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Sunday 28 April 2019

खजुराहो की कामुक मूर्तियाँ - 1

मध्य प्रदेश का छोटा सा शहर खजुराहो अपने मंदिरों के कारण विश्व प्रसिद्द है. ये सभी मंदिर विश्व धरोहर - World Heritage Site में आते हैं. भोपाल से खजुराहो की दूरी 380 किमी है और झांसी से 175 किमी. खजुराहो हवाई जहाज, रेल या सड़क से पहुंचा जा सकता है. हर तरह के होटल और अन्य सुविधाएं उपलब्ध हैं. 

खजुराहो की स्थापना करने वाले चन्देल राजा चंद्र्वर्मन थे जिन्होंने इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया था. चन्देल राजवंश ने लगभग नौवीं शताब्दी से लगभग तेरहवीं शताब्दी तक बुंदेलखंड के कुछ हिस्सों और उसके आस पास राज किया था. खजुराहो के ज्यादातर मंदिर सन 850 से सन 1150 के बीच चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए थे. बीस वर्ग किमी में फैले क्षेत्र में पच्चासी मंदिरों का निर्माण हुआ था. इन पच्चासी मंदिरों में से अब पच्चीस मंदिर ही शेष हैं जो छै वर्ग किमी में फैले हुए हैं. तेरहवीं सदी में यहाँ दिल्ली के सुल्तानों के हमले हुए और वो इस इलाके पर काबिज हो गए. मंदिरों को नुक्सान पहुंचा और मंदिरों की देखभाल और उनका महत्व घट गया. ज्यादातर मंदिर झाड़ झंखाड़ और जंगल में खो गए. 1830 में ब्रिटिश सर्वेयर टी एस बर्ट ने मंदिरों की पुनः खोज की.इस खोज के कुछ बरस बाद एलेग्जेंडर कन्निन्घम ने मंदिरों की विस्तृत जानकारी दी और 1852 में मैसी ने मंदिरों के पहले रेखा चित्र बनाए. 

मंदिरों में भारी, मज़बूत और बढ़िया किस्म का बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट का प्रयोग किया गया है. पत्थर जोड़ने के लिए कोई सीमेंट नहीं इस्तेमाल किया गया है बल्कि इन पत्थरों में खांचे बना कर एक दूसरे में फंसा दिया गया है जो कमाल की कारीगरी है. सभी मंदिर ऊँचे और लम्बे-चौड़े चबूतरों पर बनाए गए हैं. ये मंदिर और मूर्तियाँ वास्तु और मूर्तिकला के बेमिसाल नमूने हैं. 

मंदिरों की बाहरी दीवारों पर लगभग आठ नौं फुट की ऊँचाई पर दो या तीन कतारों में सैकड़ों सुंदर मूर्तियां बनी हुई है. इनमें विष्णु और उनके अवतार, शिव, पार्वती, गणेश के अलावा यक्ष, यक्षिणी, देवियाँ, सैनिक, जानवर, पेड़, पौधे, और राजा रानियाँ हैं और जीवन के हर पहलु के विभिन्न दृश्य हैं. 

सभी मंदिरों को मिला कर देखा जाए तो महिलाओं की मूर्तियों की बहुतायात लगती है. लगभग 8-10% कामुक या मिथुन मूर्तियाँ हैं जो विश्व प्रसिद्द हैं और जो खजुराहो की पहचान बन गई हैं. सभी मूर्तियों में चाहे महिला हो या पुरुष, हृष्ट पुष्ट और भरपूर शरीर के बनाए गए हैं. स्त्रियों के वक्ष स्थल, नितम्ब, बाहें, टांगें, और चेहरे सही अनुपात में और सुंदर तरीके से दर्शाए गए हैं. बालों के जूड़े और स्टाइल, शरीर के विभिन्न भागों में पहने हुए जेवर बारीकी से बनाए गए हैं. पुरुषों ने भी बहुत से जेवर पहन रखे हैं, या कई तरह की दाढ़ियाँ रखी हैं. सभी के चेहरों पर अलग अलग परन्तु यथा-योग्य भाव हैं. ज्यादातर पुरुषों का हल्का सा बढ़ा हुआ पेट भी बनाया गया है याने ये लोग खाते पीते घर के हैं!
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

 प्रणय मुद्रा में युगल शालीनता और धैर्य के साथ. अंगों का पारस्परिक अनुपात, हाथों, बाहों और टांगों की स्थिति बेहतरीन ढंग से बनाई गई है  

कामुक युगल. हाथों पैरों की स्थिति और चेहरे पर भाव में सुंदर बारीकी है 

सिर पर मुकुट के कारण राजा रानी लग रहे हैं. चेहरों पर सौम्य भाव है. शारीरिक मुद्रा दोनों का अन्तरंग होना सुन्दरता से दिखाया गया है 
कामुक युगल की सुंदर भाव भंगिमाएं 

छोटे छोटे आलों में बनी कामुक युगल मूर्तियाँ शायद आम लोगों की हैं. ये ज्यादा सुघड़ और उतनी सुंदर नहीं हैं जितनी की राजा रानियों की 

प्यार में पुरुष की दाढ़ी सहलाती महिला ! दोनों के चेहरे के भाव आकर्षक हैं 

चुम्बन लेते मिथुन युगल की सुंदर मुद्रा 
डांस में मस्त युगल. पत्थर की युगल मूर्ती में पैरों, टांगों और हाथों का गजब का प्रदर्शन 
पत्थर के बने चुम्बन लेते कामुक युगल की शानदार प्रतिमा. पत्थर में होते हुए भी दोनों की शारीरिक भाषा में एक प्रवाह और आकर्षण है    

ऊँचे और विशाल जैन मंदिर की बाहरी दीवार में छोटी छोटी मूर्तिकारी की तीन पंक्तियाँ 






......भाग  - 2 में जारी रहेगा  ......



Wednesday 24 April 2019

जावरी मंदिर खजुराहो

मध्य प्रदेश का छोटा सा शहर खजुराहो अपने मंदिरों के कारण विश्व प्रसिद्द है. ये सभी मंदिर विश्व धरोहर - World Heritage Site में आते हैं. भोपाल से खजुराहो की दूरी 380 किमी है और झाँसी से 175 किमी है. खजुराहो छतरपुर जिले का हिस्सा है. खजुराहो में एक एयरपोर्ट भी है. इसके अलावा रेल और सड़क से भी पहुंचा जा सकता है. हर तरह के होटल और अन्य सभी सुविधाएं यहाँ उपलब्ध हैं. 

खजुराहो की स्थापना करने वाले चन्देल राजा चंद्र्वर्मन थे जिन्होंने इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया था. चन्देल राजवंश ने लगभग नौवीं शताब्दी से लेकर लगभग तेरहवीं शताब्दी तक बुंदेलखंड के कुछ हिस्सों और उसके आस पास राज किया था. इस दौरान पहले राजधानी खजुराहो में बनी और फिर महोबा में बना दी गई थी.

खजुराहो के ज्यादातर मंदिर सन 850 से सन 1150 के बीच चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए थे. बीस वर्ग किमी में फैले क्षेत्र में पच्चासी मंदिरों का निर्माण हुआ था जिनमें से पहला मंदिर चौंसठ योगिनी मंदिर माना जाता है जो 850 - 860 में बना और आखिरी मंदिर - दुल्हादेव मंदिर लगभग 1110 - 1125 में बनवाया गया माना जाता है. इन पच्चासी मंदिरों में से अब पच्चीस मंदिर ही शेष हैं जो छे वर्ग किमी में फैले हुए हैं.

खजुराहो के मंदिरों में से एक मंदिर है जावरी मंदिर ( कहीं कहीं जवारी मंदिर भी कहा गया है ) जो की भगवान विष्णु को समर्पित है. परन्तु गर्भगृह में विष्णु की मूर्ति खंडित है और उसके चारों हाथ और मस्तक टूटे हुए हैं. मंदिर एक ऊँचे, 39 फुट लम्बे और 21 फुट चौड़े चबूतरे पर भारी और मजबूत पत्थरों से बना है. शिखर की बनावट बहुत सुंदर है. खजुराहो के अन्य मंदिरों की तरह जावरी मंदिर की बाहरी दीवारों पर मिथुन मूर्तियाँ हैं पर कम हैं. मंदिर बनाने का समय सन 950 से 975 माना जाता है.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो :


मंदिर की बाहरी दीवार पर बनी सुंदर मूर्तियाँ. चेहरे पर सजीव भाव  

कामुक युगल 

नंदी मनुष्य के रूप में. बाँई ओर कामुक युगल 

बाहरी दीवार पर बने छोटे से शिवालय में शिव पार्वती 

बाहरी दीवार की बहुत सी मूर्तियाँ क्षतिग्रस्त हैं 
'मकर' तोरण इस मंदिर की विशेषता है. इसमें तीन उलटे कमल थे जो टूट चुके हैं 

भारी भरकम पत्थरों पर टिका मंदिर 

भारी पत्थरों पर बारीक काम 

सुंदर  सुघड़ शिखर 


खजुराहो के कुछ अन्य मंदिरों पर सचित्र ब्लॉग मंदिर के नाम पर क्लिक करके देख सकते हैं :

1. चौंसठ योगिनी मन्दिर
2. दुल्हादेव मंदिर
3. वाराह मंदिर
4. चतुर्भुजा मंदिर
5. वामन मंदिर




Sunday 21 April 2019

वामन मंदिर खजुराहो

मध्य प्रदेश का छोटा सा शहर खजुराहो अपने मंदिरों के कारण विश्व प्रसिद्द है. ये सभी मंदिर विश्व धरोहर - World Heritage Site में आते हैं. भोपाल से खजुराहो की दूरी 380 किमी है और यह छतरपुर जिले का हिस्सा है. खजुराहो में एक एयरपोर्ट भी है. इसके अलावा रेल और सड़क से भी पहुंचा जा सकता है. हर तरह के होटल और अन्य सुविधाएं यहाँ उपलब्ध हैं. छोटा सा शहर होने के कारण सभी मंदिरों को पैदल या साइकिल सवारी कर के देखा जा सकता है वर्ना इ रिक्शा तो हैं ही. 

खजुराहो की स्थापना करने वाले चन्देल राजा चंद्र्वर्मन थे जिन्होंने इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया था. चन्देल राजवंश ने लगभग नौवीं शताब्दी से लेकर तेरहवीं शताब्दी तक बुंदेलखंड के कुछ हिस्सों और उसके आस पास राज किया था. इस दौरान पहले राजधानी खजुराहो में बनी और फिर महोबा में बना दी गई थी.

खजुराहो के ज्यादातर मंदिर सन 850 से सन 1150 के बीच चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए थे. बीस वर्ग किमी में फैले क्षेत्र में पच्चासी मंदिरों का निर्माण हुआ था जिनमें से पहला मंदिर चौंसठ योगिनी मंदिर माना जाता है जो 850 - 860 में बना और आखिरी मंदिर - दुल्हादेव मंदिर लगभग 1110 - 1125 में चंदेल राजा मदन वर्मन द्वारा बनवाया गया माना जाता है. इन पच्चासी मंदिरों में से अब पच्चीस मंदिर ही शेष हैं जो छे वर्ग किमी में फैले हुए हैं.

खजुराहो के मंदिरों में से एक मंदिर है वामन मंदिर. यह मंदिर वामन जो की विष्णु के पांचवें अवतार माने जाते हैं, को समर्पित है. मंदिर एक ऊँचे, 62 फुट लम्बे और 45 फुट चौड़े चबूतरे पर बना है. इसमें अर्धमंडप, महामंडप, अंतराल और गर्भगृह हैं. गर्भगृह में वामन की मूर्ति है. मंदिर की बाहरी दीवार पर दो कतारों में मूर्तियाँ हैं. मंदिर भारी और मजबूत पत्थरों से बना लगता है. खजुराहो के अन्य मंदिरों के मुकाबले वामन मंदिर की बाहरी दीवारों पर मिथुन मूर्तियाँ कम हैं. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो :


1. बाहरी दीवार पर उकेरी कुछ सजीव मूर्तियाँ 

2. सुडौल शरीर और चेहरे पर सुंदर भाव भंगिमा

3. व्याल और महिलाओं की मूर्तियाँ. हर चेहरा बड़ी मेहनत से उकेरा गया है और हरेक का भाव भी अलग अलग है. बालों का स्टाइल और जेवर बहुत सजीव बनाए गए हैं   

4. कामुक मुद्रा में यक्षिणी 

5. मंदिर के दाहिनी ओर का एक दृश्य 

6. दो कतारों में की गयी बिमिसाल नक्काशी 

7. बहुत सी बाहरी मूर्तियाँ खंडित हो चुकी हैं 

8. सुंदर बनावट और आभूषणों से सज्जित 

9. मंदिर की बाँई दीवार 

10. वामन मंदिर 

11. वामन मंदिर 

12. गर्भगृह 

13. वामन 

खजुराहो के चार अन्य मंदिरों पर सचित्र ब्लॉग इन नामों पर क्लिक कर के देखे जा सकते हैं :

1. दूल्हादेव मंदिर 

2. वराह मंदिर 

3. चौंसठ योगिनी मंदिर 

4. चतुर्भुजा मंदिर 



Thursday 11 April 2019

मैत्रेय बुद्ध लद्दाख

कारगिल से लगभग 45 किमी दूर पर लेह की ओर जाते समय मुल्बेख चंबा नमक एक जगह आती है. यहाँ एक चट्टान पर 9 मीटर ऊँची खड़े हुए "मैत्रेय बुद्ध" की मूर्ती उकेरी हुई है. 1975 में चट्टान से लगा हुआ एक मंदिर भी बन गया है जिसके कारण मूर्ती का निचला कुछ हिस्सा छुप गया है  

प्रार्थना चक्र या prayer wheel. पास में लगे बोर्ड के ऊपर वाले भाग में "महापरिनिर्वाण सुत्त" का आंशिक अनुवाद है जिसमें शाक्यमुनि गौतम बुद्ध ने कहा था कि इस धरती पर जन्म लेने वाला मैं पहला या अंतिम बुद्ध नहीं हूँ. मेरे से पहले और मेरे बाद भी बुद्ध होते रहेंगे. दूसरे पैरा में लिखा है -
'This statue of Maitreya was carved probabaly in first century BC during Kushan period. According to the Buddhist belief, fifth Buddha will be Maitreya in the series of one thousand Buddhas who are to visit this world.' 

कुछ लोगों का मानना है की मूर्ती सातवीं या आठवीं शताब्दी की हैं. पास में ही खरोस्ती भाषा में कुछ शिलालेख भी मिले हैं. खरोस्ती ( खरोष्ठी ) भाषा गंधार में प्रचलित प्राकृत और संस्कृत का मिला जुला रूप है  

सन 1400 में लिखे एक शिलालेख में पश्चिमी लद्दाख के राजा ने यहाँ के लामा को बकरे की बली बंद करने का आदेश दिया था. परन्तु स्थानीय लोगों ने राजा का ये आदेश नहीं माना क्यूंकि उनकी देवी नाराज़ हो सकती थी! अभिलेख का इंग्लिश अनुवाद विकिपीडिया से -
Oh Lama take notice of this! The king of faith, Bum lde, having seen the fruits of works in the future life, gives orders to the men of Mulbe to abolish, above all, the living sacrifices, and greets the Lama. The living sacrifices are abolished."
Sadly, the people of Mulbekh found this too onerous to follow, for beside King Lde's edict, on the same rock, is an inscription saying "For what would the local deity say, if the goat were withheld from him?"


इस जगह से थोड़ा दूर एक दुर्गम 300 मीटर ऊँची पहाड़ी पर मुल्बेख बौद्ध विहार भी है. आसपास छोटे और टूटे फूटे बौद्ध स्मारक या अवशेष बिखरे हुए हैं जिन पर ध्यान देने की ज़रुरत है   

                                                      
*** मुकुल वर्धन के सौजन्य से  *** Contributed by Mukul Wardhan ***