खो गए. 

1830 में ब्रिटिश सर्वेयर टी एस बर्ट ने मन्दिरों की पुनः खोज की. कुछ समय बाद एलेग्जेंडर कन्निंघम ने मंदिरों की विस्तृत जानकारी दी. 1852 में मैसी ने मंदिरों के पहले रेखाचित्र जारी किये.

चंदेला राजवंश में जैन धर्म के अनुयायी बड़ी संख्या में थे. यहाँ जैन मंदिर भी बनाए गए थे. इन मंदिरों में उस समय के अभिलेख भी पाए गए हैं. 1858 में जैन मंदिरों के इर्द गिर्द एक परिसर बनाया गया और रखरखाव का काम भी शुरू हुआ. यहाँ एक म्यूजियम भी है जिसमें ऐतिहासिक अवशेष रखे हुए हैं. इन जैन मंदिरों में आजकल धर्म शिक्षा और पूजा अर्चना की जाती है. खजुराहो के अन्य हिन्दू मंदिरों में ऐसा नहीं है. अन्य मंदिरों की तरह यहाँ कामुक मूर्तियाँ नहीं हैं. प्रस्तुत हैं जैन मंदिरों की कुछ फोटो:

1. गर्भ गृह के चबूतरे, स्तम्भ और दीवारों पर सुंदर और बारीक कारीगरी 


2. दिगम्बर जैन सम्रदाय के मंदिर तीर्थंकर पार्श्वनाथ, आदिनाथ और शांतिनाथ को समर्पित हैं 

3. पार्श्वनाथ मंदिर जैन मंदिरों में सबसे बड़ा है जो सन 950 के आसपास बनाया गया था. इस की बाहरी दीवार पर सुंदर मूर्तियाँ उकेरी गई हैं. 

4. दीवारों पर ज्यादातर मूर्तियाँ व्याल, पेड़ पौधे और उड़ते हुए यक्ष-यक्षिणी की हैं 

5. गर्भ गृह 

6. दीवार पर सुंदर मूर्तियाँ 

7. झरोखे और मूर्तियाँ. जैन मंदिरों में मिथुन या कामुक मूर्तियों का अभाव है 

8. गर्भ गृह 

9. तीर्थंकर शांतिनाथ के प्राचीन मंदिर के साथ नए का जुगाड़ 

10. आदिनाथ मंदिर की मूर्तियाँ 

11. भगवान आदिनाथ मंदिर एक हिस्सा बाद में जोड़ा गया है 

12. एक छोटा मंदिर जिसमें बने हाथी प्राचीन लगते हैं 

13. भगवान् शांतिनाथ मंदिर 

14. बाद में बनी सुंदर मूर्ति 

15. पूजा अर्चना 

16. भगवन शांतिनाथ मंदिर परिसर 

17. प्रवेश द्वार - श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र खजुराहो 





Friday 12 July 2019

भीष्म साहनी को श्रद्धांजलि

भीष्म साहनी जी से संयोगवश मुलाकात जून 1977 में दिल्ली में हुई थी. रूसी ( उस वक़्त सोवियत ) सांस्कृतिक केंद्र में मैक्सिम गोर्की पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया था. उस गोष्ठी में मैंने गोर्की की एक कविता का रूसी भाषा में पाठ करना था और साहनी जी ने उस आयोजन की सदारत करनी थी. समापन के बाद साहनी जी ने हाथ मिलाते हुए कविता पाठ पर बधाई दी और ऐसे बात करने लगे जैसे पुरानी पहचान हो. जबकि मेरे मन में ये विचार था की नामी साहित्यकार और गिरामी स्थान रखने वाले इंसान मुझसे कहाँ बात करेंगे? 

पर साहनी जी ने बड़ी सरलता, सौम्यता और शालीनता से बात की. उनका शांत चेहरा देखकर मन को सुकून मिला. ऐसी ही सरलता उनके लेखन में भी नज़र आती थी. आम भाषा में आम लोगों के बारे में छोटी बड़ी बातें आसानी से लिख डालते थे. कुछ कुछ मुंशी प्रेमचंद या यशपाल की तरह. 

साहनी जी का जन्म 8 अगस्त 1915 को रावलपिंडी में हुआ और निधन 11 जुलाई 2003 के दिन दिल्ली में हुआ. उन्होंने लाहौर से अंग्रेजी साहित्य में एम ए किया और 1958 में पंजाब विश्विद्यालय चंडीगढ़ से पी एच डी की. अम्बाला, अमृतसर और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे. 1957 से 1963 तक मास्को में अनुवादक भी रहे और कई रूसी पुस्तकों का अनुवादन भी किया. 1998 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया और 2002 में साहित्य अकादमी की फेलोशिप प्रदान की गई. उनकी प्रमुख रचनाएं हैं:
उपन्यास - तमस, झरोखे, बसन्ती, मैय्यादास की माड़ी, कुन्तो, नीलू नीलिमा और निलोफर. 
कहानी संग्रह - मेरी प्रिय कहानियां, वांगचू , निशाचर, भाग्यरेखा.
नाटक - हानुश, माधवी, कबीरा खड़ा बाज़ार में, मुआवज़े.
बाल कथा - गुलेल के खेल. 
भीष्म साहनी मशहूर फ़िल्मी एक्टर बलराज साहनी के छोटे भाई थे और उन्होंने इस पर एक आत्मकथा भी लिखी - बलराज माय ब्रदर. 

महान साहित्यकार को श्रद्धांजलि. उनकी पुस्तकों के माध्यम से उन्हें याद करते रहेंगे. 

भीष्म साहनी समापन भाषण देते हुए. दाहिने से दूसरे स्थान पर हर्ष वर्धन जोग 



Sunday 7 July 2019

Salar Jung Museum Hyderabad

Salar Jung Museum is located on the southern bank of Moosi River in Hyderabad, Telangana. It has huge & amazing collection of historical artifacts on display. The Museum is housed in two story semi circular buildings. Ground floor has large twenty galleries and first floor has eighteen. The bulding has libraries, reading room, conservation lab, sales counter and cafe as well. Guides are also availble for free at periodical intervals. On holidays Museum gets crowded. Nevertheless must visit place if you are in Hyderabad. 

It all started with Nawab Mir Yousuf Ali Khan, Salar Jung III (1889 - 1949) who was the Prime Minister under Nizam's rule on Hyderabad. He spent a large chunk of his income on collecting artifacts from all parts of the world. He did so for a period of approx thirty five years. Total number of items is said to be over a million pieces. He passed away in 1949 leaving the private collection in Diwan Deodi, his ancestral palace later named as Salar Jung Museum. This was inaugurated by Pt Jawahar Lal Nehru on 16.12.1951. Subsequently in 1968 the Museum was shifted to present premises in Dar-ul-Shifa. It is one of the National Museums now.

Photos of a few items:
Salar Jung III & his personal retinue in clay

Salabhanjika. First or second century AD, Mathura in red stone

Replica of throne of Tut-Ankh-Amun, King of Egypt 14th century BC 

Samurai Warriors of Japan 19th century

Chinese Monks  

Street musician in clay

Wooden passanger bullock cart

British Army formation of WW I

Museum has a Clock Room having large number beautiful clocks & sun dials from many countries. One of them is of particular interest - British Bracket. It has mini mechanical device. Every hour a toy figure comes out from his 'room'& hits the gong & goes back. Large crowd waits for him at say 11 or 12 as he will hit the gong 11 or 12 times.

They have put up cctv screens & placed chairs in lobby so that more people can watch the little fellow hitting the gong. A very popular show indeed 




Wednesday 3 July 2019

गूगल के नक़्शे और लोकल गाइड

भारत बहुत बड़ा और विभिन्नता से भरा देश है. अगर जोशीमठ से गाड़ी लेकर जयपुर की ओर या फिर दिल्ली से बैंगलोर की ओर निकल पड़ें तो रास्ते में सीनरी तेज़ी से बदलती जाती है, पेड़-पौधे, खाना-पीना, पहनावा और भाषा सभी में बदलाव महसूस होता है. और ये सब देखने के लिए हम पहले तो फटफटिया इस्तेमाल करते रहे और उसके बाद अपनी कार. अब तक लगभग 70% भारत की सैर अपने उड़न खटोलों में ही की है.

इस तरह से घुमने के लिए अपने बस्ते में भारत का एक बड़ा नक्शा, प्रदेशों के नक़्शे और प्रदेशों की राजधानियों के नक़्शे रखने पड़ते थे. पर अब सब कुछ बदल गया है. छोटे से फोन और GPS ने घूमने का अंदाज़ ही बदल दिया है. फोन में गूगल ने नक़्शे डाल दिए हैं और जनता ने होटल, स्मारक, स्कूल, अस्पताल के बारे में फोटो और रिव्यु डाले हुए हैं जो चौबीसों घंटे उपलब्ध हैं. 

मसलन एक बार अपनी कार से मंगलौर से गोवा की ओर जा रहे थे. रास्ते में भटकल में चाय लिए रुके. कैफ़े में मोबाइल देखा कि क्या आस पास कोई देखने लायक जगह है? गूगल ने बताया कि जोग फाल्स 85 किमी दूर है और जाने का टाइम लगेगा 1 घंटा 57 मिनट. कैफ़े के मालिक ने भी कहा कि गूगल बाबा सही फरमा रहे हैं. फिर क्या था अपना उड़न खटोला जोग फाल्स की तरफ मोड़ दिया ! जल प्रपात देख कर बड़ा आनंद आया. 

जोग फाल्स, जिला शिमोगा, कर्णाटक. मानसून और उसके तुरंत बाद यहाँ कई प्रपात बन जाते हैं 
एक बार GPS ने फंसा भी दिया था. पुष्कर के होटल में जाना था और उसके दो रास्ते थे. गूगल की बोलती गुड़िया ने छोटा रास्ता जो बाज़ार के बीच से जाता था, बताना शुरू कर दिया. मात्र 500 मीटर पहले बाज़ार संकरा हो गया,  जनता ज्यादा थी और गाड़ी बड़ी. जाम लगने लगा. गूगल की गुड़िया बार बार 'होटल 500 मीटर आगे है' बता रही थी उधर दुकानदार और जनता शोर मचाने लगी. बड़ी मुश्किल से बैक की और दूसरे रास्ते से होटल पहुंचे. 
पुष्कर का बाज़ार 

ये GPS क्या है? ये उपग्रह पर आधारित रेडियो नेविगेशन सिस्टम है जिसे Global Positioning System कहते हैं. यह सिस्टम अमरीकी सरकार का है और इसे अमरीकी वायु सेना चलाती है. हमें गूगल के माध्ययम से मिल रही है. यह सेवा मुफ्त है और धरती पर किसी भी स्मार्ट फोन या दूसरे रिसीवर पर इसे इस्तेमाल किया जा सकता है. यह सेवा अमरीकी सेना के लिए 1978 के लिए शुरू हुई पर बाद में आम जनता के लिए भी खोल दी गई. इसके लिए 31 सॅटॅलाइट धरती से 20,000 किमी ऊपर लगातार घूमते रहते हैं. 

अब चूँकि ये सेवा अमरीका के आधीन है तो वो जब चाहें जिस एरिया में चाहें बंद भी कर सकते हैं. 1999 के कारगिल युद्ध में उन्होंने ऐसा ही किया. तब भारत ने अपना ही सिस्टम नाविक - NAVIC के नाम से शुरू करने की कोशिश की. इसके लिए पहले उपग्रह 2013 में और अंतिम 2018 में छोड़ा गया पर अभी पूरी तरह से चालू नहीं हुआ है. ( और अधिक जानकारी के लिए कृपया विकिपीडिया देखें ).

ये लोकल गाइड क्या है? गूगल के नक़्शे और GPS तो लाखों लोग इस्तेमाल करते हैं. मसलन अगर गूगल के नक़्शे में मेरठ का औघड़ नाथ मंदिर या फिर हैदराबाद का सालारजंग म्यूजियम देखना चाहें तो उनके नक़्शे, वहां की फोटो, जाने का रास्ता और जनता द्वारा पोस्ट किये हुए रिव्यु भी तुरंत  मिल जाएंगे. गूगल के नक्शों में आप भी फोटो, रिव्यु और सवाल पोस्ट कर सकते हैं. इन पोस्ट करने वालों को लोकल गाइड कहा जाता है और गूगल हर पोस्ट पर कुछ पॉइंट्स देता है. पॉइंट्स मिलने के बाद एक से लेकर दस तक लेवल बन जाते हैं. दसवें लेवल तक पहुँचने के लिए एक लाख पॉइंट्स दरकार हैं.  
जनवरी 2018 से मैंने भी इसमें 'लोकल गाइड' की तरह हिस्सा लेना शुरू कर दिया और मेरा अब तक का स्कोर इस प्रकार है -
* रिव्यु लिखे ( हिंदी / इंग्लिश में ) - 953 जो 2,31,874 बार देखे गए, 
* फोटो डाली - 2933 जो 52,47,327 बार देखी गई,
* एडिट किये - 442,
* सवालों के जवाब दिए - 734 वगैरा.
कुल पॉइंट्स मिले 50,211 और मिला लेवल 9. 
Reached Level 9

अब गूगल मैप्स की मेल आई है - 'keep making heroic attempt to get to Level 10'. चलिए साब अब लेवल 10 तक चलते हैं !