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Saturday 1 December 2018

सातवीं बालकनी से


सातवीं बालकनी से 
बैंगलोर जब पहली बार 1970 में देखा था तब ये हरा भरा और झीलों तालाबों वाला शहर था.  दूसरी बार 2014 में देखा तो बैंगलोर बदल कर बंगलुरु हो चुका था. हरा भरा था पर बड़े बड़े दफ्तरों और ऊँची रिहायशी इमारतों ने कई तालाब और झीलें गटक लीं थीं. 2018 में तीसरी बार बंगलूरू गए तो देखा कि कारों और स्कूटरों की संख्या बेहिसाब बढ़ गई है, सड़कें सिकुड़ चुकी हैं और फुटपाथ फुर्र हो चुके हैं. कहीं घूमने नहीं गए और पूरे पंद्रह दिन सातवें माले की बालकनी में ही गुज़ार दिए!

बंगलुरु की एक चीज़ जो नहीं बदली वो है ठंडी हवा. मस्त ठंडी हवा का पेटेंट बंगलुरु ने अपने नाम लिख रखा है. ये तो पता नहीं कि हवा बंगाल की खाड़ी से आती है या फिर अरब सागर से, पर चौबीस घंटे, बारह महीने चालू रहती है. न पंखा, न एसी, न कोट, न स्वेटर और न ही पैरों में जूते. बस हाफ पैन्ट, टी शर्ट और चप्पल. बारिश भी मस्त है. सुबह आसमान साफ़, दोपहर को हलके सफ़ेद बादल, शाम को काले बादल और रात को बारिश. पानी कहीं रुकता नहीं इसलिए सुबह तक जमीन और आसमान साफ़.

अपार्टमेंट और विला 
बंगलुरु पिछले दशकों में सॉफ्टवेयर का अंतर्राष्ट्रीय अड्डा बन गया है. इसकी वजह से भी यहाँ जीने की स्टाइल में बदलाव आया है. तनख्वाह अब पैकेज कहलाती है. 5-7 लाख सालाना पैकेज से शुरू होकर 50- 60 लाख सालाना पैकेज या उससे भी ऊपर जा सकती है कोई सीमा नहीं रही अब. सालाना इन्क्रीमेंट और बोनस का तो रूप ही बदल गया है. आप ये भी कह सकते हैं की पगार नहीं बढ़ाते हो तो मैं चला दूसरी कम्पनी में! कम्पनी भी कह सकती है चलो फूट लो! ऑफिस का रंग ढंग और ऑफिस के समय भी बदल गए हैं. कुछ तो चौबीसों घंटे ही खुले रहते हैं. घर से काम करने की सुविधा भी मिल जाती है. ऑफिस में फ्री खाने पीने, मनोरंजन, डॉक्टर जैसी सुविधाएं भी मिलने लग गई हैं.

अगर चालीस साल का मैनेजर लें जिसका पैकेज पचीस लाख का हो तो उसे घर भी अच्छा चाहिए और सुविधाएं भी. इस डिमांड को पूरा करने के लिए बिल्डर कूद पड़े. गाँव खेड़े की जमीनें बिक गईं,अपार्टमेंट और विला बनने लगे और बंगलुरु की शकल बदल गई. सड़कें सरकार बनाती रहेगी उसमें बिल्डर ने क्या करना है? अपार्टमेंट के साथ ही बच्चों के झूले, स्विमिंग पूल, लॉन टेनिस, बास्केट बाल, फुटबाल वगैरा खेलने की सुविधाएं भी दी जाने लगी हैं.

बढ़ी हुई पगार और बेहतर सुवधाओं के कारण यहाँ पंजाबी, मलयाली, बंगाली, गढ़वाली, तमिल, उड़िया याने भांत भांत के नौजवानों ने फ्लैट खरीद लिए हैं. अर्थात हिंदुस्तान का सही नक्शा बन गया है. अब फ्लैटों में मल्लू क्लब, पंजू ग्रुप, बोंग ग्रुप, गुज्जू समाज वगैरा बन जाते हैं. आप हेलो हाई करते रहें तो पूरे साल निमंत्रण मिलते रहेंगे. कहीं सांभर वड़ा, कभी ढोकला फाफड़ा, कभी केक पेस्ट्री, कहीं माछ भात और कहीं दारु की दावत मिलती रहेगी. एक बात और है जब तक हम दिल्ली से ऋषिकेश जाने की सोचते हैं तब तक ये लोग स्विट्ज़रलैंड या ऑस्ट्रेलिया घूम आते हैं! इनकी जेबें ज्यादा गरम हैं और आजकल यात्रा भी आसान है.

इस चंगी सी तस्वीर का दूसरा रुख भी है. बाल जल्दी सफ़ेद हो रहे हैं, चश्मे जल्दी लग रहे हैं और गोलियां ज्यादा खा रहे हैं. नियम से वर्जिश, जिम, वाक, जॉगिंग या योगा नहीं कर रहे हैं.

बालकनी से उतर कर ज्योंही आप बाहर सड़क पर आते हैं तो सवाल उठता है गोरमिंट कुछ गौर कर रही है? या टैक्स खा के ऊँघ रही है? टूटे फुटपाथ पर बैठे नारियल पानी वाले ने बताया की मधुबनी, बिहार से आया है, पुलिस को और नगर निगम की सफाई वाली गाड़ी को 'पैसवा देना पड़त' है. एक गार्ड को पुरानी पेंट शर्ट दी जिसने बताया की वो क्योंझर, ओडिशा से आया हुआ है. दो गार्ड असमिया मिले और एक मैसूरू का. इनके पैकेज लाख सवा लाख से ऊपर ही हैं. काम वाली पास के किसी गाँव से आती थी. न उसे हिंदी आती न हमें कन्नड़ इसलिए बात नहीं हो पाई. 

कॉफ़ी तैयार है आइये बालकनी में बैठते हैं.

हो गई छुट्टी  

सर्विस प्रोवाइडर  

आर्डर का सामान आ गया 

आज की कोन्फेरेंस 

मैसुरु से आया मेरा दोस्त 

शनि बाज़ार




1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2018/12/blog-post.html